चंद्रगुप्त (स्थान - तक्षशिला के गुरुकुल का मठ) चाणक्य और सिंहरण के बीच का संवाद - उस समय आम्भिक और अलका का प्रवेश होता है - आम्भिक गुरुकुल में शस्त्र का प्रयोग करता है और चाणक्य उसे रोकता है.. कौन सी बात पर राजकुमार आम्भिक और चाणक्य के बीच द्वंद्व होता है.. पढ़िए चन्द्रगुप्त प्रथम अंक -१.

Full Novel

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चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 1

चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 1 (स्थान - तक्षशिला के गुरुकुल का मठ) चाणक्य और सिंहरण के बीच का संवाद - समय आम्भिक और अलका का प्रवेश होता है - आम्भिक गुरुकुल में शस्त्र का प्रयोग करता है और चाणक्य उसे रोकता है.. कौन सी बात पर राजकुमार आम्भिक और चाणक्य के बीच द्वंद्व होता है.. पढ़िए चन्द्रगुप्त प्रथम अंक -१. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 2

चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 2 ( मगध सम्राट का विलास-कानन ) विलासी युवक और युवतियों का वसंत उत्सव में विहार रहा है - नन्द कुछ युवतियों को पूछ रहा है और मदिरापान तथा अन्य विलास कर रहा है - कुछ नागरिक और स्त्रियाँ एक दुसरे के साथ मिलन बढ़ाते हुए बातें करती है.. पढ़िए आगे की कहानी, चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 2. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 3

चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 3 ( पाटलिपुत्र में एक भग्नकुटीर ) कुटिया में अन्दर प्रवेश करते ही चाणक्य पुरानी यादों खो गए - पिताजी की गोद और अन्य चीजें यद् आई - प्रतिवेशी चाणक्य से पूछ्ताज करता है - शैशव की स्निग्ध स्मृति ... पढ़िए चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 3. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 4

चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 4 ( कुसुमपुर के सरस्वती मंदिर के उपवन का पथ ) राक्षस और सुवासिनी के बीच हुआ कुछ वार्तालाप - बौद्ध स्तूप की बातें - रक्षियो के साथ शिविका पर राजकुमारी कल्याणी का प्रवेश - नीला का प्रवेश होता है और उसके ठीक बाद दो ब्रह्मचारियों का प्रवेश होता है... पढ़िए, चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 4 ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 5

चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 5 (मगध में नन्द की राजसभा) राक्षस और सभासदों के साथ नन्द - दौवारिक प्रस्थान करता और चन्द्रगुप्त के साथ कई स्नातकों का प्रवेश होता है - चाणक्य का सहसा प्रवेश होता है - नन्द चाणक्य का अपमान करता है और धक्के मारकर बाहर निकालने की धमकी देता है ... पढ़िए, चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 5. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 6

चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 6 (सिन्धु तट - अलका और मालविका) मालविका और अलका युवराज के मानचित्र के बारे में कर रही है - यवन के आते ही अपनी कंचुक में वह मानचित्र छिपा लेती है - सिंहरण आती है और यवन को बाहर जाने के लिए कहती है... पढ़िए, चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - ६. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 7

चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 7 (मगध का बंदीगृह) चाणक्य, वररुचि और राक्षस के बीच में वार्तालाप होता है - चाणक्य लेकर चन्द्रगुप्त राक्षस को चुप करके बैठा देता है .. पढ़िए, चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - ७. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 8

चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 8 (गांधार नरेश का प्रकोष्ठ) चिन्तायुक्त राजा बेटी अलका के पास जाता है - अधिक वेग आम्भिक प्रवेश करता है - राजकुमारी बंदिनी बने उसके बजाय कोई और यवन का चुनाव करने के लिए आम्भिक को कहा गया - अंत में आम्भिक को जो ठीक लगे वह करने के लिए राजा कहता है ... पढ़िए, चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 8. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 9

चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 9 पर्वतेश्वर और चाणक्य के बीच नन्द विद्रोह को लेकर कुछ बातचीत चल रही है विद्रोह के लिए चाणक्य चन्द्रगुप्त को पसंद करते है ... पढ़िए, चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 9. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 10

चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 10 कानन वन में अलका - सिल्यूकस और अलका के बीच में कुछ बातचीत होती - चन्द्रगुप्त और चाणक्य के बीच में चल रही बातचीत के दौर में सिल्यूकस आता है... पढ़िए, चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 10. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 11

चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 11 सिधु तट पर दांड्यायन का आश्रम - दांड्यायन के आश्रम में एनिसाक्रीटीज का आगमन है - अलका गांधार छोड़कर जाने की बात रखती है - सिल्यूकस सिकंदर को चन्द्रगुप्त के बारे में पहचान करवाता है ... पढ़िए, चंद्रगुप्त - प्रथम अंक - 11. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 12

चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 12 उद्भांड में सिन्धु के किनारे ग्रीक शिविर में पास वृक्ष के नीचे कार्नेलिया बैठी है - फिलिप्स कार्नेलिया के पास बैठकर उससे बाते करता है - कुछ देर में सिकंदर का प्रवेश होता है - साथ में आम्भिक और सिल्यूकस भी आते है... पढ़िए, चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 1 ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 13

चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 13 जेलम तट का वन पथ - चाणक्य, चन्द्रगुप्त और अलका का प्रवेश होता है सिंहरण का सहारा लिए वृद्ध गांधार राज का प्रवेश होता है.. पढ़िए, चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 2 ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 14

चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 14 युद्धक्षेत्र - सैनिकों के साथ पर्वतेश्वर पर्वतेश्वर और सेनापति युद्ध में विजय और मृत्यु की करते है - एक और से सेल्यूकस और दूसरी और से पर्वतेश्वर का सैन्य एकदूजे के साथ भिड़ता है ... पढ़िए, चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 3 ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 15

चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 15 मासल में सिंहरण के उद्वान का एक अंश - एन्द्रजालिक के वेश में चन्द्रगुप्त प्रवेश होता है - सिर ज़ुकाकर मालविका प्रवेश करती है ... पढ़िए, चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 4 ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 16

चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 16 स्थल - बंदीगृह, घायल सिंहरण और अलका अलका और सिंहरण अपने बंदी होने के में चाणक्य के मत के बारे में बाते करते है - पर्वतेश्वर और अलका प्रेम की बाते करते है और पर्वतेश्वर अलका के विषय में बे प्रेमी होने की बात की पुष्टि करता है... पढ़िए, चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 5 ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 17

चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 17 मालवों के स्कंधावार में युद्ध परिषद् - सिंहरण का प्रवेश हुआ और परिषद् में व्याप्त हुआ - चाणक्य व्यासपीठ पर आए ... पढ़िए, चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 17. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 18

चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 18 पर्वतेश्वर का प्रासाद - पर्वतेश्वर अपने अलका के प्रति प्रतिश्रुत होने की बात बताता और उसी समय सिकंदर का रावी नदी के पास आठ सहस्त्र अश्वारोही को लेकर बुलाया... पढ़िए, चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 18. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 19

चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 19 रावी के तट पर सैनिको के साथ मालविका और चन्द्रगुप्त, नदी में दूर कुछ - अलका नाव से उतारकर पर्वतेश्वर के बारे में चन्द्रगुप्त को कूछ सूचित करने हेतु रावी के तट पर आती है ... पढ़िए, चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 19. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 20

चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 20 शिविर के समीप कल्याणी और चाणक्य - कल्याणी आचार्य चाणक्य से युद्ध क्षेत्र से की अनुमति मांगती है - उसी दौरान अमात्य राक्षस का प्रवेश होता है ... पढ़िए, चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - २०. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 21

चंद्रगुप्त - द्वितीय अंक - 21 मालव दुर्ग का भीतरी भाग एक शून्य परकोटा - अलका यवन सैनिको को घायल है और साथ में सिंहरण वहां पहुँच जाता है - यवन सेना का प्रस्थान होता है और चन्द्रगुप्त का जयघोष होता है... पढ़िए, चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 21 ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 22

चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 22 विपाशा तट का शिविर और राक्षस टहलता हुआ - राक्षस को सूचना मिली उनके सर पे पुरस्कार रक्खा हुआ है ... पढ़िए, चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 22. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 23

चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 23 रावी तट के उत्सव शिविर का एक पथ पर्वतेश्वर अकेले टहलते - पर्वतेश्वर और चाणक्य के बीच संवाद होना शुरू हुए... पढ़िए, चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 23. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 24

चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 24 रावी का तट - सिकंदर का बेडा प्रस्तुत है, चाणक्य और पर्वतेश्वर - सेनापति चन्द्रगुप्त को बधाई देता है - सिकंदर नौका आरोहण करता है हौर नाव आगे बढ़ जाती है... पढ़िए, चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 24. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 25

चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 25 पथ में चर और राक्षस - राक्षस एसा समजने लगा की चाणक्य मगध विद्रोह करना चाहता है - चन्द्रगुप्त के पिताजी सैन्य के कारागार में है यह सूचना मिलते ही चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को मगध जाने से रोका ... पढ़िए, चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 25. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 26

चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 26 मगध में नन्द की रंगशाला - सुवासिनी के पास नन्द आता है और देर के लिए आराम करने हेतु उससे बातचीत करने लगता है - सुवासिनी द्राक्षासव लेकर आती है और उन्मादक गान गाती है... पढ़िए, चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 26. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 27

चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 27 कुसुमपुर का प्रान्त भाग - चाणक्य, मालविका और अलका - राक्षस के के ठीक कुछ घडी पहेले मालविका को कुछ पात्र देकर चाणक्य जाने के लिए कहते है ... पढ़िए, चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 27. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 28

चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 28 नन्द के राजमंदिर का एक प्रकोष्ठ - सेनापति मौर्य की स्त्री को साथ हुए वररुचि का प्रवेश - नन्द उके केश पकड़कर उसे खींचना चाहता है पर वररुचि बीच में आकर रोकता है ... पढ़िए, चन्द्रगुप्त. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 29

चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 29 कुसुमपुर के प्रान्त मै पथ, चाणक्य और पर्वतेश्वर - चाणक्य पर्वतेश्वर से चन्द्रगुप्त बारे में पूछता है - अलका का प्रवेश होता है .. पढ़िए, चन्द्रगुप्त. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 30

चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 30 नन्द की रंगशाला - सुवासिनी और राक्षस बंदी वेश में - नन्द और के नीच मंत्रणा की बातचीत... पढ़िए, चंद्रगुप्त - तृतिय - अंक - 30. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 31

चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 31 मगध में राजकीय उपवन - कल्याणी मध्यप की सी चेष्ठा करती हुई पर्वतेश्वर को करते हुए देख चुप हो जाती है .. पढ़िए, चंद्रगुप्त. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 32

चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 32 पथ में राक्षस और सुवासिनी - सुवासिनी पिताजी से अनुमंती मांगने पर अड़ है... पढ़िए, चंद्रगुप्त. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 33

चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 33 परिषद् गृह - मौर्य सेनापति और उसकी स्त्री का प्रवेश - चाणक्य और के बीच में संवाद होता है ... पढ़िए, चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 33. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 34

चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 34 प्रकोष्ठ में चन्द्रगुप्त का प्रवेश - प्रतिहारी का प्रवेश होता है - मालविका बात करके लौटती है... पढ़िए, चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 34. ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 35

चाणक्यने हंस कर कहा, कात्यायन तुम सच्चे ब्राह्मण हो! यह करुणा और सौहार्द का उद्रेक ऐसे ही ह्रदयों में है परन्तु मैं निष्ठुर, ह्रदयहिन् मुझे तो केवल अपने हाथों खड़ा किये हुए एक सामराज्य का द्रश्य देख लेना है कात्यायनने जवाब देते हुए कहा की फिर भी चाणक्य उसका सरस मुख मंडल! उस लक्ष्मी का अमंगल! चाणक्य फिर हंसे और बोले, तुम पागल तो नहीं हो गये हो? कात्यायनने कहा तुम हंसो मत चाणक्य! तुम्हारा हंसना तुम्हारे क्रोध से भी भयानक है प्रतिज्ञा करो की तुम उसका अनिष्ट नहीं करोगे! बोलो चाणक्यने कहा कात्यायन! अलक्षेन्द्र कितने विकट परिश्रम से भारतवर्ष से बहार हुए थे क्या तुम यह बात भूल गये? ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 36

चाणक्यने हंस कर कहा, कात्यायन तुम सच्चे ब्राह्मण हो! यह करुणा और सौहार्द का उद्रेक ऐसे ही ह्रदयों में है परन्तु मैं निष्ठुर, ह्रदयहिन् मुझे तो केवल अपने हाथों खड़ा किये हुए एक सामराज्य का द्रश्य देख लेना है कात्यायनने जवाब देते हुए कहा की फिर भी चाणक्य उसका सरस मुख मंडल! उस लक्ष्मी का अमंगल! चाणक्य फिर हंसे और बोले, तुम पागल तो नहीं हो गये हो? कात्यायनने कहा तुम हंसो मत चाणक्य! तुम्हारा हंसना तुम्हारे क्रोध से भी भयानक है प्रतिज्ञा करो की तुम उसका अनिष्ट नहीं करोगे! बोलो चाणक्यने कहा कात्यायन! अलक्षेन्द्र कितने विकट परिश्रम से भारतवर्ष से बहार हुए थे क्या तुम यह बात भूल गये? ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 37

कार्नेलिया ने कहा की बहुत दिन हुए देखा था वही भारतवर्ष! वही निर्मल ज्योति का देश, पवित्र भूमि, हत्या और लूट से बिभत्य बनायी जायेगी – ग्रीक सैनिक इस शस्यश्यामला पृथ्वी को रक्त रंजित बनावेंगे! पिता अपने साम्राज्य से संतुष्ट नहीं, आशा उन्हें दौड़ा वेगी पिशाची छलना में पद कर लाखों प्राणियों का नाश होगा, और सुना है यह युद्ध होगा चन्द्रगुप्त से सुन कर सखी बोली, सम्राट तो आज स्क्न्धावर जाने वाले हैं तभी राक्षस का प्रवेश होता है और वो कहता है की आयुष्मती मैं आ गया कार्नेलिया ने राक्षस से पूछा की क्या तुम्हारे देश में ब्राह्मण जाति बड़ी तपस्वी और त्यागी होती है? ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 38

चन्द्रगुप्त ने कहा की सिंहरण इस प्रतीक्षा में है की कोई ब्लाधिकृत जाय तो वे अपना अधिकार सोंप दें नायक! तुम खड्ग पकड़ सकते हो, और उसे हाथ में लिए सत्य से विचलित तो नहीं हो सकते? बोलो चन्द्रगुप्त के नाम से प्राण दे सकते हो? मैंने प्राण देनेवाले वीरों को देखा है चन्द्रगुप्त युद्द करना जानता है और विश्वास रखो, उसके नाम का जयघोष विजयलक्ष्मी का मंगल गान है आज से मैं ही ब्लाधिकृत हूँ, मैं आज सम्राट नहीं, सैनिक हूँ चिन्ता क्या? सिंहरण और गुरुदेव न साथ दें, डर क्या? सैनिको! सुन लो, आज से मैं केवल सेनापति हूँ, और कुछ नहीं जाओ, यह लो मुद्रा और सिंहरण को छुट्टी दो.... ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 39

कार्नेलियाने पूछा, एलिस! यहाँ आने पर जैसे मन उदास हो गया है, इस संध्या के द्रश्यने मेरी तन्मयता में स्मृति की सूचना दी है सरल संध्या, पक्षियों के नाद से शान्ति को बुलाने लगी है देखते देखते एक एक करके दो चार नक्षत्र उदय होने गे जैसे प्रकृति अपनी सृष्टि की रक्षा, हीरों की किल से जड़ी हुई काली ढाल ले कर रही है और पवन किसी मधुर कथा का भार ले कर मचलता हुआ जा रहा है कहाँ जाएगा एलिस” एलिस ने उत्तर देते हुए कहा की वो अपने प्रिय के पास जाएगा इस पर कार्नेलिया ने कहा की उसको तो बस प्रेम ही प्रेम सूझता है.... ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 40

सिंहरण ने कहा, हाँ आर्य, प्रचंड विक्रम से सम्राट ने आक्रमण किया है यवन सेना थर्रा उठी है आज के युद्ध में प्राणों को तुच्छ गिन कर वे भीम पराक्रम का परिचय दे रहे हैं गुरुदेव! यदि कोई दुर्घटना हुई तो? आज्ञा दीजिये अब मैं अपने को नहीं रोक सकता तक्षशिला और मालवों की चुनी हुई सेना प्रस्तुत है, किस समय काम आवेगी? चाणक्य ने कहा की जब चन्द्रगुप्त की नासीर सेना का बल क्षय होने लगे और सिन्धु के उस पार की यवनों की समस्त सेना युद्ध में सम्मिलित हो जाय, उस समय आम्भिक आक्रमण करे और तुम चन्द्रगुप्त का स्थान ग्रहण करो... ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 41

राक्षस ने पूछा के अब क्या होगा, यह आग जो लग गई है वो बुझी नहीं तो वो कहाँ क्या हम सब ओर से हार गये हैं? सुवासिनी ने आते ही कहा की हम सब ओर से गये राक्षस क्यूंकि समय रहते तुम सचेत नहीं हुए राक्षसने सुवासिनी से पूछा की वो वहां कैसे आई, तो सुवासिनी ने जवाब दिया की वो उसे खोज रही थी तभी उसे बंदी बना दिया गया था, पर क्या अब वो उसके साथ जाने को तैयार है? राक्षस ने सुवासिनी से पूछा की अब वो कहा जा सकता है? क्यूंकि उसकी एक और खाई है तो दूसरी ओर पर्वत ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 42

सिल्यूकसने मेगास्थनीज से सत्य जानना चाहा, शब्द चाहे कितने भी कटु हों पर वो सत्य जानना चाहता था, सुनना था. मेगास्थनीजने कहा की चाणक्य ने एक और भी अड़ंगा लगाया है, उसने कहा है की सिकन्दर के साम्राज्य में जो भावी विप्लव है, वह मुझे भलीभांति अवगत है. पश्चिम का भविष्य रक्त रंजित है, इसलिए यदि पूर्व में स्थायी शान्ति चाहते हो तो ग्रीक सम्राट चन्द्रगुप्त को अपना बंधू बना ले. सिल्यूकस को बात समझ में नहीं आई उसे मेगास्थनीज को पूछा, मेगास्थनीज ने कहा की चाणक्य राजकुमारी कार्नेलिया का विवाह सम्राट चन्द्रगुप्त से करवाना चाहते हैं सिल्यूकस यह सुन कर गुस्सा हो गया और कहा.... ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 43

मौर्य कहेते हैं की यह सब ढोंग है रक्त और प्रतिशोध, क्रूरता और मृत्यु का खेल देखते ही बिता, अब क्या मैं इस सरल पथ पर चल सकूंगा? यह ब्राह्मण आँख मुंदने खोलने का अभिनय भले ही करे, पर मैं! असम्भव है! अरे, जैसे मेरा रक्त खौलने लगा ह्रदय में एक भयानक चेतना, एक अवज्ञा का अट्टहास, प्रति हिंसा जैसे नाचने लगी यह एक साधारण मनुष्य, दुर्बल कंकाल, विश्व के समूचे शस्त्रबल को तिरस्कृत किये बैठा है! रख दू गले पर खड्ग, फिर देखूं तो यह प्राण भिक्षा मांगता है या नहीं? सम्राट चन्द्रगुप्त के पिता की अवज्ञा? नहीं नहीं, ब्रह्महत्या होगी, हो, मेरा प्रतिशोध और चन्द्रगुप्त का निष्कंटक राज्य.... ...और पढ़े

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चंद्रगुप्त - चतुर्थ - अंक - 44

एक ओर से सपरिवार चन्द्रगुप्त और दूसरी ओर से यवन सेनापति प्रवेश करते हैं और वे सब साथ साथ जाते है चन्द्रगुप्त विजेता सिल्यूकस का अभिनंदन करते हैं और उनका स्वागत करते हैं सिल्यूकस कहेते हैं की आज वे विजेता नहीं है और विजित से अधिक भी नहीं है वे सिर्फ संधि और सहायता हेतु आये हैं चन्द्रगुप्त उनकी बात से सहमती जताते हुए कहेते हैं की वे दोनों अब शस्त्र विराम कर चूके हैं इस लिये अब ह्रदय का विनिमय करेंगे फिर चन्द्रगुप्त व् सिल्यूकस की चर्चा आगे बढ़ती है जिसमे राजकुमारी कार्नेलिया भी शामिल होती है और फिर.... ...और पढ़े

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