Akansha Priya Vachhani द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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Akansha

आकांक्षा आज बहुत खुश थी। आज उसके विद्यालय का परिणाम घोषित होने वाला था। अब वह प्राथमिक विद्यालय पार कर माध्यमिक विद्यालय जाने वाली थी। विद्यालय पहुंचते ही सहायक आकांक्षा को गोद में उठा कक्षा तक ले जाने लगा। साथ में आकांक्षा की माँ सविता भी चलने लगी । आकांक्षा जन्म से ही अशक्त थी। वह सामान्य बच्चों की तरह ठीक से चल नहीं पाती ।और उसे बोलने में भी हकलाहट होती ।
कक्षा में पहुंचते ही सब सहेलियों ने उसे घेर लिया। वह भी सबसे हंस-हंसकर बातें करने लगी। जब उसका नाम पुकारा गया तो माँ उसे लेकर शिक्षिका के पास पहुंची। मगर कुछ देर में ही शिक्षिका और सविता के बीच हल्की बहस शुरू हो गई। इतने में ज़ोरदार चांटे की आवाज से सारी कक्षा में सन्नाटा पसर गया। सब अवाक होकर सविता की तरफ देखने लगे। उसने आकांक्षा के मुँह पर एक ज़ोरदार चांटा जड़ दिया था।

“बताओ तुम्हारे इतने अंक कैसे आए? किसकी नक़ल कर के लिखा था तुमने परीक्षा में?

“नहीं मम्मी मैंने किसी की नक़ल नहीं की। खुद ही लिखा है।” रुआंसी सी आवाज में आकांक्षा बोली

“देखो अक्कू झूठ नहीं। मैं जानती हूँ तुमने कितना पढ़ा था। उस हिसाब से तुम्हारे अंक बहुत ज्यादा हैं तो मुझे सच-सच बताओ।”

“मैंने नक़ल नहीं की मम्मी।” आकांक्षा की आँखों में आँसू आ गए।

“देखिए मैडम, कृपया आप मेरी बच्ची पर तरस खा कर उसे अंक ना दें| उसने जितना लिखा है उसे उतने ही अंक मिलने चाहिए।” सविता ने शिक्षिका की तरफ देखते हुए कहा

“सविता जी हम किसी बच्चे पर तरस खा कर अंक नहीं देते। आकांक्षा ने जो लिखा उसी के आधार पर उसको अंक दिए गये हैं। ""
मम्मी आप को मेरे लिए मेहनत करते देख मुझमें और भी अच्छी तरह पढ़ने की हिम्मत आ जाती। इसलिए जब रात में मुझे नींद नहीं आती तो मैं पढ़ने बैठ जाती थी । सच मम्मी मैंने किसी की नक़ल नहीं की।"आकांक्षा रुआंसे से स्वर में बोली

"अफ़सोस सविता जी आप पूरी सच्चाई जाने बिना ही भड़क उठी। आप को अपनी बच्ची पर तो भरोसा होना चाहिए। इस तरह अपनी बच्ची को मारते हुए आप को शर्म आनी चाहिए। खैर परिणाम आपको मिल गया है। आप जा सकती हैं।” शिक्षिका कुछ ऐसे तिलमिलाई जैसे वह थप्पड़ आकांक्षा को नहीं उसे पड़ा हो।

समय जैसे पंख लगाकर उड़ता गया। कभी ड्राइवर, कभी पापा तो कभी सविता के साथ व्हील चेयर पर स्कूल जाते-जाते कब आकांक्षा कॉलेज पहुच गई पता भी न चला। कुछ ही दिनों में उसके चचेरे भाई की शादी थी। सारा परिवार तैयारियों में जुट गया। सब अलग-अलग गानों पर नृत्य भी तैयार कर रहे थे। यह सब देख आकांक्षा के चेहरे पे मायूसी आ जाती कि काश! वह भी ऐसा कुछ कर पाती। सविता ने उसकी आँखों का सूनापन देख लिया और मन ही मन कुछ निर्णय किया। वह आकांशा को लेकर कमरे में चली गयी।

शादी के दिन भी आ गए। संगीत वाली शाम सब अपनी-अपनी कला का प्रदर्शन करने लगे। आकांक्षा के माता-पिता के बाद आकांक्षा का नाम पुकारा गया। सब हैरान थे कि शायद कहीं कोई गलती हुई है। आकांक्षा कैसे नृत्य कर सकती है? जबकि वह अपने पैरों पर ठीक से खड़ी भी नहीं हो सकती। उसी समय सविता व्हील चेयर पर बैठी आकांक्षा को स्टेज पर ले आई। सब लोग हतप्रभ थे। कई लोगों में कानाफूसी भी शुरू हो गई। “सविता यह मान क्यों नहीं लेती कि उसकी बेटी अशक्त है। वह दूसरे बच्चों की तरह सामान्य नहीं है। क्यों बिचारी बच्ची का मजाक बनवाती है।” कुछ ऐसी बातें आकांशा के कानों में भी पड़ी। किन्तु उसने हिम्मत न हारते हुए वहीं व्हील चेयर पर बैठे-बैठे ही अपनी कला का जौहर दिखाया। वहाँ उपस्थित सब मेहमान तालियां बजाने लगे। जब सविता उसे स्टेज से वापस ले जाने आई तो आकांक्षा ने उसे रोकते हुए कहा “मम्मी मै आज सबसे कुछ कहना चाहती हूँ, प्लीज मुझे माइक दीजिए।”

माइक संभाले व्हील चेयर से उठकर खड़े होते हुए आकांक्षा ने कहना शुरू किया “ गुड़ इवनिंग आल। मैं आज आप सब से कुछ कहना चाहती हूँ। आपमें से कई लोग मेरी मम्मी को गलत समझते होंगे कि वह मेरे साथ सामान्य बच्चों जैसा व्यवहार क्यों करती है? मैं तो अशक्त हूँ। मुझे तो ज्यादा देखभाल मिलनी चाहिए| ज्यादा प्यार या फिर यूँ कहें कि सहानुभूति मिलनी चाहिए। मगर ये सब मेरी मम्मी मुझे नहीं देती। और इसी बात के लिए मैं आज मेरी मम्मी का शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ। अच्छा किया माँ जो आपने कभी मुझमें और मेरे छोटे भाई में कोई फर्क नहीं रखा। जितना प्यार आप भाई से करती हैं उतना ही मुझसे भी। जितनी सख्ती आपने उसके साथ बरती उतनी ही मेरे साथ भी। आपकी वजह से ही मैं इतनी काबिल बनी कि आज मैं कॉलेज तक पहुंच गई। कुछ देर के लिये ही सही मैं आज अपने पैरों पर खड़ी हो पाती हूँ। सबने हार मान ली थी बस एक आप ही थीं जिसने कभी हार नहीं मानी।” आकांक्षा की आँखों से ख़ुशी की धारा बहे जा रही थी। इतने में उसके पैर लड़खड़ाए, सविता ने आगे बढ़ के उसे संभालकर बिठा दिया।

आकांशा ने कहना जारी रखा “जब सभी अपने-अपने नृत्य की तैयारियां कर रहे थे तब मैं ख़ामोशी से सबको देखती रहती। पर किसी ने भी मेरी आँखों का सूनापन नहीं देखा। वो देखा सिर्फ मेरी माँ ने। उन्होंने मुझे हिम्मत दी और खुद को जैसी हूँ वैसे ही अपनाने की सलाह दी। साथ ही मुझे नृत्य भी सिखाया। "थैंक्यू माँ” कहते हुए उसकी आँखें भर आईं।

“बहुत बड़ी हो गई है तू अक्कू ! माँ को कभी शुक्रिया नहीं कहते “ सविता नम आँखों से बस इतना ही कह पाई

“लव यू माँ” कहते हुए आकांक्षा सविता के गले से लग गई|

वहाँ सभी लोग आकांक्षा व सविता के लिए नम आँखों से तालियाँ बजाने लगे| सविता को उलाहने देने वालों की आँखे भी आज सजल थीं।।

प्रिया वच्छानी
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