Lifafa books and stories free download online pdf in Hindi

लिफाफा

लिफाफा:

अच्छी खासी ठंड है। शब्द उड़ते पंछी की तरह आ रहे हैं। इतने में सुधांशु आकर मेरे बगल में बैठ जाता है। कहता है क्या लिख रहे हो? मैं उसे कागज थमा देता हूँ। उसमें लिखा है, "मैं झील के किनारे घूमता रहा। मुझे पता नहीं था, क्योंकि तब तक प्यार की खोज हुई नहीं थी। कहने के लिये उचित शब्द नहीं थे। सादी बातें थीं, जैसे कहाँ थे, कब आये, क्या पढ़ा, परीक्षा कब है, पाठ्यक्रम में क्या-क्या है? कौन सी नदी लम्बी है? कौन सा पहाड़ ऊँचा है? किस युग में राम थे, किस युग में कृष्ण थे, राधा कौन थी?

राजनीति कैसे शुद्ध होगी? ठंड रहती थी, कपड़ों से बदन ढके रहते थे, केवल दो आँखें थीं जो खोज में लगी रहती थीं। वर्षों साथ-साथ चलते-चलते थोड़ा सा कहा जो शायद समझ से परे था।

हमें पता नहीं था, प्यार क्या होता है? सोचकर होता है या बिना सोचे मिलता है। धीरे-धीरे पता लगा

जब तारों में चमक दिखी, चाँद मोहक हो गया, धूप में गुनगुनापन आ गया, हवा शीतल हो गयी, सपने आने लगे, फूल ने मन मोहा, खालीपन से रूबरू हुए, तो लगा प्यार तो अन्दर ही बैठा है एक खोये बच्चे की तरह। "

वह ध्यान से पढ़ता है। फिर कहता है, नैनीताल कैपिटल सनेमा से लेकर नैना देवी मंदिर तक कोई कहानी उसके मन में है। उसके हाथ में तीन लिफाफे हैं। एक लिफाफे में कुछ कहानियां हैं। दूसरे लिफाफे में एक कैंसर मरीज की आपबीती है और तीसरा लिफाफा रहस्यमय है। वह पहले लिफाफे को मुझे देता है। मैं लिफाफा खोलता हूँ। उसमें तीन कहानियां निकलती हैं। एक कहानी में गांव का एक लड़का है। उसके माता-पिता गांव में रहते हैं । खेती उनकी आजीविका है। वर्ण व्यवस्था से बाह्मण है। पढ़ने भेजा है। उसकी कक्षा में वैश्य संपन्न परिवार की एक लड़की पढ़ती है। वह मन ही मन उसे प्यार करता है लेकिन कभी कह नहीं पाता है। एक साल बाद लड़की कनाडा चले जाती है।

दूसरी कहानी में लड़के और लड़की का प्रेम विवाह हो जाता है। लेकिन विवाह के तीस साल बाद पत्नी को कैंसर हो जाता है। पति सुन्दर काण्ड आदि पाठ कराता है, घर पर और साथ में किमोथेरेपी चलती है। स्वयं भी रोज सुन्दर काण्ड पढ़ता है। किसी पंडित ने उसे कहा है कि हर रोज पाठ करने से उसकी पत्नी ठीक हो जायेगी। लेकिन वह बच नहीं पाती है। पत्नी के दाह संस्कार के बाद ही दूसरी शादी की बातें चलने लगती हैं। उसके दो बच्चे हैं। पच्चीस और इक्कीस साल के। बड़ी बेटी की शादी हो चुकी है। माँ के इच्छानुसार जल्दी-जल्दी शादी करायी गयी क्योंकि उन्हें आभास हो गया था कि वह बच नहीं पायेगी। लड़की की मन पसंद शादी हुई है। पहले बेटी किसी आरक्षण श्रेणी के युवक से प्यार करती है लेकिन घर वाले शादी का विरोध करते हैं। फिर उसकी कम्पनी में एक सवर्ण लड़के से उसका मेलजोल होता है और शादी तय हो जाती है। बेटी की शादी और पत्नी के दाह संस्कार के छ माह बाद वह अपनी दूसरी शादी कर लेता है। लोग उसे दूसरी शादी न करने की सलाह देते हैं लेकिन उसपर शादी की धुन सवार रहती है और किसी को बताये बिना शादी कर लेता है। धीरे-धीरे सबको पता हो जाता है। आलोचकों में महिलाओं की संख्या अधिक है।

तीसरी कहानी में लड़का लड़की प्यार करते हैं। लड़का लड़की से कहता है कि वह उससे प्यार करता है। लड़की कुछ नहीं कहती है। विदा होते समय लड़का लड़की से पानी मांगता है। लड़की पानी लाने जाती है और लड़का बिना कुछ कहे चले जाता है। वह मंदिर जाता है और माँ नन्दा से कहता है माँ अब तेरा ही सहारा है। तीन दिन बाद वह शहर छोड़ देता है।

फिर वह दूसरा लिफाफा मुझे पकड़ाता है। दूसरा लिफाफा खोलता हूँ तो उसमें उपेंद्र के बारे में पत्र निकलता है। वह असम में नियुक्त है। सोनोग्राफी कराने पर डाक्टर पथरी की शंका जताते हैं। तबियत और बिगड़ने पर मंबई में परीक्षण कराता है। बायोप्सी कराने पर कैंसर की पुष्टि होती है। इस बीमारी के कारण उसका स्थानांतरण मुंबई कर दिया जाता है। कीमोथेरेपी शुरु की जाती है। असम से आते समय वह अपने दोस्त का बैग मांगकर लाता है। और अपने दूसरे दोस्त यतीन्द्र के हाथ वापिस भेजना चाहता है। वह यतीन्द्र को फोन करता है और बैग ले जाने को कहता है। यतीन्द्र शाम को उपेन्द्र के घर पहुँचता है। उस समय उपेन्द्र और उसके पड़ोसी क्रिकेट मैच देख रहे होते हैं। वह यतीन्द्र को बोलता है, " यार, इतने बड़े मरीज को देखने अकेले आये हो, परिवार सहित नहीं आये। " यतीन्द्र कहता है, " फिर आऊंगा। " सब चाय पीते हैं और चौक्कों, छक्कों पर जोरों से उत्साहित होते हैं। घर गूंज उठता है। बैग के बारे में कहता है कि जिसका बैग है वह स्वयं आ रहा है। यतीन्द्र जाने की अनुमति लेता है तो वह अपनी पत्नी से कहता है, " ये कविता भी लिखते हैं। " तो उनकी पत्नी कहती है, " कुछ सुनाइये। " यतीन्द्र ने कहा, " फिर कभी। " और वह चला गया। दूसरे दिन उसकी कीमोथेरेपी होनी है । दूसरे दिन सुबह के ग्यारह बजे हैं। यतीन्द्र को उसके दोस्त का फोन आता है, " आपका दोस्त ऊपर चला गया है। " फोन पर सन्नाटा छा जाता है और वह फोन रख देता है। बाद में चर्चा है कि डाक्टरों की लापरवाही से उसकी मौत हो गयी है, किमोथेरेपी के समय। उसके दाह संस्कार में यतीन्द्र सम्मलित हुआ है। वह श्मशान में, अजीब सी भावुकता में, अवसाद से घिरा है। उपेन्द्र का शव जल रहा है। धुआं उड़ रहा है । लोग आगे की बातें कर रहे हैं। श्मशान वाला बोल रहा है कि दो दिन बाद मृत्यु प्रमाण पत्र मिल जायेगा। श्मशान वाले का परिवार वहीं पर रहता है। हमारे लिये जो श्मशान भूतों का डेरा होता है, उसके लिये वह आजीविका का साधन है, भूतों से परे। वहीं आसपास उसके बच्चे खेल रहे हैं।

वह रहस्यमय तीसरा लिफाफा मुझे देता है। लिफाफा खुलते ही उससे मधुर संगीत और ढेर सारे फूल निकलते हैं। लिफाफा हवा में उड़ जाता है। और एक गरीब दुकानदार के पास ठहर जाता है। धीरे-धीरे उसकी दुकान अच्छी खासी चलने लगती है। दुकानदार पहाड़ी के उस पार एक छोटे से गांव में रहता है। वह उस लिफाफे को अपने घर में रख देता है। जब उसके घर में संपन्नता आ जाती है तो एक दिन वह उस लिफाफे को पड़ोसी के घर में रख आता है। धीरे-धीरे पड़ोसी भी संपन्न हो जाता है। लिफाफा धीरे-धीरे सबके घर में होता, सबको संपन्नता प्रदान करता चर्चा का विषय बन जाता है। फिर एक व्यक्ति उसे पहाड़ी शहर में ले आता है। देखते-देखते शहर संपन्न और सुनहरा हो जाता है। लिफाफे की बातें दूर-दूर तक होने लगती हैं। एक दिन छीनाझपटी में लिफाफा फट जाता होते और उसकी रहस्यमयी शक्तियां लुप्त हो जाती हैं।

महेश रौतेला

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED