प्रिया ने देखा रसोई में एक घड़े में पानी था लेकिन उसके अलावा उसे खाने-पीने के लिए कुछ भी दिखाई नहीं दिया। रसोई में कुछ बर्तन इधर उधर पड़े थे जो वहाँ की बदहाली के गवाह बने हुए थे। गैस स्टोव भी जाने कब से यूँ ही धूल खाया हुआ वहाँ की दर्दनाक कहानी बयाँ कर रहा था। ऐसे हालात देखकर प्रिया हैरान हो रही थी। वह सोच रही थी कि जेल भी शायद इतनी भयानक नहीं होती होगी। वह समझ गई थी कि यह लड़की तो पता नहीं कब से भूखी भी होगी।
उसने गिलास में पानी भरकर अल्पा को पिलाते हुए पूछा, "आपका नाम क्या है?"
अल्पा ने अपने आंसू पोछते हुए कहा, "अल्पा।"
"लगता है आपने कुछ भी खाया पिया नहीं है। मैं मेरे घर से मंगवाती हूँ।"
अल्पा ने उसे मना नहीं किया।
प्रिया ने अपने घर फ़ोन लगाकर अपनी काम वाली से कहा, "रमा आंटी यहाँ सामने वाले घर में खाना लेकर आओ।"
"ठीक है मैडम लाती हूँ।"
रमा खाना लेकर आई।
प्रिया ने अल्पा से कहा, "आप खाना खा लीजिए।"
अल्पा भूखी थी उसने जल्दी-जल्दी खाना खा लिया। तब तक रमा चाय भी बनाकर ले आई। अल्पा ने चाय भी पी। उसके बाद शायद उसमें कुछ बोलने की शक्ति आई तो उसने कहा, "थैंक यू, थैंक यू वेरी मच।"
प्रिया ने कहा, "वह आपका पति है ना?"
"हाँ"
"तो आप इस तरह उसकी मार क्यों खाती हैं। आपको विरोध करना चाहिए। इस तरह मार नहीं खाना चाहिए। आप छोड़ क्यों नहीं देतीं उसे? क्यों इस तरह अत्याचार सह रही हो? सती सावित्री बनकर क्या मिलेगा?"
प्रिया ने एक साथ इतने सारे सवाल कर डाले।
अल्पा ने निराश होते हुए कहा, "परंतु मैं कहाँ जाऊँ ...? मेरा तो कोई भी नहीं है। माँ बाप का साया बचपन में ही उठ गया था। तुम बताओ तुम्हारा नाम क्या है? शायद कल तुमने बताया था पर मुझे याद नहीं।"
"मेरा नाम प्रिया है।"
"तुम्हारे घर में और कौन-कौन है?"
"मैं और मेरे पापा बस हम दोनों ही हैं।"
"मम्मी नहीं है?"
"उनका स्वर्गवास काफ़ी वर्षों पहले ही हो गया था। आप को इस तरह देखकर बहुत दुःख होता है। आप जबसे आई हैं तब से हर रोज़ हमें आपके घर से मार-पीट और रोने की आवाज़ सुनाई देती हैं। आप अपने पति से तलाक क्यों नहीं ले लेतीं।"
अल्पा ने कहा, "तलाक शुदा का दाग लगने पर बाहर भी लोगों की गिद्ध जैसी नजरों से बचना पड़ता है। इन चार दीवारों के अंदर अत्याचार सहना ही मेरी ज़िन्दगी है।"
प्रिया ने कहा, "यदि तुम कमजोर बनकर यूं ही अत्याचार सहन करोगी तो खुली हवा में कभी भी सांस ना ले पाओगी। एक बार इस क़ैद से बाहर निकल कर देखो, दुनिया कितनी सुंदर है। शायद तुम सब भूल चुकी हो। मैं उम्र में तुमसे छोटी हूँ लेकिन यदि कोई मेरे साथ ऐसा व्यवहार करे तो मैं उसे उसकी औक़ात ज़रूर दिखाऊँगी।"
अल्पा ने घबराते हुए कहा, "प्रिया प्लीज अब तुम जाओ, कहीं वह आ गया तो ...?"
"ठीक है अल्पा जी मैं तुम्हारे साथ हूँ, कुछ भी ज़रूरत हो तो खिड़की खोल दिया करना, मैं आ जाऊंगी। मैंने इस ताले की चाबी बनवा ली है। मैं जब चाहूँ तुम्हारे पास आ सकती हूँ।"
जाते-जाते प्रिया ने पूछा, "अल्पा जी आपके पास मोबाइल नहीं है?"
"नहीं प्रिया मेरा मोबाइल उसी के कब्जे में है।"
"वह आपको इस तरह मारता क्यों है?"
"तुम छोटी हो प्रिया, यह सब जानने की उम्र नहीं है तुम्हारी। अब तुम जाओ।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः