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अंकित

अंकित

अंकित अपनी परिचित दोस्त सौरव को अपनी कहानी सुनाता है। गर्मियों के दिन हैं। कमरों में असहनीय गर्मी है। दोनों रात को छत्त पर चले जाते हैं। वह अपनी रामायण के पन्ने पलटता है। रात सूनी-सूनी है। अजायब घर की तरह। नक्षत्र टिमटिमा रहे हैं। वह बोलता है-

"ऐसा प्यार किया

जहाँ शब्द कम थे,

जो थे वे गड्डमड्ड हो गये,

आँखें थीं टिकी-टिकी, झुकी-झुकी,

पंख थे पर फड़फड़ाने के लिये,

आकांक्षा थी लड़खड़ाने के लिये

राह थी आधी-अधूरी, टेड़ी-मेड़ी

हवायें थीं चंचल -चपल, दौड़ती

मौसम था पल-पल बदलता, झुका-झुका,

धूप थी टहलती-टहलती,बिछी-बिछी,

झील थी वर्षों से रुकी, लहरदार

पहिचान थी रिक्त-रिक्त, खड़ी-खड़ी। "

वह रुका। उसका साथी सौरव बोला आगे क्या हुआ। उसने दूर तारों पर दृष्टि गड़ाई। और कल्पनाओं को उड़ान दी। हवा धीरे-धीरे बह रही थी। वह बोला," आज कोई परी इस आकाश से उतरेगी और कहेगी वह प्यार करने धरती पर उतरी है, जैसे उर्वशी आयी थी। पुरुरवा थे। ययाति मुग्ध हो गये थे उम्र पर, ध्यान ही नहीं रहा कब हजार साल बीत गये। देवयानी और शर्मिष्ठा उनकी पत्नियां थीं। देवयानी कच को प्यार करती थी लेकिन कच ने देवयानी से शादी करने को मना कर दिया था। देवयानी और शर्मिष्ठा ने अपनी इच्छा से ययाति का वरण किया था। बहुत से राजा आसानी से दिल दे देते थे। शान्तनु को धीवर कन्या पसंद आ गयी। राजा तो राजा ही होता है। पर प्यार एकतरफा होने की कीमत भी चुकानी पड़ती थी। दुष्यन्त लेकिन शकुन्तला को भूल जाते हैं। अंगुठी मिल जाने से इतिहास बदल जाता है। फिर आम आदमी का प्यार आता है। प्यार, मोक्ष की ओर ले जाता है। पर ययाति की तरह बार-बार यौवन भी मांग सकता है। हम उसे कितनी तरह पढ़ सकते हैं। पढ़ना भी मोक्षदायक और आनन्दायक हो सकता है। "

सृष्टि को अंकित ने दुष्यन्त की कहानी सुनायी। कालिदास की तरह नहीं, अपनी तरह। जैसे-

"फिर एक बार कहूँ

मुझे प्यार है,

और कोई सुने

कुछ उत्तर न दे,

महसूस करता रहे शब्दों को

पूरे दिन, पूरी रात

वर्षों तक, जीवनभर।

मैं कहता रहूँ

उत्तर न आय,

दोहराऊँ नहीं

युगों तक उन्हें,गुथा रहने दूँ।

आँखों के आकाश में

घूमता रहूँ,भटकता जाऊँ

नहीं, नहीं, नहीं सुनता

बँधा रहूँ कृष्ण-राधा की तरह।

एकबार फिर कह दूँ

कि मुझे प्यार है,

और तुम्हारे संसार को हिला दूँ।

तथा तुम देखते रहो,मधुरता से

और मेरे संसार को हिला दो,

फिर एक बार कहूँ

मुझे प्यार है। "

दूसरे दिन भी अंकित और सौरव सोने के लिये छत्त पर गये। दोनों चुपचाप लेटे थे। हवा सुहानी हो चुकी थी। सौरव ने अंकित को छेड़ा और कहा कि,"कल की कहानी में फिर क्या हुआ" अंकित ने कहा," होना क्या था फिर बीच में राक्षस और असुर आ गये। " और दोनों हँसने लगे। फिर वह बोला कि," कच ने देवयानी को शादी करने से मना किया तो देवयानी ने कच को श्राप दिया कि जो शिक्षा उसने ग्रहण की है वह ठीक समय पर उसके काम नहीं आयेगी। " और कच ने देवयानी को कहा कि," तुम्हें ब्राह्मण कुल में पति नहीं मिलेगा। " आजकल स्थिति और है। फिर अंकित बोला ,"यार, आज दिन में सोया था एक घंटा। एक सपना आया, नक्षत्रों और सूरज के बारे में। मैं प्रशिक्षण दे रहा था तीन-चार लोगों को। अभी-अभी गुरुत्वाकर्षण लहरों की पुष्टि हुई है। उसकी बात हो रही थी। मैंने एक व्यक्ति से पूछा कि सूरज कितने समय तक और रहेगा? अर्थात सूरज की उम्र। फिर मैं बोला कुछ अरब वर्ष और उसके बाद वह श्वेत विवर बन जायेगा, ऐसा वैज्ञानिक कहते हैं। फिर हिम युग आयेगा नयी उथल-पुथल होगी। इसके बाद नींद खुल गयी। "

फिर बोला," परी" उसके परी कहते ही सौरव बोला कि," तेरी परी रोज आकाश से उतरती है और आधे में आकर गायब हो जाती है, रहस्य बन जाती है। "तो अंकित कहता है तू नहीं समझेगा। फिर एक लय में बात रखता है-

"प्यार कैसे होता है

पहाड़ों से पूछो

जहाँ वह गूँजता है।

बहुत उबड़-खाबड़ राह में

ठोकर खा लेता है,

आकाश को छूने का आभास दे

घुस्स-घुस्सी खेल

नीचे उतरता पानी की तरह।

प्यार कैसे होता है

आँखों से पूछो

जिनमें वह जीवनभर रहता है

आँसुओं के साथ,

हँसी-मुस्कान को पकड़। "

उन दिनों अंकित पुस्तकालय में हिमांशु जोशी की कहानी " तुम्हारे लिए" पढ़ रहा था। वह कहानी उसे अच्छी लग रही थी। लेकिन वह सौरव को कुछ बातें बताता, शेष अपनी संवेदनाओं में रख देता था। अमृत सब बाँटा नहीं जाता है। बिष के लिये शंकर भगवान या ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं ही।

उसने हीर-राँझा, सोहनी-मेहवाल, लैला-मजनू की कहानियां सुनी थी, कितना यथार्थ उनमें था, ये तो उसे पता नहीं था पर सब उलझी हुई थीं।

सत्यवान- सावित्री की भी तो कहानी है, सौरव बोला। हाँ, बचपन में पढ़ी थी, अंकित आगे बोला कि ," सावित्री राजकुमारी होती है। सावित्री-सत्यवान का प्यार जंगल में होता है, इसी लिये सफल रहा। जब सत्यवान एक साल बाद, जंगल में बेहोश हो जाता है और उनका सिर सावित्री की गोद में होता है तो धर्मराज प्रकट होते हैं। सावित्री उनसे बोलती है कि," मैं अपने पति के साथ सती होना चाहती हूँ। " धर्मराज बोलते हैं, नहीं यह उचित नहीं है। तुम्हारी उम्र अभी पूरी नहीं हुई है। तुम कोई वरदान मांगो। सावित्री कहती है कि," मैं पुत्रवती होऊँ। "धर्मराज तथास्तु कह कर सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगते हैं। तब सावित्री बोलती है कि," धर्मराज, मेरे पति के प्राण तो आप ले जा रहे हैं तो मैं पुत्रवती कैसे हो पाऊँगी?" यह सुन कर धर्मराज मुस्कराते हैं और सत्यवान को जीवित कर देते हैं। फिर सत्यवान चार सौ साल जीवित रहे। "

फिर बोला कि," जहाँ मैंने प्यार किया थोड़ा-बहुत जंगल तो वहाँ भी था। " सौरव बोल घना नहीं होगा, सतयुग की तरह।

तभी आकाश से एक तारा गिरता है और दोनों इसे शुभ घड़ी मानते हैं। सौरव कहता है ये तेरा प्यार-ह्यार एक तरह की मानसिक बिखराव है। लेकिन सुनने में अच्छा लगता है। अभी एक सर्वेक्षण आया था, जिसमें नब्बे प्रतिशत असफल श्रेणी की हैं ये बातें। यह सुनकर अंकित चुप हो, अपनी पुरानी वादियों में खो गया। जो भी हो प्यार मनुष्य को हमेशा लुभाता रहा है। पहले वह मानसिक स्तर पर ही मोक्ष देता है। तभी कागज के टुकड़े पर उन्हें लिखा मिलता है-

"हथेली जो तुमने छूयी

निखरी हुई है,

दूसरे हाथ से छू

बार -बार जाँचता हूँ

कितने निकट हो तुम। "

अंकित बातों को कुछ मोड़ता है। देख,गर्मी की रातें कहानी कहने के लिये नहीं होती हैं। बचपन में जाड़ों की रातों में कथायें- कहानियां कहने और सुनने का आनन्द लेते थे। तब पता नहीं था कि अपने साथ भी सुख-दुख की कहानियां पैदा होने वाली हैं। जीवन गणित के सूत्रों-समीकरणों जैसा नहीं होता कि दो में दो जोड़ कर चार हो जायेगा या दो का वर्ग चार ही होगा। प्यार जिसमें हृदय की धड़कन दुनी हो जाती,एक कठिन अनुभूति है। कुछ कहते नहीं बनता है। वह बौराया वसंत के समान है। अपनत्व की चरम स्थिति है। हर प्यार या स्नेह में ऐसा नहीं होता है, तब धड़कन सामान्य ही रहती है। लेकिन मनुष्य हर कठिन काम करने में विशेष आनन्द का अनुभव करता है। वह हिमायल के शिखर पर चढ़ने के अभियान हाथ में लेता है। ध्रुवों की ओर जाता है। अंतरिक्ष की खोज में लगा रहता है। अनेक क्रियाओं में अपने को लगा कर संतोष ग्रहण करना चाहता है। सौरव उसे बोलता है कि," ये बातें छोड़ अपनी कथा बता। " अंकित कहता है," सब तो नहीं बता सकता पर कुछ असमान्य घटित हुआ। तब पत्रों का जमाना था। पत्र जो लिखे, काफी संक्षिप्त लिखे। उत्तर कभी नहीं आये। पता नहीं क्यों ? सृष्टि से मिलना चाहता था पर ऐसा हो नहीं सका। उसके परिवार के लोग ऐसा नहीं चाहते थे। उसकी माँ ने इस प्रकार की बात कही थी। सलाह भी दे दी कि," तुम्हें अधिक सुन्दर लड़की मिल जायेगी। " इसकी जरूरत नहीं थी। कभी-कभी हम बातें छोटी कर जाते हैं। जैसे देवयानी, कच से प्यार करती है लेकिन कच के मना करने पर,उसका श्राप देना अनुचित और छोटी सोच का होना दिखाता है। हालांकि, शाप दोनों के हल्के ही थे। कच, अमरावती जाकर अपने ज्ञान को किसी और को दे देता है और देवयानी का विवाह राजा ययाति से हो जाता है। राजा की लड़की शर्मिष्ठा को वह दासी बना देती है। बाद में ययाति शर्मिष्ठा के बच्चे के पिता बन जाते हैं। देवयानी को जब पता चला ,वह क्रोध में अपने पिता शुक्राचार्य के पास जाती है। शुक्राचार्य, ययाति को बुढ़ापे का श्राप देते हैं। ययाति बूढ़े हो जाते हैं। फिर ययाति अपने बच्चों से यौवन मांगते हैं,कोई तैयार नहीं होता केवल सबसे छोटा बेटा पुरु अपना यौवन दे देता है। " अंकित फिर बगल में रखी किताब के पन्ने पलटता है। उसे एक रचना अच्छी लगती है। वह उसे सौरव को सुनाता है।

चुलबुली चिड़िया:

“चुलबुली चिड़िया

आज मेरे आहते पर

चुलबुली चिड़िया आयी,

कहती है

हिमालय से उतरी हूँ

गंगा में नहायी हूँ

ढेरसारी बातें जानती हूँ ,

जैसे माँ का प्यार,

पिता का आशीर्वाद

उड़ान की खुशी,

जंगलों की छांव

घेरदार प्यार

मेघदूत की बात,

मौसम का बदलाव,

गोली की आवाज

आतंक का स्वार्थ

शुद्ध हवा की पहचान

बर्फीली ठंड की ठिठुरन

होली के रंग, दीपावली के अंश

महाभारत के पर्व, गीता का कर्म।

"बिना सोचे-समझे

बैठ गयी मेरे हाथ में,

इतिहास को पता है

मैं बुद्ध भी हो सकता हूँ

और निर्मम शिकारी भी। "

भाग्य पढ़ सकती हूँ

उम्र बताती हूँ

माथे की रेखाओं से

छिपे नाम निकालती हूँ।

सच-झूठ जानती हूँ ,

जीवित को समझती हूँ

श्मशान पर भी रहती हूँ,

मैं आँख खोल सोती-जागती हूँ

प्यार से नहाती हूँ।

मैंने उसे सहलाया, तपाया

एक चित्र में सुलटाया

और आकाश को लौटा दिया।

कल यह चुलबुली चिड़िया

तुम्हारे आहते पर आ

मुझे जोड़-घटा

यही सब कह डालेगी। “

पढ़ते-पढ़ते उसे आसमान अजायबघर लगने लगा। यही सब कह डालेगी।" पढ़ते-पढ़ते उसे आसमान अजायबघर लगने लगा।(क्रमशः) आज मेरे आहते पर
चुलबुली चिड़िया आयी,
कहती है
हिमालय से उतरी हूँ
गंगा में नहायी हूँ
ढेरसारी बातें जानती हूँ ,
जैसे माँ का प्यार,
पिता का आशीर्वाद
उड़ान की खुशी,
जंगलों की छांव
घेरदार प्यार
मेघदूत की बात,
मौसम का बदलाव,
गोली की आवाज
आतंक का स्वार्थ
शुद्ध हवा की पहचान
बर्फीली ठंड की ठिठुरन
होली के रंग, दीपावली के अंश
महाभारत के पर्व, गीता का कर्म।
"बिना सोचे-समझे
बैठ गयी मेरे हाथ में,
इतिहास को पता है
मैं बुद्ध भी हो सकता हूँ
और निर्मम शिकारी भी।"
भाग्य पढ़ सकती हूँ
उम्र बताती हूँ
माथे की रेखाओं से
छिपे नाम निकालती हूँ।
सच-झूठ जानती हूँ ,
जीवित को समझती हूँ
श्मशान पर भी रहती हूँ,
मैं आँख खोल सोती-जागती हूँ
प्यार से नहाती हूँ।
मैंने उसे सहलाया, तपाया
एक चित्र में सुलटाया
और आकाश को लौटा दिया।
कल यह चुलबुली चिड़िया
तुम्हारे आहते पर आ
मुझे जोड़-घटा
यही सब कह डालेगी।" पढ़ते-पढ़ते उसे आसमान अजायबघर लगने लगा।(क्रमशः)

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महेश रौतेला, अहमदाबाद

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