फिर फिर
आशा पाण्डेय
स्वप्न इतना डरावना तो नही था, किन्तु न जाने कैसे वृन्दा पसीने से तर-ब-तर हो गई । गला सूख गया था उसका । आजकल अक्सर ऐसा होता है । स्वप्न देखना नही, स्वप्न से डरना । यद्यपि वह इन मान्यताओं को नहीं मानती कि स्वप्न किसी शुभ-अशुभ फल को लेकर आता है, पर पता नहीं क्यों आजकल वह उस कलेंडर की तलाश में रहने लगी है जिसमें स्वप्न के शुभाशुभ फल दिये रहते हैं । क्या करे ? सहेलियां डरा जो देती हैं उसे । कभी-कभी जब वह अपने किसी स्वप्न को बताकर पूछती है कि मरा हाथी देखने से क्या होता है ? या फिर मकान गिरते हुए देखने का क्या फल मिलता है, तब सहेलियां चिन्तित हो अपनी बड़ी – बड़ी आंखे घुमाकर उसका भविष्य बताने लगती हैं ---लगता है अभी तुम्हारी मुसीबत कटी नहीं है । कोई बहुत बड़ी विपत्ति आने वाली है तुम पर । अपनी बेटियों की देखभाल जरा ध्यान से करना---तब वृन्दा मारे डर के कांपने लगती है । अब मासूम बेटियां ही तो उसकी सब कुछ हैं । कैसे नहीं ध्यान रखेगी इनका । दोनों कितनी गहरी नींद में सो रही हैं । वृन्दा अरसे से ऐसी गहरी नींद के लिए तरस रही है । यदि किसी रात नींद आ भी जाती है तो कम्बख्त डरावने स्वप्न धमक पड़ते हैं और नींद छू-मन्तर हो जाती है ।
वृन्दा ने घड़ी की तरफ देखा, रात के तीन बज रहे हैं । स्वप्न की बेचैनी और घबराहट से माथे पर पसीने की बूँदे छलछला आई हैं । वह बिस्तर से उठी, मटके से गिलास भर पानी निकाला तथा एक ही साँस में गटागट पी गई । माथे पर आये पसीने को साड़ी के आंचल से पोछती हुई वह फिर से बिस्तर पर आकर लेट गई। छत से लगा पंखा ची-ची की आवाज करता डोल रहा है । वृन्दा ने पूरे कमरे में नजर घुमाई । दस बाई बारह का यह छोटा-सा कमरा ही उसका घर है । न अलग से रसोई, न स्टोर, न बैठक, न पूजा घर । सब कुछ इसी एक कमरे में है । गैस चूल्हे की आंच से जो गरमी निकलती है वह रात भर भभकती रहती है । कमरे से लगकर एक छोटा-सा बाथरूम है । एक छोटी-सी बालकनी भी है । वृन्दा का मन हुआ कि बालकनी का दरवाजा खोल दे, बाहर की थोड़ी हवा तो अन्दर आएगी, किन्तु उसकी हिम्मत नहीं पड़ी । रात के तीन बजे सबेरा तो नहीं हो जाता । वृन्दा मन मार कर पंखे पर टकटकी लगाए लेटी रही ।
उसका ध्यान फिर से स्वप्न पर गया । एक बड़े -से गड्ढे में गिर कर उसकी बड़ी बेटी प्राची रो रही थी और रश्मि बड़ी बहन को रोता देख कर खिलखिला रही थी । यह भी कोई स्वप्न है ! इतना डरने लायक ? वह डरी क्यों ? इस स्वप्न का कौन-सा हिस्सा उसे डराया ? प्राची का गड्ढे में गिरना या रश्मि का किनारे खड़े होकर खिलखिलाना ? रश्मि हँस क्यों रही थी ? शायद प्राची को गड्ढे में उसनें ही धकेला था । वृन्दा डर कर कांप गई ।
स्वप्न, स्वप्न था । आया और चला गया, किन्तु, उसकी परछार्इं किसी सच्ची घटना की तरह उसे डरा रही है । वह इसप्रकार डरी है जैसे घर में तूफान आ गया हो और घर की दीवारें तक हिल गई हों ।
यह स्वप्न उसे अतीत के बिम्बों की तरफ ले जा रहा है जिसमें न जाने की वह सैकड़ों बार प्रतीज्ञा करती है ।
बिम्ब अभी थोड़े धुँधले हैं । उसे सन्तोष होता है । वह इसे और चटख नहीं होने देगी । यहीं से उबर जाएगी, किन्तु उसका प्रयास अधिक देर तक टिक नहीं पाता । शीघ्र ही एक के बाद एक सारे बिम्ब चमकदार होने लगते हैं, जिसे देखते ही उसकी धड़कने अधिक तेज हो जाती हैं ।
उसकी भी एक छोटी बहन थी, कुन्दा । हमेशा उसके चाकलेट खिलौनों तथा कपड़ों को हथिया लेती थी । वृन्दा न तो उससे जीत पाती थी न जीतने का भाव ही मन में लाती थी । छोटी बहन से कैसा जीतना और कैसा हारना । खुशी-खुशी अपने चाकलेट, खिलौने और कपड़े कुन्दा को दे देती थी । कुन्दा विजयी भाव से उसकी चीजों का इस्तेमाल करती थी । वृन्दा को बस उसका ये विजय -भाव ही खटकता था । वह सोचती काश ! कुन्दा समझ जाती कि उसकी विजय का कारण मेरी कमजोरी नहीं बल्कि प्रेम है -छोटी बहन के प्रति प्रेम । पर कुन्दा को नहीं समझना था, नहीं समझी ।
बचपन छूटता गया पर कुन्दा का स्वभाव न बदला । रश्मि के जन्म के समय वृन्दा के घर आई कुन्दा ने उससे उसका पति भी छीन लिया । वृन्दा हतप्रभ थी । पांच वर्ष के सम्बन्ध चन्द दिनों की परछाई में दबकर सिसकने लगे ।
वृन्दा का विश्वास टूटा था, वह स्वयं नहीं । उसने अपने घर को सम्भालने का पूरा प्रयास किया । सबसे पहले उसने अपने पति रवि को टटोला, बार-बार टटोला पर हर बार वहाँ स्वयं की जगह कुंदा को पाया ! खुलकर बात की, मान-मनुहार की, लड़ाई-झगड़े किये, किंतु कुछ नहीं सुधरा, हाँ रवि उसपर इतनी दया करने को तैयार थे कि वह चाहे तो इसी घर में सम्मान के साथ रहे | ऐसे कई उदहारण हैं समाज में | ये कोई अनहोनी बात नहीं होगी | वृंदा हताश, अवाक् रवि का मुँह देखती रह गई थी |
कितनी बातें हैं क्या-क्या याद करे वृंदा, पर न चाहते हुए भी सारी बातें खुल-खुल कर बिखर रही हैं वृंदा के सामने ... रवि से निराश होकर भी एक उम्मीद बाकी थी उसके मन में सास और माँ से उम्मीद, लेकिन कोई कुछ न कर पाया ! उसकी अपनी माँ ! परिस्थिति को देख कर वृंदा के आगे ही आँचल पसार दिया था | वह भी रवि की बातों में आ गई थीं | चाहती थीं दोनों बहनें या तो साथ रह लें या वृंदा मेरे साथ चली चले | वृंदा ने माँ के फैले आंचल को हाथ से नीचे कर दिया था और क्रोध में आकर बोली थी, कह दो कुंदा से दे दिया मैंने उसे अपना पति ... मैं कर ही क्या सकती हूँ इसके सिवा माँ, पर मैं न तो यहाँ रहूंगी न ही तुम्हारे साथ चलूंगी |
कुछ महीने तक वृंदा परिस्थिति के बदलने का प्रयास करती रही, किंतु जब ज्वलामुखी फट ही चुका था तो कब तक वह उसके लावे से बचती | अपनी बच्चियों को लेकर वह घर छोड़कर निकल पड़ी | कहाँ आसान था अकेले रहना ! नौकरी तो उसे एक स्कूल में मिल गई, किंतु सुरक्षा !! कितनी कितनी बार उसे अपने अकेले रहने के निर्णय पर पछतावा हुआ था | अपने स्वाभिमान और सम्मान की खातिर उसने अपनी ससुराल छोड़ी थी, भूल गई थी कि वह औरत है | एक जगह अपने सम्मान को बचा भी लेगी तो हजारों जगह जाने का डर बना रहता है !!
डर-डर कर, संभल-संभल कर कदम बढ़ाते हुए यहाँ तक आ पहुची वह |
एक गहरी साँस लेकर वृंदा ने करवट बदल लिया |
छत पर पंखा धीमी गति से घूम रहा है । दोनों बेटियां अब भी गहरी नींद में सो रही हैं । वृन्दा ने पंखे को कुछ तेज किया, किन्तु सिर्फ बटन आगे बढ़ी, पंखे की रफ्तार ज्यों की त्यों रही । बेटियों के माथे पर उभर आई पसीने की बूदों को वृन्दा ने अपने आंचल से थपथपा कर सुखाया और छत को निहारती हुई लेटी रही | लेटे लेटे कमरे में रखे सामान पर उसकी नजर गई | इस कमरे में तमाम सामानों के साथ एक अटैची भी है । जिसमें सबसे नीचे एक तस्वीर है । तस्वीर में रवि मुस्कुरा रहा है । वृन्दा जब भी उस अटैची को खोलती है, उस तस्वीर को जरूर देख लेती है । क्या है इस तस्वीर में ? क्यों इसे इतना सम्भाल कर रखी है वह ? उसकी इच्छा बार-बार इसे देखने की क्यों होती है ? वह तो रवि से नफ़रत करती है । बहुत नफ़रत करती है । इतनी नफ़रत के बाद भी वह तस्वीर उसकी अटैची में कैसे है ? उसने महसूस किया कि न सिर्फ अटैची में उसकी तस्वीर है बल्कि अपनी हर छोटी-मोटी परेशानी में वह सबसे पहले रवि को ही याद करती है । क्या उसके दिल में रवि के प्रति प्रेम जैसा कुछ अब भी है ?
जितनी बार वृन्दा के मन में ये विचार, ये प्रश्न उठते हैं उतनी ही बार वह मन को विश्वास दिलाती है कि ऐसा कुछ नही है । यह तस्वीर तो वह अपनी बेटियों के लिए लाई है, खुद अपने लिए नहीं । बेटियां पूछेंगी अपने पापा के बारे में तो वह बता सकेगी कि, देखो ये हैं तुम्हारे पापा- ये चेहरा है उनका-इस चेहरे से करो नफ़रत । कि इस चेहरे ने किया है अनाथ तुम्हें ।
उसकी बच्चियां और अनाथ ! वह क्या कर रही है फिर ? उसने अपने अस्तित्व को नकार दिया है क्या ? बस रवि ही सब कुछ था क्या ? दु;ख में रवि, खुशी में रवि, नफ़रत में रवि ! उलझ गई है वृन्दा । वह रवि को जितना नकारती है रवि उतना ही उसे याद आता है, तभी तो अटैची खोलते ही वह सामान बाद में निकालती है तस्वीर को पहले देखती है ।
वृन्दा अब लेटे नहीं रह पा रही है । वह उठकर खिड़की के पास तक आई । बाहर अभी अँधेरा है, किन्तु सुबह होने में अब अधिक देर नहीं है । सुरसुराती हवा कमरे में आ रही है । वृन्दा ने अपने माथे को खिड़की की राड से टिका दिया और एक लम्बी साँस ली- चलो किसी तरह एक रात और बीती |
आज उसके स्कूल में एनवल फंक्शन है । उसने बच्चियों को जगाया और अपने काम में लग गई । कमरे की एक दीवार पर आलमारी बनी है जिसे वृन्दा ने साड़ी के परदे से ढक दिया है । प्राची परदा उठाकर अपने कपड़ों को उलटने-पलटने लगी । गिनती के कपड़ो में वह यह देख रही थी कि अब तक कौन-सी ड्रेस पहन कर वह स्कूल नहीं गई है, किन्तु बार-बार पलटने पर भी उसे एक भी ऐसी ड्रेस नहीं मिल रही थी । इन सब कपड़ों को एक बार तो क्या कई-कई बार पहन कर वह स्कूल गई है । हार कर उसने एक पुराना फ्रांक निकाल लिया और नहाने के लिए बाथरूम में घुसी । रश्मि अब तक बिस्तर पर लेटी थी । प्राची को बाथरूम में जाते देख चिल्लाने लगी कि पहले वह नहाएगी । रश्मि का रोना सुन कर प्राची बाथरूम से बाहर आ गई ताकि रश्मि ही पहले नहा ले । प्राची के हाथ में फ्रांक था । रश्मि फ्रांक को खींचते हुये बोली- ‘इसे मैं पहनूँगी, तुम दूसरी पहन लेना । फ्रांक उसके नाप की नहीं है | बड़ी है, किंतु इस बात से उसे फर्क नहीं पड़ता, वह तो खुश थी कि प्राची यह फ्रांक नहीं पहन पाई, बस ।
इधर कुछ दिनों से वृन्दा रश्मि की इन आदतों, जिसमें प्राची की चीजों को छीन लेना और उसे हरा देना शामिल होता जा रहा था, से परेशान थी । उसे दु;ख इस बात का भी होता था कि प्राची का स्वभाव ऐसा क्यों है कि वह अपनी चीजों को सहर्ष रश्मि को छीन लेने देती है ।
रवि से अलग होकर वृन्दा इतनी हताश नहीं हुई थी किन्तु रश्मि के इस स्वभाव से कहानी दोहराने का डर उसके मन में बढ़ता जा रहा है । और शायद इसलिए आजकल उसे डरावने सपने भी अधिक आने लग गए हैं । वृन्दा को रश्मि के जन्म के समय मैटरनिटी होम में कहे गये उस बंगाली महिला के शब्द याद हो आये । उसके दोनों बच्चों में मात्र साल भर का अन्तर है यह जानकर उस बंगाली महिला ने उसे सलाह दी थी- इसको इसके हाथ से केला खिला देना तब वह बहन से हिंसा नहीं करेगी । हिंसा शब्द ईर्ष्या शब्द के पर्याय में बोला गया था यह तो वृन्दा भली-भाँति समझ गई थी, किन्तु केला बड़ी बेटी के हाथ से छोटी को खिलाये या छोटी बेटी के हाथ से बड़ी को, यह नहीं समझ पाई थी । समझने का प्रयास भी नहीं किया था- कहीं केला खिलाने से प्रेम और द्वेष हो सकता है भला ! पर अब उसके मन में कभी-कभी आता है कि वह पूरी तरह क्यों नहीं उस बंगाली महिला की बात को समझी । समझ कर वैसा कर लेती तो शायद रश्मि प्राची से इतनी ईर्ष्या न करती । लेकिन प्राची इतनी उदार कैसे हो गई ! कहीं अनजाने में उसने रश्मि को केला खिला तो नहीं दिया था । वृन्दा का मन झुंझला आया - क्या हो गया है उसे ! किन-किन बातों में विश्वास करने लगी है वह !
स्कूल के स्टेज पर एक कार्यक्रम के बाद दूसरा कार्यक्रम था। तालियों पर तालियां बज रही थी, किन्तु वृन्दा का मन अपने ही द्वारा बुने गये विचारों में उलझा था । समारोह समाप्त होने पर सब बच्चों को स्कूल की तरफ से एक-एक पैकेट चिप्स तथा डेअरी मिल्क चाकलेट दिया गया । बच्चे खुश होकर घर लौटे ।
वृन्दा का मन अब तक उदास था । वह बेमन से घर के कामों को निपटाने लगी ।
प्राची ने रश्मि से पूछा-‘रश्मि डेअरी मिल्क का स्वाद कैसा था ?’
अच्छा, बहुत अच्छा | रश्मि ने इठलाते हुए जवाब दिया ।
‘तुम्हें नहीं मिली थी क्या ? वृन्दा के काम करते हाथ रुक गये ।
‘हाँ, मिली थी | ’
‘ फिर तुमने भी तो खाई होगी ?’
‘नहीं’
‘ क्यों ?’
‘ रश्मि ने मांग लिया था | ’
‘उसे भी तो मिली रही होगी ?’
‘हाँ, उसे मिली थी, पर उसे और खाना था | ’
‘आधी दे देना था, पूरी क्यों दी?’
‘रश्मि रोने लगी थी मम्मी | ’
प्राची के जवाब से वृन्दा का धैर्य अर्रा कर टूट गया । उसने प्राची के गाल पर तड़ातड़ कई थप्पड़ जड़ दिये । ‘उसने मांगा और तुमने दे दिया, अपनी चीजों को बचाना नहीं आता तुम्हें ? तुम दानी बन रही हो ?---तुम्हें क्या लगता है कि रश्मि तुम्हारा बड़ा मान-सम्मान करेगी कि तुमने हर पल अपने हिस्से का उसे दिया है ।---अरे यूँ ही देती रहोगी तो एक दिन वह तुमसे तुम्हारा जीवन भी छीन लेगी ।----अब उसे कुछ दोगी- बोलो- अब दोगी अपनी चीजों को उसे...’ वृन्दा प्राची को मारे जा रही है और बोले जा रही है । माँ का रौद्र रूप देख रश्मि डर के मारे एक कोने में दुबक गई । वृन्दा के मारते हाथ जब थोड़े रुके तब वह स्वयं फूट-फूट कर रोने लगी और वहीं दीवाल के सहारे जमीन पर बैठ गई ।
घंटों रो लेने के बाद उसने कमरे में नजर दौड़ाई । खिड़की के बाहर एक स्याह परदा पड़ गया है । भीतर की पीली रोशनी में कमरा कुछ उदास और खोया-खोया-सा लग रहा है । उसकी दोनों बेटियां रोते-रोते वहीं उसके पास जमीन में ही सो गई हैं । रश्मि प्राची की गोद में दुबकी है तथा प्राची का हाथ रश्मि के सिर पर है । वृन्दा का मन विह्वल हो गया । वह क्यों पिछली जिन्दगी की गुत्थियों में उलझी है? दस साल पहले घटी एक घटना का अब तक इतना गहरा प्रभाव ! वह गलत राह पर है उसे इस छाया को अपनी जिन्दगी से मिटाना पड़ेगा । कितना प्रेम भी तो है दोनों बहनों में । वह क्यों अलगाव के बीज बो रही है । उसके इस व्यवहार से तो दोनों एक दूसरे से बहुत दूर हो जायेंगी । उसने तय किया कि अब वह कभी पीछे लौटकर नहीं देखेगी । उस अभिशाप की छाया अपनी बेटियों पर नही पड़ने देगी । उसकी ये मासूम बेटियां ... उसने बारी-बारी से दोनों के सिर पर हाथ फेरा और आश्चर्य उसे यह हुआ कि आज इस अवसाद की स्थिति में भी उसने रवि को याद नहीं किया ।
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