वाजिद हुसैन सिद्दीक़ी की कहानी
दिन भर अस्पताल में मरीज़ों की चीख़- पुकार से दिमाग़ वैसे ही ख़ाली हो रहा था। शरीर भी थका हुआ था। मूड फ्रेश करने के लिए शांत छोटे से पार्क के कोने की बैंच पर बैठ गया। तभी एक लड़की आती दिखी, उसकी पोशाक भूरी और साधारण थी। उसने सनग्लास से अपनी आंखों को और स्कार्फ से अपने चेहरे को ढक रखा था। पीछे से उसका शांत चेहरा झांक रहा था जिसकी सुंदरता से वह बेख़बर थी। उसने शालीनता से मुझ से पूछा, ' क्या मैं यह बैंच आपके साथ शेयर कर सकती हूं?'
अरे 'यह सरकारी बैंच है, आप पूछकर मुझे शर्मिंदा कर रही हैं।' मैंने कहा।
'लोग सरकारी चीज़ को अपनी मिल्कियत समझते हैं।' उसने संस्कारी लहजे में कहा।
'आप ठीक कह रही हैं, ज्यों-ज्यों समृद्धि बढ़ रही है, त्यों-त्यों लोगों की हविस बढ़ रही है।
उसने 'ऑफ कोर्स।' कहा और वह मुझ से कुछ फासला बनाकर बैठ गई।
'आप जितनी सुंदर हैं उतनी ही शिष्ट है।' मैंने कहा।
लड़की ने कहा कि एक नेत्रहीन लड़की अपनी अंधेरी दुनिया से निकलकर कुछ पल के लिए यहां बैठने आती है। क्योंकि बस एक यही जगह है जहां मैं मानवता के विशाल आम धड़कते दिल के नज़दीक हो सकती हूं। मुझे जिंदगी में वह माहौल मिला जहां इसकी धड़कनों को कभी महसूस ही नहीं किया जा सकता। मैं एक सहज व्यक्ति से बतियाना चाहती थी- किसी ऐसे व्यक्ति से, जिसे दौलत की घिनौनी चमक और नाम भर के बड़प्पन ने बिगाड़ा न हो। आपसे मुलाक़ात में मुझे लगा कि आप लड़कियों से फ्लर्ट करके मन बहलाने वालों में से नहीं हैं।
मैं आश्चर्य चकित था। उसकी क़द -काठी, झक सफैद रंग, मक्खन सी मुलायम त्वचा, कंधे पर झूलते बाल, बातचीत का स्टाइल मेरी टीनऐज लवर शालिनी जैसा था। उसने यही डायलॉग फेयरवेल पार्टी के एक नाटक में बोला था जिसमें उसने अंधी लड़की का और मैंने यंग डॉक्टर का रोल किया था। मुझे आज भी वह सीन याद है, 'एक डॉक्टर को अंधी लड़की से प्यार हो गया था। अंधी लड़की ने कहा था- 'आप खुश क़िस्मत हैं, देख सकते हैं नीले आसमान को सूरज को रंगों को। मुझे भी कभी यह सौभाग्य मिला था लेकिन कम उम्र में ही अपनी आंखें गवां बैठी। अब मैं बाईस की हूं। कई वर्षों से मेरी दुनिया अंधेरे में क़ैद हैै। डॉक्टर्स का कहना है कि सही इलाज मिले तो आंखें ठीक हो सकती हैं पर मुझे ऐसे किसी करिश्मे पर संदेह ही है।'
नींद मेरी आंखो से कोसो दूर थी। बिस्तर पर करवटें बदलते समय मुझे याद आया, 'नाटक के मंचन के बाद ऑडिटोरियम के बाहर निकलते समय शालिनी के पापा ने मुझे डॉक्टर साहब कहकर पुकारा था। मैंने उनके पैर छुए तो उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा, 'तुमने तो कमाल की एक्टिंग की है। पलभर के लिए मुझे भी लगा सचमुच कोई डॉक्टर है।' मैंने कहा, 'अंकल शालिनी ने डायलॉग बोलकर नाटक को संभाले रखा, मैं तो उसे सपोर्ट करता रहा। उस समय शालिनी ने पापा से कहा था, 'पापा धीरज की आदत कभी किसी चीज़ का क्रेडिट लेने की नहीं है।' उसके बाद मुझे शाम के समय चाय के लिए निमंत्रित करके अपने पापा के साथ कार में बैठकर चली गई थी।
उसके आग्रह पर मैं उसके घर गया तो ज़रूर था, किंतु मुझे वहां बात- बात में संकोच मालूम हो रहा था। जब वह मुझे लेकर ड्राइंग रूम में वाल टू वाल कार्पेट पर जाने लगी, तब मैंने अपने पैरों की ओर देखा। मुझे अपने धूल भरे पैरों को रखने में कुछ अटपटा सा लगा...। शालिनी के पापा की वाणी और लिबास में सादगी थी परंतु व्यकितत्व गौरवमय था। उन्होंने बेझिझक कहा, 'जीवन में वही स्थान पाता है, 'नाटक-वाटक और मनोरंजन के साधनो को मूूड फ्रेश की हद तक सीमित रखता है।'
वास्तव में क्षणिक मुलाक़ात में उन्होंने मुझे ज्ञान दे दिया था। मैं गांव के साधारण परिवार का होनहार लड़का था जो शहर मैं मामा के घर रहकर पढ़ रहा था और डॉक्टर बनने के सपने देख रहा था।
मैंने अपनी नाटक मंडली से और भी नाजाने दुनिया की किन-किन चीज़ों से पुरी तरह कट ऑफ कर लिया। मेरा मेडिकल में सलेक्शन हो गया था, स्कालरशिप भी मिलने लगा था। आठ साल पढ़ने के बाद एक अस्पताल में नियुक्ति हुई तो शालिनी को बताने वाला था कि मैंने एम.एस किया है। तुम्हारे योग्य बनने के लिये, मैं कुर्सी पर किताबों के बीच बुत बना बैठा रहता...। इस उम्मीद से कि जब मैं तुम्हें बताउंगा कि तुम्हारे शहर में आई सर्जन के पद पर पोस्टिंग हुई है ...। उस समय तुम हैरानी से मुझे निहारेगी और तुम्हारी झील सी आंखों में डूबकर मेरी सारी थकन दूर हो जाएगी...। पर क़ुदरत का करिश्मा, आज तुम मिलीं तो इस हालत में कि मैं यह पूछने की हिम्मत भी नहीं जुटा सका कि शालिनी क्या यह तुम हो या कोई और। अगर यह तुम हो तो मुझे बताओ, यह सब कैसे हुआ। हम दोनों अजनबियों की तरह बैंच पर बैठे बाते करते रहे।
अगली शाम मेरा दिल उससे मिलने के लिए मचलने लगा। मैंने अपने दिल को समझाया, 'यदि वह शालिनी ही है, तो भी मेरा अतीत थी। मेरा उससे विवाह करने का कमिटमेंट नहीं है, अंधी पत्नी के साथ जीवन की नैया कैसे पार लगेगी?' पर प्यार तो अंधा होता है, दिल माना नहीं। और उसने मुझसे पूछा, 'यदि वह विवाह उपरांत अंधी हो जाती तो क्या उसे छोड़ देते?'
मैं उससे मिलने पार्क गया। छुट्टी का दिन होने के कारण पार्क की बैंचे घिरी हुई थी। वह मुझे कहीं दूर भटकती दिखाई दी। मैं उसके पास गया, 'मैंने उससे कहा, 'मैं तुम्हें कब से ढूंढ रहा हूं। उसने कहा, 'मैं भी आपको ढूंढ रही थी।'
मैंने ग़मगीन लहजे में कहा, 'मैं धीरज हूं। एक्सीडेंटने मेरा चेहरा बिगाड़ दिया और मेडिकल की पढ़ाई भी पूरी नहीं कर सका। एक अस्पताल में कंपाउंडर की नौकरी कर ली है...।
यह सुनकर उसके आंसु टपकने लगे। मैंने उसका हाथ अपने हाथ में रखा, सनग्लास उसकी आंखों से हटाए और आंसू अपनी हथेलियां से पोछे। उसने गुस्से से कहा, 'तुम्हारे साथ इतनी बड़ी ट्रेजेडी हो गई और मुझे ख़बर तक नहीं की। मैं तुम्हारी हूं कौन?' फिर दार्शनिक के लहजे में कहा, 'प्यार जैसा है, तैसा' स्वीकार करने का नाम है।'
मैंने कहा, 'शालिनी, परीकथाओं वाली पुस्तकों में मैंने कहानी बचपन में पढ़ी थी... मैं भी 'द ब्यूटी एंड द बीस्ट वाली स्थिति में हूं। क्या तुम मेरी पत्नी बन्ना स्वीकार करोगी। उसने कहा, 'पर मैं तुम्हें देख तो नहीं सकुंगी और इससे तुम्हारे पुरुष मन को आघात नहीं पहुंचेगा...। मैंने कहा, 'तुम्हारा प्यार मेरे अंधेरे मरुस्थल में पानी के समान है...।' उसकी बरसों से जमा बर्फ पिघल गई और उसने हां कर दी। मैंने उसके दोनों हाथ अपने हाथों में लिए और उसका माथा चूम लिया।
विवाह उपरांत, शालिनी अपनी फ्रेंड नीलम से फोन पर बातचीत करती थी। वह इस बात से अनभिज्ञ थी कि उसकी वार्तालाप मुझे अपने स्टडी रूम से सुनाई पड़ती थी।
पहली वार्तालाप - धन्यवाद नीलम, तुम्हारी बधाई व शुभकामना संदेश के लिए। मेरी शादी को दो महीने हो चुके हैं। मैं बहुत खुश हूं। मेरे पति धीरज ने शादी के दिन का सारा हाल मुझे सुनाया। उसने बताया, किस सलीक़े से तुमने गुलाब और गेंदे के फूलों से सजी जयमाल मेरे गले में डाली थी। बगीचे में शाम को टहलते हुए वह मुझे फूलों, पक्षियों के बारे में बताता है, फूलों को मुलायम स्पर्श से पहचानना सिखाता है। कभी-कभी हम सिनेमा जाते हैं और वहां वह मुझे कहानी सुनाता है। मुझे नहीं मालूम कि सुंदरता या बदसूरती क्या है। लेकिन मैं जानती हूं कि दयालुता और प्रेम क्या है, क्योंकि इसे मैंने अपने पति के मन में देखा है। शुक्रिया प्यारी दोस्त, मेरे सुख में शामिल होने के लिए...।
दूसरी वार्तालाप - नीलम, मैं एक बच्ची की मां बन चुकी हूं। सब कहते हैं कि वह मेरा दूसरा रूप है। मां का प्रेम भी कितना महान होता है। मैं नीले आसमान की खूबसूरती नहीं देख सकती, फूलों का रंग नहीं पहचान सकती, पति या मम्मी-पापा को नहीं देख सकती...। लेकिन बच्ची को न देख पाने का दुख में सहन नहीं कर पा रही। सोचती हूं, काश कि मेरी आंखों के आगे छाया अंधेरा क्षण भर के लिए छंट जाए और मैं एक बार उसे देख लूं, बाक़ी की ज़िंदगी उस क्षण के सहारे जी लूंगी बिना शिकायत के। जब धीरज बताता है कि उसके बाल काले- घुंघराले हैं, उसकी आंखें सुंदर हैं और उसकी मुस्कान मोहित कर देती है... तो बताओ क्या करूं मैं कि जब मेरी बच्ची हाथ बढ़ाकर मुझे प्यार से देखती है तो मैं उसे नहीं देख सकती।
तीसरी वार्तालाप - मेरा पति फरिश्ता है वह पिछले एक साल से मेरी आंखों की रोशनी लौटाने के लिए मेहनत कर रहा है। एक दिन वह हंसकर बोला, 'जल्दी ही मैं उस जैसे कुरूप व्यक्ति को देख सकूंगी।' मैंने कहा, 'धीरज प्यारे, अगर तुम सोचते हो कि तुम्हारे चेहरे के कारण मैं तुमसे प्यार नहीं करुंगी तो मुझे अंधेरे में ही रहने दो।' वह कुछ नहीं बोला और बस मेरे हाथों को हल्का दबा दिया। एक महीने के भीतर ऑपरेशन होगा। क्या पता जल्दी ही मैं वीडियो कॉलिंग करने में समर्थ हो जाऊ?
चौथी वार्तालाप - मेरी दोस्त, मेरे ऑपरेशन को एक हफ्ता हो चुका है। एक कांपते हाथ ने मेरी आंखों की पट्टी हटाई। मैं चिल्लाई और फिर मुझे दिन, रात, रंग और सूरज... सब नज़र आने लगे। वे मेरी बच्ची को मेरे पास लाए। मेरी मां ने उसे गोद में ले लिया था। ओह ... मेरी बच्ची कितनी खूबसूरत है...। एक प्यारा चेहरा मेरी आंखो में बस चुका था जिसने मेरे अंधेरे को अपने उजाले से भर दिया था।
कल मुझे एक खूबसूरत सिल्क की साड़ी पहनाई गई, जिसके बॉर्डर पर ज़री की कढ़ाई थी। मेरे बालों को बनाया गया। मैंने सबको देखा और गले लगाया। फिर चिल्लाई मेरा फरिश्ता कहां है?'
मां ने कहा, 'छिपा बैठा है कहीं, जब तक वह नहीं आता, ख़ुद को इस शीशे में निहारो। आख़िर लंबी प्रतीक्षा के बाद तुम्हें ये क्षण हासिल हुआ है।' यक़ीनन मैं सुंदर हूं मगर आईना हिल रहा था और मेरा प्रतिबिंब उसमें कांप रहा था। तभी मुझे शीशे के पीछे काली आंखों वाला खूबसूरत नौजवान दिखा जिसके सफेद कोट पर डॉक्टर धीरज कुमार का बैच लगा था।
मां ने मुझसे कहा, 'ज़रा देखो तो सही ख़ुद को, तुम कितनी गोरी हो, एकदम सुर्ख गुलाब सी...।'
'लेकिन मां आप एक अजनबी के सामने मुझे ऐसा करने को क्यों बोल रही हैं?' मैंने धीमे से उन्हें टोका।
'अजनबी? कहां? वहां तो सिर्फ एक शीशा है।'
'मां, शीशे के पीछे..., 'मैंने इशारे से उन्हें बताया।'
'हे भगवान, 'पापा चिल्लाए, 'वही तो तुम्हारा पति है।'
'धीरज?' मैं अवाक थी। आठ साल में कितना हैंणसम हो गया था धीरज। तो तुमने झूठ बोला था ताकि मुझे नेत्रहीनता के कारण कमतर होने का एहसास न हो। वह बाहर निकला। मेरे सामने घुटनों के बल बैठ गया, 'तुम कितनी प्यारी हो...।'
'झूठे...' मैंने नज़रेे नीचे कर बस इतना ही कहा।
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