मंजिले - भाग 16 Neeraj Sharma द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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मंजिले - भाग 16

   सची घटना कह लो  या किसी का उम्र भर जिंदगी से हर दिन चलता मुक्का मारी...( बाबा जी की लालटेन )

मंजिले कहानी सगरे की अनुभवी मुस्कान और कहानी...

पात्र एक विक्रम ------ उम्र 40 वर्ष। अनुभव उसके अंदर इतना कि पूछो मत... मैं जानता हू वो जानता है, और दुनिया तो बस मतलब की यार...

अगर मैं आपको रुआ न दू तो कहना, कुछ स्वाद नहीं आया।

उसकी जिंदगी अब भी डगमगा रही है, कया करे। किस्मत कहते है गाडू कया करे पाडु.... बस शुरवात करते है.... कही से कयो... घर से... बड़ा भाई.. तीन छोटे.. हाँ छोटी ही बहन। बहन की मैरिज हो गयी। पता है कहा... चलो छोड़ो... बिक्रम की बात करे।

मिटी मे हाथ तो मिटी... मैंने देखा किसी के लिए सोना वही मिटी... ख़यालो मे गुम,पता कयो... कोई काम सिरे लगा ही नहीं... डेड ने बहुत पहले ही कोई वजा होंगी काम छोड़ दिया... इससे छोटा अरब मे चला गया। पीछे थे अभ...

बिक्रम, साथ तीन भाई... डेड और माँ अलग से। कितनो का दरमदार था पाचो का...ज़िद उसकी आज भी होंगी... कालजे मे कही टस्क सी दर्द सी बाहर की जानी विदेश की। उसके तीन चार पक्के मित्र जिसमे मे भी हू। सोच शुरू से, "बाहर वाला जहाज हमारे लिए बना ही नहीं। " ये नहीं अरब नहीं गया... भाई के साथ इसलिए नहीं.. रिपटेशन भाई की खराब न हो, पता कयो.. गर्मी का बोझ.. गर्म सिमट से पीठ पे निसंदेह निशान आज भी होगा...

अगली फ्लाइट पंजाब की... घर से कोई रजवाड़े नहीं है, हमारी तरा बस काम चलाऊ। फिर उससे छोटा भी चला गया। " छोटा भी, वाह " खुश इतना बता नहीं सकता हू।।

हम एक जान है, बरखुरदार। उसके नम चश्मे देखे है गर्म पानी के... अब कया कहोगे। बड़ा बेरोजगार हो, रोटी की बुरकी खानी पड़े --" छोटो की। " कया बीती होंगी समझे हो मिया। बुरकी अंदर नहीं जाती... गले मे अटक जाती है।

मनत खुदा के दरगाह की बेशुमार, हिसाब लगाए... तो बंदा स्वर्ग से वापस आ जाता है... ऐसी किस्मत देखी है आज कल किसी की।

                            छोटी सी हसरते कब खबर बन गयी। कि मन चल निकला। कया थे कया हो गया। कौन है जो उसका पूछता। घर से भी ज़ब सुनने को मिला मुझे, उस वक्त टूट गया मै ----सच मे।

                 मेरे पास बैठा बहुत रोयेया.... इतना.... जैसे बंद न हुआ, तो शहर, मे सुनामी आ जाएगी। बाढ़ आ जाएगी। टूटने को साथ मे कोई नहीं आज उसके साथ... कौन होगा... जो लोगों को खुश करता हो... आज उसके साथ कौन है। कोई भी नहीं.... मेहनत से सब कुछ मिलता है ----कौन से बजार मे.... किधर से... मेहनत भी वही करेगा.. जो पहले से कोई घर का स्टेण्ड हो।

अब दोनों भाई पुर्तगाल चले गए... जो अरब कटरी मे काम करते थे। उनका भी जीवन है... किस किस को देखेंगे.. वो। माँ जो मुझे भी आपना पुत्र कहती थी,  वो ये सब खुशियों से महरूम ही रही। कया बीती होंगी।

                        जिसके दामन को आग लगती  है न बस वो ही दर्द ही बर्दाश्त करता है, बाकी तो बस देखने वाले होते है, बेशक रिश्तेदार ही कयो हो। ये कड़वी सचाई है।। हाथ कोई तो बढ़ाये... आज भी इंतज़ार है उसका शायद कोई चमत्कार हो जाए। बाबा जी की लालटेन ड़ूस हो चुकी थी। बस.........................

सच्ची स्टोरी मित्र पर आधररत.... मेरे दोस्त की बाययोग्राफी...

नीरज शर्मा 

शहकोट , जलाधर।                       ( चलदा )