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जंगल

  • जंगल
  • आशा पाण्डेय

    ये कहानी तब की है, जब उसे जंगल में जाकर प्रत्यक्ष शेर, चीता, भालू देखने का शौक उपजा था | शहर के किनारे एक होटल था। वह उसी होटल में काम करता था।

    जंगल का रास्ता उसी होटल के सामने से जाता था। उस रास्ते को देखते ही उसके मन में हूक उठनी शुरू हो जाती थी। शहर के रईसजादे उसी रास्ते से सूमों या स्कारपियो में बैठ कर सांय से जंगल की तरफ निकल जाते थे। यह पल उसके लिए बहुत दु:खद होता था। काम करते उसके हाथ रुक जाते थे। मन में एक जोर की इच्छा घुमड़ती थी कि दौड़कर गाड़ी के पीछे लटक जाए, पर उनकी तेज रफ्तार में उसका हृदय डूबने लगता था।

    शाम को जब जंगल से लौटती कोई गाड़ी उसके होटल पर रुक जाती थी, तब उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता था। वह पूरे मन से उस गाड़ी से उतरने वाले लोगों की सेवा में लग जाता था। जंगल देखने की उसकी अधीरता उसे लगभग हर सम्भव तरीके को अपनाने के लिए बाध्य करती थी। तभी तो उस दिन वह उन लड़कों के पैर दबाने तक पहुँच गया था। वे लड़के चाय-नाश्ते का आर्डर दे, बेंचों पर पसर गये थे। वह उमगकर उनके पास दौड़ा था।

    ‘‘बाबूजी, बहुत थक गये हैं क्या ?”

    ‘‘थक तो गया हूँ यार| ”

    ‘लाइए मैं आपके हाथ-पैर दबा देता हूँ| ”

    उस रईसजादे ने बडी शान से पैर आगे कर दिये। लड़का दबाने लगा। होटल मालिक ने आँखें तरेरी, क्योंकि दुकान में दूसरे बहुत से काम थे। किन्तु ग्राहक को बार-बार अपने होटल में बुलाने का यह नुस्खा उसे उचित लगा और उसने अपने तेवर बदल लिए।

    लड़का बेंच पर लेटे उस व्यक्ति का हाथ दबा रहा है। उसके मन में जंगल का रंगीन दृश्य घुमड़ रहा है। यहाँ से कितना अन्दर जाना पड़ता होगा तब जाकर वो दृश्य मिलते होंगे। कहते हैं ‘फारेस्ट विभाग’ का एक गेस्ट हाउस भी जंगल में है। परमीशन निकाल लें तो वन अधिकारी हाथी पर बैठा कर जंगल घुमाते हैं।

    लड़का जिस व्यक्ति का हाथ दबा रहा है, वह अपने मित्रों से बात कर रहा है।

    ‘आज तो तुमने थका ही दिया| ”

    ‘मैंने क्या थका दिया ? हाथियों को देखने का शौक तो तुम्हें ही चढ़ा था न ? अब हाथी देखोगे तो नदी के किनारे तक तो चलना ही पड़ेगा न ?’

    ‘दिखा हाथी ? नदी के किनारे कैसा सन्नाटा पसरा था | ’

    ‘यार, दीपक, यदि आज रात हम लोग गेस्ट-हाउस में बिता लेते तब शायद हमें शेर भी दिख जाता। कहते हैं रात के समय वह ‘गेस्ट हाऊस’ के आस-पास कई बार देखा गया है| ’

    ‘वहाँ गेस्ट हाउस’ में रुक कर मरना था क्या ?... हमारी तैयारी ही कहाँ थी रात में रुकने की ?’

    ‘अगले हफ्ते फिर आ जायेंगे, कौन सा बहुत दूर है | ’

    तो अगले हफ्ते ये लोग फिर जायेंगे ? लड़के के हाथों की गति थोड़ी धीमी हुई। उसके लिए यह सुनना रोचक और उत्तेजक था। लड़के ने मन ही मन तमाम तरह के वाक्य गढ़े, दोहराया और पैर दबाते दबाते ही अगले हफ्ते उस ग्रुप में शामिल होने की बात तय कर ली। उन सब से प्रार्थना उसकी यह थी कि होटल मालिक को न पता चलने पाये, वह चुपचाप उनके साथ निकल चलेगा।

    उन रईसजादों में बहस शुरू हो गई थी। ‘हम क्या कम हैं, जो एक और तय कर लिया ? ‘चुप करो यार, सामान उठायेगा।...अगली बार तो तुम रात में वहाँ रुकने का प्रोग्राम बना रहे हो, मशाल और मिट्टी के तेल का केन कौन लेकर चलेगा ? लालटेन कौन सम्भालेगा ?’

    ‘गाडी में बैंठेगा कहाँ ?’

    ‘अरे, बैठ जायेगा यार, कौन सा इतना गन्दा दिख रहा है| ’

    ‘हाँ बच्चू, पैर दबवा के खुश जो हो गये हो, तुम्हें ही बैठाऊँगा इसके बगल में, सूंघते चलना इसे| ’

    ये सब बातें वहीं, उसी लड़के के सामने हो रही थीं। लड़के के सुन लेने का उन्हें कोई दु:ख नहीं था। लड़का भी धन्य हो रहा था। वे कुछ भी कहें, जाने का मौका तो मिल रहा है। लड़के ने मान अपमान को ढहा दिया। वैसे भी दिन भर होटल मालिक की डाट खा-खाकर उसके पास मान-अपमान बचा ही कितना था।

    अगला रविवार ! मात्र एक सप्ताह ! लड़के का मन कुलाँचे भरने लगा। घर पहुँच कर उसने अपने कपड़े देखे, जो सबसे अच्छा हो वही पहनना है उसे। वे लोग कैसे उसके गन्धाने की बात कर रहे थे। एक हप्ते का समय है । बढ़िया धुलकर प्रेस करवा लेगा। किसी से कम नहीं लगेगा वह। मन ही मन वह सबको ललकार रहा है । यह पैन्ट, शर्ट ठीक रहेगा, .... नहीं, यह दूसरा, ... मात्र दो जोड़ कपड़े ! क्या चुने उसमें से वह । हाथ उन्हीं दो जोड़ कपड़ों को बार-बार उलट-पलट रहे हैं, उसका मन खिन्न हुआ। हफ्ते भर का समय है यदि मालिक कुछ एडवान्स दे दे तो एकाध नई शर्ट खरीद सकता है। मन में विचार कौंधा जरूर, किन्तु गायब भी उतनी ही द्रुतगति से हुआ। खैर.. यह पैन्ट-शर्ट ठीक रहेगी। उघड़ी सिलाई को सिलवा लेगा। बटन आदि टाँक लेगा।

    अगला रविवार। सबेरे ही तैयार होकर वह निकल पड़ा। तय यह हुआ था कि होटल से आधा किलोमीटर आगे, सड़क पर वह खड़ा मिले। वहीं से वे लोग उसे अपनी गाड़ी में बैठा लेंगे। होटल मालिक से छुपता-छुपाता वह होटल से आगे निकल गया । कदम हवा की तरह उड़ रहे थे। वह पैदल भी जंगल जा सकता है किन्तु शेर, बाघ, चीता, भालू कब झपट पड़ें कुछ कहा नहीं जा सकता। जंगली जानवरों का क्या भरोसा।

    निर्धारित जगह पर पहुँच कर वह सड़क किनारे खड़ा हो गया। एक घंटा, दो घंटा, तीन घंटा, समय बीतता जा रहा था। लड़का हिम्मत बाँधे खड़ा था -आ जायेंगे, कई लोग हैं। इकट्ठा होने में समय तो लगता ही है। हो सकता है गाड़ी में खराबी आ गई हो। तमाम तरह की सम्भावनाएँ उसके दिमाग में घूम रही थीं। शहर की तरफ से कोई गाड़ी आते देख वह पुलकित हो जाता था- शायद यही होगी- किन्तु गाड़ियाँ उसके पास से होती हुई सर्र से निकल जाती थीं। सूरज अब आकाश के बीचोबीच से उतरने लगा था। वह हताश हुआ। धीरे-धीरे उसके कदम होटल की तरफ लौटने लगे।

    मन में गहरा विषाद ले वह होटल मालिक के सामने खड़ा हो गया। ‘अब तक कहाँ था रे, दोपहर बीत गई तब चला है ?... सुबह से कितनी परेशानी हो रही है कुछ पता है तुझे ? लड़का चुपचाप मुँह लटकाये खड़ा रहा। मालिक फिर गरजा, ‘मुँह सीकर आया है क्या ? बोलता क्यों नहीं, क्यों हुई तुझे देर ? लड़के ने चुप्पी साध ली थी सो मुँह नहीं खोला। मालिक पूछते-पूछते खीझ गया। अन्त में जोरदार डपट के साथ लड़के को काम करने का आदेश दिया। लड़का खुशी-खुशी ग्राहकों की सेवा में लग गया।

    अब हर दिन वह उस काली स्कारपियो का इन्तजार करता। मन में अब भी उम्मीद बची थी कि हो सकता है अगले रविवार को आयें वे लोग। अगले रविवार को उसे उन लोगों का इन्तजार कहाँ करना चाहिए- सड़क पर जाकर या उसी दुकान पर ? दुकान ही ठीक रहेगी, इस तरह वह काम भी करता रहेगा और उन लोगों का इन्तजार भी। मालिक भी नाराज नहीं होगा।

    एक-एक करके कई रविवार बीत गये। उन लोगों के साथ जंगल घूम लेने की जो उम्मीद उसे बँधी थी वह धीरे-धीरे बिखरने लगी। होटल से छूटने पर वह हर शाम सड़क से थोड़ा आगे बढ़ जाता। कहीं एक किनारे खड़ा होकर पेड़ों के घने झुरमुट को घंटो निहारता रहता, उसके लिए जंगल एक सुहाना स्वप्न बन कर रह गया था।

    फिर एक रविवार, सुबह ही वह काली स्कारपियो होटल के सामने खड़ी हुई। न चाहते हुए भी वह उधर दौड़ पड़ा । उस गाड़ी में वही लोग थे जिनके साथ वह जंगल जाना चाहता था। उन लोगों ने चाय का आर्डर दिया। चाय का कप पकड़ाते-पकड़ाते उसने यह पता कर लिया कि वे लोग जंगल में ही जा रहे हैं। वह उन लोगों से पहले ही चुपचाप होटल से निकल कर जंगल की ओर जाने वाली सड़क पर खड़ा हो गया। मन में शंका थी कि वे लोग उसे साथ ले जायेंगे या नहीं। जब स्कारपियो आती दिखी तब उसने अपने दोनों हाथ हिला-हिलाकर उसे रुकने का संकेत किया। स्कारपियो रुकी। उसने हाथ जोड़ लिये, ‘बाबूजी हमें ले चलिए‘ | ‘चल बैठ, मैंने तो तुझे पिछली बार ही कहा था कि ले चलूँगा। उनमें से एक ने उदारता दिखाई।

    ‘इसके नाम की एन्ट्री नहीं है यार| ’ दूसरे ने कहा।

    ‘आगे गेटपर करवा लेंगे, ये कौन-सी बडी समस्या है।... इसका बहुत मन है चलने दो...चल बैठ| ’

    लड़का खुश होकर बैठ गया। बैठ क्या गया, सीट के एक कोने में दुबक गया। उसकी वजह से उन देवता जैसे लोगों को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। वह खिड़की से बाहर घने जंगल में नजरें गड़ाये चुपचाप बैठा रहा। सूरज की किरणें पेड़ों की फुनगियों को पार करते हुए नीचे उतर रही थीं। सूखे मुरझाये पत्तों से जमीन अटी पड़ी थी। दो घंटे के सफर के बाद गाड़ी ‘गेस्ट हाउस’ के सामने रुकी।

    खाना-पीना होते दोपहर हो गई। दोपहर बाद सब जंगल घूमने निकले। लड़का फिर गाड़ी में दुबक गया। अब वह बहुत खुश था। बस थोड़ी ही देर में वह रीछ, भालू, शेर, हाथी आदि जानवरों को पास से देखेगा। उन सब का कहना था कि जानवर आसानी से नहीं दिखते। कभी-कभी तो दिन भर घूमों फिर भी नहीं दिखते। पर लड़के को भरोसा है, जानवर दिखेंगे, जरूर दिखेंगे।

    एक जगह जाकर गाड़ी रुक गई। रास्ता आगे संकरा था। गाड़ी नहीं जा सकती थी। उन सब का आगे बढ़ने का मन था। शाम हो रही थी। उनमें से एक ने शंका व्यक्त की ‘लौट चलना ठीक रहेगा। यहाँ गाड़ी से उतरकर पैदल घूमना ठीक नहीं| ’

    ‘तुम यार, आते ही क्यों हो साथ, कितना डरते हो तुम। आये हो जंगल में, घुस रहे हो बिल में।.....सुबह से यहाँ घूम रहे हैं, एक भी जानवर दिखा जो गाड़ी से उतरते ही झपट पड़ेगा| ’ दूसरे व्यक्ति ने झुंझला कर पहले को डपटा।

    ‘मैं जंगल घूमने आया हूँ, मरने नहीं| ’

    ‘तो तुम बैठो गाड़ी में, हम लोग तो आगे बढ़ते हैं कहकर पहला व्यक्ति उतर गया उसके पीछे सब उतर गए। हाथ में लकड़ी का कुंदा और मिट्टी के तेल की केन संभाले वो सब चौकन्ने हो आगे बढ़ रहे थे। तय यह हुआ था कि जैसे ही कोई खतरनाक जानवर दिखेगा, लकड़ी जला ली जायेगी। लकड़ी को मिट्टी के तेल से पहले ही भिगो लिया था। माचिस की तीली भी निकाल कर हाथ में पकड़ लिए थे और सावधानी से आगे बढ़ रहे थे।

    शाम गहरा रही थी। लगभग आधा किलोमीटर आगे आ जाने के बाद भी उन लोगों को एक हिरन तक न दिखा। अब वे गाड़ी की तरफ लौटने लगे। कहीं एक पत्ता भी चरमराता तो डर के मारे सब चौकन्ने हो जाते। अचानक एक जोरदार दहाड़ ने सबको थरथरा दिया। झट से उन लोगों ने लकड़ी जला ली और गाड़ी की तरफ भागने लगे। गाड़ी के पास आकर सब झट से गाड़ी में बैठ गए | लड़के के हाथ में पानी का डिब्बा था, जो जरूरत न होने पर जली हुई लकड़ी को बुझाने के लिये लिया गया था। लड़के ने लकड़ी को जमीन पर रख कर उस पर पानी उड़ेलना शुरू ही किया कि फिर से दिल दहला देने वाली आवाज सुनाई पड़ी। लड़का गाड़ी की तरफ लपका, किन्तु गाड़ी बड़ी तेजी से आगे बढ़ गई। लड़का गाड़ी के पीछे भागा, पीछे बैठे लोगों ने उसे देखा भी किन्तु गाड़ी रुकी नहीं । अब वह डर के मारे काँपने लगा।

    उसे उम्मीद थी कि गाड़ी पीछे लौटेगी। उसे लिए बिना ये लोग आगे नहीं जायेंगे। अभी घबराहट में भले ही गाड़ी आगे बढ़ा लिए हैं, किन्तु लौटेंगे जरूर। आखिर शहरी हैं, शिक्षित हैं, उदार मन के हैं, तभी तो उसे साथ लाए। छोड़कर जाना होता तो साथ लाते ही न।

    पाँच मिनट, दस मिनट, पन्द्रह मिनट। फिर एक जोरदार दहाड़। कहीं पीछे से। शायद सड़क के उस पार से। लड़का काँप कर जड़ हो गया। गाड़ी के लौट आने की उम्मीद जो उसने अब तक बाँध रखी थी, बिखर गई। सड़क पर आगे चलने में खतरा था। क्योंकि दहाड़ने की आवाज सड़क के उस पार, आगे से ही आ रही थी। वह जाये तो किधर जाये।

    फिर से किसी जानवर की तेज आवाज आई। लड़का बिना कुछ सोचे-विचारे सड़क की एक ओर छलांग लगाकर जंगल में भागने लगा। झाड़ियों- झुरमुटों को लाँघता हुआ वह बेतहाशा जंगल में अंदर की तरफ भागा जा रहा था। रुका वह तब जब सामने एक छोटी पहाड़ी आ गई। यहाँ पेड़ कुछ विरल थे। चाँद की रोशनी पत्तों से नीचे झर रही थी। उस रोशनी में वहाँ कई जोड़ी आँखें चमकी। वह डर के मारे पास के पेड़ पर चढ़ गया और साँस बाँधे बैठा रहा। कुछ देर बाद जब चाँद की रोशनी सीधे वहाँ पड़ने लगी तो उसे सुखद आश्चर्य हुआ। वहाँ हिरनों का झुण्ड बैठा था। वह पेड़ पर बैठे-बैठे हिरनों को गिनने लगा। थोड़ी-थोड़ी देर पर उठते बैठते, एक दूसरे के ऊपर सिर फिराते हिरन उसे रोमांचित कर रहे थे। वह मंत्रमुग्ध हो देखता रहा। उसका मोह तो तब भंग हुआ जब तरह-तरह के पंछी अपनी चहचहाअट से सबेरा होने की सूचना देने लगे। उसने देखा उसके हाथ-पैर पर खून की अनगिनत लकीरें जमी हैं। हाथ चेहरे पर फिराया तो वहाँ से खून की सूखी पपड़ी झर आई। रात झाड़ियों के बीच से गिरते पड़ते भागते समय उसे इतनी चोटें लगी हैं इसका उसे अन्दाजा नहीं था। अब चोटों को देख लेने के बाद उसे जलन और दर्द दोनो महसूस होने लगे।

    वह पेड़ से उतरा। यहाँ से सड़क किस ओर होगी यह अन्दाज लगा पाना कठिन हो रहा था। अब फिर से डर उसे निगलने लगा था। वह पहाड़ी के इस ओर ही लौटने लगा। कुछ-कुछ देर में वह किसी पेड़ पर चढ़ जाता। चारो तरफ नजर दौड़ाकर सुरक्षित होने का अन्दाज लगा लेता फिर उतर कर चलने लगता। दोपहर बीतने को आई पर सड़क न मिली, हाँ बन्दरों के कुछ समूह, साँप, इक्के, दुक्के हिरन दिखते रहे।

    अब पेड़ों की सघनता कुछ कम हो गई थी। सामने कुछ दूर से, कुछ लोगों के बोलने की आवाज आई। लड़का सजग हो गया। वह एक-एक कदम बड़ी सावधानी से बढ़ा रहा था। उसने देखा, कुछ दूर पर एक व्यक्ति पेड़ पर चढ़कर कुछ तोड़ रहा है, दूसरा उस तोड़ी हुई वस्तु को इकट्ठा कर रहा है। ये जंगली लोग थे। लड़का फिर डर गया। उसने सुन रखा था कि जंगली लोग बाहरी आदमियों को पकड़ कर मार डालते हैं। मांस का भोग लगाते हैं तथा खोपड़ी अपने घरों में सज्जा के लिए टाँग देते हैं। जंगली आदमी जंगली जानवर से अधिक खतरनाक होते हैं। अब लड़का बड़ी सावधानी से, धीरे-धीरे अपने कदम पीछे की ओर सरकाने लगा किन्तु उस व्यक्ति ने लड़के को देख लिया और तेज-तेज आवाज में अपने साथी को कुछ बताते हुए लड़के की तरफ दौड़ा। लड़का थरथरा रहा था। दोनों उससे अपनी भाषा में कुछ पूछ रहे थे। जो लड़के की समझ में नहीं आ रहा था। फिर उसमें से एक ने अपने हाथ का घेरा बनाकर मुँह से तेज आवाज निकाली। थोड़ी देर बाद लौटती हुई एक तेज आवाज वहाँ सुनाई दी और उसके कुछ देर बाद एक महिला भी वहाँ आ गई। उसके पास पानी का डिब्बा था। महिला ने जो धोती अपने अंग पर लपेट रखी थी उसके एक कोने को भिगो-भिगो कर वह उस लड़के के हाथ-पैर पर जमे खून को पोछने लगी। लड़का तमाम आशंकाओं से घिरा चुप खड़ा रहा।

    घाव साफ कर लेने के बाद महिला ने उन व्यक्तियों से कुछ कहा। उनमें से एक ने बड़े पत्ते का दोना बनाया तथा उसमें पानी भरकर उसे पीने के लिए दिया। लड़का प्यासा था उसने झट दोना खाली कर दिया। कई दोना पानी पीने के बाद जब उसकी प्यास कुछ शान्त हुई तब महिला ने लड़के को अपने पीछे चलने का इशारा किया और स्वयं डिब्बा उठाकर आगे-आगे चलने लगी। वे दोनों व्यक्ति भी अपना सामान इकट्ठा कर साथ-साथ चलने लगे। लड़के के मन में तमाम प्रश्न थे। ये लोग उसे कहाँ ले जा रहे हैं ? क्या करेंगे, मार तो नहीं डालेंगे ?आदि।

    थोड़ी देर तक महिला के पीछे-पीछे चलने के बाद उसे घास-फूस से बनी कुछ झोपड़ियाँ दिखीं। झोपड़ियों के आस-पास कुछ बच्चे खेल रहे थे। उसे देखते ही सारे बच्चे चिल्लाते हुए उसे घेर लिए। महिला एक झोपड़ी के सामने रुकी, उसे बाहर बैठने का इशारा कर स्वयं अन्दर चली गई। अब तक गाँव की तमाम महिलाएँ तथा बच्चे उसे घेर लिए थे। कुछ देर बाद वह महिला एक कटोरे में कुछ भरकर लाई। कटोरा गरम था। लड़के के हाथ में पहले उसने एक गन्दा सा कपड़ा दिया फिर उस कपड़े पर कटोरा रख दिया और उसे पी जाने का संकेत किया। लड़का डर के मारे पीने लगा। किसी जंगली फल का सूप जैसा कुछ था वह। एक छोटी लड़की, लड़के के हाथ पैर के घावों पर गरम तेल लगाने लगी।

    गाँव के बीच में फूस का एक बड़ा मंडप बना था, वहाँ किसी उत्सव की तैयारी चल रही थी । रात में वहाँ लकड़ियों के मोटे-मोटे कुन्दे रखे गये । धीरे-धीरे वहाँ गाँव के सारे स्त्री-पुरुष बच्चे इकट्ठा होने लगे। एक बड़े बर्तन में कोई पेय पदार्थ रखा गया जो शायद शराब थी। लकड़ी के मोटे कुन्दे को जला दिया गया। उसके किनारे-किनारे लोग खड़े हो गये। फिर सबको थोड़ी-थोड़ी शराब दी गई। लड़के को भी मिली, लेकिन उसने उसे पिया नहीं। उसे डर था कि यदि वह नशे में हो जायेगा तब ये लोग उसके साथ पता नहीं क्या सलूक करेंगे। जब सब नशे में झूम-झूम कर आग के किनारे-किनारे नाचने लगे तब मौका पाकर वह लड़का अपने कटोरे की शराब को उस बड़े पात्र में उड़ेल दिया। इस तरह दो-तीन बार उसे शराब मिली। दोनों-तीनों बार वह अपने कटोरे को उस बडे पात्र में उड़ेलता रहा।

    आधी रात तक नाच-गाना होता रहा। स्त्री, पुरुष बच्चे सभी नशे में झूम रहे थे। जो थक जाता था वहीं लुढ़क जाता था। एक-एक कर सभी सो गये। लकड़ी का कुन्दा जल रहा था। लड़का उसी के सहारे डरा बैठा रहा। पिछली रात भी वह जगा था। इसलिए नींद उसे भी आ रही थी, किन्तु मारे डर के वह सो न सका, बस झपकी ले-लेकर रात बिता दी।

    दूसरे दिन दोपहर बाद छ:सात बच्चे उसे जंगल घुमाने ले गए। वह खुश हुआ, शायद उसे सड़क मिल जाए। रास्ते में बच्चों ने उसे कई तरह के फल चरवाये, कई पेड़ों के बारे में बताए, किन्तु उसकी आँखें सिर्फ सड़क खोज रही थीं। जो उसे कहीं न दिखी।

    अगले दिन जब वह बच्चों के साथ घूमने निकला तब इशारे में ही उसने बच्चों से जंगल की सडक के बारे में पूछा, किन्तु बच्चों को उसका इशारा समझ में नहीं आया । अगले कई दिनों तक वह उन सब को अपनी बात समझाने का प्रयास करता रहा। यद्यपि अब उसका डर कुछ कम हो गया था और बच्चों के साथ उसे मजा भी आ रहा था। उसने कई जंगली जानवरों को भी देख लिया। उन सब के साथ वह भी पेड़ पर दौड़ कर चढ़ता, फल तोड़ता, फूलों को इकट्ठा करता, लकड़ियाँ बीनता, शहद निकालता, नदी में नहाता। गाँव के लोग उसका बहुत ध्यान रख रहे थे। वह छोटी लड़की उसके घावों में रोज गरम तेल लगाती थी। घाव अब मुरझा रहे थे। लेकिन लड़का अब जंगल से ऊब रहा था। उसे शहर की याद आ रही थी।

    एक रात जब वहाँ फिर कोई उत्सव मनाया जा रहा था और गाँव वालों का नाच-गाना अपने पूरे उत्साह में था तब वह लड़का वहीं एक कोने में बैठा रो रहा था। एक बच्चे ने उसे रोते हुए देख लिया। दौड़ कर उसने उन नाचते-गाते, झूमते लोगों को इसकी सूचना दी । नाच-गाना तुरन्त बन्द हो गया। सबने उस लड़के को घेर लिया और उससे रोने का कारण पूछने लगे। लड़का इशारे से बताया भी कि वह अपने घर जाना चाहता है । उन लोगों को लड़के का इशारा कितना समझा यह तो नहीं पता किन्तु सब के सब पूरी रात उसके आस-पास ही बैठे रहे। लड़के को आश्चर्य हुआ कि उसका रोना इन जंगलियों के लिए इतनी महत्वपूर्ण घटना बन गई कि इन्होंने अपनी खुशी, नाच-गाना, सब बन्द कर दिया। नशे में धुत इन लोगों में इतनी संवेदना, इतना प्रेम है कि उसके रोते ही सबका नशा उड़ गया ! अब तक की जिन्दगी में रोया तो वह कई बार था किन्तु उसके आँसू अपने आप ही सूखते थे।

    अगले दिन, सुबह एक व्यक्ति ने उसे अपने साथ चलने का इशारा किया। उसके निकलते ही पूरा गाँव, महिलाएँ, बच्चे सभी उस लड़के के पीछे-पीछे चलने लगे। कुछ दूर आकर सभी रुके, आपस में कुछ चर्चा हुई, फिर चार व्यक्तियों का एक समूह तैयार हुआ। दो व्यक्ति आगे। दो पीछे। बीच में लड़का। चारों के हाथ में कुल्हाडी थी। बाकी लोग वहीं रुक गये। सबके चेहरे उदास थे। लड़के का जाना उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था, किन्तु लड़के का रोना उनके लिए असहनीय था।

    उन व्यक्तियों ने लड़के को जंगल में प्रवेश के मुख्य गेट तक पहुँचा दिया। गेट पर बैठे अर्दली ने उस लड़के से पूछ-ताछ की और अपने पास बैठा लिया। थोड़ी देर बाद वन-विभाग का कोई अधिकारी जंगल से लौट रहा था। गेट पर बैठे उस अर्दली ने गाड़ी रुकवाई। उस लड़के के बारे में अधिकारी को बताया | सुनते ही अधिकारी गुस्से में तमतमा गया, ‘बिना परमीशन के तुम जंगल घूमने निकले थे ! साले कहीं मर-मरा जाते तो आफत हम लोगों की होती। यह रिजर्व फारेस्ट है। यहाँ हर कोई, ऐसे ही नहीं जा सकता। शुक्र मनाओ कि तुम जंगली जानवरों और जंगली लोगों से बच कर आ गये| ’

    ‘साहब, जंगली लोगों ने ही तो इसे यहाँ तक पहुँचाया है| ’

    अर्दली ने अधिकारी को बताया। पहले तो अधिकारी को आश्चर्य हुआ फिर हँसते हुए बोला, ‘साला ये भी तो जंगली ही दिखता है। उन लोगों ने इसे अपनी बिरादरी का समझ लिया होगा।... ठीक है.... बच कर आ गया है अब घर जा.... फिर ऐसी गलती मत करना | ’

    ‘साहब आप शहर की तरफ ही जा रहे हैं, अपनी गाड़ी से मुझे भी शहर तक छोड़ दीजिए | ’ लड़के ने डरते-डरते अधिकारी से प्रार्थना की। अधिकारी ने झिड़का, ‘जंगल तक पैदल घूम आये। अब शहर जाने के लिए गाडी चाहिए ? जैसे आये थे, वैसे जाओ | ’ लड़का मायूस हो खड़ा रह गया। अधिकारी की गाड़ी धुआँ छोड़ते हुए आगे बढ़ गई।

    वहाँ से शहर बीस से पच्चीस किलोमीटर रहा होगा। लड़का पैदल चलना शुरू किया, रास्ते भर उसे जंगल के साथियों की याद आती रही। जब वह अपने होटल के नजदीक पहुँचा तब तक शाम ढल चुकी थी। लड़का अकेले रहता था इसलिए होटल का मालिक तथा वहां के उसके मित्र ही उसके सबकुछ थे | वह शीघ्रता से होटल की ओर बढ़ने लगा | यूँ उसे पता था कि, उसका मालिक उसे देखते ही डाटना शुरू करेगा, किन्तु जब उसको पता चलेगा कि वह जंगल में भटक गया था तब उसका गुस्सा शान्त हो जायेगा। इतने दिन से वह लोगों को दिखा नहीं है, सबको उसका इन्तजार होगा। सब उसे देखते ही खुश हो जायेंगे।

    अँधेरा होने वाला था। होटल में इक्का दुक्का ग्राहक ही मौजूद थे। उसे होटल में आता देख होटल मालिक गरजा-कहां से आ रहा है ? दुकान में अन्दर कदम मत रखना। दस दिन बाद आई है सुध ? कहाँ भाग गया था ?

    ‘मालिक मैं मजबूरी में फँस गया था | ’

    ‘सारी मजबूरियाँ तेरे ही पास आती हैं | आज के बाद दुकान में दिखाई मत देना।... पैसा हाथ में आया नहीं कि आवारागर्दी शुरू कर देता है।... भाग यहाँ से | ’

    ‘अब से ऐसा नहीं होगा मालिक, .... मेरी बात तो सुनिए | ’

    ‘मुझे कुछ नहीं सुनना है। दुकान के अन्दर घुसना मत, बस, अब एक भी कदम आगे बढ़ाया तो हाथ-पैर तोड़ दूँगा | ’

    लड़के को लगा मालिक गुस्से में हैं इसलिए ऐसा बोल रहे हैं। वह मालिक को मनाने आगे बढ़ गया। अभी दो कदम भी आगे न बढ़ पाया होगा कि उसके गालों को झन्नाता हुआ एक जोरदार तमाचा उसे लगा। उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया। कुछ देर तक यूँ ही उसे तमाचे लगते रहे और उसका गाल झन्नाता रहा। वहाँ बैठे ग्राहकों के बीच बचाव के कारण वह मालिक के हाथों से छूटा। होटल के उसके साथी डर के मारे चुपचाप अपने कामों में लग गये थे।

    लड़का वहीं जमीन पर बैठ गया। मालिक की गालियाँ अनवरत जारी थी। किन्तु अब वह कुछ सुन नहीं पा रहा था। उसने नजर उठाकर शहर की इमारतों की ओर देखा फिर वहाँ आस-पास बैठें लोगों को। उसे लगा ये इमारत जंगल के महाकाय वृक्षों में तब्दील हो रही हैं तथा आस-पास के लोग जंगली चौपायों में बदल गये हैं। उसने आँखे मल कर बार-बार देखने का प्रयास किया किन्तु हर बार दृश्य अधिक भयानक दिखता। अपने आस-पास घूमते हिंसक जानवरों को देख वह डर के मारे काँपने लगा। अब उसने अपनी आँखे बन्द कर ली तथा स्वयं की सुरक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करने लगा।

    ***

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