दरिंदा - भाग - 15 Ratna Pandey द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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दरिंदा - भाग - 15

इंस्पेक्टर ने राज के खिलाफ सी. सी. टी. वी. में क़ैद सारे सबूत देख लिए थे। अब उसने बिना देर किये राज को गिरफ्तार कर उसके हाथों में हथकड़ी पहना दी। राज अब कुछ भी नहीं कर सकता था। उसके पाखंड के खेल का अंत आ चुका था। वह मन ही मन ख़ुद को कोस रहा था कि उसके ज़्यादा शराब पीने के कारण ही यह हुआ है। उसे प्रिया के कारनामे की तो भनक तक नहीं लग पाई थी, ना ही वह कभी उसे दिखाई ही दी थी। उसे तो लग रहा था कि मौलिक ने ही पूरी खोज ख़बर निकाल ली होगी। अपनी बहन को बचाने वही पुलिस को लेकर आया है।

राज को हथकड़ी पहना कर पुलिस ले जाने लगी। तब तक अल्पा और प्रिया भी घर से बाहर आ गये।

राज जाते-जाते अल्पा की तरफ़ क्रोध और नफ़रत भरी नजरों से देख रहा था। लेकिन अब उसके गुस्से का अल्पा के ऊपर कोई भी असर नहीं हुआ क्योंकि इस समय वह अपने भाई मौलिक के संरक्षण में थी। अल्पा ने उसे देखते ही थूक दिया और नज़र फेर ली।

मौलिक ने अपनी बहन अल्पा से कहा, "चलो अल्पा घर चलते हैं।"

उसके बाद उन्होंने विनोद और प्रिया को धन्यवाद कहा। मौलिक ने उनसे हाथ मिलाते हुए कहा, "आप जैसे लोग अभी भी दुनिया में हैं, इसीलिए कुछ पुण्य के काम होते रहते हैं। आपका यह एहसान हम कभी भी नहीं चुका पाएंगे।"

प्रिया से गले मिलते हुए अल्पा ने कहा, "मेरी छोटी बहना, भूल तो नहीं जाएगी ना मुझे।"

"नहीं अल्पा हम मिलते रहेंगे। मेरा मन तो था तुम्हें अपने साथ ही रख लूं।"

अपने पापा की तरफ़ देखकर उसने कहा, "लेकिन हमारी हर इच्छा पूरी हो जाए ऐसा तो नहीं हो सकता ना।"

अल्पा आश्चर्य से प्रिया की तरफ़ देख रही थी लेकिन उसके लिए प्रिया की बात समझ पाना असंभव था।

आज प्रिया को अपने पिता पर गर्व महसूस हो रहा था कि उसके पापा कितने अच्छे हैं।

उसके बाद अशोक भी मौलिक के साथ अपने घर वापस लौटने के लिए तैयार हो गया।

घर जाते समय कार में चुपचाप बैठी अल्पा सोच रही थी कि उसने कैसे एक पराए इंसान के लिए जिसे वह कुछ ही समय से जानती थी; अपने परिवार को छोड़ दिया, अपनों को छोड़ दिया। विनोद अंकल बिल्कुल सच ही तो कह रहे थे कि अपने तो अपने ही होते हैं। हमारे परिवार से बड़ा और कोई नहीं होता। लेकिन प्यार का नशा जब चढ़ता है तब हमें और कुछ दिखाई ही नहीं देता। आज वह जैसी भी है उसके भैया उसे वैसी ही अपना रहे हैं। कोई और होता तो ऐसा कभी नहीं करता।

अल्पा की आंखों से बहते आंसुओं को अपने हाथ से पोछते हुए मौलिक ने उसका सिर अपनी गोद में ले लिया। उसके सर पर हाथ फिराते हुए उसने कहा, "अल्पा सब ठीक हो जाएगा। जो भी हुआ उसे हमें भूलना ही होगा और फिर से एक नए सवेरे के साथ अपने नए जीवन की शुरुआत करनी होगी।"

अल्पा ध्यान से अपने भाई की तरफ़ देख रही थी। आज उसे मौलिक के अंदर अपनी माँ और पिता दोनों का ही रूप दिखाई दे रहा था। यह लम्हे उसके दर्द को कम करने में मरहम का काम कर रहे थे।

गीता अपने पति और अल्पा, दोनों भाई-बहन के बीच के इस प्यार को देखकर खुश हो रही थी। वह सोच रही थी उनका भाग्य अच्छा था जो प्रिया और विनोद अंकल अल्पा को मिल गए। वरना वह दरिंदा उनकी अल्पा को ... सोचते हुए उसके रोएँ खड़े हो रहे थे।

तभी मौलिक ने कहा, "उस दरिंदे को अब उसके किए की सजा मिलेगी। हमने उसके खिलाफ बहुत ही पुख्ता सबूत जुटाये हैं, वह छूटेगा नहीं।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
समाप्त