नीलम कुलश्रेष्ठ
ये बात अपने देश की बहुत दिलचस्प है कि देश में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा का सितंबर में पखवाड़ा मनाया जाता है। चौदह सितम्बर, हिन्दी दिवस पर नये संकल्प लिए जाते हैं, समारोह किये जाते हैं। शायद ही किसी देश में अपनी भाषा के लिए इतनी अधिक असुरक्षा महसूस की जाती हो कि लोगों को याद दिलाना पड़ता है। ऐसा हो भी क्यों नहीं क्योंकि बहुत सी भाषाओं वाला, प्रदेशों व विभिन्न संस्कृति वाला अपना देश ही ऐसा अनोखा है। बरसों पहले मुझे एक बार एक बैंक ने हिंदी दिवस पर आमंत्रित किया था। मैंने अपनी मित्र गुजरात की प्रथम हिंदी कवयित्री मधुमालती चौकसी से कहा था, "मुझे हिंदी दिवस ऐसा लगता है जैसे एक परिवार सारे वर्ष कोने में पड़ी अपनी माँ को दीपावली के दिन सजा धजा कर मंदिर के सामने आरती का थाल सबसे पहले आरती करने के लिए थमा देता है। मैं बैंक में यही बोलने वालीं हूँ। "
वे घबरा गईं थीं, "ऐसा बिलकुल मत कहना, ये अशिष्टता है."
"अशिष्टता किस बात की ? हम सब सबके सामने अंग्रेज़ी बोलने में शान समझेंगें। अपने बच्चे अंग्रेज़ी माध्यम में पढ़ायेंगे और हिंदी दिवस पर गंभीर मुंह बनाकर हिंदी की गौरव गाथा बखानेंगे। "
आप समझ गए होंगे, मैंने यही बोला था, जो सोचा था।
अब मेरे जैसे जिन्होंने साइंस की अंग्रेज़ी भाषा में पढ़ाई की है, इसे सौ प्रतिशत पराई विदेशी भाषा कैसे समझ लें ? भला हो भूमंडलीकरण होने का जिसने हिंदी का बहुत प्रसार किया है, अनेक ऑनलाइन पत्रिकायें विदेशों से प्रकाशित हो रहीं हैं। ऊपर से अंग्रेज़ी की भी अहमियत समझा दी है.
यदि अलग अलग प्रदेशों में घूमें तो बहुत लज्जतदार हिंदी भाषा का घालमेल सुनने को मिलता है। हिंदी बोलने के अंदाज़ से भी पता लग जाता है.बन्दा किस प्रदेश का है। अक्सर लोग अपने वक्तव्य में कहते हैं कि भाषा एक नदी है, जो जगह जगह बहती हुई बहुत कुछ अपने में समेटती चलती है। यहाँ तक तो ठीक है लेकिन वड़ोदरा के विश्वविद्द्यालय की व्याख्याता ने तो कमाल कर दिया था। उनको मैंने एक कार्यक्रम में बोलते सुना था, " अब आप बताइये कि मुंबई की हिंदी क्या हिंदी भाषा नहीं है जैसे कि अपुन को क्या ?बोले तो क्या ? मेरे को इदरची ही खड़े रहने को मांगता, तेरे को क्या ?"
हे भगवान !जब किसी शुद्ध हिंदी व्याख्याता के ऐसे विचार हैं तो हिंदी का कितना और कैसे कल्याण होना है, इसके तो ऊपरवाले मालिक हैं। मैं उनसे ये पूछने में संकोच कर गई थी कि मुम्बई की ये टपोरी भाषा कोई परीक्षा में लिखे तो वे उसे कितने नंबर देंगी?
मेरी एक कमज़ोरी बेधड़क लिख रहीं हूँ कि मैं जब नम्बर लिखतीं हूँ तो कर्सर हमेशा अंग्रेज़ी के नम्बरों को चुनता है। अक्सर पत्रिकाओं में या पुस्तकों में नंबर अंग्रेज़ी में लिखे दिखाई दे जाएंगे।आप अंग्रेज़ी विरोधी हैं तो कहाँ कहाँ से इसे हटाएंगे ? आप आधार कार्ड की तरह अपनी आइडेंटिटी यानी कि अंग्रेज़ी में अपना ई -मेल लिए घूम रहे हैं। जल्दी में रोमन भाषा में अंग्रेज़ी का सहारा लेकर सन्देश लिख रहे हैं।यहाँ तक कि अपने से छोटों से बार बार वॉट्स एप के मेसेज के विषय में हिदायत ले रहे हैं, "प्लीज़ !आप हिंदी में मेसेज मत करिये, पढ़ने में बहुत समय लग जाता है। रोमन में लिखा करिये। "
अब आप उन्हें अंग्रेज़ी माध्यम में पढ़ा चुके हैं। आप उन्हें मातृभाषा पर भाषण दे डालिये। आपका भाषण उनके लैपटॉप में खुले दो चार ब्राऊज़र के जाल यानी नेट में उलझकर रह जाएगा।
मैं तो हिंदी लेखिका हूँ मेरे दिल, दिमाग उँगलियों में हिंदी धड़कती है। अपनी प्रकाशित हिंदी की रचना को देख मेरी आँखों में चमक आ जाती है लेकिन अंग्रेज़ी को उतना पराई नहीं समझ पाती। हालाँकि, मेरे एक प्रोफ़ेसर कहते थे, " हमारे देश में प्रथम श्रेणी की प्रतिभाएं साइंस में अधिक पैदा नहीं हो पातीं क्योंकि साइंस विषयों की पुस्तकें मातृभाषा में उपलब्ध नहीं हैं। "
ये प्रयास हिंदी में धीरे धीरे हो ही रहे हैं।
गुजरात में हिंदी की स्थिति अब कुछ सुधरी है लेकिन गुजराती व अंग्रेज़ी समाचार पत्र हिंदी वालों के समाचार प्रकाशित करना नहीं पसंद करते । लगभग चालीस वर्ष पहले ऐसी थी यहां हिंदी की स्थिति कि किसी ने मुझसे कहा था, "धर्मयुग की एडीटर भारती हैं तो लेडी लेकिन काम बहुत अच्छा कर रहीं हैं। "
एक और सज्जन की बात सुनकर गुजरात में बसी, यू पी से आई मैं आश्चर्यचकित थी कि ऐसा बेतुका प्रश्न हिंदुस्तान के किसी कोने में पूछा जा सकता है। उन्होंने मुझसे पूछा था, " माना कि आप अंग्रेज़ी में इंटर्व्यू ले लेंगीं लेकिन हिंदी में लिखेगा कौन ?"
हिन्दीभाषी प्रदेशों में आज के सुधार देखकर अच्छा लगता है। बैंगलोर में केन्द्रीय स्कूल में पढ़ने वाला पोता जब स्कूल में गुड मॉर्निंग न बोलकर `हरि ओम `बोलता है । अहमदाबाद में पढ़ने वाले पोते के डी ए वी स्कूल में सुबह ये बोला जाता है, "गुड मॉर्निंग, नमस्ते। "
यही है हिंदी का अंग्रेज़ी के साथ भूमंडलीकरण हो गया रुप जो स्वीकार नहीं कर पा रहे, उन्हें भी खुले दिल से स्वीकार कर लेना चाहिये।
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नीलम कुलश्रेष्ठ
मो .न.--9925534694