मंजिले - भाग 2 Neeraj Sharma द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मंजिले - भाग 2

                        ( मोक्ष ) 

" ------ आप को भगवान समझना बहुत कठिन है, आपकी लीला कोई नहीं जान सकता, आप खुद ही कारज करने वाले और कराने वाले है । "

"आपकी लीला कौन जानता है " शर्मा जी ने उच्ची आवाज मे कहा।" आप ही है, जो चराचर जगत का ख़याल रखते है । " शर्मा जी आँखे मुद कर बैठे ही थे। --- कि तभी घंटी वजी, तंदरा टूटी। 

"कौन है भाई " ------" अंधा हुँ , बहुत मुश्किल  से  घंटी वजाई है। ये यात्रा बहुत मुश्किल से कर रहा हुँ।"

शर्मा जी ने साहनुबूती की। "आपकी यात्रा सफल हो ज़नाब।" इतने उसे जैसे अटूट ख़ुशी आयी।

"महोदय जान सकता हुँ, जो साथ मे है कौन है " शर्मा जी ने कहा।

" हाँ महोदय, ये मेरी पत्नी लीला है, ये मेरा पुत्र उमाग है। " 

"दर्शन करे, मनोकामना कोई है, तो बताये। " शर्मा जी ने निस्कोच कहा।

"मोक्ष "----"बस पंडित जी और कोई इच्छा नहीं है।"

उसने बड़े उत्साह से कहा, और चुप हो गया......

शर्मा जी मुस्करा कर चुप हो गए.... बहुत चुप....

शर्मा जी कहा, आप दर्शान करे, मै आपकी पूजा के लिए रेजमेंट कर दू, तो कया चले गा.... कयो की मुझे तो पूजा की पदती नहीं आती।

उनों ने कहा --"आप पंडित ले आये। "हम यही दर्शन कर ले। जरा बस "----

शर्मा जी तत्काल गए.... "पंडित जी कोई भगत आया है, पूजा करानी है..."

"हम भूख से मर रहे है, शर्मा जी " एक चवल भी मुठी भर नहीं है " पंडित ने गुहार लगायी।

" मुझे पता है, भगतो का भी मंदा चल रहा है " शर्मा जी त्यूड़ी पा कर खडे थे।

"----मैं और मेरी पत्नी और बूढ़ी माँ-- की दवाई के भी पैसे और खाने को कुछ नहीं  है। " पड़ित जी गड़गैड़ाते हुए बोले।

------" आ जाओ, पूजा के लिए तो चलो, पंडित दियाल जी। " शर्मा ने जल्दी मे कहा।

"आज कल भगत बहुत कम आते हैँ। " पंडित ने पता नहीं भगवान ऊपर कोसा जैसे।

बता दू, ये 2030 का दवंग युद्ध चल रहा हैँ। भगवान और भगत के बीच का समय ऐसा ही लगता हैँ मुझे तो। मंदिर की घंटी भी कम ही बजे गी। पता कयो, मुझे तो पता हैँ, सब की हसरते इतनी बढ़ चढ़ होंगी, जो पूरी होंगी तो कम, पता नहीं कयो। भाव कुछ और होंगे, काम कुछ और होंगे। फिर पाप इसे भी जयादा हो जाये शायद।------पंडित के लालच और देवी देवते की प्रतीक्षा मे बहुत अंतर होगा।भाव मे लालच और लचारी अधिक होंगी।

कया समझते हो, " भाव तुम जो भी रखो, पूरा होगा, सगत का रंगत का कोई मतलब नहीं रहेगा। पूरा होगा भी, ये मत सोचो, वो जाने... उसकी कर्म से प्रतीक्षा मत करो।

" बेटा कया मनोकामना हैँ,--" पंडित दियाल ने यजामान से कहा।

"पंडित  जी मोक्ष " पंडित  सुन कर खुश हुआ।

"बहुत अच्छा यजमान " पंडित जी ने कहा।

"मोक्ष " ---- " इसकी यात्रा तो दस हजार के करीब हो ही जाएगी। " यजमान ने कहा "--इतना पैसा नहीं पंडित जी.... हमारे पास तो सात हजार के करीब होंगे।" 

"पंडित ने कहा मुझे दो "------ "बेटा किनारे छोड़ दू चलेगा, मंत्र मे।"

"धन्यवाद पंडित जी " पूजा शुरू हो गयी, छोटा सा हवन हुआ। "बेटा भाव मोक्ष ही रखो।" चलो हो गया।

एका दुका भगत थे, शर्मा पंडित से कह रहा था, " पता नहीं पंडित दियाल ये मोक्ष जाये न जाए... तुम रजवी  रोटी,चवल, और बूढ़ी माँ की दिवाई लाओ...."

--------" शर्मा ने मन मे कहा, " पता नहीं कौन कहा जायेगा। "                 /                             /

                               नीरज शर्मा 

                          शहकोट, ज़िला जालंधर