1.
"हर घड़ी तुमको गाता हूँ"
महकने लगी सारी गलियां,
बहकने लगा भ्रमर मन मीत,
लगाया है तुमने जो रोग,
पहर हर पहर बढ़ाकर प्रीत,
अपने मन के मंदिर में मैं,
तुम्हें हरपल ही पाता हूँ,
है नहीं याद मुझे कुछ और,
हर घड़ी तुमको गाता हूँ।
तेरे बिन जिंदगी का पथ,
बड़ा मुश्किल सा लगता था,
तेरे आ जाने से राहों में मेरी,
घास उग आई,
ये माना कि नहीं हूँ आदमी,
मैं दस करोड़ी का,
बजेगी बाँसुरी खुशियों की,
अब ये आस उग आई,
मुझे जन्नत की नहीं चाहत,
तुझमें जन्नत को पाता हूँ,
है नहीं याद मुझे कुछ और,
हर घड़ी तुमको गाता हूँ।।
जंगलों और वीरानों सा,
तुम बिन ये लगे जीवन,
तुम्हारे बिन बसंती में,
लगे पतझड़ का है मौसम,
सुनों पगली हवाओं,
जाके उनसे बात बतलाना,
उनकी जुल्फों के साए में,
मुझे स्वीकार मर जाना,
झपक जाएं पलकें बरबस,
तुम्हें बाहों में पाता हूँ,
है नहीं याद मुझे कुछ और,
हर घड़ी तुमको गाता हूँ।।
समंदर से भी गहरा प्यार मेरा,
माप ना जाए,
है ये आकाश से ऊंचा,
जिसे कोई नाप ना पाए,
हृदय में अवचेतन मन में,
बस तेरी प्रीत समाई है,
बुझ के भी रहे जिसका अस्तित्व,
तुमने वो आग लगाई है,
पतिंगे की माफिक तुझपर,
समर्पित जल सा जाता हूँ,
है नहीं याद मुझे कुछ और,
हर घड़ी तुमको गाता हूँ।।
2.
"अभी कोरा सा कागज हूँ"
अभी कोरा सा कागज हूँ,
तुम्हारे नाम हो जाऊं,
अगर राधा बनो मेरी,
तेरा घनश्याम हो जाऊं,
न कोई दरमियाँ तेरे मेरे हो,
इक गुजारिश है,
अगर तुम सुबह बन जाओ,
तुम्हारी शाम हो जाऊं।।
तुम्हारे दिल में आ करके,
वहीं कुर्बान हो जाऊं,
तुम्हें बिल्कुल खबर ना हो,
तुम्हारी जान हो जाऊं,
चलो आओ मिलाएं दिल से दिल,
जो तुम बनो गीता,
मैं सच कहता हूँ मेरी जान,
मैं कुरान हो जाऊं।।
मुहब्बत के कसीदे ना पढूँ,
दिल की सुनाता हूँ,
तुम्हारी यादों को शब्दों में रचकर,
गीत गाता हूँ,
तेरी मूरत को दिल के बंद,
कमरों में सजाया हूँ,
अगर आगाज तुम कर दो,
तेरा अंजाम हो जाऊं।।
दिलों की बात करता हूँ,
फिजा में रंग भरता हूँ,
नहीं कुछ काम है मेरा,
तुम्हीं से प्यार करता हूँ,
है चर्चा आम गलियों में मुहल्लों में,
तू दीवानी,
उन्हीं इश्कन की गलियों में,
मैं भी बदनाम हो जाऊं,
अभी कोरा सा कागज हूँ,
तुम्हारे नाम हो जाऊं।।
3.
"प्रेम पत्र"
तेरे मन की जो आशा समझ ही गए,
तेरे नैनों की भाषा समझ ही गए,
इस तरह जिंदगी में जो आएंगे जी,
हम सुबह शाम होली मनाएंगे जी,
घर में खुशियों का दीपक जलायेंगे जी।।
तेरे आने से मौसम बदल जायेगा,
इस पपीहे को पानी भी मिल जाएगा,
स्वाति की बूंदें बनकर बरस जो गई,
मन के सागर में मोती उगाएंगे जी,
घर में खुशियों का दीपक जलायेंगे जी।।
दामिनी सी चपलता, अधर आग है,
काला तिल मुस्कुराता, गजब दाग है,
रूप लावण्य प्याला झलकता हुआ,
हम उसी में सनम डूब जाएंगे जी,
घर में खुशियों का दीपक जलायेंगे जी।।
आपका मेरे दिल में, बसेरा हुआ,
जैसे फूलों का बगिया में डेरा हुआ,
है महकने लगी प्यार की हर गली,
प्रेम की बाँसुरी, मिल बजायेंगे जी,
घर में खुशियों का दीपक जलायेंगे जी।
अपनी पलकों में मुझको बसा लीजिये,
आते आते यहां तक जमाने लगे,
है क्या रिश्ता जो पूछेंगी पगडंडियाँ,
दिल कहे बस उन्हें ही बताएंगे जी,
घर में खुशियों का दीपक जलायेंगे जी।।
-राकेश कुमार पाण्डेय"सागर"
आज़मगढ, उत्तर प्रदेश