मंजिले - भाग 15 Neeraj Sharma द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मंजिले - भाग 15

       मंजिले कहानी सगरे मे एक मार्मिक कहानी.... गजलकार...

                          पड़ोसी मै खुद एक सुरबाज का था, बदले मे बहुत कुछ सुनना पड़ा, शहर बड़ा था, और काम से थक कर आना... ये भी एक जलवा था। किसी का दर्द सुन लेना, सुरु मे.... 'वाह कभी मेरे मुँह से निकला ही नहीं। " कितना हस्तप्रभ होता था, कैसे सोच लेता है, एक दर्द इंसान... शायद उसने बहुत दुनिया देखी होंगी। अब अंत था बस।

                   कोई किराये का मकान मेरे जैसे शरीफ और कुंवारे को भला कौन देगा। सोचो !  बड़ी मुश्किल से मैंने लिया था। एहसास की भी सीमा और लक्ष्मण रेखा होती है। उसको कोई पार कयो करे कोई।

                  एक ग़ज़ल परसुत की उसने नई... उस दिन रविवार था। समय कोई दो का होगा। उसने सुरु मे नहीं इरशाद किया और कहा... हैरत होंगी।

                  "बकरी जंगल मे घूमती रही, और ज़ब भूख लगी, तो वो शेर खा गयी। " हम सब हैरान हो गए। " मैंने कहा पर कैसे बकरी शेर खा गयी। " 

                  वो हस कर बोला " जैसे शेर बकरी खा जाता है। बस ऐसे ही बकरी शेर खा गयी। " 

               मै जोर से हसा। फिर वो चिंता मे बोला, " महाशे पुछ सकता हू, कयो हसे। "

  मैंने कहा चुप सा होकर, " आप ने इतना बड़ा दर्द को कैसे अल्फाज़ो मे लेकर जोर से शेर को चबा गयी बकरी। " फिर वो बोला " समझ गए तुम, भय से डरो मत, मुकाबला करो। " 

                     मै खमोश, आँखे खमोश.... बकरी जो है हम, शेर कौन है, राजनेता.... फिर वो चुप।

तभी एक मरा हुआ काला नाग आसमान से गिरा, उसी मेज पे। वो पीछे उखड़ कर गिरा। मैं तो एक दम पीछे हो गया। सोचने लगा... और एक दम से छलाग मार के 

पकड़ा उस लाला को, और उठाया... उसकी सीटी बीटी वज गयी थी। " कमबख्त आज ही यहां गिरना था इसने... " उसकी स्त्री भागी हुई आयी। " कया हुआ " 

" हाय राम। बच गए हो आप। " 

   " पता नहीं आसमान मे भी नाग उड़ते है कया, ये हिल नहीं रहा। " लाला का रंग पीला पड़ गया था। जैसे कोई 104*डिग्री बुखार से उठा हो। " कया मै ठीक हू। " उसने इस ढंग से पूछा था कि बस मेरी खमोश आँखे कभी मरे नाग को तो कभी उसकी गज़ल को सुन रही हो जैसे। खमोश... थे हम सब।

मैंने उठा लिया था, नाग एक लकड़ी पर और एक काफी दूर जा कर केयारी मे उसे बड़े आदर भाव से दबा आया था। आते आते सोच रहा था, शायद कुछ गज़ल की लाइने ठीक कर ले। 

" लाला अभी तक काँप रहा था, स्त्री उसके माथे के पसीने को पुझ रही थी। " ये मेरी आँखो देखी कहानी थी.... कया खूब थी।

लाला ने कहा... मेरी बात सुनो.... "शेर ने बकरी खा लीं थी। " मैंने मुस्करा के नहीं दबा के कहा, " हाँ लाला जी। "

" एक बात बोलू। " लाला जी ने बड़ी दया भाव सी आँखो से कहा... " जैसे बोलो तुम। " 

" जिसकी रजा मे हम रहते है, लाला जी, वो सब ठीक ही करता है। " लाला की आँखो मे  प्रश्नचीन था। " हाँ जी। " बस फिर उसने कभी नहीं लिखा। 

(चलदा )                        नीरज शर्मा 

                          शाहकोट, ज़िला जलधर।