अधूरी तस्वीर Wajid Husain द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अधूरी तस्वीर

वाजिद हुसैन सिद्दीक़ी की कहानी        नेहा चित्रकार थी। ... वह झील सी गहरी आंखों वाली  सुंदर लड़की थी। उसकी छोटी बहन शिवी अच्छे नाक- नक्षे की बिंदास लड़की थी। शिवी उलझन में थी। कभी चीज़ें उलटती-पुलटती तो कभी दरवाज़ा खोल कर अंदर झांकती। साफ दिख रहा था कि वह कुछ कहना चाहती है, पर दीदी के आगे हिम्मत नहीं जुटा पा रही। अंत में शिवी सीधे दीदी के सामने आकर बोली, 'जानती हो संजीव ने मुझे क्या बताया?'         'होगी कोई ऐसी ही बात, जिनका आजकल ट्रेंड चल गया है...।' नेहा ने कहा। 'दीदी, कमेंट ही करती रहेंगी या मेरी बात भी सुनेंगी?' मेरी बात तो सुन लीजिए। मेरी शादी होने जा रही है।' 'क्या बोल रही हो? मेरी समझ में कुछ नहीं आया।' तुम्हें याद है, इंडिया-वेस्ट इंडीज फाइनल मैच वाला दिन? हम सब दोस्त मैच देखने के लिए जमा हुए थे। जगह थी संजीव का रिजॉर्ट। हम सब लड़कियां टीवी के सामने वाली लाइन में बैठे थे। संजीव ने मेरा परिचय नवीन से कराया। वह पीछे की सीट पर था। मैच रोमांचक दौर में पहुंच गई थी। मुझे यकीन नहीं था, दो बार के विजेता को हम हरा पायंगे। अत: नवीन से वेस्टइंडीज के जीतने की शर्त लगा बैठी। शर्त हारने के बाद भी मैं खुश थी और नवीन को पैसे देने लगी। उसने कहा, 'इतनी भी क्या जल्दी, पहले जीत सेलिब्रेट तो कर लें।' वहां मौजूद हर एक लड़का किसी न किसी लड़की के साथ डांस करने लगा। बस नवीन अकेला था और मैं भी। याद नहीं, हम कैसे डांस फ्लोर तक पहुंचे, पर बड़ी अपनाईयत के साथ जुदा हुए। ... आज सुबह संजीव ने मुझे बताया, नवीन ने अपने मम्मी-पापा से बात की। वह रिश्ता लेकर हमारे घर आएंगे। पर एक ज़रुरी बात रह गई, 'रोका की रस्म होगी या डायरेक्ट शादी होगी।'   'अरे तुम भी शिवी... ज़रा सोचने तो दो।'    'दीदी मैं बहुत उत्साहित हूं। मैं नवीन से प्यार करती हूं, और उसके मां-बाप भी राज़ी हैं तो फिर शादी तो होनी ही है।      'पर तुम, उसे बिना जाने- समझे शादी करने जा रही हो?'     'हम कई बार मिले हैं दीदी, जिस दिन वह नहीं मिलता, जी चाहता है, दरिया में डूब जाऊं।' मधु बोली। पर नेहा का पीला- उदास सा चेहरा देख चुप हो गई।      'हां, यह सच है कोई प्रेम करता है तो शादी भी करेगा ही। पर प्रेम करना भी कई बार मुश्किल होता है।' दीदी ने दर्द भरे लहजे में कहा।      'दीदी प्रेम तो बस हो जाता है। अगर कोई तुम्हारी तरह केन्वैस में घुसा रहे, तो उससे भला कौन प्रेम करेगा?' दीदी की चुप्पी देख शिवी बोली, 'अरे मैं यूं ही बोल बैठी हूं। मैं तो कह रही थी कि कितना अच्छा हो, अगर हम दोनों बहनों की शादी एक ही मंडप में हो जाए तो?'      'तब तो तुम्हें बुढ़ापे तक इंतिज़ार करना पड़ेगा।'       बिल्कुल नहीं, 'आपका वो।' जिसकी अधूरी तस्वीर के सामने आप आंसू बहाती हैं।   नवीन शांत रहने वाला युवक था। दिनभर अपनी कंपनी मैं व्यस्त रहता था। शाम का समय मधु के साथ निकलता। ... टेबल पर रखी तस्वीर को देख रहा था। वह सोचने लगा, 'दोनों बहनों में कितना अंतर है। शिवी चुलबुली है, जब वह हसंती है तो उसके सुंदर दांत दिखते हैं, मन करता है कि उसके माथे पर बोसा ले लूं। और एक वह है नेहा, वह सुंदर है उसकी आंखें बहुत गहरी हैं। काश कि उसका स्वभाव इतना रूखा न होता। कहीं इसका कारण कोई दुखांत प्रेम कहानी तो नहीं? शिवी से पूछूंगा...।        एकाएक शिवी आ गई। वह नवीन को दीदी की बनाई तस्वीर से बातें करते देख लेती है। वह सोचने लगी, यह तस्वीर नवीन के पास कैसे आई? वह बेहिचक उससे पूछती है, 'यह तस्वीर तो दीदी ने बनाई थी आपके पास कैसे आई...? नेहा ने मेरी बर्थ डे पर दी थी, पर एक बात समझ से परे है, नेहा इतनी अलग-थलग क्यों रहती है।'         शिवी चकित होकर पूछती है, 'क्या दीदी आप की गर्लफ्रेंड रह चुकी हैं?'...'नहीं।' वह मेरी क्लासमेट थी। फिर उसने पूरा क़िस्सा सुनाया।        ... मेरी कंपनी फैशन डिजाइनर ने पेंटिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया था। इत्तेफाक़ से उस दिन मेरी बर्थडे भी थी। मैंने अपने चुनिंदा क्लासमेट्स को आमंत्रित किया था जिनमें तुम्हारी दीदी भी थी। यह पेंटिंग तुम्हारी दीदी ने मुझे बर्थडे गिफ्ट में दी थी। मैंने पेंटिंग देखकर कहा, 'अगर आपकी यह पेंटिंग प्रतियोगिता में भाग लेती, तो सब की छुट्टी कर देती।' वह बोली, 'सच बोल रहे हो या मुझे झाड़ पर चढ़ा रहे हो?' मैने कहा, 'प्रतियोगिता में भाग लेने की हिम्मत जुटाओ, स्वयं जान जाओगी।' 'ठीक है।' उसने कहा और प्रतियोगिता में भाग लेने की फॉर्मेलिटी पूरी की।        लंबे इंतिज़ार के बाद, गैस्टस ने रूमानियत और सौंदर्य की उजली आभा को प्रथम पुरस्कार लेते देखा, तो टकटकी बांध कर देखते रहे। हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। सचमुच उसकी पेंटिंग ने सबकी छुट्टी कर दी थी।     मैंने कहा, 'नेहा मेरा इनाम तो बनता है।' उसने मुझे यह पेंटिंग दे दी।मैंने कहा, 'यह तो बर्थ डे गिफ्ट है। आपको इनाम में मेरी एक जीती- जागती तस्वीर बनाना होगी।' उसने मुस्कुराते हुए कहा, 'बहुत बदमाश हो, पेंटिंग बनाने के बहाने मेरी जिंदगी में एंट्री चाहते हो।' थोड़ी न- नकूर के बाद वह तस्वीर बनाने के लिए राज़ी हो गई। उसने ठीक ही कहा था, वह मेरे दिल में बस गई थी। एक दिन मैंने उसे प्रपोज़ किया। उसने मेरा प्रपोजल स्वीकार नहीं किया। उसकी दलील थी, 'मम्मी- पापा की एक्सीडेंट में मृत्यु के बाद हम दोनों बहने एक दूसरे का जीने का सहारा हैं। मैंने शादी कर ली तो मेरी छोटी बहन अकेली रह जाएगी। मैं उसे यतीम बनाने की कॉस्ट पर शादी नहीं कर सकती ...।' मैंने उसे समझाया, 'मेरे पेरेंट्स ब्रॉड माइंडेड है, तुम्हारी बहन को अपने साथ रखने में उन्हें कोई ऑब्जेक्शन नहीं होगा। वह राज़ी नहीं हुई। उसकी दलील थी, 'मैं नहीं चाहती, कोई मेरी बहन का दहेज़ू कहे या एक के साथ एक फ्री कहकर उसका दिल दुखाए।' मैंने गुस्से में कहा, 'तुम दक़ियानूसी मिजाज़ की हो, और अधूरी तस्वीर छोड़ कर चला गया।          शाम का धुंधलका फैला था। नेहा छज्जे पर खड़ी थी। तभी शिवी आकर बोली, '... कल रात नवीन तुम्हारे बारे में पूछ रहा था कि तुम अलग-थलग क्यों रहती हो?' नवीन तुम्हें पसंद करता है, पर तुम इतनी रुखाई क्यों दिखाती हो? अच्छा, तुम मेरे साथ चल रही हो ना?' ‌...'नहीं मेरे सिर में दर्द है, नवीन तो तुम्हारे साथ जा रहा है न ...?'  'नहीं, उसके ऑफिस में मीटिंग है।   नेहा अकेली ड्राइंग रूम में कुर्सी पर बैठी थी। अचानक उसने नवीन को आते देखा तो घबराकर बोली, शिवी तो गई हुई हैं।' ... नवीन बोला, 'मीटिंग में ज़्यादा लोग थे नहीं तो जल्दी निकल कर यहां आ गया। तुम साथ में नहीं गई...?'  'आप जानते हैं, मुझे घूमना- फिरना नहीं, चित्रकारी पसंद है।' ... ' ज़्यादा चित्रकारी करोगी, कहीं आखें न ख़राब हो जाएं तुम्हारी?' ... 'मेरी आंखें अच्छी भली है।' नेहा ने हंसकर कहा। ... 'और सुंदर भी।' नवीन ने सोचा।' दोनों में बातें शुरू हो गई। कुछ ही देर में उसे यह शाम, वह लड़की और कमरा... सब परिचित लगने लगे थे। ऐसा लग रहा था, मानो वह इस दिन का लंबे समय से इंतिज़ार कर रहा था। जब नवीन विदा के लिए उठा, तो एक साथ ख़ुश व रुआंसा था। वह शिवी और अपने भविष्य की दिशा नहीं तय कर पा रहा था।           ज्यूं-जू शादी की तारीख करीब आ रही थी, शिवी अब गंभीर होती जा रही थी। नवीन भी सीरियस दिखता। नेहा के हाथ कांपते। रात में इधर-उधर भटकती रहती। शिवी कई बार देखती कि नेहा अपने कमरे में अकेली रोती रहती।          एक शाम नवीन शिवी से मिलने आया। शिवी उसे ड्राइंग रूम में बिठाकर आई और विनम्रता से बोली, 'मेरा एक काम करोगी दीदी? एक ईमेल का जवाब देना है और नवीन ड्राइंग रूम में अकेला बैठा है, ज़रा कुछ देर उसके साथ बैठ लो तो मैं ईमेल का जवाब दे लूं। मना मत करना।'         नेहा साहस बटोरती ड्राइंग रूम में गई। नवीन ने उसके पीले चेहरे को देखा तो विनम्रता से बोला,  'ओह मैंने क्या कर दिया? तुम जानती हो नेहा मैं तुमसे प्रेम करता हूं।'  'नवीन ऐसा मत कहो, कहीं शिवी ने सुन लिया तो? यह अपनी ही बहन के साथ विश्वासघात होगा।'     'तभी शिवी ने आकर पूछा, 'तुम दोनों की सुलह हुई या नहीं।' ... जवाब में नेहा हड़बड़ाहट नीचे उतरने लगी और नवीन भी बदहवास सा बोला, 'मैं जा रहा हूं।'          शिवी ने  कहा, 'मैं शादी नहीं करना चाहती।' शिवी ने दोनों के सामने फैसला सुना दिया।    क्या बात कर रही है लड़की?' नेहा को गुस्सा आ गया। 'शादी से तीन दिन पहले तुम मना कर रही हो, शादी टूटी तो दुनिया क्या कहेगी?'        'लोगों के लिए क्या मैं अपना कैरियर समाप्त कर दूं?' मुझे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से स्कॉलरशिप मिल गया है। मैंने अभी ईमेल भेज कर स्वीकृति दे दी। ...'और मैं नवीन और उसके परिवार से क्या कहूं?' ...'दीदी मुझ पर एक एहसान और कर दो, मुझे जगहसाई से बचाने के लिए तुम नवीन से शादी कर लो...। जो तेरे जी में आए कर, आख़िर तू बड़ी हठीली है।    शिवी ने दीदी की बहुत मिन्नतें कीं, अपनी सौगंध दी तो  दीदी नवीन से शादी के लिए राज़ी हो गई।        नवीन और नेहा का विवाह सादगी से हुआ। वह समय भी आ गया छोटी बहन रो कर बड़ी बहन की विदाई कर रही थी और बड़ी बहन छोटी बहन को विदेश में खुश रहने के टिप्स दे रही थी। उसने छोटी बहन को गले लगाकर कहा, ' एयरपोर्ट पहुंचकर मुझे मैसेज करना मत भूलिए।'    सभी मेहमान जा चुके थे। शिवी घर में अकेली थी। उसने दीदी को मैसेज किया, 'दीदी, 'मुझे माफ कर देना। मैंने आपसे सब- कुछ झूठ कहा था। मुझे न स्कॉलरशिप मिला न विदेश जा रही हूं। मैंने यह सब इसलिए किया, 'मैं आपकी सैक्रिफिसेज़ के बोझ तले तले दब चुकी हूं। आपकी मोहब्बत चुराने के बाद, मैं आपसे नज़र नहीं मिला पाती और आपके बिना मेरा जीवन अर्थहीन हो जाता।'     बाहरी तौर पर मैं नवीन से अलग हो गई थी परंतु उसकी यादें आज भी मेरे दिल में क़ैद थी। उसकी निश्चल आंखें मुझे आज भी दिखती थी। कभी-कभी रात में उठकर बैठ जाती हूं और उस अधूरी तस्वीर से बातें करने लगती हूं, जिसमें कभी रंग नहीं भर पाऊंगी।'           348 ए, फाईक एंक्लेव, फेस 2, पीली भीम बाईपास, बरेली, (उ प्र) 243006 मो: 9027982074, ई मेल wajidhusain963@gmail.com