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Savan ka Mahina Tha

सावन का महीना था

सावन का महीना था। इंद्रदेव अपने पूरे वेग से बरस रहे थे। सूरज देवता तो जैसे आज निकलना ही भूल गये। हर तरफ काली घटा छायी हुई थी। ऐसे मौसम में सुरभी जल्दी -जल्दी काम निपटा कर तैयार तो हो गई पर मन दुविधा में था
"आज जाऊँ कि न जाऊँ ,एक तरफ तो राहुल भी घर पर हैं बारिश की वजह से जा नहीं पाये , और दूसरी तरफ उफ्फ्,,, इतनी तेज़ बारिश में कोई कक्षा में आएगा भी कि नहीं ? कोई आये या न आये ,पर मुझे तो जाना ही पडेगा" इसी उधेड़बुन में वह तैयार हो गयी और शालिनी जो कि उसकी छोटी बहन थी और देवरानी भी उसे आवाज लगायी "शालिनी मैं जा रही हूं घर का ध्यान रखना " और सोये हुए राहुल के सर पर प्यार की मुहर लगा कर निकल गयी।
सुरभी की माँ छोटी उम्र में ही एक हादसे में चल बसी। माँ के जाने के बाद कुछ टूट सी गयी वो। पर कहते हैं ना वक्त और जिम्मेदारियां सारे घाव भर देते हैं। वैसे ही सुरभी ने भी जल्द ही घर संभालने के साथ-साथ छोटे भाई-बहन शालिनी और पप्पू की जिम्मेदारी भी उसके छोटे कंधों ने खूब अच्छे से निभायी। जहां सुरभी सांवली -सलोनी और परिपक्व थी वहीं शालिनी बेहद खूबसूरत और चंचल प्रवृत्ति की थी । पप्पू और शालिनी जब पंद्रह -सोलह साल के हुए तब राहुल की तरफ से रिश्ता आने पर बाऊजी ने सुरभी की शादी कर दी। घर कामों में निपुण तो वो थी ही साथ ही पढी-लिखी भी थी तो घर गृहस्थी में मदद करने के लिए उसने एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली । पर जब शादी के कुछ समय बाद राहुल ने शालिनी के लिये अपने छोटे भाई नितिन का प्रस्ताव रखा। सुरभी ने मना कर दिया क्योंकि जहां शालिनी बहुत खूबसूरत थी वहीं नितिन साधारण से वयक्तित्व का स्वामी था। दोनों में कोई मेल न था पर सुरभी को तब अचरज हुआ जब बाऊजी न सिर्फ़ इस शादी के लिये राजी हो गये थे ,बल्कि पंद्रह दिनों के भीतर ही शादी भी हो गयी ।
सुरभी स्कूल पहुंच गयी पर वहां जा कर पता चला आज तेज बारिश के चलते छुट्टी दे दी गयी है सो वह वापस घर की और चल दी। मन में खुशी भी थी कि आज राहुल के साथ अच्छा समय बिताते को मिलेगा क्योंकि सासू माँ भी कुछ दिनों के लिये जेठ जी के पास गयी हुई थीं। यह सब सोचती हुई वो घर तक पहुंची। दरवाजा अंदर से बंद न होने के कारण हल्का सा धक्का देने पर ही खुल गया। पर जब अपने कमरे के पास गयी तो अंदर का नजारा देखकर जैसे उसके पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गयी। अपनी आँखों पर विश्वास ही न हुआ उसे कि जो वह देख रही वो सच है यां सपना ???
ऐसा कैसे हो सकता है ??
एक तरफ वह राहुल जिस पर उसने खुद से भी ज्यादा भरोसा किया। एक तरफ वह बहन जिसे उसने अपनी बच्ची की तरह पाला। दोनों का ऐसा रुप भी सामने आयेगा ये तो उसने सपने में भी न सोचा था।
कदम लड़खडा गये और वह खुद को संभाल न सकी वहीं दरवाजे का सहारा लेती हुई ज़मीन पर बैठ गयी। कब से आँखों से आंसू निकल कर गालों को भिगो रहे थे यह पता भी न चला। राहुल और शालिनी हड़बडा गये
"जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ नहीं है सुरभी मुझे तो लगा शायद तुम हो "
"दीदी आप गलत समझ रहीं हैं " शालिनी हड़बडा के बोली
सुरभी जोश के साथ खडी हुई और "तडाक" शालिनी के मुंह पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया। थप्पड़ की गूंज इतनी जोरदार थी कि उसके बाद कुछ पलों के लिये जैसे सारे माहौल में शमशान जैसा सन्नाटा पसर गया।
फिर सुरभी की हिचकीयों से भरी आवाज़ ने वह मौन तोड़ा।
"अब भी मेरे समझने में गलती कहीं गलती है? मैंने अपनी आँखों से देखा है सब कुछ। कितना विश्वास था मुझे तुम पर राहुल! एक पल में सारा भरोसा चूर कर दिया तुमने कहां कमी रह गयी थी मेरे प्यार में ? जो आज तुम्हें यह कदम उठाना पडा "
"और तुम, तुम तो मेरी बहन थी, अपनी बच्ची की तरह एक माँ बनकर पाला था मैंने तुम्हें, ज़रा सी भी शर्म न आयी यह सब करते हुए? अरे डायन भी एक घर छोड़ देती है और तुम."...... !!! हिचकीयों में सुरभी की आवाज़ दबती चली गयी " तुमने तो अपनी माँ समान दीदी का घर ही उजाड़ दिया " रोते हुए वह वहीं ज़मीन पर बैठ गयी ।
राहुल ने सुरभी के कंधे पर हाथ रखा " मेरी बात तो सुनो तुम"
चीख सी पडी सुरभी "हाथ मत लगाना मुझे तुम, घिन आ रही है मुझे तुम दोनो से अब, रिश्तों की मर्यादा को समझते हो तुम लोग कि नही"???
"क्या मुंह दिखाओगे तुम दोनों समाज को जब लोगों को तुम्हारी इन करतूतों का पता लगेगा "
"हे भगवान ! क्या करूं मैं अब" पति और बहन की बेवफाई पर जार-जार रोये जा रही थी सुरभि।
फिर खुद को संयत करते हुए उठ खडी हुई और अपना सामान बांध मायके जाने लगी तो
राहुल ने रोका "घर की बात को घर में ही सुलझा लेते हैं सुरभी, क्यूं बाहर ले जाती हो? बाहर वाले सुनेंगे तो दोनो घरों की बदनामी होगी"
"यह सब आपको एसा कदम उठाने से पहले सोचना चाहिये था, तब क्यूं नहीं सोचा ? बाहरवाले तो दूर आपने तो यह भी नहीं सोचा कि जब मुझे इन सब बातों का पता चलेगा तब मुझ पर क्या बीतेगी " और वह राहुल का हाथ झटक कर चली गयी।
सुरभी के मायके के नाम पर वहां अब सिर्फ बाऊजी और छोटा भाई पप्पू ही थे। बाऊजी की तबीयत भी अब कुछ ठीक नहीं रहती। उसके इस तरह अचानक पहुंचने पर वो दोनों खुश तो थे पर हैरान भी हुए। पर बाऊजी की तबीयत देखते हुए अभी कुछ बोलना ठीक न लगा सुरभी को तो उसने बाऊजी के गले लगते हुए कहा "आपकी बहुत याद आ रही थी इसलिये चली आई।"
माँ-बाप से भला कहां छुप पाता है बच्चों का दर्द। बाऊजी ने भी सुरभी की आँखों में छिपे दर्द को भांप लिया पर अभी उसकी वजह वे नहीं जानते तो अभी कुछ कहना उन्हें भी ठीक न लगा सो वह चुप हो गये ।
दिन तो यहां -वहां की बातों में बीत गया रात को खाना खा कर बाऊजी अपने कमरे में चले गये। सुरभी पानी का ग्लास उनके कमरे में रखने गयी तब बाऊजी ने उसे पास बिठाया और प्यार से सर पर हाथ फेरते हुए बोले "क्या हुआ मेरी बच्ची! अपने बाऊजी को भी नहीं बतायेगी "?
"कुछ नहीं बाऊजी, क्या होगा ? मैं तो ऐसे ही आप से मिलने आयी हूं "
"अच्छा ठीक है, बता घर पर सब कैसे हैं दामाद जी ठीक हैं" ?
"जी बाऊजी " सर झुकाकर बोली वह
"और शालिनी ? वह तो अच्छे से चलती है न वहां ? तुझे परेशान तो नहीं करती "?
बाऊजी के इस सवाल से सुरभी चुप सी हो गयी उसके मुंह से कुछ न निकला तब बाऊजी समझ गये कि जरूर शालिनी को लेकर ही वह परेशान है । वह बोले " सुरभी बेटा , मैंने तुमसे कुछ बातें छुपायी हैं जो आज बताना चाहता हूं "
"बाते छुपायी हैं ?? कैसी बातें बाऊजी, क्या छुपाया है आपने मुझसे " सुरभी ने हैरानी से पूछा
"तुम्हारी शादी के बाद मैं और पप्पू तो आफिस चले जाते शालिनी घर पर अकेली होती। तुम तो जानती ही हो उसके चंचल स्वभाव को और फिर इस उम्र में कहां लोगों को पहचानने की समझ होती है ! कदम फिसल गया था शालिनी का। वह एक मुस्लिम लड़के के बहकावे में आकर घर से भागने वाली थी। किसी तरह हम लोगों को पता चल गया और रोक लिया उसे ।" बाऊजी अलपक छत की तरफ निहार कर कहते चले गये " और उन्हीं दिनों राहुल जैसे फरिश्ता बनकर हमारी लाज बचाने के लिये नितिन का रिश्ता ले आया। इसलिये तेरी कोई बात न सुनकर मैंने हां कर दी। कम से कम इतना इत्मीनान था कि तुम वहां हो और संभाल लोगी अपनी छोटी बहन को।"
"बेटा सुरभी "बाऊजी ने प्यार से सुरभी के सर पर हाथ फेरते हुए कहा" कल अगर मुझे कुछ हो जाये तो तुम तीनों भाई -बहन एक दूसरे को संभाल लेना "
"ऐसा मत कहिये बाऊजी,आपको कुछ नहीं होगा, आप हमेशा हमारे साथ रहोगे "
"पगली, एक न एक दिन सबको जाना है। पर अब मुझे कोई चिंता नहीं इतना भरोसा हो गया है कि तुम संभाल लोगी सब।"
"बस कजीये बाऊजी, और चुपचाप आराम करीये अब कल बात करेंगे " प्यार से डांटते हुए सुरभी बोली और बत्ती बुझा कर अपने कमरे में चली गयी। रात इन्हीं विचारों में कब आँख लग गई पता ही न चला।
सुबह भाई की चीख से उसकी नींद टूटी, वह दौड़कर बाऊजी के कमरे में गई क्योंकि आवाज़ वहीं से आ रही थी। भाई बाऊजी को उठाने की कोशिश कर रहा था "उठो ना बाऊजी ,क्या हुआ आपको ! देखो ना दीदी बाऊजी कुछ बोल ही नहीं रहे "
" उठीये ना बाऊजी, कुछ बोलिये ना " सुरभी की आँखों से अविरल अश्कों की धारा बह चली " आप मुझे इस दुविधा में अकेला छोड़कर नहीं जा सकते, मैं नहीं संभाल पाऊंगी अकेले, बाऊजी आप नहीं जा सकते ऐसे "
पर बाऊजी कहां सुनने वाले थे अब,वह तो चिर निद्रा में लीन हो चुके थे ।
तेरवही के बाद अब फिर से सुरभी उसी दो राहे पर खडी थी,जब राहुल ने कहा " घर चलो सुरभी, माफ कर दो , गलती हो गई मुझसे अब हम एक नये सिरे से अपनी जिंदगी शुरू करेंगे। बस एक बार माफ कर दो और घर चलो "
,"क्या करूं क्या न करूँ" गहन चिंतन में थी सुरभी "अगर यहीं मायके में रह जाती हूं तो शालिनी और राहुल फिर से अपनी मनमानी कर रिश्तों की मर्यादा को तार-तार करते रहेंगे। पुरुषों को तो फर्क नहीं पड़ता पर शालिनी ! अगर नितिन को पता चला तो वह शालिनी से अपना रिश्ता तोड़ देगा ! फिर तो दोनों घरों का नाम बदनाम होगा।" यह सब सोचते हुए घबरा उठी वो " नहीं-नहीं मैं इस तरह यह फैसला लेकर सिर्फ अपने आत्मसम्मान की सोचते हुए दोनों घरों की मर्यादा भंग नहीं कर सकती "
कुछ सोचते हुए वह बोली "मैं आपके साथ घर चलने के लिए तैयार हूं पर आपको मेरी कुछ शर्ते माननी होंगी "
"मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है " राहुल ने कहा
"पहले सुन लो राहुल "
"हमारे जो रिश्ते भगवान् ने बनाये हैं हम उन्हें तोड़ तो नहीं सकते। मगर कुछ फासले रखते हुए उन्हें निभा जरूर सकते हैं ।" सुरभी ने शालिनी की तरफ देखते हुए कहा "आज के बाद शालिनी और आप कभी एक-दूसरे से बात नहीं करेंगे, और आप दोनों को मेरे सर पर हाथ रखकर यह कसम खानी होगी "
"हमें मंजूर है " शालिनी और राहुल दोनों एक साथ बोल पडे
"और जल्द ही दो घर आस-पास लेंगे। अब शालिनी पास तो होगी पर अपनी गृहस्थी अलग बसायेगी "
"ठीक है जैसा तुम कहोगी वैसा ही होगा "
अपने आँसू पोचते हुए वो बाऊजी की तस्वीर के पास जाकर खडी हो गयी, ऐसा लग रहा था मानो वह उनसे कह रही हो "आप चिंता न करें बाऊजी ,मैं संभाल लूंगी " और तैयार हो कर चल पडी जिंदगी के दोराहे पर ,जहां उसे खुद को संभालते हुए रिश्ते भी संभालने थे ।

नाम- प्रिया वच्छानी
पता- Bajrang palace
B.k.no.208/1
opp.ganesh apt.
near bewas chowk
ulhasnager- 421001
thane maharshtra
Mob.no. 09765450444


सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन ,देश व विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, आकाशवाणी रेडियो पर नियमित कार्यक्रम
प्रकाशित पुस्तकें - स्वप्न सृजन
अपनी-अपनी धरती ,
अपना -अपना आसमान
अपने-अपने सपने
सहोदरी सोपान
E mail id- priyavachhani26@gmail.com

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