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खोज

खोज

आशा पाण्डेय

दुनिया चाहे कितनी भी भरी हो, पर अपना दिल खाली हो तो सब ओर खाली ही खाली लगता है शहर के सबसे व्यस्त होटल में, ग्राहकों की सेवा में एक टेबल से दूसरी टेबल तक दौड़ता-भागता छोटू अपनी उदास आँखों को भरसक मुस्कान में लपेटता, किंतु दिल में छाई उदासी को छिपा नहीं पाता | होटल का मैनेजर झिड़कता है, ‘क्या हमेशा रोनी सूरत बनाये रखता है ? ग्राहकों के सामने प्रसन्न होकर जाया कर, वो यहाँ खाने-पीने मौज-मस्ती करने आते हैं, तेरी रोनी सूरत देखने नहीं ... साला भूख भी लगी हो तो मिट जाये तेरी सूरत देखकर | ’

छोटू सम्भलता है, मुस्कुराता है, पर न जाने क्यों मुस्कुराते ही उसकी आँखें गीली हो जाती हैं | मैनेजर मन ही मन बड़बड़ाते हुए हिक़ारत से उसे देखता है, ‘साला, बारहों मास चौबीसों घंटे दुःख के पहाड़ में दबा रहता है, आदत पड़ गई है साले की चेहरे पर बारह बजाने की | ’

दस साल का था छोटू जब किसी रिश्तेदार ने उसे यहाँ रखवा दिया था | शुरू में टेबल पोछने का काम मिला था उसे, पर अब पिछले दो-तीन सालों से आर्डर लेने, सर्व करने का काम मिल गया है | उसके साथी उससे ईर्ष्या करते हैं, कभी-कभी बोल भी देते हैं, ‘ तूने ऐसा क्या किया जो तेरा प्रमोशन हो गया, हम तो सालों से बस कप प्लेट माँजने में ही अटके पड़े हैं |

अठारह साल के छोटू को न पहले की स्थिति से कोई निराशा हुई थी न अब के प्रमोशन से कोई ख़ुशी हुई है | सिर्फ काम का ही तो प्रमोशन हुआ है | जिम्मेदारी बढ़ गई है, काम बढ़ गया है, पगार तो वहीं की वहीं है, बल्कि साथ काम करने वाले लडकों से कुछ कम ही है | वैसे छोटू इस होटल के प्रति कृतज्ञ है, इस होटल ने उसे बहुत सहारा दिया है | जब वह यहाँ शुरू-शुरू में काम पर लगा था तो बहुत झिझकते हुए होटल मालिक से इतना ही कहा था कि पैसा आप चाहे जो दें, पर घर जाते समय दो खुराक खाना दे दीजियेगा | साथ आये रिश्तेदार ने होटल मालिक को छोटू की पूरी स्थिति बता दी थी, मालिक ने छोटू को काम पर रख लिया था और हर दिन घर जाते समय उसे दो खुराक खाना मिलने लगा |

छोटू सुबह आठ बजे होटल पहुंचता है और रात को आठ बजे उसे छुट्टी मिल जाती है | दो खुराक खाना लेकर वह घर पहुंचता है | खाना घर में रखकर माँ को खोजने निकलता है |

जब छोटू पहले पहल होटल जाने लगा था तब माँ दिन भर घर खुला छोड़कर इधर-उधर घूमती रहती थी | बस्ती के कुछ लोग घर खुला देखकर खाने पीने का सामान, राशन आदि, जो थोड़ा बहुत छोटू लाकर रखे रहता था, निकाल ले जाते थे | बाद में छोटू माँ को घर के सामने चबूतरे पर बैठाकर घर में ताला लगाने लगा | शुरू-शुरू में तो माँ दिन भर चबूतरे पर बैठी रहती थीं, किंतु बाद में सरकारी अस्पताल तक की सड़क पर घूमने लगीं |

छोटू को माँ कभी अस्पताल के गेट पर, कभी अस्पताल के बरामदे में तो कभी अस्पताल के बाहर खड़े बिजली के खम्भे के पास बैठी हुई मिल जाती है | छोटू चुपचाप माँ का हाथ पकड़ता है और घर आ जाता है | घर पहुँचकर पहले साबुन से माँ का हाथ-पैर धुलवाता है, कपड़े बदलवाता है फिर खाने का पैकेट खोलकर उनके सामने रख देता है | माँ पहले खाने को देखती है फिर छोटू को | जब छोटू भी साथ खाना खाने बैठ जाता है तब माँ पहला कौर तोड़ती है |

पिता के जाने के बाद तथा उसकी नौकरी लगने के पहले तक उसकी नानी उसके घर का खर्च चलाती थीं | फिर नानी भी चल बसी और माँ एकदम अकेली हो गईं | अकेलेपन ने ही माँ को एकदम बदल दिया होगा और वह चुप होते होते एकदम से होठ सिल ली | पिछले कई सालों से छोटू माँ को ऐसे ही देख रहा है, एकदम चुप | उसे याद नहीं कि माँ ने बोलना अचानक बंद कर दिया था या धीरे-धीरे | अब तो वह किसी के कुछ पूछने या कहने पर भी बस चुप ही रहती है | पड़ोसी कहते हैं कि उसकी माँ पहले से ही मोटी बुद्धि की थी जब उसके पिता उसकी माँ को छोड़कर कहीं चले गए तब वह पागल हो गई, पर छोटू नहीं मानता कि उसकी माँ अब पागल हो गई है, भला कोई पागल माँ भोजन सामने मिलने पर अपने बेटे के भी बैठने का इंतजार करेगी !... इतना ही नहीं, उसे याद है, जब वह छोटा था, पड़ोस में राजू के घर गया था, उसकी माँ पूरी तल रही थीं, छोटू ललचाई नजरों से उन्हें देख रहा था | राजू की माँ का ध्यान जब छोटू की ओर गया तो उन्होंने उसे घुड़क कर भगा दिया | वह घर आकर रूआसी आवाज में माँ को सारी बात बताया | माँ उठी, आटे में चुटकी भर नमक मिला कर गूंथी और पूरी तलकर छोटू के सामने रख दी ... एक रात छोटू के कान में दर्द शुरू हो गया था तब उसकी माँ पूरी रात उसके कान में तेल गरम करके डालती बैठी रह गई थीं |

क्या कोई पागल माँ ये सब कर सकती है !!

यह पिता और नानी के जाने का गहरा सदमा ही है जिसने माँ को बदल दिया, कोई कुछ भी कहे पर छोटू यही मानता है |

छोटू का घर ! हाँ ये घर ही तो है उसका ! मिट्टी की दीवाल और बरसात में टपकते, टूटे फूटे कवेलू की छत वाले ये छोटे-छोटे दो कमरे ! उसके पुरजोर सुकून की सबसे अच्छी जगह | कवेलू की छत उजड़ते-उजड़ते इतनी उजड़ गई है कि अगर इस बरसात के पहले उसकी मरम्मत न करवा ली गई तो कमरे की कोई जगह ऐसी नहीं बचेगी जहाँ पानी न टपके | पिछले दो बरसात से छोटू होटल मालिक से कुछ एडवांस पैसे मांग रहा है, इसबार उसने देने को कहा है | अगर पैसा मिल जायेगा तो वह टीन की छत रखवा देगा, कुछ वर्षों की राहत मिल जाएगी उसे |

कभी उसकी बस्ती शहर से दूर हुआ करती थी, पर अब शहर ने फैल कर इसे अपने अंदर समेट लिया है | बस्ती की शुरुआत में ही छोटू का घर है और उसके घर के सामने एक विशाल पीपल का पेड़ है | पेड़ की जड़ के पास मिट्टी का एक चबूतरा बना है | ये चबूतरा बस्ती के बड़े-बूढों, औरतों, बच्चों के फुर्सत के समय का साथी है, किंतु छोटू के लिए ये चबूतरा बहुत बड़ा सहारा है | गरमी की रातों में जब कमरे उमस से भभकने लगते हैं तो छोटू अपनी चादर लेकर इसी चबूतरे पर आ जाता है | बाहर की हवा उसे सुकून तो देती है, लेकिन माँ को कोठरी में छोड़कर आना उसके लिए खासा कष्टदायक होता है | वह हर थोड़ी देर में कोठरी में झांक आता है |

इधर छोटू कई दिनों से देख रहा है कि माँ अपने दोनों हाथों को सिर में डाले खुजलाती रहती है | पिछले कुछ सालों से, जब से छोटू समझदार हुआ है, जब भी ऐसा होता था तब छोटू जुएँ मारने की दवा माँ के सिर में लगा देता था, पर इस बार ऐसा नहीं कर पा रहा है, क्योकि पिछली बार जब माँ के सिर में दवा लगाया था तो माँ सिर खुजाते हाथों से अपनीं आखें भी खुजला ली थीं आँखें एकदम लाल हो गई थीं और उसमें से पानी बहने लग गया था जो रुक रुक कर हफ्ते भर बहता ही रहा था | छोटू डर गया, माँ को डाक्टर के पास ले गया | डाक्टर ने छोटू को मना किया कि आइन्दा वह ऐसी कोई भी दवा माँ के सिर में न लगाये |

अब माँ के जुओं को कैसे निकाले छोटू ! दो तीन दिन से वह माँ को बैठा कर कंघी से झाड़-झाड़ कर जुएँ निकालता रहा, माँ के सिर की जुएँ कुछ कम हुई किंतु अब छोटू के सिर में खुजली शुरू हो गई | अब होटल में काम करते हुए भी उसका हाथ सिर की ओर जाने लगता है जिसे वह जबरदस्ती रोके रहता है, किंतु उस दिन अनहोनी हो ही गई | ग्राहकों से भरे होटल में जब वह एक टेबल से आर्डर लेकर रसोईं की तरफ आ ही रहा था कि तभी चेतन उसकी ओर देख कर तेज से बोल पड़ा, अरे, जुएँ – जुएँ | चेतन को जब तक अपनी गलती का एहसास हुआ और वह संभला तब तक उसके आस-पास खड़े कर्मचारी छोटू को घूरने लगे | गनीमत यह थी कि ग्राहकों का ध्यान इस बात पर नहीं गया, किंतु बात मैनेजर तक पहुंच ही गई | छोटू को बहुत डांट पड़ी | शर्म के मारे दूसरे दिन वह होटल नहीं गया बल्कि अपनी माँ का हाथ पकड़कर उसे घसीटते हुए नाई की दुकान पर पहुँचा | माँ उसके तमतमाए चेहरे को देखकर डर गई थी और चुपचाप उसके साथ खिंची चली जा रही थी | नाई उसकी माँ को देखकर बिदक गया,

’निकलो दुकान से बाहर, मैं पागलों के बाल नहीं काटता हूँ | ’

छोटू ने उससे बहुत मिन्नत की, किंतु वह नहीं सुना | छोटू दूसरी दुकान पर गया पर वहाँ भी वही हाल | एक के बाद दूसरी दुकान में घूमता हुआ छोटू अंत में थक-हार कर घर वापस लौट आया, और निराश होकर पीपल के नीचे ही बैठ गया | कुछ देर निराश बैठने के बाद उसे उपाय सूझा | वह झट उठा और बाजार से कैची खरीद लाया और माँ को चबूतरे पर बैठा कर उसके सिर के बाल काटने लगा | कैची कहीं एकदम बालों के जड़ के नजदीक लगती कहीं कुछ ऊपर से ही बालों को काट देती | पूरे बाल कट गए, छोटू ने चैन की साँस ली, पर बालों के बिना माँ का सपाट सिर उसे डरावना लग रहा था | उसने कंधे पर लटक आई माँ की साड़ी को उसके सिर पर ओढ़ा दिया | माँ चुपचाप डरी सहमी कभी उसकी ओर देखती तो कभी अपने कटे बालों की ओर|

अँधेरा हो गया था | छोटू पीपल के नीचे से उठा और कमरे में जाकर बल्ब जलाया | पीली रोशनी कमरे में फैल गई | आज सुबह से माँ- बेटे कुछ खाए नहीं थे | छोटू का मन दुखी था | भूख का एहसास उसे नहीं हो रहा था, कुछ बनाने का मन भी नहीं था, किंतु माँ की भूख का ध्यान आते ही वह उठा और शर्ट बदल कर बाहर निकल गया | बस्ती के मोड़ पर एक ठेला गाड़ी लगती है, जिसपर वडा-पाव, समोसा कचोरी आदि मिल जाता है | छोटू वडा-पाव खरीद लाया और माँ के आगे खोलकर रख दिया | माँ चुपचाप उसे देखने लगी, रोज भोजन के पहले हाथ-मुँह धुलवाता है और आज सीधे खाने को कह रहा है ! अभी भी नाराज है क्या ! माँ असमंजस में है, किंतु छोटू के बार-बार कहने पर वह वडा-पाव खाने लगी |

अगला दिन ! छोटू आज भी होटल नही जाना चाहता था, किंतु उसके पास कोई चारा नहीं था, नौकरी करनी थी | वह बेमन से उठा, पोहा बनाकर माँ को खिलाया, खुद भी खाया और माँ को चबूतरे पर बैठाकर पानी की बाटल उसके पास रख दी और कमरे में ताला बंद करके होटल चला गया | पहुंचते ही बिना बताये घर बैठ जाने के कारण उसे आज भी मैनेजर की डांट खानी पड़ी | वह दिन भर काम करता रहा और छुप-छुप कर रोता रहा | बचपन से अब तक वह छुपकर ही रोया है | उसके आंसू पोछकर उसे चुप कराने वाला था ही कौन जो वह किसी के सामने रोता | आज रात नौ बजे जब उसे छुट्टी मिली तब भी उसके कदम घर की ओर उठ नहीं रहे थे | होटल से निकल कर कुछ देर वह मोड़ वाली पुलिया पर बैठा रहा फिर उठ कर कदमों को धीमी गति से आगे बढ़ाते हुए घर पहुँचा | घर पहुंचते-पहुँचते रात के दस बज गए | नित्य की तरह वह कमरे में खाना रखकर माँ को खोजने निकला | अस्पताल तक गया, उसके गेट और बरामदे में देखा | बाहर आकर बिजली के खम्भे के पास देखा, माँ कहीं नहीं थी | रोज यहीं तो मिल जाती थी, आज कहाँ चली गई !!

अस्पताल के आस-पास खोजने के बाद छोटू उसी रास्ते से घर तक आया, सोचा शायद माँ घर चली गई हो ! पर माँ घर नहीं आई थी | अब छोटू को चिंता हुई | कल से माँ के साथ उसका व्यवहार अच्छा नहीं है, माँ ने दिल से लगा लिया क्या उसकी बातों को ! इतने सालों से माँ ने अपना स्थान नहीं बदला था, आज कहाँ चली गई ! रात में छोटू खोजे भी तो कहाँ खोजे !

छोटू फिर से अस्पताल गया, दूसरे रास्ते से खोजते हुए फिर घर आ गया और निराश होकर चबूतरे पर बैठा ही था कि पीछे से आवाज आई, तू इतना नाराज हो गया ? आज मुझे खोजने भी नहीं आया ?

छोटू चौंककर पलटा, माँ थी ! तो माँ उसका रोज इंतजार करती थीं आज जब समय पर नहीं पहुँचा तो माँ दुखी हुईं ! इतनी दुखी हुईं कि बोल पड़ी !!!

छोटू दौड़कर माँ के गले लग गया, आज ही तो तुझे खोज पाया माँ | तू बोली माँ ! तू मुझसे बात की !! अब कभी चुप मत होना, मुझसे बोलना माँ, ऐसे ही बोलना |

माँ के गले लगा छोटू धार- रो रहा है और माँ उसे चुप करा रही है |

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