दरिंदा - भाग - 2 Ratna Pandey द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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दरिंदा - भाग - 2

प्रिया अपने सामने वाले खाली घर में किसी के आ जाने से बहुत खुश थी। अब तक भी वह उस घर की तरफ़ देख रही थी। आज उसका उत्साह चरम सीमा पर था।
उसने चहकते हुए विनोद से कहा, "पापा आख़िर इस घर का भाग्य खुल ही गया। अब हमारे घर की तरह वहाँ से भी बातें करने और हंसने की आवाज़ें आएंगी। शाम को कुर्सी डालकर वे लोग भी बाहर आँगन में बैठेंगे। कितना अच्छा लगेगा ना पापा?"

"हाँ बेटा।"

"पापा मैं उन लोगों से दोस्ती कर लूंगी।"

"हाँ-हाँ कर लेना।"

तभी अचानक उस घर से रोने की आवाज़ आने लगी। यह आवाज़ बहुत धीमी थी। विनोद और प्रिया एक दूसरे की तरफ़ आश्चर्य भरी नजरों से देखने लगे।

प्रिया ने कहा, "पापा लगता है कोई रो रहा है।"

"हाँ लग तो ऐसा ही रहा है।"

तभी एक बार ज़ोर से बर्तन गिरने की आवाज़ आई और उस आवाज़ के साथ ही रोने की आवाज़ भी कुछ ज़ोर से आने लगी। लगातार बर्तन पटकने और रोने की आवाज़ बढ़ती ही जा रही थी।

तब विनोद को यह समझने में समय नहीं लगा कि अंदर तो झगड़ा हो रहा है। शायद पति-पत्नी के बीच मारपीट हो रही है।

उन्होंने प्रिया से कहा, "प्रिया बेटा चलो हटो यहाँ से, तुम्हें यह सब नहीं सुनना और ना ही देखना चाहिए।"

"पर पापा शायद कोई किसी को मार रहा है। हमें उन्हें बचाने के लिए जाना चाहिए।"

"प्रिया हम तो उन्हें जानते तक नहीं हैं। हम कैसे जा सकते हैं? उन्हें बुरा लगेगा, हो सकता है वह हमारा अपमान कर दें। तुम चलो यहाँ से, वैसे भी छुट्टियों के कारण तुम्हारी पढ़ाई का बहुत नुक़सान हो गया है," ऐसा कहते हुए विनोद ने हाथ पकड़कर प्रिया को अंदर के कमरे में भेज दिया और कहा, "बेटा अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। मैं नहाने जा रहा हूँ।"

"ठीक है पापा।"

प्रिया ने ठीक है कह तो दिया पर इस समय उसका मन पढ़ाई में लग ही नहीं पा रहा था। उसे तो वह रोने की आवाज़ के लिए दुख हो रहा था। कौन रो रहा है और क्यों रो रहा है। वह अपने आप को रोक न पाई और फिर से उसी खिड़की पर जाकर देखने लगी। वहाँ अब तक भी झगड़ा चल ही रहा था। रोने की आवाज़ भी आ रही थी।

प्रिया डर रही थी, तभी उसने देखा एक आदमी जिसकी उम्र लगभग 30 के आसपास होगी वह घर से बाहर निकला। उसने दरवाज़ा बंद करके ताला लगाया और चाबी का गुच्छा जेब में रख लिया। उसके बाद आँगन में रखे स्कूटर को लेकर वह कहीं चला गया।

दरअसल प्रिया और विनोद जब मनाली गये थे उन्हीं दिनों सामने के खाली घर में एक पति पत्नी रहने आये थे। पति का नाम राज और पत्नी का नाम अल्पा था।

प्रिया ने सोचा घर में तो कोई और भी है जो रो रहा था। उसे तो घर में ही बंद कर दिया गया है। वह ख़ुद को रोक न पाई और बाहर निकल कर उस घर की तरफ़ जाने लगी। दोनों घरों के बीच में केवल एक सड़क ही थी। उसने जाने से पहले कुछ भी नहीं सोचा।

वहाँ पहुँच कर उसने दरवाजे के बाजू में बनी खिड़की को खटखटाया और इंतज़ार करने लगी।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः