चक्रव्यूह Asha Pandey Author द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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चक्रव्यूह

  • चक्रव्यूह
  • आशा पाण्डेय

    दरवाजे की घंटी बजते ही सुरेखा का दिल जोरों से काँप गया | कहीं फिर वही लोग तो नहीं ? डरते डरते उसने दरवाजा खोला, सामने पति को देख आश्वस्त हुई | सुरेखा के फक्क पड़े चेहरे को देखकर सिद्धांत समझ गया कि कोई गंभीर बात हुई है | उसने प्रश्न भरी निगाहों से पत्नी की तरफ देखा | सुरेखा ने धीरे से कहा, ‘अंदर तो आइये, सब बताती हूँ |

    सिद्धांत के अंदर आते ही सुरेखा ने दरवाजा बंद कर लिया | अब तक दोनों बच्चे भी कमरे में आ गए थे | सनी तीन साल का ही था | समय की गंभीरता वह नहीं समझ पा रहा था | पापा को देखते ही वह खुश होकर उनसे लिपट गया, किंतु शुभम भयभीत दिख रहा था | सिद्धांत का सब्र ख़त्म हो रहा था | बैग सोफे के एक तरफ रखते हुए उसने पत्नी से पूछा, ‘तुम्हारा चेहरा क्यों उतरा हुआ है ?

    ‘पुलिस आई थी | ’

    ‘पुलिस ! लेकिन क्यों ?’

    ‘ दोपहर में आपने उस औरत को मार दिया था न | ’

    ‘अरे, मैंने उसे मारा नहीं था, उसे डराने के लिए डंडा फेका भर था जो उसे छू गया | ’

    ‘जो भी हो, लेकिन वह एडमिट है | उसके पैर की हड्डी टूट गई है | पुलिस कह रही थी कि उसे बहुत मारा गया है | पता नहीं बचती है कि नहीं ?’

    ‘ बहुत किसने मारा ? डंडा बस उसे छू भर गया था | ’ सिद्धांत झल्ला कर बोला

    ‘झल्ला क्यों रहे हो ?मैं ऐसा नहीं कह रही हूँ, पुलिस कह रही थी | शाम को दो सिपाही आये थे, पूछने लगे, आपके पति घर में हैं? मेरे नहीं कहने पर उन लोगों ने पूछा, दोपहर में थे ? मेरे हाँ कहने पर उन्होंने बताया कि किसी ने दोपहर में कचरा बीनने वाली एक औरत को मारा है | हम लोग उसे अस्पताल ले जाकर भरती किये | मारने वाला इसी मुहल्ले का है | अस्पताल से ठीक होकर आने पर तो वह खुद ही मारने वाले आदमी को पहचान लेगी |

    मैं चुपचाप उन लोगों की बात सुनती रही | सामने पड़ी सरिया और राड को देखकर एक ने पूछा, ‘ये सामान आपका है न ?’ मुझे लगा बात को टाल जाऊं, किंतु नहीं टाल सकी और स्वीकार कर लिया कि, ये सब सामान मेरा ही है, मेरे पति की लोहे की खिड़की, ग्रिल, दरवाजा आदि की एक दुकान है | उन लोगों को आप पर शक हो गया है | रात आठ बजे फिर आएँगे ऐसा कह कर गए हैं |

    सुरेखा पति को दोपहर की बात बता ही रही थी कि बाहर किसी मोटरसाइकिल के रुकने की आवाज आई | सुरेखा समझ गई कि वही लोग होगें | गेट खोलकर देखा तो वही दोनों सिपाही फिर खड़े थे | बरामदे में ही दो तीन कुर्सियां पड़ी थीं | सिद्धांत ने उन दोनों को वहीं बैठने के लिए कहा और बिना किसी लाग-लपेट के सहजता से स्वीकार कर लिया कि दोपहर में मैंने ही उसे डंडा फेककर डराने की कोशिश की जो उसके पैर में लग गया था शायद |

    ‘ तब तो आप बुरी तरह फंस गए | ’

    ‘आप कैसी बात कर रहे हैं ?आपकी ही चौकी में मैं कम से कम दस बार लिखित शिकायत कर चुका हूँ कि ये औरते कागज-चिंदी आदि चुनने के बहाने से आती हैं और मेरे यहाँ से लोहे की सलाखें चुराकर ले जाती हैं | अभी दो-तीन महीने पहले ही तो मैंने रात भर जाग कर एक को ग्रिल चुराते हुए पकड़ा था और आपकी चौकी से ही दो सिपाही आकर उसे पकड़ कर ले गए थे | मेरे सामने उन औरतों को पकड़ लेते हैं और बाद में छोड़ देते हैं | अब तो उनकी हिम्मत इतनी बढ़ गई थी कि वे दिन में भी सरिया, लोहा चुराकर ले जाने लगीं | आज दोपहर में वे लोहे का मोटा राड उठाकर ले जाने की कोशिश कर रही थीं, मैंने देख लिया, मैं बहुत परेशान हो चुका था, डंडा फेंक कर मार दिया ... लेकिन डंडा उसको छू भर गया था बस | उसकी हड्डी कैसे टूटी, उसकी जान को कैसे खतरा हुआ, ये मेरी समझ में नहीं आ रहा है !! ... यदि आप लोग मेरी शिकायत को भी इतनी गंभीरता से लिए होते तो आज ये दिन न आता | ’ बहुत क्षुब्ध होकर सिद्धांत ने कहा |

    ‘ आपकी बात सही है, लेकिन आज तो पांसा उल्टा पड़ गया है | चौकी में शिकायत दर्ज हो चुकी है, तहकीकात तो करनी पड़ेगी | हमारे साहब बहुत कड़क हैं | ’

    ‘कड़क’ शब्द सुनते ही सिद्धांत के गले में कुछ अटक-सा गया | उसे आश्चर्य हो रहा था कि इतनी जल्दी केस भी बन गया, रिपोर्ट दर्ज हो गई और तहकीकात भी शुरू हो गई ! अभी चार साल पहले की बात है वह अपने व्यवसाय के शुरुवाती दौर में ही था कि एक दिन बैंक से पैसा निकाल कर बाहर आते ही एक लड़का उसके हाथ से बैग छीन कर भगा, बैग में पचास हजार रुपये थे | सिद्धांत उसके पीछे दौड़ा, लेकिन वह लड़का एक गली से दूसरी गली में भागता हुआ गायब हो गया | इतनी बड़ी रकम के चोरी हो जाने से सिद्धांत का गला दुःख के मारे बार-बार सूख रहा था | कुछ दूर पर पुलिस स्टेशन था, वह रिपोर्ट करने गया | सुबह ग्यारह बजे घटी इस घटना की रिपोर्ट शाम पांच बजे लिखी गई| ... अंत में उसे पचास हजार रुपये का संतोष करना पड़ा | आज इतनी त्वरित कार्यवाही !! शायद इसलिए कि केस में फंसने वाले से पैसा मिलने की पूरी गुंजाइश है |

    कुछ देर की चुप्पी के बाद उन दोनों सिपाहियों में से एक ने अपनी कुर्सी सिद्धांत की ओर थोड़ी खिसका कर बोला, ‘आप इज्जतदार लोग हैं, हम इस बात का ध्यान रखते हैं ... अनजाने में जो आपसे गलती हुई, उससे निकलने का रास्ता है | ’

    सिद्धांत ने प्रश्न भरी निगाह सिपाहियों पर डाली |

    ‘ कुछ ले देकर बात को खत्म कर देते है |’ दूसरे ने पहले सिपाही की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा |

    ‘ आ गए न अपनी औकात पर | ’ सोचते हुए सिद्धांत ने पूछा, क्या ले देकर ?’

    ‘ अब हमारे साहब तो एक पेटी के नीचे बात ही नहीं करते | ’

    ‘ एक पेटी से आपका मतलब?’

    ‘ एक लाख’

    अंदर से चूड़ियों के खनकने की आवाज आई | एक लाख सुनकर सुरेखा के हाथ-पैर काँप गए होंगे |

    ‘ एक लाख! मैं एक लाख कहाँ से लाऊंगा ?’

    ‘ आप सोचिये, सौदा कम-ज्यादा हो सकता है ... हम लोग अभी चलते हैं, फिर आएँगे | ’

    दोनों सिपाहियों के जाने के बाद सुरेखा बरामदे में आ गई | उसका हलक सूखा जा रहा था | उसने पति की तरफ देखते हुए पूछा – ‘अब क्या होगा ?’

    ‘देखता हूँ, ... कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा | ’

    सिद्धांत को अपने एक दोस्त की याद आई जो पुलिस इंस्पेक्टर का मित्र था |

    रात का भोजन तैयार था, लेकिन किसी को भोजन करने की इच्छा नहीं थी | सुरेखा ने दोनों बच्चो को कुछ खिला-पिला कर सुला दिया और फिर पति पत्नी चिंतित हो बहुत देर तक बैठे ही रहे | रात के बारह बज रहे थे, फिर से मोटरसाइकिल की आवाज आई | देखा तो वही दोनों सिपाही सामने खड़े थे | बाउंड्री के गेट पर ताला लगा था | सिद्धांत ने उसे खोलना ठीक नहीं समझा, अंदर से ही उसने बात की | सिपाही कह रहे थे – ‘ आप हमारे साथ चौकी में चलें | साहब कह रहे हैं की जब अपराधी मिल गया है तो उसे थाने में लाओ | ’

    अपराधी ! सिद्धांत को लगा जैसे उसने हत्या, मार-काट आदि की कोई बहुत बड़ी वारदात की हो | उसने कहा, ‘देखिये मैं आपको पूरा सहयोग करूंगा, लेकिन अभी मुझे कहीं मत ले चलिए, मैं सुबह निश्चित ही आप लोगों से मिलूँगा | ’ न जाने क्या सोचकर दोनों सिपाही लौट गए |

    दूसरे दिन सुबह उसने अपने मित्र को फोन किया | मित्र ने पुलिस इंस्पेक्टर से बात की | बहुत बीच बचाव करने के बाद मामला आधी पेटी पर निपट गया | अब तक बना मानसिक दबाव शाम को पैसा देने के बाद समाप्त हुआ | उलझन तो समाप्त हुई, किंतु सिद्धांत के मन में ऐसी व्यवस्था के प्रति गुस्सा भर गया | चोरी कोई करे, सजा किसी को मिले ! कितनी मशक्कत करके उसने इतना पैसा बचाया था, दुकान को थोड़ी बड़ी करने की इच्छा थी उसकी, लेकिन अब कैसे करेगा !

    ‘भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि किसी ‘केस’ में नहीं फंसे, नहीं तो लेने के देने पड़ जाते | ’ सामने चाय का कप रखते हुए बड़ी थकी और बुझी आवाज में सुरेखा ने कहा |

    ‘ क्या लेने के देने पड़ जाते ? अभी कुछ कम देना पड़ा है क्या ?’ झुंझलाई आवाज में सिद्धांत ने जवाब दिया | सुरेखा सिद्धांत की मनःस्थिति समझ गई, उसके पास पड़ी कुर्सी पर बैठते हुए बोली – ‘आप इतना निराश न हों, सब ठीक हो जायेगा ... पुलिस के चक्कर से फुर्सत मिली बस इसी का शुक्र मनाएं ...पचास हजार तो हाथ की मैल है, भगवान ने चाहा तो फिर मिलेगा, लेकिन कोर्ट कचहरी का चक्कर, पुलिस की जाँच-पड़ताल, इस सब से तो बच गए | ’ सिद्धांत को लगा सुरेखा ठीक ही कह रही है | महिला को मारने का, चोरी का माल घर में रखने का, न जाने ऐसे कितने जुर्म उसके नाम दर्ज हो सकते थे | न जाने कितनी धाराएँ उसे अपने चक्रव्यूह में फ़ांस सकती थीं | इस सब से तो वह बच ही गया |

    ... शांत मन से उसने कप उठाया और चाय पीने लगा |

    ***