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लहरें (गीतों का संकलन)

गीत-1

"कहूँ क्या प्रिये याद आने लगी हो"

नई सुबह आयी, नया है सवेरा,

नई टहनियों पर नया है बसेरा,

मेरे मन को तुम गुदगुदाने लगी हो,

कहूँ क्या प्रिये याद आने लगी हो।।

है पहला ही सावन, तेरी याद आयी,

ये सौतन कोयलिया मधुर गीत गायी,

ये बारिश की बूंदों के कलरव की तानें,

बताओ प्रिये अब ये दिल कैसे माने,

कटी कैसी रातें, शिकायत नहीं है,

उजालों में भी तुम सताने लगी हो,

कहूँ क्या प्रिये याद आने लगी हो।।

पड़ी ओस बूंदों को मैं सेंकता हूँ,

नई कोपलों में तुम्हें देखता हूँ,

समंदर किनारे मकां मेरा लेकिन,

मैं प्यासा हूँ पानी में गम फेंकता हूँ,

मेरे दिल के दरिया में हलचल मचाने,

लहर बनके तुम लहलहाने लगी हो,

कहूँ क्या प्रिये याद आने लगी हो।।

निगाहें निगाहों से मिल जो गई हैं,

मिलीं पलकें पलकों से छिल जो गई हैं,

हैं उजली सी रातें कहूँ दिल की बातें,

हुआ दिल अमीरा, तू मिल जो गई हो,

इन "सागर" की बाहों में मौजें हैं कितनी,

पलक बन्द कर तुम बताने लगी हो,

कहूँ क्या प्रिये याद आने लगी हो।।

गीत-2

"पिया मिलन को तरसती होंगी"

कभी जो बरसात की फुहारें,

दुआरे तेरे बरसती होंगी,

सजल नयन डबडबाती आँखें,

पिया मिलन को तरसती होंगी,

जो आके छेड़े पवन का झोंका,

उसे सन्देशों का काम देना,

जो बूंदें पूछेंगी आसुओं से,

तुम्हारी पलकें फड़कती होंगी।।

नए हैं पत्ते नई हैं कलियाँ,

नया सवेरा महकती गलियां,

ये ओस लगती हैं जैसे मोती,

कहूँ प्रिये क्या जो पास होती,

है कोयलों को गुमान खुदपर,

उन्हें मुहब्बत का जाम देना,

जो काग छेड़े हैं तार मन के,

व्यथाएँ दिल से गुजरती होंगी,

सजल नयन डबडबाती आँखें,

पिया मिलन को तरसती होंगी।।

अधूरा जीवन तुम्हारे बिन है,

कि जैसे चन्दा बिना चकोरी,

हैं इस धरा पर तमाम नदियाँ,

अधूरी है फिर भी प्यास मेरी,

खुली रहेंगी ये आँखें मेरी,

मिलन की आशा में टक् लगाए,

गया है पतझड़ बसन्त आया,

तू चाँदनी सँग सँवरती होगी,

सजल नयन डबडबाती आँखें,

पिया मिलन को तरसती होंगी।।

गीत-3

"हम तो तुमसे ही प्यार कर बैठे"

तेरी याद आये तो सावन की घटा छाती है,

दूर सन्नाटों में बिजली सी कौंध जाती है,

हर घड़ी फूलों की खुशबू से मैं महकता हूँ,

तेरे जाने से जो वो छन के हवा आती है।।

हम तो तुमसे ही प्यार कर बैठे,

खुद ही खुद को बीमार कर बैठे,

कोई जँचता नहीं है इस दिल को,

जब से तेरा दीदार कर बैठे।।

शुष्क मौसम में बन के बारिश तुम,

तपती धरती को लबलबा ही गए,

काँच सा मन था, गम की काई को,

इश्क के पोंछे से चमका ही गए,

तुम समझते कि मैं काफिर हूँ,

तुझमें उनका दीदार कर बैठे,

हम तो तुमसे ही प्यार कर बैठे।।

नर्म मखमल के अब गलीचों पर,

रातों में नींद नहीं आती है,

उलझनों में मैं करवटें बदलूँ,

याद तेरी दिल से नहीं जाती है,

दिल मेरा बस में ना रहा मेरे,

जब से नैना ये चार कर बैठे,

हम तो तुमसे ही प्यार कर बैठे।।

दिल की डाली पे इश्क़ का झूला,

इक दूजे को हम झुलायेंगे,

तोड़ कर रश्में सारी दुनिया की,

अपनी कसमों को हम निभाएंगे,

प्यार करना है गर खता "सागर",

ये खता बार बार कर बैठे,

हम तो तुमसे ही प्यार कर बैठे।।

- राकेश कुमार पाण्डेय"सागर"

आज़मगढ, उत्तर प्रदेश

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