"स्त्री"
स्त्री,
एक शब्द जो देखने में अधूरा है,
लेकिन अपने अंदर समेटे संसार पूरा है,
सुनने में अक्सर आता है, घर में बिटिया हुई है,
कहीं खुशी का सागर है तो कहीं लगता है,
किसी की लुटिया डुबी है।।
कभी न सुना न देखा, बेटा आया बोझ आया,
हमारे घर में मातम छाया,
काश ये दोनों बातें एक हो जातीं,
बेटा हो या बेटी, सबके घरों में
बराबरी से सोहरें गवातीं।।
प्यार से बेटियों को बेटा बुलाते हैं,
तो फिर बेटों को बेटियों बुलाने में क्यों लजाते हैं,
क्या आप बेटियों को कमतर समझते हैं,
नहीं, मैं ये नहीं कहता कि बेटों को हम ना समझते हैं,
अरे भाई, बेटियों को बेटियां ही रहने दो,
प्यार से बेटियों को बेटी ही कहने दो।।
ग्रन्थों में लिखा है"जत्र पूज्यन्ते नारी, रमन्ते तत्र देवता"
अगर ये बात हम सच्चे दिल से मानते हैं,
तो फिर क्यूँ किसी नारी को अपने आँगन में जलाते हैं।।
आजकल ये मानवता शर्मसार है,
अपने ही हिस्सों की गुनहगार है,
काश इस जमाने को होश आ जाए,
ये कलुषित विचारों की मटकी फुट जाए,
ये अधूरा शब्द सबके दिलों में पुरा हो जाए,
हे ईश्वर तुझसे बस यही प्रार्थना है,
इस नारी के सपनों का सवेरा हो जाए।।
२-
"कहाँ तुम खो गई हो"
तुम्हें बस काम प्यारा था,
तेरा हर जन दुलारा था,
न हों आँसू किसी आँखों में,
मकसद ये तुम्हारा था,
लगाकर स्वप्न का पौधा,
कहाँ तुम सो गई हो,
हे माँ बेकल हैं ये आँखें,
कहाँ तुम खो गई हो।।
तेरी थपकी के मरहम को,
कहाँ मैं ढूंढ पाउँगा,
तेरा लल्ला हूँ रे मैया,
मैं माँ किसको बुलाऊंगा,
पुकारेंगी तुम्हें कलियाँ,
जो आँगन बो गई हो,
हे माँ बेकल हैं ये आँखें,
कहाँ तुम खो गई हो।।
तेरा दिल है बड़ा इतना,
जो पत्थर में धड़कता है,
तेरी उपमा नहीं है माँ,
न दुनिया इस जमाने में,
मुझे आशीष देने को,
लगे अक्सर घड़ी हरपल,
तेरी आवाज आती है,
पुराने उस दालाने से,
सुकूँ पाऊँ वो आँचल ओढ़कर,
जो दे गई हो,
हे माँ बेकल हैं ये आँखें,
कहाँ तुम खो गई हो।।
३-
"कल को किसने देखा है"
कल को किसने देखा है,
न मैंने देखा है, न तुमने देखा है,
शायद आशाएं पँख लगाकर,
कल रूपी आसमान में उड़ती हैं,
लेकिन समय की आँधियों में उलझकर,
वास्तविकता की जमीन पर गिरती हैं।।
आजकल सुनने में आता है, कल ये होगा, कल वो होगा,
कल्पनाएं तो कल्पनाएं हैं, शायद उन्हें पता है,
कल आजकल से ही निकला है।।
फिर भी जो हो, कल की नींव तो आज से ही पड़ती है।
विपत्तियों का कुचक्र, दुःख का बोझ,
वाह रे इंसान, कैसा जरिया है सुख पाने का,
कल तक दुःख था, अब सुख आयो रे,
खैर जो हो, वास्तविकता शायद पुकार के कह रही है,
"सागर" आज में जिओ और कल को सुव्यवस्थित कर लो।।
धन्यवाद-
राकेश कुमार पाण्डेय"सागर"
आज़मगढ, उत्तर प्रदेश
धन्यवाद-
राकेश कुमार पाण्डेय"सागर"
आज़मगढ, उत्तर प्रदेश