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काठगोदाम

काठगोदाम:

काठगोदाम एक छोटा रेलवे स्टेशन। वहाँ से पहाड़ों का दृश्य मन को मोह लेते हैं। पहले हमेशा एक नम्बर प्लेटफार्म से रेलगाड़ी पकड़ता था। और कभी पहाड़ों की ओर दृष्टि नहीं गयी। इसबार प्लेटफार्म नम्बर तीन पर सुबह आठ बजे खड़ा हूँ। दो - तीन दिन पहले खूब बारिश हुई है। अत: यह सुबह जीवनदायी लग रही है। हल्की-हल्की हवा में हल्की सी ठंड है शायद पहाड़ों को छू कर आ रही है। जो कन्दराएं दिख रही वहां मन घुसने लगा है। दूर एक पहाड़ी पर एक गांव दिख रहा है। मन का प्यार वहां पहुंच कर घुस-घुसी खेलने लगा है। मनुष्य कितनी कहानियां बनाता है। कुछ स्वयं ही बन जाती हैं। वातानुकूलित डिब्बे में सामान रख कर बाहर निकलता हूँ। सोचता हूँ इस सौंदर्य को जीभर पी जाऊं। लेकिन प्रकृति ने सबके लिए इसे रचा है। सामने बेंच पर बैठ गया। बगल में एक महिला उसके भतीजे से कुछ कह रही है। मेरे कान उनकी बातों पर लग गये। महिला कुसुम अपने भतीजे नीरज से कह रही तू इस बार खोया-खोया लग रहा है। उस लड़की शीतल से कुछ अनबन तो नहीं हो गयी है। पहले तो फेसबुक पर दोनों के फोटो साथ साथ दिखते थे। तुम्हारे घर भी वह आती-जाती थी। तेरी बहिन से भी उसकी बड़ी दोस्ती थी। तेरी माँ की वह किचन में हाथ बटाने के लिए उत्सुक दिखती थी। बहुत दिनों से नजर नहीं आ रही है। इस पर नीरज कहता है वह ठीक लड़की नहीं है, चाची। वह जिद करके दिल्ली चली गयी थी, घर पर अपनी माँ और दो बहिनों को छोड़कर। कह रही थी वहां कोई कोर्स कर रही थी। वहां उसकी दोस्ती अश्विन से हुई और उसके साथ अपना फोटो फेसबुक में डाले थी। जब मैंने पूछा कि यह लड़का कौन है तो कहने लगी मेरा दोस्त है। अश्विन का फोन नम्बर लेकर मैंने उससे बात करनी चाही तो उसने मेरा फोन नहीं उठाया। कुछ समय बाद शीतल का फोन आया कि उसको कालेज और छात्रावास की फीस भरनी है।

बीस हजार रुपये। मेरे को बोली शीध्र भेज दो। मैंने मना कर दिया। कुछ दिन बाद वह घर लौट आयी। फिर मैंने अश्विन को फोन किया तो उसने बताया, " वह अच्छी लड़की नहीं है। मेरे से उसका अब कोई सम्बन्ध नहीं है। " कहानी सुनने में साधारण लग रही थी, लेकिन कहानी के अन्दर छिपे जीवन के अस्तित्व और सच का आभास अवश्य हो रहा था। नीरज आगे कहता है शीतल ने काठगोदाम आकर मुझे फोन किया। मैंने उसको साफ-साफ कह दिया कि हमारा अब कोई सम्बन्ध नहीं है। मेरे से बात मत करना। वह बार-बार फोन करती है और मैं उसका फोन नहीं उठाता हूँ। उसने मेरी माँ और बहिन से सम्पर्क किया। माँ ने उसे बता दिया है यह तुम दोनों के बीच की बात है। मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती हूँ। मेरी बहिन ने उसे कह दिया है तुम इस सम्बन्ध में कोई बात नहीं करना। नहीं तो मेरा भाई मुझे डाटेगा। मैंने अपना फोन नम्बर भी बदल दिया है। अब चाची मैं घर वालों द्वारा तय शादी ही करूंगा। प्यार-ह्यार के चक्कर में नहीं पड़ना है। " यह तकनीकी कहानी लग रही थी। अनुभूतियां कहीं न कहीं दबी लग रही थीं। इतने में चाची कुसुम बोली तय शादी में भी गिले- शिकवे तो होते ही हैं। सीमा कह रही थी कि उसके माँ-बाप ने कैसे लोगों को मेरा हाथ थमा दिया है, जिन्में बिल्कुल भी सामाजिकता नहीं है। घर में कुत्ते-बिल्ली की तरह लड़ते हैं। जब रिश्ता लेकर आये थे तो चिकनी चुपड़ी बातें करते थे और मेरे माता-पिता इनकी बातों में आ गये। अब लगता है कहाँ फँस गयी हूँ। जीवन एक पेड़ की तरह है जिसकी जड़ें दिखती नहीं। लेकिन जड़ों पर ही पूरे पेड़ का अस्तित्व निर्भर करता है। ऐसे ही जीवन की सपाट कहानी के अन्दर अनुभूतियों, आस्थाओं और संघर्षों का समुद्र हिल्लोरें लेता रहता है। चाची बोली, "बेटा दिल से मत लेना पुरानी बातें। " नीरज ने कहा, " नहीं चाची, ये सब समय और पैसे की बर्बादी है। अब मैं इन चक्करों में नहीं पड़ने वाला हूँ। " मैं

मैं बीच में बोल दिया, देखो, असफल या अपूर्ण प्रेम कहानियां ही अधिकांशतः अमर होती हैं। उनहोंने मेरी ओर देखा। तभी नीरज का दोस्त वीर वहां आ गया और बोला नीरज क्या चल रहा है आजकल? सुना है शीतल तुझे छोड़ दी है। नीरज का चेहरा निस्तेज हो गया। अतीत पीछा तो करता है। उसे भुलाने के लिए आदमी कभी शराब पीता है, कभी नींद की गोलियां लेता है और कभी नशा करने लगता है। वीर फिर बोला, " नीरज कल मेरे साथ चलेगा, एक पूछ करनी है मुझे। मेरी पत्नी को चक्कर आ रहे हैं और कभी बिहोशी की हालत में बकबक करती है। परिवार वालों को देवता या छल का अंदेशा है। नीरज ने हामी भरी और बोला तूने पहले भी तो एकबार पूछ की थी और देवता भी नचाया था। वीर ने कहा, " यार, वह पुछ्यारा (भविष्य वक्ता) ढ़ोंगी था। कह रहा था इस पत्नी को छोड़ कर दूसरी लड़की से शादी कर ले। और देवता नाचा ही नहीं। इतने में चाची बोली, " डॉक्टर को दिखा दो एकबार। " वीर ने चाची की बात अनसुनी कर दी क्योंकि वह और उसका परिवार अंधविश्वासों के तले दबा लगता है। मैंने ऊँचे पहाड़ों पर दृष्टि दौड़ायी और एक आलोक मन में दौड़ने लगा। मानवीय प्यार का विकल्प प्रकृति में कोई बहाये जा रहा है। इतने में एक बुजुर्ग एक लड़की को छोड़ने आता है, लड़की अपनी सीट पर बैठ जाती है। वह बुजुर्ग को चले जाने को कहती है। आदमी चला जाता है, शुभकामनाएं और आशीर्वाद देकर। चंद मिनट बाद एक लड़का आता है और लड़की के बगल में बैठ जाता है। दोनों हँसी-मजाक में व्यस्त हो जाते हैं। नीरज ध्यान से सब कुछ देखता है और फिर उधर से दृष्टि फेर लेता है। गाड़ी चलने में केवल पाँच मिनट शेष हैं। तभी मेरा एक दोस्त डिब्बे में दिखता है। उसकी चार शादियां हो चुकी हैं। उसके शरीर से तीक्ष्ण दुर्गंध आती है, इसी कारण पत्नियां तलाक ले लेती हैं। मुझे महाभारत की कथा याद आ जाती है। जहाँ सत्यवती के शरीर से मछली की तीव्र गंध आती है और एक ऋषि उस गंध को उसके शरीर से दूर कर देता है। मैं अपने दोस्त को कहता हूँ, " तू अपने गंध वाली महिला से शादी किया कर। या फिर किसी ऋषि को खोज जो तेरे शरीर की गंध दूर कर दे। "

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