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समर्पण

प्रिय दोस्तों,

प्रेम को शब्दों में परिभाषित नहीं किया जा सकता है,प्रेम केवल दो दिलों द्वारा महसूस किया जा सकता है।प्रेम अमर है, प्रेम अजर है।

अपने आप को प्रेम में पूरी तरह समर्पित कर चुकी एक नायिका के अंतर्मन की बात...

1-"समर्पण"

मैं हूँ तेरे लिए, तुम हो मेरे लिए,

प्रेम का तेल भरकर, जलाये दीए,

तुझपे वारी हूँ मैं, ये दिल हारी हूँ मैं,

जिंदगी भर समर्पण, तुम्हारे लिए।।

प्रेम की वेदना, कह रही सुन सजन,

मिट ही जायेगा तम, जब भी होगा मिलन,

चैन महलों का त्यागा, नहीं कुछ लिया,

सब किया मैंने तर्पण, तुम्हारे लिए,

जिंदगी भर समर्पण, तुम्हारे लिए।।

धुप जाड़ों की माफिक, मेरा प्यार है,

जेठ धूपों की तरह, तड़प यार है,

ना सपन में कोई, ना नयन में कोई,

घर में है एक दर्पण, तुम्हारे लिए,

जिंदगी भर समर्पण तुम्हारे लिए।।

प्रेम की हूँ लता, छू लूँ चित को तेरे,

है यही कामना, बन जा मीत तू मेरे,

ये जनम क्या प्रिये, वो जनम क्या प्रिये,

सौ जनम कर दूं अर्पण, तुम्हारे लिए,

जिंदगी भर समर्पण, तुम्हारे लिए।।

फूल साखों से गिरकर, बिखर जाएंगे,

होगा मधुमास, जब दिल ये मिल जाएंगे,

मेरी आँखों की सूखी, नदी बिन तेरे,

प्रेम छिड़का है क्षण क्षण, तुम्हारे लिए,

जिंदगी भर समर्पण, तुम्हारे लिए।।

तेरी यादों का मुझको, बिछौना मिला,

मत ये पूछो कि राहों में, कौन ना मिला,

बस तुम्हारे लिए ही सँवरती रही,

मैं बिखर जाऊँ कण कण, तुम्हारे लिए,

जिंदगी भर समर्पण, तुम्हारे लिए।।

2-"साजन घर आना"

बीता बरस सन्देश न आया,

ना कोई पाती भी भिजवाया,

मुझको भूल न जाना,

साजन घर आना, घर आना,

साजन घर आना।।

बिंदिया और होठों की लाली,

सब मारें हैं ताना,

हाथों का कंगना बोले हैं,

मुझको भूल न जाना,

बिरह अगन दिन रात जलाये,

कहीं बदल ना जाना,

साजन घर आना, घर आना,

साजन घर आना।।

सच्ची प्रीत हमारी,

बस तुमको ही मानू अपना,

इन नैनन की पुतरी में ,

बस तुम ही आके बसना,

दिल के पिजड़ेसे मेरे तुम,

तोते उड़ ना जाना,

साजन घर आना, घर आना

साजन घर आना।।

जा परदेश में किस सौतन से,

नैना तुम्हीं लड़ाए,

इस चिंता में इस अंखियन से,

निंदिया उड़ उड़ जाए,

कौन गीत मैं गाऊँ जुल्मी,

छेड़ूँ कौन तराना,

साजन घर आना, घर आना,

साजन घर आना।।

सावन बीता, भादों बीता,

बीता कुवार और कातिक,

अगहन पूस की ठंडी रतिया,

माघ हो गया घातिक,

चढ़ा फागुन मन मारे हिलोरा,

अपने रंग, रंग जाना,

साजन घर आना, घर आना,

साजन घर आना।।

3-"शायद तेरा बालम है"

नया दौर है, नई उमंगे,और खुशियों का आलम है,

दिल में कैसी उठी तरंगे, अनकहा ये कालम है,

तनहाई में सुनेपन में और अकेलेपन में जो,

होठों पर मुस्कान जगाता, शायद तेरा बालम है।।

ढली शाम दिल की खिड़की पर, प्रियतम बस तुम आ जाना,

है मेरी बस एक तमन्ना, मीठे बोल सुना जाना,

खड़ी फसल जो कंघी कर दे, हवा सरीखी जालम है,

होठों पर मुस्कान जगाता, शायद तेरा बालम है।।

दिल में अरमान बहुत, अब पाकर तुम्हें अघाया हूँ,

गीत गजल या कोई कविता, बस तुमको ही गाया हूँ,

प्रथम पृष्ठ दिल के पन्नों पर, बस तेरा ही कालम है,

होठों पर मुस्कान जगाता, शायद तेरा बालम है।।

तुम आओगे दिन बहुरेंगे, कोयल गीत सुनाएगी,

देख बसंती बेरों के फल से, अमृत बरसाएगी,

इस मधुमास मिलन हो जाये, खबर ये उनतक पहुँचा दो,

काग कटोरी दूध पिलाऊँ, उन बिन सुना आलम है,

होठों पर मुस्कान जगाता, शायद तेरा बालम है।।

4-"हमसफर"

जिंदगी का सफर, कितना लंबा सफर,

हमसफर साथ ना हो तो कैसे कटेगा।।

प्रकाश की किरणें, कलियों को खिलाती हैं,

हवा कुछ कहते हुए, खुशबू को फैलाती है,

हमराह साथ हो तो जिंदगी भी मुस्कुराती है,

कितनी लंबी डगर, तक गए हैं मगर,

हमसफर साथ हो तो कोई कैसे पीछे हटेगा,

जिंदगी का सफर कितना लंबा सफर,

हमसफर साथ ना हो तो कैसे कटेगा।।

तारे गगन में चमकने लगे, लेकिन चंदा बिना सूनी रतिया,

बहार आके करे तो क्या करे, जब फूल बिना सुनी बगिया,

खुदा की नेमतों में ये नेमत सबसे अनूठी,

कितनी प्यारी लगे जैसे नगीने सँग अगूंठी,

हमसफर छूट जाए, धागा जो टूट जाए,

"सागर" दर्द-ए-दिल कोई कैसे सहेगा,

जिंदगी का सफर कितना लंबा सफर,

हमसफर साथ ना हो तो कैसे कटेगा।।

5-"तनहाईयाँ"

कैसी तनहाईयाँ दूर तक फैली हैं,

जैसे दिल ये मेरा जानता ही नहीं,

सोचना छोड़कर भूलना चाहे ये,

लेकिन कमबख्त क्यूँ मानता ही नहीं।।

पल पल तड़पे आँसुओं का रुकना मुश्किल है,

चाहकर भी ना भूल पाए, इसे मनाना मुश्किल है,

चोट ऐसी लगी सारी उम्र जो रहेगी,

मार भूलों की इतनी गहरी है,

सारी उम्र जो कहेगी,

असहनीय हो गया सहना, कुछ भी सहने की ठानता ही नहीं,

सोचना छोड़कर भूलना चाहे ये,

लेकिन कमबख्त क्यूँ मानता ही नहीं।।

यादों की गलियों में जब अखियों के झरोखों से देखा,

पाया कि यादें वक्त के थपेड़ों से डगमगा रही हैं,

उन यादों को क्यूँ याद किया जाए,

जो केवल तनहाईयाँ दे,

उस वक्त को क्यूँ याद किया जाए,

जो केवल रुसवाईयाँ दे,

"सागर-ए-दिल" क्या किया जाए,

दिल के कोरे कागज पर लिखा जैसे मिटता ही नहीं,

सोचना छोड़कर भूलना चाहे ये,

लेकिन कमबख्त क्यूँ मानता ही नहीं।।

6-"गुजारिश"

हमें मालूम है कि तुम हमें बर्बाद कर दोगे,

मगर अपनी मुहब्बत से हमें आबाद कर दोगे।।

तड़पते दिल के मैखाने में जाकर, जाम पी लूँगा,

कसक है जो अधूरी जिंदगी की, जाके जी लूँगा,

तुम अपनी पलकें झपकाकर हमें नासाज कर दोगे,

मगर अपनी मुहब्बत से हमें आबाद कर दोगे।।

है ख्वाहिश कि मरूँ चौखट पे तेरे, तुम नबी मेरे,

न गम कुछ जिंदगी में अब रहा, सब नाम है तेरे,

बस इतनी सी गुजारिश है, हमें आजाद कर दोगे,

मगर अपनी मुहब्बत से हमें आबाद कर दोगे।।

आपके स्नेह का आकांक्षी-

राकेश कुमार पाण्डेय"सागर"

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