प्रिया की हिम्मत देखकर अल्पा घबरा रही थी। उसने डरते हुए कहा, "पुलिस में शिकायत ...? नहीं-नहीं प्रिया रहने दो। वह बड़ा ज़ालिम है, तुम्हें भी नुक़सान पहुँचाने की कोशिश करेगा। तुम इस झमेले में मत पड़ो।"
परंतु प्रिया का इरादा तो पक्का था। उसने कहा, "कुछ नहीं होगा, तुम चिंता मत करो मैं सब संभाल लूंगी।"
इस तरह अल्पा को हिम्मत बँधा कर वह अपने घर लौट गई।
घर जाकर उसने बहुत सोचा। राज की असलियत जानने के बाद पुलिस उसे पकड़ कर ले जाएगी। उसके बाद अल्पा जी फिर से अकेली हो जाएंगी। उनका तो दुनिया में कोई नहीं है फिर वह क्या करेंगी।
अचानक इस तरह प्रिया के मिलने और उसकी मदद करने से अल्पा को लगता मानो भगवान ने उसके लिए कोई फरिश्ता भेज दिया है।
प्रिया उसका बहुत ज़्यादा ख़्याल रखने लगी थी। वह कॉलेज जाने से पहले रोज़ अल्पा के पास जाती, उसे खाना खिलाती, चाय पिलाती और उसकी छोटी मोटी ज़रूरतों का ध्यान भी रखती।
राज यूँ तो ऑफिस से लौटते समय अल्पा के लिये कुछ ना कुछ खाने के लिए लेकर आता था और उसके सामने फेंकते हुए कहता, ले खा ले वरना मर जाएगी और मैं नहीं चाहता कि तू मरे। तुझे ज़िंदा रहना होगा मेरे लिए। तू तो मेरी नोट छापने की मशीन बन सकती है। बस एक बार तू हाँ कह दे फिर देख तुझे कैसे रानी बनाकर रखूँगा। वरना यूं ही रोज़ मार खाती रहेगी।
अल्पा चुपचाप यह सब सुन लेती। वह वहाँ से भाग जाना चाहती थी पर डरती थी कि उसके बाद यदि राज ने उसे ढूँढ लिया तो और भी ज़्यादा मारेगा।
प्रिया के हर रोज़ आने से अल्पा उसके साथ काफ़ी घुल मिल गई थी। दोनों में काफ़ी अच्छी दोस्ती भी हो गई थी। प्रिया हर हाल में उसे बचाना चाहती थी। बहुत सोचने के बाद आख़िर एक दिन प्रिया ने वह उपाय जो उसके दिमाग़ में घूम रहा था उसे ज़मीन पर लाने का निर्णय ले ही लिया। वह चाहती थी कि एक असहाय महिला की मदद करके वह अपना कर्तव्य ज़रूर पूरा करेगी।
अपने निर्णय को उसके अंज़ाम तक पहुँचाने के लिये प्रिया ने कमर कस ली। वह एक वीडियो बनाने वाले की दुकान पर पहुँच गई, जो उसके घर से ज़्यादा दूर नहीं थी। वहाँ एक आदमी अपनी कुर्सी पर बैठकर काम कर रहा था।
प्रिया ने दुकान में पहुँच कर कहा, "अंकल मुझे आपसे कुछ बात करनी है।"
"हाँ बोलो क्या बात है।"
"अंकल आपको एक घर में सी. सी. टी. वी. कैमरा लगाना है।"
"हाँ तो चलो अभी लगा देते हैं। क्या काम वाली पर निगरानी रखनी है?"
"नहीं मैं आपसे झूठ नहीं कहूँगी। अंकल वहाँ एक लड़की रहती है। उसका पति उसे रोज़ मारता है। मुझे उस लड़की को बचाना है। यदि उसके खिलाफ सबूत मिल जाये तो मैं सच में उसकी मदद कर सकूँगी।"
"नहीं-नहीं काम खतरे का है, मुझे इस झमेले में नहीं पड़ना।"
"प्लीज अंकल।"
तब तक अंदर से किसी की आवाज़ आई, "अशोक जा कर दे, भलाई का काम है। यह छोटी-सी बच्ची हिम्मत कर रही है तो तू क्यों डर रहा है, जा चला जा।"
"हाँ पापा आप ठीक कह रहे हैं। मुझे इस लड़की की मदद करनी चाहिए।"
अशोक ने अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए प्रिया को हाँ कह दिया।
प्रिया ने कहा, "ठीक है अंकल जब उसका पति घर पर नहीं होगा तब मैं आपको बुला लूंगी। आप मुझे अपना नंबर दे दीजिये।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः