दरिंदा - भाग - 4 Ratna Pandey द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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दरिंदा - भाग - 4

अगले दिन सुबह प्रिया उठी और खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई। कुछ ही देर में फिर उसी तरह बर्तन पटकने और रोने की आवाज़ें आने लगी। प्रिया घबरा रही थी, उसे डर भी लग रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। तभी उसके पापा ऑफिस जाने के लिए तैयार होकर ड्राइंग रूम में आए।

अपने पापा को देखते ही प्रिया ने कहा, "पापा देखो ना वह अपनी पत्नी को फिर मार रहा है।"

"प्रिया बेटा इस वक़्त हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे। मेरे ऑफिस का समय हो रहा है चलो तैयार होकर नाश्ता कर लेते हैं।"

प्रिया को अपने पापा की बात सुननी ही पड़ी और बेमन से ही सही पर उन दोनों ने नाश्ता कर लिया।

ऑफिस जाते समय विनोद ने कहा, "प्रिया मैं जा रहा हूँ तुम भी तुम्हारे समय से कॉलेज चली जाना।"

"ठीक है पापा।"

विनोद तो ऑफिस चला गया परंतु प्रिया कॉलेज नहीं गई। वह उस इंसान के बाहर जाने की रास्ता देख रही थी। कुछ ही समय में पिछले दिन की ही तरह वह आदमी बाहर निकला, दरवाजे पर ताला लगाया और स्कूटर लेकर चला गया।

प्रिया डरते-डरते उस घर के नज़दीक गई। अंदर से आती हुई सिसकियों की आवाज़ सुनकर उसके दिल की धड़कनें तेज हो गईं। इस तरह के अत्याचार को देखकर उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह किसी भी तरह से इस दरवाज़े को खुलवा कर उस लड़की की मदद अवश्य करेगी। उसके बाद वह अपने आप को रोक नहीं पाई और डुप्लीकेट चाबी बनाने वाले के पास पहुँच गई।

वहाँ जाकर उसने चाबी बनाने वाले से कहा, "भैया हमारे घर की चाबी खो गई है। आप चलकर ताला खोल दो और एक चाबी बनाकर मुझे दे दो।"

चाबी बनाने वाले ने कहा, "ठीक है मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ।"

प्रिया के साथ आकर वह ताला खोलने की कोशिश करने लगा। इस काम में उसे बहुत समय नहीं लगा। उसने एक चाबी बनाकर प्रिया के हाथ में देते हुए कहा, "लो बिटिया तुम्हारा काम तो हो गया अब मुझे पैसे दे दो तो मैं जाऊँ।"

प्रिया से पैसे लेकर वह तुरंत ही वहाँ से चला गया।

दरवाजे पर कुछ आहट होने से अल्पा डर रही थी। वह एक कोने में सिकुड़ कर बैठी थी। उसे लग रहा था कि उसका पति शायद किसी को साथ में लेकर वापस आ गया है।

तभी प्रिया दरवाज़ा खोलकर अंदर चली आई।

अंदर आकर उसने आवाज़ लगाई, "हैलो-हैलो आप कहाँ हैं?"

अपने सामने एक लड़की को इस तरह देखकर अल्पा अचम्भे में पड़ गई। वह समझ ही नहीं पा रही थी कि यह क्या हो रहा है। तभी प्रिया के चेहरे पर नज़र पड़ते ही उसे याद आया कि यह लड़की तो कल भी खिड़की पर आई थी। इस तरह उसे अपने कमरे में देखकर उसमें थोड़ी हिम्मत आई।

तब तक प्रिया ने भी अल्पा को देख लिया और वह तुरंत ही उसके पास गई और उससे कहा, "उठिए इधर आइये, कुर्सी पर बैठिए। मैंने कल आपको बताया था ना कि वह सामने वाला घर मेरा है। मैं आपको पानी देती हूँ...कहाँ है पानी," बुदबुदाते हुए प्रिया ने इधर-उधर नज़र दौड़ाई।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः