अच्छी-खासी ठंड है। मैं पैतालीस साल बाद उस मकान में हूँ जहाँ अपने विद्यार्थी जीवन में रहता था। अलमारी खोलता हूँ तो उसमें टका मेरा कोट पड़ा है। कुछ बेतरतीब सी लिखी कविताओं की एक कापी भी है। मैं कोट को निकालता हूँ।वह मुझे जादुई एहसास देता है। मैं उसे पहन लेता हूँ और अतीत के साये में घूमने लगता हूँ। कोट कहीं-कहीं पर हल्का सा फट चुका है। लेकिन उसके साथ एहसास जीवन्त लग रहे हैं। इतने में मेरा हाथ कोट की जेब में जाता है और एक कागज का पन्ना हाथ में आता है। मैं कागज को पढ़ने लगता हूँ।

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कोट - १

कोट-१अच्छी-खासी ठंड है। मैं पैतालीस साल बाद उस मकान में हूँ जहाँ अपने विद्यार्थी जीवन में रहता था। अलमारी हूँ तो उसमें टका मेरा कोट पड़ा है। कुछ बेतरतीब सी लिखी कविताओं की एक कापी भी है। मैं कोट को निकालता हूँ।वह मुझे जादुई एहसास देता है। मैं उसे पहन लेता हूँ और अतीत के साये में घूमने लगता हूँ। कोट कहीं-कहीं पर हल्का सा फट चुका है। लेकिन उसके साथ एहसास जीवन्त लग रहे हैं। इतने में मेरा हाथ कोट की जेब में जाता है और एक कागज का पन्ना हाथ में आता है। मैं कागज को पढ़ने ...और पढ़े

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कोट - २

कोट-२कोट को लिए मैं मैदान की सीढ़ियों पर बैठ जाता हूँ। झील से आती चंचल हवायें धीरे-धीरे मन की में पसरने लगीं। इसी बीच मुझे ताई जी द्वारा बतायी बातें याद आ गयीं। वह कहा करती थी कि ताऊ जी जब अपनी बहिन से मिलने गरुड़ जाया करते थे तो कोट और धोती पहन कर जाते थे। बीच में आठ मील का घना जंगल पड़ता था। ताऊ जी अन्य सामान के साथ हाथ में दही की ठेकी लेकर जाते थे। जब वे पहाड़ के शिखर से नीचे उतरते तो जंगल और घना दिखता था। धीरे-धीरे उनके हाथ की ठेकी ...और पढ़े

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कोट - ३

कोट-३जो कोट मेरे हाथ में था उसे मैंने वर्षों पहना था। उससे एक और याद लिपटती मुझे मिली।हमारे गाँव बीस मील दूर, घने जंगल के बीच एक प्यार की चादर होने की बात हम प्रायः सुनते थे। उस चादर का अस्तित्व कब तक रहा, यह किसी को पता नहीं था। लेकिन लोगों में उसकी आस्था बन चुकी थी और साथ-साथ परंपरा भी चल पड़ी थी, उसके प्रभाव को मानने की।तीर्थ स्थलों की तरह वह भी मन को शान्ति प्रदान करता था। लोगों की मान्यता थी कि जब किसी परिवार में अधिक झगड़े होने लगते थे या अशान्ति छाती थी ...और पढ़े

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कोट - ४

कोट-४ कोट लिये मुझे अपने बचपन के कोट की याद आ गयी। हमारे गाँव में जाड़ों में बहुत ठंड थी। कभी-कभी बर्फ भी गिरती थी। प्राथमिक विद्यालय में ठंड के दिनों में कोट पहन कर जाते थे। मेरे बड़े भाई मुझसे लगभग चार साल बड़े थे। हम आपस में लड़ाई झगड़ा करते रहते थे। पिटाई मेरी ही होती थी लेकिन मैदान छोड़ने की आदत मुझे नहीं थी। एकबार ईजा ( माँ) ने हमारे कोट साथ-साथ धोकर सुखाने डाल दिये। दोनों कोट एक ही कपड़े के बने थे। शाम को मुझे कपड़े उठा कर लाने को कहा गया। मैं कपड़े उठा ...और पढ़े

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कोट - ५

कोट-५कोट लेकर में धीरे-धीरे झील के किनारे पहुँच गया। स्थान वही था जहाँ हम दो दोस्त विद्यार्थी जीवन में खड़े होते थे। जहाँ हम मनुष्य की परिकल्पनाओं से लेकर ईश्वर की सृष्टि तक की बातें करते थे। समय को जाना था वह चला गया और आने वाले समय की आहट हमेशा बनी रहती है। मेरे दोस्त के बाल कुछ सफेदी लिये थे। वह अक्सर कहा करता था, इससे आकर्षण कम होता है। वहाँ तीन लड़कियां रैस्टोरेंट में प्रायः दिखती थीं। उसमें से एक हमारी कक्षा में पढ़ती थी। दो कला संकाय की थीं। दृष्टि प्रायः उस ओर जाती थी। ...और पढ़े

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कोट - ६

कोट-६चश्मेवाला व्यक्ति मेरे घर आ जाता है। मैं कोट को खूँटे से टांक देता हूँ। उसकी जेबों को टटोलता दरवाजा बन्द कर हम बातें करने लगते हैं। रात को दो बच्चे लगभग ५ वर्ष की आयु के दरवाजा खटखटाते हैं। कहते हैंबाबू जी दरवाजा खोलो। मैं अन्दर से कहता हूँ,"यहाँ चश्मे वाला आया है। बातें कर रहा है।"वे आश्चर्य से कहते हैं," चश्मेवाला" । मैं कहता हूँ हाँ वह खाना खा रहा है। वे सशंकित हो दूसरे कमरे में चले जाते हैं। थोड़ी देर बाद फिर आते हैं और पूछते हैं चश्मेवाला चला गया क्या? मैं कहता हूँ वह ...और पढ़े

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कोट - ७

कोट भाग -७"मैंने कुछ नहीं कहातुमने कुछ नहीं कहा,पर प्यार हो गया।"मैं पत्र लिखता था और उसे कोट जेब में रख देता था कि कल सुष्मिता को दे दूँगा। लेकिन जब उससे मिलता था तो सोचने लगता था अभी नहीं कल दूँगा। पत्र को क्वार्टर में आकर फिर संपादित करता और उसे आधा कर देता और कोट की जेब में रख देता। इस बीच गीता बीच में आ जाती। गीता को समझने का प्रयत्न करता उसकी बातों का अनुसरण करने लगता और पंद्रह-बीस दिन अच्छी पढ़ायी कर लेता। फिर कुछ दिन बाद गीता का ज्ञान भूल जाता और अयारपाटा ...और पढ़े

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कोट - ८

कोट -८" मैं पृथ्वी सा घूमता रहामानो सूरज की परिक्रमा करता रहा,शाम आते-आते अगली सुबह की कल्पना करने लगा।"कोट कागज जेब में है या नहीं उसे देखा। वाक्य को दो-तीन बार पढ़ा। एक जादुई अहसास मन को हो रहा था। मेरा आवास जंगल के बीच था, अतः अचानक राजा दुष्यंत का कथानक दुबक कर मेरे मन में आ गया। दुष्यंत और शकुंतला का वर्णन महाभारत के आदि पर्व में है। दुष्यंत जंगल में शिकार करते समय अपने साथियों से बिछुड़ गये थे। और शकुंतला से उनकी भेंट होती है जो प्यार में बदल जाती है। शकुंतला ऋषि विश्वामित्र और ...और पढ़े

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कोट - ९

कोट-९मैंने बच्चों से कहा जब तक चश्मे वाला नहीं लौट आता हिमालय से, तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ। बच्चों उत्सुकता में कान खड़े कर लिये। मैंने कहा, सुनो-"बहुत रात हो गयीचलो, कहानी कहें,एक था राजाएक थी रानी,सपनों में एक साधु आया,भिक्षा में उसनेराज्य उनका मांगा।बहुत रात हो गयीचलो, कहानी कहें,साँप फिर आयापुत्र भी खोया।गरीब थी रानीश्मशान में राजा,सत्य के लियेयह सत्य की कहानी।बोलो, वह राजा कहाँ से आया?राज्य फिर लौटा,पुत्र भी मिला,एक था राजाएक थी रानी।महल थे अनोखेराम से थे वे पहले,बोलो, वह राजा कहाँ से आया?"वे बोले पता नहीं। मैंने कहा मैं बताता हूँ-"राजा हरिश्चन्द्र हमारे इतिहास के ...और पढ़े

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कोट - १०

कोट-१०एक रात चश्मेवाला अचानक मेरे कमरे में प्रकट हुआ। उसने मेरे से पूछा," तुम्हारा कोट कहाँ है?" मैंने से निकाल कर उसे कहा ये है। उसने कोट लिया और स्वयं पहन लिया। मैंने कहा कोट बहुत मैला है लेकिन परिश्रम और प्यार का प्रतीक है। पसीने की गंध इसमें आ रही होगी। पगडण्डियों में तेज चलने पर ,पहाड़ियों में चढ़ने पर, खेतों में काम करने पर अक्सर पसीना निकल जाता था जिसकी गंध कोट में बैठ जाती थी।बर्फ की फाँहें कोट के ऊपर जब-तब गिरकर अनिर्वचनीय दृश्य उत्पन्न करते थे। चश्मेवाला बोला अपने हाथ दिखाओ मैंने उसे हाथ दिखाये। ...और पढ़े

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कोट - ११

कोट-११कलम विद्यालय का चित्र खींच रही थी। छोटा विद्यालय फिर बड़ा विद्यालय। पचास साल के बाद अपनी स्मृतियों की लिये, एक पूर्व वरिष्ठ प्रोफेसर अपने राजकीय विद्यालय में जाना चाहती हैं,कुछ क्षण अतीत में बिताने। क्या पता वहाँ शान्ति और सुकून मिले! कोविड-१९ के कारण विद्यालय बन्द है। वह विद्यालय के प्रधानाचार्या से अनुरोध करती हैं और वह अनुरोध मान कर स्कूल खुलवा देती हैं। प्रेषित फोटो के साथ वह अपने राजनैतिक विचारों के साथ कक्षा में बैठी एक फोटो भी भेजती हैं सोशियल मीडिया पर। टिप्पणियां में कहा गया है विद्यालय के रंगों में साम्य नहीं है। स्कूल ...और पढ़े

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कोट - १२

कोट -१२ मैं आँख मूँदे बिस्तर पर लेटा था। आँख खुली तो चश्मेवाला सामने खड़ा था । उसने कोट पहना था। उसमें लम्बी-लम्बी जेबें थीं। कोट की जेब से उसने दो पत्र निकाल कर मुझे दिये। १.आज एक वरिष्ठ पेड़ देखा।तना उसका मोटा था।डालियां झुकी हुई। फूल उस पर आते हैं पर कम। फल भी पहले से कम ठहरते हैं। गर्मी, सर्दी और बर्षा का अनुभव उसे है।सांसें लेता है और सांसें छोड़ता है ,आक्सीजन के रूप में।उसके बगल में एक छोटा पेड़ उग आया है।दोनों की दोस्ती हो गयी है।वरिष्ठ पेड़ उसे अपने अनुभव बताता है। कि कितनी बार वह कटा ...और पढ़े

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कोट - १३

कोट-१३मैंने कोट पहना और बचपन के अदृश्य प्यार से अभिभूत होने लगा। मेरे पास में दो छोटे बच्चे बैठे उन्हें मैं उत्तराखंड में प्रचलित और लोकप्रिय लोक कथा सुनाने लगा-"एक बूढ़ी महिला थी। उसकी एक बेटी थी। बहुत समय बाद उसकी शादी दूर गाँव में हुयी।दोनों गाँवों के बीच में घनघोर जंगल पड़ता था जिसमें शेर,चीता,तेंदुआ, हाथी, घुरड़, भालू ,बन्दर, लंगूर और लोमड़ी आदि जंगली जानवर रहते थे।जब बहुत समय हो गया तो बुढ़िया का मन बेटी के पास जाने को हुआ। ममता ऐसी शक्ति है जो असंभव को भी संभव कर देती है।जंगली जानवरों का डर उसे डिगा ...और पढ़े

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कोट - १४

कोट-१४ चश्मेवाला उत्तरांचल के बर्फीले स्थानों से लौटा है। उसे मैं वहाँ के हरेला त्यौहार( हर्याव) के बारे में हूँ, साथ में बच्चे भी सुनते हैं। बच्चों को पता नहीं है जो मेरे साथ बैठा है, वह चश्मेवाला है। मैं आरम्भ करता हूँ- "जी रया, जागि रया, यो दिन यो मास भेटनै रया। (जीते रहना, जीवन्त/ जागते रहना,यह दिन ,यह महिना भेटते रहना) ----- गंग ज्यु पाणि तक अमर रैया।" संक्षिप्त में कहा जाता है- "जी रया, जागि रया, गंग ज्यु पाणि तक अमर रैया।( जीते रहना, जीवन्त/ जागते रहना, गंगा जी के जल तक अमर रहना)।" बचपन में ...और पढ़े

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कोट - १५

कोट-१५अभी-अभी दिन खुला हैस्नेहिल चिड़िया डालियों पर फुदक रही है।आसमान की नीलिमा मोहक लग रही है। मैंने अपने दोस्त कहा," मैंने सुबह सपने में भगवान श्री राम और श्रीकृष्ण देखे।" उसने कहा ऐसा कैसे हो सकता है,हो ही नहीं सकता है। पूजा-पाठ मैं करता हूँ और दिखायी तुम्हें देते हैं। तुम तो रोज मन्दिर भी नहीं जाते हो।फिर मैंने कहा ईजा-बाज्यू( माता-पिता) भी दिखे थे। तो बोला हाँ मुझे भी दिखी ईजा।लगता है पितर नाराज/क्रोधित हैं। मैंने बोला नाराज क्यों होंगे! उन्हें दिखना भी अच्छा है।उसने बोला लोक मान्यता यही है।उसने कहा चलो बैठो देखते हैं हमें हमारा "डीएसबी, ...और पढ़े

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कोट - १६

कोट-१६मैं नियमित रूप से वर्षों से दूरदर्शन पर रंगोली देखता हूँ। मैं कोट को कसकर पकड़े था। उस दिन गाना आ रहा था-"प्यार के लिएचार पल कम नहीं थे,कभी हम नहीं थे,कभी तुम नहीं थे...।"दस साल में तकनीकी परिवर्तन इतना अधिक हुआ है कि चिट्ठी का अस्तित्व लगभग समाप्त होने को है।संचार माध्यम इतने त्वरित हो गये हैं कि संवेदनाएं सिमट सी गयी हैं।हाय,पर मिलते हैं और हाय, पर ही विदा हो जाते हैं।बचपन में महिलाओं को प्यार से गले मिलते देखता था। वे गले मिलते समय कहते थे," भ त्ते भलि ह र छे (बहुत अच्छी हो रही ...और पढ़े

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कोट - १७

कोट-१७नैनीताल:तल्लीताल,नैनीताल से नैना चोटी को ज्यों ही देखा, तो बहुत दूर लगी। जबकि दो बार पढ़ाई करते समय उस चढ़ा हूँ। उम्र की सीमा को अनुभव कर रहा हूँ। मैं बैठे-बैठे नैनीताल का बदलता स्वभाव देख रहा हूँ।धुंध का घिरना, साफ होना। झील के ऊपर तक आना, फिर साफ होना।पर्यटन अपनी धुन में।नाव वाले अपनी जीविका की तलाश में। फोटो लेने वालों की घूमती दृष्टि। थोड़ी देर में घना कोहरा। मैं वहीं खड़ा हूँ जहाँ प्यार को समझने जानने का प्रयास किया था। जूते पालिस करने के लिए मोची के सामने हूँ। वह बीस रुपये में पालिस करने की ...और पढ़े

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कोट - १८

कोट-१८मैं बच्चों को कहता हूँ कि कल चश्मेवाला आया था। उसने तुम्हें बताने के लिए मुझे एक कहानी कही कहा कि बच्चों को अवश्य सुनाना। कहानी का शीर्षक"राजकुमार-राजकुमारी" बताया।एक राजकुमार था,जो झील के किनारे घूमता था।झील में बड़ी-बड़ी मछलियां तैरा करती थीं। वह बड़े चाव से मछलियों की गतिविधियां देखता रहता था। मछलियों का संसार उसे अद्भुत और विस्मयकारी लगता था। झील में नावों का आना-जाना लगा रहता था। एक बार राजकुमार का राजपाट छीन गया था।एक दिन एक राजकुमारी उसे झील के किनारे मिली।राजकुमारी से उसे प्यार हो गया था।दोनों एक-दूसरे को चाहने लगे थे।राजकुमार उदास रहता था ...और पढ़े

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कोट - १९

कोट-१९मैं २०१७ में नैनीताल आया था। और झील के चिंताजनक कम जल स्तर को देखकर लिख बैठा था-झील की एक कहानी:"प्रिय, मैं तुम्हारी याद में सूखे जा रही हूँ।कहते हैं कभी सती माँ की आँखें यहाँ गिरी थीं।नैना देवी का मंदिर इसका साक्षी है। कभी मैं भरी पूरी रहती थी।तुम नाव में कभी अकेले कभी अपने साथियों के साथ नौकायन करते थे।नाव में बैठकर जब तुम मेरे जल को छूते थे तो मैं आनन्द में सिहर उठती थी।मछलियां मेरे सुख और आनन्द की सहभागी होती थीं।बत्तखों का झुंड सबको आकर्षित करता था। "वक्त" फिल्म का गाना" दिन हैं बहार ...और पढ़े

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कोट - २०

कोट उतार मैं अतीत में चला गया -मेरा गाँव कभी हँसता,कभी मुस्कराता। कभी मौन हो जाता माना पृथ्वी पर ही नहीं,कटा- छँटा,एकान्त। अकेला नदियों कल-कल के बीच। लड़ता-झगड़ा तो भी दूर-दूर तक किसी को पता नहीं चलता। इतिहास बनाता और वहीं रह जाता। श्मशान पर ५-६ लोग थे। पता करने पता चला कि एक घसियारी घास लाते समय पहाड़ की पगडण्डी से गिर गयी और उसकी मृत्यु हो गयी थी। तीन छोटे बच्चे थे उसके। श्मशान की अग्नि, आग नहीं होती, अग्नि देवता कहलाती है।सुबह लगभग दस बजे गायों को जंगल में चरने छोड़ने जा रहा था, दूर नदी ...और पढ़े

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कोट - २१

कोट-२१ कोट के पास एक पत्र पड़ा था। मैंने उसे उठाया उस पर पड़ी धूल को झाड़ा। साथ में पन्ने में लिखा था मैंने जो,वह भी साफ-साफ दिख रहा था-जब सपना टूटता है प्यार काधड़ाम सेजब सपना कटता है प्यार काकड़ाक से,जब सपना गिरता है प्यार काधड़ाम सेजब सपना घिसता है प्यार काधीरे-धीरे,धीरेघर खाने को दौड़ता है शनैः-शनैः, शनैः।"भोर जब सन्नाटा लाता हैप्यार में आती है खटास,रास्ते टूटते हैं जहाँ-तहाँ सेजैसे बाघ खा जाता है बकरी कोप्यार का नहीं दिखता नामोनिशान।"चिट्ठी में लिखा था," मौसम अच्छा है। ठीक-ठाक नौकरी अभी तक नहीं मिली है। मन नहीं लग रहा है। ...और पढ़े

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कोट - २२

कोट-२२खेल-कूद पर बातों का अपना एक स्वरूप और आनंद होता है।खेलकूद/स्पोर्ट्स के बारे में जब बात करते हैं तो खेलों का चित्र मन में आता है जैसे हाकी,फुटबॉल, क्रिकेट, वालीबॉल, बैडमिंटन ,टेनिस आदि। लेकिन हम बहुत छोटे खेल बचपन में खेलते हैं। खेल तो खेल ही होते हैं जो जीवन में उल्लास और आनंद भरें। बचपन में खेल "लुकाछिपी" से आरंभ होता है या घुघुती-बासुति से या अन्य से। अंटियों का खेल,दाणि,अड्डू भी होता था। बाघ-बकरी।बाघ को घेरा जा सकता था,बकरी को मरना होता था। "चोर पकड़" खेला जाता था। पिरुल( चीड़ की नुकीली सूखी पत्तिया) पर "घुसघुसी"। बर्फ ...और पढ़े

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कोट - २३

यों चलता है जीवन: हल्द्वानी पहुँचने पर मैंने कार ली और अल्मोड़ा की ओर चल पड़ा। भीमताल, भवाली, गरमपानी,खैरना खैरना के बाद टूटी,उबड़-खाबड़ सड़क। मैंने ड्राइवर से कहा," पाँच साल पहले भी यह सड़क ऐसी ही थी।" उसने कहा बीच में ठीक थी,फिर खराब हो गयी है। नदी ने अपना बहाव बदला है और पहाड़ से मिट्टी, पत्थर बह कर रास्ते में आ गये थे। पहाड़ से पत्थर गिरते हैं। बीच-बीच में दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं,वाहन चपेट में आ जाते हैं। सड़क पर कट-कट की आवाज हो रही थी। तो ड्राइवर बोला," हमारे गाँव की सड़क पर निर्माण ...और पढ़े

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कोट - २४

कोट-२४सुबह के तीन बजे नींद खुल गयी। ठंडे पानी से ही नहा लिया। सावन माह का सुहावना मौसम,मन में बैठा,बैठा ही रह गया। कार से जागेश्वर का किराया पूछा तो कार वाला बोला २००० रुपये। मैंने कहा १५०० दूँगा। वह बोला," चलिये।" कार में बैठा,कार चल पड़ी। सुरीले गाने बज रहे थे। पहाड़ के मोड़ मन को अनेक मोड़ देकर पर्तदार बना रहे थे।बादल कुछ पहाड़ चढ़ रहे थे, कुछ शिखर से ऊपर थे। जागेश्वर से लगभग तीन किलोमीटर पहले ही पुलिस वाहनों को रोक दे रही थी। फिर परमिट वाले वाहनों की व्यवस्था थी। परमिट वाले वाहन भी ...और पढ़े

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कोट - २५

कोट-२५नींद में रहस्य:जाड़ों के दिनों की बात थी। पहाड़ी गाँव में रात का सन्नाटा छा चुका था। ठंडा था बहुत अधिक नहीं था। घड़ी देखकर तब कोई सोया नहीं करता था। खाना लगभग शाम ७-८ बजे तक हो जाया करता था। खाना खाने के बाद किस्से-कहानियां कही जाती थीं। रहस्यमय, डरावनी, भूतों की, सामाजिक। महाभारत और रामायण की कहानियां लोक कथाओं के रूप में कही जाती थीं। रामलीला लोग बड़े चाव से देखने जाते थे। सभी कार्य करने के बाद सबको चैन की नींद लेने की आदत होती थी। उस दिन दोनों भाई अलग -अलग चारपाई पर लेट गये ...और पढ़े

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कोट - २६

कोट-२६थोड़ा खो जाएं:(२०१८)०८.०९.२०१८ को नन्हे बच्चों के स्कूल किडजी में जाना हुआ, अनायशा के स्कूल में। अनायशा दो साल महीने की थी। उस दिन स्कूल दादा-दादी,नाना-नानी दिवस अर्थात ग्रांड पेरेंट्स दिवस मना रहा था।सभी वरिष्ठ नागरिक थे उनके साथ उनके नन्हे नाती-नातिन। उनके लिए तीन कार्यक्रम रखे गये थे। एक खेल में 12 गिलास थीं, उनके पीछे तले पर १,२,३ लिखे थे, गिलासों को तस्तरी में लगाना था और उनमें अपने अनुमान से एक, दो और तीन गोटियां डालनी थी।एक मिनट में यह करना था। फिर खेल कराने वाली अध्यापिका पता लगाती थी, किस गिलास में सही गोटियां डली ...और पढ़े

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कोट - २७

कोट-२७बात १९७३-७५ की है। तब कक्षा में लड़कियों से लड़के बातचीत नहीं करते थे। यह एक सामाजिक परंपरा जैसी तब। हमारी कक्षा में तब मात्र तीन लड़कियां हुआ करती थीं। भौतिक विज्ञान प्रयोगशाला में हम प्रयोग किया करते थे। एक बार उनमें से किसी एक का रूमाल प्रयोगशाला में छूट गया था। वे प्रयोगशाला छोड़कर जा चुके थे। मेरा प्रयोग देर तक चला। मैंने रूमाल उठाया और मैडम( प्रवक्ता -भौतिक विज्ञान) को रूमाल देते हुये कहा," मैबम,यह लड़कियों का रूमाल है।" मेरा इतना कहना था कि मैडम बोली," तो उनको दे दो।" मैंने रूमाल कोट की जेब में घुसाया ...और पढ़े

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कोट - २८

कोट-२८ दिल्ली अतिथि गृह से निकल। सड़क पर धीरे-धीरे टहल रहा था। एक स्थान पर एक बिल्डिंग बन रही मजदूर काम के बाद इकट्ठा बैठे थे। एक मजदूर की अपनी पत्नी से कहासुनी हो रही थी,किसी बात पर। वह पत्नी को मारने गया तो पत्नी भाग कर अन्य मजदूरों के पीछे चली गयी। वह सड़क पर आया और फिर लौटा और एक ईंट उठा कर पत्नी को दे मारा। पत्नी ने ईंट आता देख अपने को बचा लिया। फिर वह उसे मारने आगे बढ़ा तो अन्य मजदूरों ने बीच बचाव किया। और पत्नी को पीछे जाने को बोला। इतने ...और पढ़े

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कोट - २९

कोट-२९ सुबह हवाई अड्डे को निकला तो हल्की ठंड थी। कोट पहना था, उसकी जेबों में आवश्यक वस्तुएं रखी। जहाज ने ठीक समय पर उड़ान भरी। जब बहुत ऊँचाई पकड़ चुका था, बादलों का दूर-दूर तक पता नहीं था। निरभ्र आकाश। सूर्य की किरणें हवाई जहाज के अन्दर तक आ रही थीं। लग रहा था जैसे फोटोन विस्फोट हो रहा था आसपास। जहाज की नन्ही खिड़की से बाहर देखा,कुछ नहीं था दूर-दूर तक,आकाश के सिवाय। साथ बैठी महिला मित्र ने पूछा," ये जहाज रूक क्यों गया?।" मैंने थोड़ी देर सोचा और फिर कहा," ये विमान बालायें चाय नाश्ता दे ...और पढ़े

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कोट - ३०

कोट-३०मेरे लिखे तीन पन्ने मेरी कोट से निकले और मैं उन्हें पढ़ने लगा।"आज एक वरिष्ठ पेड़ देखा।तना उसका मोटा झुकी हुई। फूल उस पर आते हैं पर कम। फल भी पहले से कम ठहरते हैं। गर्मी, सर्दी और बर्षा का अनुभव उसे है।सांसें लेता है और सांसें छोड़ता है ,आक्सीजन के रूप में।उसके बगल में एक छोटा पेड़ उग आया है।दोनों की दोस्ती हो गयी है।वरिष्ठ पेड़ उसे अपने अनुभव बताता है।कि कितनी बार वह कटा है और फिर उगता रहा है और कभी उसने फूल और फल देने नहीं छोड़े हैं।उसकी कोशिश रहती है कि वह छायादार बना ...और पढ़े

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कोट - ३१

गाँव की यात्रा:"बहुत साफ दिख रहा मेरा पहाड़सूरज के साथमनुष्य के भावों के टटोलता।" इन्हीं भावों के साथ गुजरात यात्रा आरम्भ की इस बार २०२३ में। सात साल बाद रेलगाड़ी में बैठा था। दिल्ली में उतरा और चम्पावत के एक ड्राइवर ने नौयडा अतिथि गृह में पहुँचा दिया। उसने बताया वह पहले रैनबैक्सी में काम करता था। बोला शुद्ध हिन्दी में लिखा है "अतिथि गृह"। यहाँ तो बड़े लोग ही आ पाते हैं। मैंने कहा ऐसा नहीं है। वह अतिथि गृह और उससे लगी कालोनी, बाग बगीचे,खेल मैदानों आदि के रखरखाव और सौन्दर्य से बहुत प्रभावित लग रहा था ...और पढ़े

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कोट - ३२

ठंडी सड़क:ठंडी सड़क पर धीरे-धीरे उसके साथ चल रहा था। मैंने कहा अब बुढ़ापा आ गया है। उसने कहा कभी बूढ़ा नहीं होता है। तभी उसने पुरानी फिल्म का गीत बजा दिया-"ये कौन आया, रोशन हो गई महफ़िल किस के नाम से मेरे घर में जैसे सूरज निकला है शाम से---- "मैं गीत सुन रहा था। मन ने एक उड़ान भरी। ठंड़ी सड़क से एस आर ,के.पी. लघंम छात्रावासों को जाने वाली पगडण्डी अब पक्की बन चुकी है। तब उबड़-खाबड़ हुआ करती थी। कुछ रास्ते उबड़-खाबड़ ही अच्छे होते हैं,ऐसा मन में आया। क्योंकि उन्हें पक्का करने का सपना ...और पढ़े

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कोट - ३३

ठंडी सड़क( नैनीताल):हर क्षण एक कहानी कह रहा है। आज बूढ़ा वहाँ पर जल्दी आ गया है।सूट पहने बैठा इधर-उधर देख रहा है। मैं वहाँ पर जाता हूँ और उससे पूछता हूँ किसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं क्या? वह बोलता है नहीं, बस यों ही बैठा हूँ। बर्फ देख रहा हूँ। कुछ जमी है और कुछ पिघल चुकी है। जीवन भी ऐसा ही है कुछ है, कुछ पिघल चुका है। मैंने कहा सब कुछ याद तो नहीं रह पाता है। मेरी यादाश्त तो कुछ गड़बड़ हो गयी है। कुछ माह पहले मुझे एक लड़की ने नमस्ते किया। मैंने ...और पढ़े

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