स्नेही दोस्तों,
मुहब्बत के अनछुए पल जो जीवन के हर मोड़ पर, हर घड़ी हमारी यादों में घर बनाए रहते हैं, उनकी भीनी भीनी खुशबू से हम हमेशा महकते रहते हैं।आपकी उन्हीं यादों में लिपटी हुई पंक्तियाँ आपके लिए....
१- "क्यूँ याद आने लगी हो"
जमीं आसमाँ पर तुम्हीं तुम हो छाई,
पुरानी दीवारों पर रंगत है आई,
सुबह शाम हरपल सताने लगी हो,
मेरी जान क्यूँ याद आने लगी हो।।
सनम जब मिले थे, नए गुल खिले थे,
अंधेरे से मन में भी,जुगनू जले थे,
जमीं पर लिखा था तराना दिलों का,
दो दिल जाके फिर आसमाँ में मिले थे,
जो बैठा मैं रातों को दरिया किनारे,
तुम बन चाँदनी मुस्कुराने लगी हो,
सुबह शाम हरपल सताने लगी हो,
मेरी जान क्यूँ याद आने लगी हो।।
न भूला हूँ गलियां, मुहब्बत की कलियाँ,
वो पीली सी सरसो की मदमस्त फलियाँ,
उन खट्टी सी यादों पर जैसे लिपटकर,
सनम चासनी तुम लगाने लगी हो,
सुबह शाम हरपल सताने लगी हो,
मेरी जान क्यूँ याद आने लगी हो।।
हवाओं के झोंकों से खुशबू है आई,
लगा ओढ़े चुनर हो तुम मुस्कुराई,
मेरा दिल था आँखों की झीलों में डूबा,
क्यूँ गहराइयाँ तुम बढ़ाने लगी हो,
सुबह शाम हरपल सताने लगी हो,
मेरी जान क्यूँ याद आने लगी हो।।
नहीं कोई परिमाण है चाहतों का,
तेरा साथ मरहम भरा राहतों का,
थी सुनी सी बस्ती, घना था अंधेरा,
शमा रोशनी का जलाने लगी हो,
सुबह शाम हरपल सताने लगी हो,
मेरी जान क्यूँ याद आने लगी हो।।
२-"छुअन चाहतों की"
अखियों ही अखियों में प्यार हो गया,
जाने कैसा आलम मेरे यार हो गया,
दिलरुबा का मेरे दीदार हो गया,
जाने कैसा आलम मेरे यार हो गया।।
पहली नजर मिली जो, अरमा जगे हैं दिल में,
एहसास प्यार का जो आया है धड़कनों में,
जुबां कुछ न बोली मगर इजहार हो गया,
जाने कैसा आलम मेरे यार हो गया।।
दिल खो रहा है मेरा, इन गेसुओं में तेरे,
नजदीकियां बढ़ी पर ये लब्ज कुछ न बोले,
तेरा दिल भी जाना बेकरार हो गया,
जाने कैसा आलम मेरे यार हो गया।।
हम बन गए जरूरत एक दूसरे की जानम,
इन चाहतों में अपनी, गुजरेगी उम्र जानम,
"सागर" दिल भी तेरा तलबगार हो गया,
जाने कैसा आलम मेरे यार हो गया।।
३-"मुहब्बत का सिलसिला"
मुहब्बत का यूँ सिलसिला चला,
कुछ न पूछो यारों,क्या नहीं मिला।।
चाहा था उसको बड़ी दिल्लगी से,
मुहब्बत के बदले मुझे है मिला क्या,
खोई खुशी रोए मन चुपके चुपके,
जाने न जाने बुरा है किया क्या,
कुछ दर्द, कुछ रुसवाईयाँ, कुछ गम मिला,
कुछ न पूछो यारों क्या नहीं मिला।।
आँखों का समंदर इतना था गहरा,
देखते देखते उसमें खोता गया,
साया था गेसुओं का घना जाने क्यूँ,
ऐसी ठंडक मिली कि मैं सोता गया,
अनचखा स्वाद सौंदर्य का भी मिला,
कुछ न पूछो यारों क्या नहीं मिला।।
प्यार की साख इतनी बढ़ी दोस्तों,
इश्क परवान दिल पर चढ़ी दोस्तों,
क्या कहूँ, क्या करूँ कुछ भी सूझे नहीं,
थी मुहब्बत ,अजब थी घड़ी दोस्तों,
"सागर-ए-दिल" न खुद, न दुसरों से गिला,
कुछ न पूछो यारों क्या नहीं मिला।।
धन्यवाद
-राकेश कुमार पाण्डेय"सागर"