"तुम्हारी याद आती है"
बरसता है जो ये सावन, तुम्हारी याद आती है,
कहाँ तुम हो छुपे प्रियतम, हमें पल पल सताती है।
लिखे जो खत तुम्हें मैंने, वो दिल की ही कलम से थे,
मेरे अधरों की लाली पर लिखा, तुम ही बलम तो थे,
तुम मेरी आँखों के काजल, ये आँखें डबडबाती हैं,
कहाँ तुम हो छुपे प्रियतम, हमें पल पल सताती है।
कहाँ ढूँढू, कहाँ पाऊँ, तुम्हीं संसार हो मेरे,
अधूरी हूँ सजन तुम बिन, तुम्हीं श्रृंगार हो मेरे,
तेरी यादों की थाती को ये पलकें भी सजाती हैं,
कहाँ तुम हो छुपे प्रियतम, हमें पल पल सताती है।
घिरी काली बदरिया भी, पपीहा गीत गाता है,
चली सौतन हवाएँ भी, हृदय तल छिल सा जाता है,
कहूँ मैं क्या सखी उन बिन,कोयल ताने सुनाती है,
कहाँ तुम हो छुपे प्रियतम, हमें पल पल सताती है।
२-
"जितना भूलूँ तू उतनी निखरती गई"
छेड़ती है मुझे जब ये पगली पवन,
तेरी यादों की खुशबू बिखरती गई,
सोचता हूँ मुझे याद आए न तू,
जितना भूलूँ तू उतनी निखरती गई।।
लम्हें ये प्यार के फिर कहाँ आएंगे,
ऋतु बसंती गई फिर कहाँ पाएंगे,
मेरे अधरों की सूखी नदी बिन तेरे,
सुर्ख होठों की लाली तरसती गई,
जितना भूलूँ तू उतना निखरती गई।।
आँख ही आँख में आँख मिल जो गई,
आँखें आँखों से मिलकरके छील जो गई,
आँखों का आँखों से सिलसिला यूँ चला,
बन के आँसू तू इसमें बरसती गई,
जितना भूलूँ तू उतनी निखरती गई।।
सिलसिला प्यार का तुम ना तोड़ो पिया,
बस उम्मीदों का बुझने ना पाए दीया,
तुमने देखी नहीं हैं मेरी सिसकियां,
फूलदानों की रंगत बिगड़ती गई,
जितना भूलूँ तू उतना निखरती गई।।
था समंदर का भाँटा, था ज्वारा नहीं,
सिर्फ गहराई कोई किनारा नहीं,
नासमझ मैं भी डुबकी लगाता रहा,
बेवफा प्यार का पर कतरती गई,
जितना भूलूँ तू उतना निखरती गई।।
३-
"उस दिन हमारे गाँव में"
क्या हुआ उस दिन हमारे गाँव में,
इक कोइ काँटा चुभा था पाँव में,
दो जवां दिल एक होने थे लगे,
ठंडी ठंडी पेड़ की उस छाँव में।।
गवाही में खड़े थे पेड़,
चिड़ियों का बसेरा था,
हवा भी कह रही थी कि ,
लगा जन्मों का फेरा था,
जा मिला सागर नदी की ठाँव में,
ठंडी ठंडी पेड़ की उस छाँव में।।
मिलन का सिलसिला नितदिन,
नए आयाम गढ़ता था,
किताबों में छुपा कर खत तेरे,
दिनरात पढ़ता था,
यादों की चादर बिछी है नाव में,
ठंडी ठंडी पेड़ की उस छाँव में।।
अभी तक सर्द रातों की,
वो गर्माहट ना भूला हूँ,
तेरा ही प्यार, तेरे नाम को ही,
बस कबूला हूँ,
लौट आओ उम्र है ठहरी हुई,
चल के फिर से गीत गाएं गाँव में,
दोनों मिलकर जीत जाएँ गाँव में,
ठंडी ठंडी पेड़ की उस छाँव में।।
धन्यवाद-
राकेश कुमार पाण्डेय"सागर"
आज़मगढ, उत्तर प्रदेश