मां का आँचल Rakesh Kumar Pandey Sagar द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मां का आँचल

1-

"तेरे आँचल को छूने से"

हे माँ तुझको नमन मेरा,

तू ही श्रृंगार है मेरा,

बहलता है ये मन मेरा ,

तेरे आँचल को छूने से।।

तेरे ममता के आँचल में,

पला बचपन मेरा ऐसे,

चमकता सीप में मोती,

समंदर में छुपा जैसे,

है धरती पर कहाँ ऐसा,

कहीं किस ओर कोने में,

बहलता है ये मन मेरा,

तेरे आँचल को छूने से।।

है इतना प्यार हाथों में,

पलक में नींद आ जाए,

जो बनके प्रेम की बदली,

इस तन मन को भीगो जाए,

हो माँ तुम प्यार की बरखा,

जो सावन के महीने में,

बहलता है ये मन मेरा,

तेरे आँचल को छूने से।।

धरा पर प्यार का सागर,

कहीं पर है यहीं तो है,

कलश अमृत का क्यूँ ढूँढूँ,

कहीं पर है यहीं तो है,

नहीं कुछ है तेरे बिन माँ,

यहाँ सबकुछ भी होने में,

बहलता है ये मन मेरा,

तेरे आँचल को छूने से।।

2-

"स्त्री की आत्मकथा"

मन है उदास, घटी अब प्यास,

मनाऊं खुशी क्या,

जो बिटिया है आई,

दानव समाज में घूम रहे,

इस दर्द को कैसे बताएगी माई।

नियत ईमान गया किस ओर,

कहूँ किसको, कौन लागत हैं भाई,

बदला समाज, लगी चहुँ आग,

निहार कुकृत्य है लाज लजाई।।

नारी बेचारी, लचारी भई,

क्या दोष है नारी जो नारी कहाए,

दोष चाहे जो करे सो करे,

पर पाप की गठरी है सर पर मढाये,

पानी रहा न रहा अब पानी,

काम का चश्मा तो सब हैं चढ़ाए,

बीत गए जो वो दिन नहीं बहुरेंगे,

नियत में है अब खोंट समाई।।

गाँव गिरांव गली डेहरी,

निकलूँ किस ओर निगाह गड़ी है,

चिर हरण को है ठाड़ दुशासन,

द्रोपती अब विपदा में पड़ी है,

कलयुग में कहाँ कृष्ण मिलेंगे,

बुलाऊँ किसे हुए निर्मम रिश्ते,

सूझे न ठावँ, चलूँ किस गाँव,

जहाँ जनभावना साथ खड़ी है।।

रिश्ते कलंकित होने लगे,

कहाँ झूलन को मैं लगाउंगी झूला,

गिरने लगे नजरों में जो अपने ही,

लोभ की तृष्णा में है जग फुला,

दानव दहेज जो क्या कम था,

अब देह मृगा नजरें ललचाई,

उतर के आओ सिंघासन से प्रभु,

आप बिना के जो लाज बचाई।।

3-

"मैं हूँ माँ की प्यारी बेटी"

मैं हूँ माँ की प्यारी बेटी,

उनकी राजदुलारी बेटी।।

सारे जतन वो करती हैं,

मन ही मन वो कहती हैं,

उम्मीदों के पंख लगाकर,

वो सपनों को बुनती हैं,

फूल खुलेंगे इस उपवन में,

हूँ बगिया की क्यारी बेटी,

मैं हूँ माँ की प्यारी बेटी,

उनकी राजदुलारी बेटी।।

मैं क्या चाहूँ क्या ना चाहूँ,

सारी बातें सुन लेती हैं,

मेरे कहने से पहले ही,

आशाओं को चुन लेती हैं,

चरण कमल रज शीश झुकाऊँ,

मैं गंगा जलधारी बेटी,

मैं हूँ माँ की प्यारी बेटी,

उनकी राजदुलारी बेटी।।

आसमान में जुगनू बनकर,

एकदिन मैं भी चमकुंगी,

लाऊंगी तारों को तोड़कर,

आँचल उनका भर दूँगी,

माँ के दिल की एक तमन्ना,

ऊंचा तू उड़ जा री बेटी,

मैं हूँ माँ की प्यारी बेटी,

उनकी राजदुलारी बेटी।।

"बेटी इस जग का आधार है"

बेटी इस जग का आधार है,

बिना बेटी जीवन बेकार है।।

घर में जलती प्रेम की ज्वाला,

बेटी से है घर में उजाला,

बेटी माँ के रूप में जीवन दिलाए,

और बहू बन घर महकाए,

फिर से बेटी बनके आयी द्वार है,

बिना बेटी जीवन बेकार है।।

बेटियों ने देश का मान बढ़ाया,

देश पे अपना शीश चढ़ाया,

सर्व समाज से ये है कहना,

बेटी पढ़ाओ ये है घर का गहना,

बेटी से पिता का सत्कार है,

बिना बेटी जीवन बेकार है।।

आभार के साथ-

राकेश कुमार पाण्डेय"सागर"

आज़मगढ, उत्तर प्रदेश