प्रिया अपने घर तो चली गई परंतु अल्पा से पूछे गये उस प्रश्न का उत्तर न मिलने से उसकी जिज्ञासा और बढ़ती जा रही थी कि आख़िर उसका पति उसे मारता क्यों है।
शाम को उसने अपने पापा को बताया, "पापा मैं आज कॉलेज नहीं गई।"
"क्यों बेटा ...? यह तो ग़लत किया तुमने।"
"पापा मैं सामने वाली अल्पा जी के पास गई थी।"
"क्या ...? यह क्या कह रही हो तुम? वहाँ तो ताला लगा है।"
"पापा मैंने आज उस ताले की चाबी बनवा ली है।"
यह शब्द सुनते ही विनोद उठकर खड़े हो गए उनके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा।
उन्होंने गुस्से में कहा, "प्रिया तुम्हारी हिम्मत की तो दाद देनी पड़ेगी। तुम ये क्या कर रही हो? यह ग़लत है, इस तरह किसी के घर की चाबी बनवाना सही नहीं है। तुमने मुझसे पूछा तक नहीं।"
"तो पापा क्या किसी अबला को इस तरह प्रताड़ित होते देखकर चुप रह जाना, ये सही है?"
प्रिया के मुंह से यह प्रश्न सुनकर विनोद का गुस्सा ठंडा पड़ गया और उन्होंने पूछा, "अच्छा बताओ बेटा वहाँ क्या हुआ?"
"पापा मैंने अंदर जाकर देखा कि वहाँ वह लड़की डरी हुई सहमी-सी एक कोने में बैठी रो रही थी। उसके शरीर पर चोट के निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे। वह पता नहीं कब से भूखी थी। मैंने खाना खिलाया तो वह ऐसे खा रही थी जैसे कई दिनों बाद खाना मिला हो।"
"पर बेटा यदि उस आदमी को पता चल गया तो?"
"चलने दो पता ... वह हमारा क्या बिगाड़ सकता है। हम ही पुलिस को बुला लेंगे। पापा मुझे तो लगता है आपको भी अल्पा जी की मदद करना चाहिए।"
"क्या उम्र होगी बेटा उस लड़की की?"
"पापा ऐसा लगता है वह मुझसे चार पांच साल ही बड़ी होगी।"
विनोद सोच रहे थे कि प्रिया जो भी कह रही है वह ठीक है। जो कर रही है वह भी ठीक है, बस डर इस बात का है कि वे कहीं इस झमेले में फंस ना जाएँ।
विनोद और प्रिया दोनों के ही दिलो दिमाग़ में इस समस्या को सुलझाने की कश्मकश चल रही थी। शाम कब रात की आगोश में चली गई उन्हें पता ही नहीं चला। अब तो प्रिया के साथ ही साथ विनोद भी इस हालात से जुड़ गये थे।
तभी बाहर स्कूटर की आवाज़ आते ही प्रिया ने खिड़की से बाहर झांका। उसने देखा कि राज आ चुका है और अंदर जाकर उसने कुछ ही समय में फिर से अल्पा को मारना शुरू कर दिया।
अब तो विनोद और प्रिया के अलावा आजू-बाजू के और लोगों को भी सब पता चल गया था। सब दुखी थे पर पुलिस के झंझट में कौन पड़े इसलिए सब ने उस घर से दूरी बनाकर रखी थी। केवल एक प्रिया ही थी जो डरे बिना अल्पा की मदद कर रही थी। अब तो यह सब रोज़ की ही बात हो गई थी।
एक दिन प्रिया ने अल्पा से कहा, "अल्पा जी, अब यह अत्याचार और नहीं देखा जाता। मैं आज ही यहाँ कैमरा लगवा देती हूँ; बस एक बार उसकी करतूत कैमरे में क़ैद हो जाए, हमारे पास सबूत आ जाए, तो फिर हम उसकी पुलिस में शिकायत कर देंगे।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः