छोड़ दे ये नगरी Sharovan द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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छोड़ दे ये नगरी

छोड़ दे ये नगरी. . .

कहानी * शरोवन


रोहन अपनी नौकरी से निपट कर अपने बंगले पर आया तो उस समय दूर क्षितिज में सूर्य की अंतिम लाली अपना दम तोड़े दे रही थी और ढलते हुए सूर्य की रश्मियों से पिघला हुआ सोना निकलकर सारे आकाश के वक्ष पर पसर रहा था. कार से उतरते ही रोहन बंगले के अंदर न जाकर बाहर लॉन में पड़ी हुई दो कुर्सियों में से एक पर बड़े ही आराम से बैठ गया. बैठते ही वह सारे दिन की अपनी नौकरी की थकान मिटाने की कोशिश करने लगा. वह दस-पांच मिनिटों तक उसी मुद्रा में बैठा रहा. तभी उसके घर के रसोइया ने उसके सामने शाम की चाय और थोड़े से स्नैक्स की प्लेट उसके सामने लाकर रख दी. साथ ही आज के अखबार भी उसके पास ही रख दिए. बैठे हुए रोहन ने रसोइया को एक क्षण देखा और फिर एक अखबार को हाथ में पकड़ते हुए उसकी तरफ देखते हुए कहा कि,


'आज तुम ही मेरे लिए चाय बना दो.'


'जी साहब !'


रसोइया चाय बनाने लगा और बनाते हुए ही वह बोला कि,


'लगता है आज साहब के पास बहुत काम था.'


'काम इतना नहीं थकाता है, जितना कि, मस्तिष्क थका देता है.' यह कहते हुए रोहन ने चाय का प्याला अपने हाथ में पकड़ लिया.


तब रसोइया वापस बंगले में चला गया. शायद उसे अपने साहब के लिए शाम का भोजन भी तैयार करना था. उसके जाने के बाद रोहन ने अखबार की हेड लाइन्स को पढ़ा तो उसकी आँखों के सामने जैसे अन्धेरा छा गया. अखबार में मोटे-मोटे अक्षरों में खबर छपी थी कि,


'शहर की सभ्य महिला श्रीमती मगदला रावी के द्वारा अपने पति की गोली मारकर हत्या. आरोपी को गिरफ्तार किया गया है और पुलिस ने जांच आरंभ कर दी है. हत्या का कारण ज्ञात नहीं.'


इस खबर को पढ़कर रोहन का चौंकना और आश्चर्य करना बहुत स्वभाविक ही था. क्योंकि, यह वही मगदला नाम की लड़की थी कि, जिसके साथ एक बार रोहन की सगाई हो चुकी थी, मगर विवाह के एक सप्ताह पहले ही मगदला और उसके परिवार वालों की तरफ से यह सगाई तोड़ दी गई थी. तब से रोहन ने फिर कभी-भी अपने विवाह के लिए सोचा तक नहीं था. इस विशेष खबर के साथ रोहन को यह जानकर भी आश्चर्य हुआ था कि, वह तो पिछले दो वर्षों से इस शहर में जज की नौकरी कर रहा है और उसे यह तक नहीं मालुम हो सका था कि, जिस प्यार की देवी ने एक पल में ही उसकी ज़िन्दगी का वास्तविक पहलू बदलकर रख दिया था, वह तो उसी के ही शहर में रह रहा है?


रोहन ने चाय का आधा पिया हुआ प्याला एक तरफ रख दिया और अपना सिर पकड़कर बैठ गया. अपने प्रेम की राहों की हसीन वादियों में हंसते-मुस्कराते हुए उसने जिन प्यार की महकती हुई खुशबुओं की लालसा की थी, उनके स्थान पर महज सारी ज़िन्दगी के कांटे वह अपने दामन में बटोरकर, आज तक उनकी चुभन को भूल नहीं पाया था; वही आज एक बार फिर से उसके घर की चौखट पर अपना दर्द बयाँ कर देना चाहते थे- दुःख किसको नहीं होता? अतीत के बीते हुए पल, एक भूला हुआ ज़माना, अपने प्यार की उलझी हुई गांठों को कभी-भी न सुलझा न लेने का दर्द समेटे हुए, वह अब किसको रोता? अपने अतीत को, अपने प्यार में मिले उन तमाम चांटों को, जिन्होंने उसे एक दिन था जबकि, उसे सभ्य समाज में मुंह दिखाने लायक तक नहीं छोड़ा था, या फिर अपनी किस्मत की उन लकीरों को, जिन्हें चुराने का वह साहस तक नहीं कर सकता था?


एक अजीब-सी समस्या, एक बद्सूरत-सा सशोपंज और एक ऐसा उसके जीवन का उलट-फेर कि जिसके कारण अखबार में छपे चंद अक्षरों ने ही उसके मुख का सारा स्वाद खराब कर दिया था. इसीलिये वह बैठे हुए अब तक यह नहीं सोच पाया था कि, इस खबर को पढ़कर, वह रोये अथवा हंसे. वह प्यार की मंडी में एक हारा हुआ, साधारण-सा खरीदार था. अब वह इस बात को अपनी दूसरी हार का संकेत समझे या फिर, भविष्य में आनेवाली फिर कोई प्यार की ऐसी कहानी कि, जिसको लिखने के लिए आज सब ही कुछ समाप्त हो चुका था. वह क्या करे और क्या नहीं? इतिहास दोहराया जाता है. यादें, फिर भी याद की जाती हैं, मगर क्या दफ़न किये हुए मुर्दों में फिर से जीवन के चिन्ह ढूँढे जाते हैं? यही सब सोच-शोच कर रोहन का सारा दिमाग मानो खराब हुआ जाता था.


सोने का स्वभाव होता है कि, उसे आग से पिघलाने के बाद फिर से ठंडा करके तौला जाए तो एक रत्ती भर भी कम नहीं होता है. इस तथ्य को सोने की आदत समझ लीजिये अथवा यही उसकी प्राकृतिक खूबी कि, वह अपनी शुद्धता में कभी-भी डंडी नहीं मारता है. वह तपा हुआ निखरा शुद्ध सोना है तो सोना ही रहेगा. उसे गलाइये, तपा दीजिये और पिघला दीजिये, लेकिन उसके खरेपन और उसकी चोखी आदत में अंतर नहीं पड़ने वाला है.


यही दशा और स्वभाव रोहन की अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी, उसके जीवन जीने के तमाम अंदाज़ और कर्मों के प्रति भी था. वह जैसा है, वैसा ही रहेगा. इसीलिये अपने जीवन के किसी भी क्षेत्र में वह समझौता नहीं किया करता था, हमेशा ही फैसले करता था. अगर सच है, तो सच ही रहेगा. किसी भी गलत कार्य, भ्रष्टाचार और मानवता के विरुद्ध अगर कुछ भी किसी ने किया है तो उसका खामियाजा तो करने वाले को भुगतना ही होता था. अपने जीवन में, अपने कार्य, अपने कर्तव्यों और वफादारी के प्रति वह सदा ही अडिग, सचेत और विश्वसनीय रहा था.


रोहन एक स्थानीय कोर्ट में जब नौकरी पर आया था तो उसने अपनी प्रैक्टिस एक सामान्य वकील के तौर पर आरंभ की थी. फिर धीरे-धीरे उसने मेहनत की, दिन-रात परिश्रम किया, अपनी सच्चाई और ईमानदारी से बड़े-से-बड़े मुकद्दमें जीते, जिसका फल यह हुआ कि, उसकी इस नौकरी में तरक्की होती गई और वह एक दिन बाकायदा जज़ भी बन गया. उसके पास अब पैसे की कोई भी कमी नहीं थी. ज़िन्दगी का हर सुख उसके पास था. मोटर, कार के अतिरिक्त सरकारी बंगला उसके पास था. उसकी सुरक्षा के लिए सरकारी सिपाही उसके आगे-पीछे रहते थे. ड्राईवर उसे मिला हुआ था. घर में भी उसके कोई अतिरिक्त खर्चा नहीं था. मां-बाप, भाई-बहन और परिवार जैसी कोई भी जिम्मेदारियों से वह कहीं भी जुदा हुआ नहीं था. जितना कमाता था, उसका दस प्रतिशत भी वह खा नहीं पाता था. एक तरह से सारी-की-सारी उसकी कमाई बचत खाते में जमा हो जाती थी. मगर इतना सब-कुछ होने पर भी रोहन अपने जीवन की सच्चाइयों से पूर्णत: खाली हो चुका था.


. . . प्यार-मुहब्बत की गुनगुनाती हुई हसीन राहों पर जब रोहन ने अपने कदम रखे थे, तब उसकी आयु मात्र उन्नीस वर्ष की थी. वह इंटर की बोर्ड की परीक्षा पास करके अगली कक्षा में प्रवेश लेने की अपनी योजना बना रहा था. उसके जीवन का उद्देश्य आरंभ से ही वकील बनना था. लेकिन यह सब तो रोहन का अपना सोचना था. उसके अपने भावी सपने थे, जिन्हें पूरा करने के लिए वह अक्सर देखा करता था. फिर भी यह इतना आसान नहीं था. सपने देखना तो बहुत सहज होता है, मगर उनको पूरा करना आसान नहीं, बल्कि एक जटिल समस्या का सामना करना भी होता है.


रोहन की अपनी जो परिस्थिति थी, उसमें फिलहाल सपने-ही-सपने थे. सोचों-विचारों के साथ खुद की उम्मीदों के वे ढेर थे कि, जिनको पूरा करने के लिए उसके पास मात्र आरजुएं और प्रार्थनाएं थीं. कोई भी शिकायत और शिकवा करने के लिए उसके पास अधिकार नहीं था. कारण था; उसे बचपन में ही सड़क से उठाकर मिशनरियों ने पाला था. किसने उसे जन्म दिया था? कौन उसके माता-पिता थे? उसका घर कहाँ था? इन समस्त बातों के उत्तर केवल चार शब्दों एक ही शब्द 'मिशनरी' में पूर्ण हो जाते थे.


यही कारण था कि, रोहन ने जब अपनी शिक्षा एक वकील के रूप में आरंभ की, तो आरंभ में मिशन के किसी भी अधिकारी को उससे कोई-भी शिकायत नहीं रही थी. साथ में अंग्रेज मिशनरियों का स्वभाव ही ऐसा था कि, जब तक बच्चा पढ़ने-लिखने में होशियार है, उसमें आगे बढ़ने के लिए लग्न है, वह परिश्रमी है; उन्हें कोई-भी आपत्ति नहीं होती है. लेकिन, रोहन के साथ ऐसा नहीं हो सका. अचानक ही आकाश में सजाये हुए उसके सितारे न केवल मद्धिम ही हुए, बल्कि वे एक-एक करके टूटने भी लगे. वह लगातार अपनी वकालत की पढ़ाई में दो बार फेल हो गया. फेल हुआ तो मिशनरियों ने उसे आगे पढ़ाना भी बंद कर दिया और खुद अपने पैरों पर खड़े होने के लिए उसे कोई भी नौकरी करने की सहमति भी दी. बेचारा रोहन क्या करता? मरता क्या नहीं करता? उसे मिशनरियों की बात माननी पड़ी. हां, उन्होंने इतना अवश्य ही किया कि, कुछ समय के लिए उसको अपने ही संस्थान में दैनिक लिपिक की नौकरी दे दी.


तब इस प्रकार वह एक मिशन अस्पताल में यह नौकरी करने लगा. तब इन्हीं दिनों इस नौकरी के दौरान उसकी भेंट अचानक से मगदला से हुई. मगदला एक अमीर व्यवसायी की अमीर बेटी थी. यह भी एक संयोग ही था कि, मगदला ने अपनी कार का एक्सीडेंट किया और अपनी कार को सड़क के किनारे लगे एक वृक्ष से पूरी स्पीड के साथ मार दिया. संयोग से मगदला घायल अवस्था में उसी अस्पताल में पहुंची जिसमें रोहन काम करता था. मिशन की तरफ से अस्पताल में काम करने वालों के लिए ये नियम था कि, अगर अस्द्प्ताल में किसी भी मरीज को अतिरिक्त खून की आवश्यकता पड़ती थी तो खून का प्रबंध न होने की दशा में, अस्पताल के कर्मचारियों को अपना रक्त दान में देना होता था. सो इस दशा में रोहन मगदला के संपर्क में आया. उसने उसे अपना रक्त ही नहीं दिया बल्कि, और भी हर तरह से, जब तक वह अस्पताल में रही, उसकी सहायता-सेवा करता रहा.


फिर, मगदला यहाँ तक तो स्वस्थ हो गई, मगर साथ ही वह एक दूसरे मर्ज़ की शिकार भी हो गई. वह रोहन की सेवा, उसके अपने रक्त के दान और अन्य सहायता आदि से इसकदर प्रभावित हो गई कि वह मन-ही-मन उसे प्यार भी करने लगी. फिर जब मगदला के अपने प्यार का ग्राफ परवान चढ़ने लगा तो वह अक्सर ही अस्पताल के चक्कर काटने लगी. तब इस तरह से रोहन भी मगदला के सामीप्य में आ गया.


फिर धीरे-धीरे समय बदला. मौसम बदले. तारीखें बदलीं तो एक दिन दोनों ही अपने-अपने प्यार का इज़हार कर बैठे. तब इन्हीं दिनों के दौरान रोहन ने जब अपनी अधूरी वकालत की पढ़ाई की बात बताई, तो मगदला ने अपनी तरफ से उसकी इस पढ़ाई का खर्चा उठाने की बात कही. हांलाकि, रोहन एक खुद्दार युवक था, मगर मगदला के प्यार और उसकी जिद के आगे रोहन की खुद्दारी कुछ न कर सकी. उसने अपने हथियार ड़ाल दिए. तब मगदला ने लगभग पूरे पांच वर्षों तक रोहन की सहायता की. उसे वकील बनाया. वह एक अमीर पिता की अमीर इकलौती लड़की थी. उसके पिता का सारे शहर में बड़ा नाम था. उसके पिता को मालुम था कि, उनकी लड़की रोहन को प्यार करती है. उसे पसंद करती है और उससे अपना विवाह भी करेगी. इसलिए उन्होंने भी इस संबंध में अपनी तरफ से कोई भी विरोध नहीं किया. उन्होंने भी शायद यही सोचकर संतोष कर लिया होगा कि, 'जब लड़की ही रोहन को पसंद करती है तो फिर उन्हें भी इस रिश्ते का कोई भी विरोध करने का अधिकार नहीं होना चाहिए.' मगर मगदला की मां को दोनों का यह रिश्ता किसी भी तरीके से मंजूर नहीं था. न मंजूर होने का उनका कारण, लड़के की हैसियत का प्रश्न था. वे चाहती थीं कि, उनकी अमीर लडकी का रिश्ता भी उन्हीं की बराबरी के बराबर किसी धनी और अमीर लड़के से होना चाहिए था, परन्तु मगदला के पिता के सामने उनकी एक न चली थी. इसलिए वे चुप ही रही थीं.


फिर एक दिन एक निश्चित समय और तारीख का दिन लेकर रोहन और मगदला की सगाई बड़े ही धूम-धाम से पक्की कर दी गई. इस खुशी के समय पर सारे शहर के धनीमानी, और बड़े सुप्रतिष्ठित लोगों को एक बड़े भोज में आमंत्रित किया गया. रोहन और मगदला की सगाई की रस्म पूरी की गई और साथ ही रोहन का भी नाम सारे शहर में पलक झपकते ही शौहरत की बुलंदियों को छूने लगा. रोहन को इस सगाई का पूरा-पूरा लाभ भी मिला. उसकी प्रतिष्ठा और नाम शहर के बड़े-बड़े लोगों में गिना जाने लगा. वह जिधर से भी निकल जाता लोग उसके सम्मान में खड़े हो जाते, उसे सलाम करने लगे. इसके साथ ही एक वर्ष के बाद ही दोनों के विवाह की तारीख भी तय कर दी गई.


समय बढ़ता रहा.


रोहन और मगदला अपने प्रेम के गीत गाते, मौजमस्ती में जगह-जगह घूमते, अपनी हरेक इच्छाएं पूरी करते, खुशियाँ मनाते और जीवन का वास्तविक आनन्द लेते थे. मगर, इसे दोनों का दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि, उन दोनों का विवाह हो पाता, एक दिन मगदला के पिता का अचानक ही देहांत हो गया. उन्हें अचानक से दिल का ज़बरदस्त दौरा पड़ा और एक पल में ही सारा खेल खत्म हो गया. पर्दा गिर गया. मगदला के घर-परिवार के अलावा सारा शहर मानों दुःख और विषाद के काले बादलों की चपेट में आ गया. घर के मुखिया की मृत्यु के कारण अब सब-कुछ जैसे अस्त-व्यस्त-सा हो चुका था. सबको समझाते, दुःख को झेलते, संयम बरतते और बिगड़ी हुई को व्यवस्तित करने में समय की आवश्यकता थी. तब ऐसे में बहुत सारे कार्य थम गये. बहुत से जरूरी कार्य रोक दिए गये और इसी उधेड़बुन में मगदला का विवाह भी खटाई में पड़ गया. अपने पति की मृत्यु के बाद उन्हें भी अपनी मर्जी पूरी करने का अवसर मिल गया. वे तो पहले ही से अपनी समझ व रिवाजों के अनुसार इस अनमेल विवाह के लिए तैयार नहीं थीं, और अब जब अवसर मिला तो वे क्यों अपनी मर्जी करने से चूकती? वह खुलकर इसका विरोध करने लगी थीं. उनके इस विरोध का हांलाकि, मगदला ने उनके इस विरोध और असम्मति का अपनी तरफ से डटकर मुकाबला किया. ज़हर खाकर मर जाने तक की धमकियां दीं. चुपचाप घर छोड़कर भाग कर रोहन से विवाह करने तक के लिए कहा, मगर फिर भी उसकी मां के सामने इन बातों का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ सका. उसकी मां ने भी स्पष्ट कह दिया कि, अगर वह ऐसा करेगी तो उसको अपने पिता की सम्पत्ति में से एक कोड़ी भी नहीं मिलेगी. मगदला अमीर बाप की पुत्री थी. अमीरी में उसने जन्म लिया और अमीरी में ही वह ऐश करही थी. पैसे की कीमत वह जानती थी. अगर पैसा हाथ में नहीं है तो प्यार का जुनून और भूत उतरते देर भी नहीं लगती है. बेचारी क्या करती? चुपचाप अपनी मां की सहमती पर उसने अपने सारे हथियार डाल दिए और रोहन को हवा तक नहीं लगने दी, अपने इस बदलाव के लिए. और जब विवाह की तिथि से मात्र एक सप्ताह पूर्व जब रोहन को अपनी मंगनी टूटने की खबर मिली वह भी एक बार सकते में आ गया. तब रोहन ने तुरंत ही मगदला से मिलने की भरपूर कोशिश भी की, मगर वह भी एक बार तो क्या, कभी भी उसके सामने तक नहीं आई. तब निराश होकर रोहन आखिरी बार मग दला के घर पर उसकी विशाल कोठी पर भी उससे व्यक्तिगत रूप से मिलने गया. मगर मगदला उससे मिलती, या उसके सामने भी आती, उससे पहले ही उसकी मां ने उसे बुरी तरह से झिड़क दिया. इतना ही नहीं, रोहन से तमाम तरह के उलटे-सीधे शब्दों के वार भी कर दिए. वह रोहन से बोली थीं.


'अपनी औकात का पता है तुम्हें? ना मां का पता और ना ही बाप का? ना मालुम किसने तुमको सड़क से उठाकर मिशन के यतीम खाने तक पहुंचा दिया था? तुम्हारी शादी मगदला जैसी उस लड़की से कभी नहीं हो सकेगी. जितना तुम कमाते होगे उतना तो वह अपने मेक-अप में उड़ा देती है. . .अगर अब भी यहाँ से नहीं जाओगे तो दरबानों से कहकर तुमको सड़क पर फेंकवा दूंगी. . .'


रोहन के सिर पर अचानक ही पहाड़ गिर पड़ा.


इतनी बे-इज्जती? इसकदर अपमान? एक समय था कि, जब उसको इस बंगले में ही उनके होने वाले दामाद के रूप में देखकर, उसको सिर-आँखों पर बैठाया जाता? और अब अचानक से ही. . ? वह मगदला की मां का बदला हुआ रूप और स्वभाव देखकर ही दंग रह गया. तब उसने उनसे कुछ भी नहीं कहा और अपना-सा मुंह लेकर वापस आ गया. कहीं गया भी नहीं और कुछ दिन की छुट्टियां अपनी नौकरी की तरफ से लीं और घर में ही पड़ा रहा. एक प्रकार से उसने खुदको अकेले कमरे में बंद कर लिया. अकेले घर में बंद रहते हुए खुदको सोचों-विचारों में ही उलझाए रहा. मगर इससे भि उसको तसल्ली नहीं मिल सकी. कोई भी संतोष, कहीं से भी नहीं मिल पाया तो उसने एक दिन बहुत गंभीरता से अपनी परिस्थिति और अपने बारे में सोचा कि, 'ऐसे कब तक चलेगा? कब तक वह लोगों से अपना मुंह छिपाए रखेगा? एक वकील होने के नाते शहर का अधिकतर मनुष्य उसको जानता था. सब उसको नाम से पहचानते थे; और जब से उसकी सगाई शहर के धनी-मानी सेठ की बेटी मगदला से हुई थी, तब से तो वह सारे शहर में ही मशहूर हो चुका था. परन्तु अब परिस्थिति विपरीत थी. अब उसको लोग देखेंगे तो महज़ उसका उपहास ही उड़ायेंगे. कल को वह अपना मुंह लोगों से छिपाए, उनके सामने वह इज्जत से खड़ा भी न हो सके, इधर-उधर वह छिपता फिरे, इससे तो बेहतर होगा कि, वह यह शहर और ज़मी ही छोड़ दे. छोडकर कहीं अन्यत्र एक ऐसे शहर में चला जाए जहां रहकर खुद उसकी परछाईं भी उसको न पहचान पाए. फिर अब ऐसी जगह रहकर वह करेगा भी क्या जहां पर उसके प्यार के समस्त अरमान सारे शहर के चप्पे-चप्पे में चिथड़ों की तरह बिखर चुके थे. क्यों रहे वह उस स्थान में और उस शहर में जहां पर उसका प्यार आग के शोलों में धूं-धूं करके ख़ाक हो चुका था?'


सो जब रोहन ने इस प्रकार से अपने लिए सोचा तो अपने सरकारी वकील की हैसियत से उसने अपना स्थानान्तण करवाया और एक दिन सबको ही अलविदा कहकर दूसरे किसी नये शहर में चला गया- यही विचार करते हुए कि, पुराना शहर तो मगदला का शहर था. इस शहर में रहते हुए उसने अपने प्यार के गीत गाये थे. सपने देखे थे. परन्तु जब सब कुछ उसका बे-रहमी से बरबाद कर दिया गया, उसका सारा कुछ छीन लिया गया तो अब उस शहर में रहने का अधिकार कम-से-कम उसको तो नहीं था.


नये शहर में आने के पश्चात उसने अपनी नौकरी और काम में मन लगाया. फिर समय बदला. दिन बीते. तारीखें बदलकर डेढ़ वर्ष हो गये. इन दिनों, अब तक वह बहुत कुछ भूल भी चुका था. उसके दिल के घाव हांलाकि, भरे तो नहीं थे, परन्तु मौसमी हवाओं ने काफी हद तक सुखा अवश्य ही दिए थे. वह मगदला को याद तो करता था परन्तु किसी भी पश्चाताप के चिन्ह उसके चेहरे पर उजागर नहीं होते थे. उसने यही सोचकर संतोष कर लिया था कि, उसके और मगदला के प्रीत से भरे मार्गों पर वे दोनों चले जा रहे थे, अचानक ही एक मोड़ आया और मगदला ने अपना मार्ग बदल लिया. मार्ग बदला, वह नई राह पर चली गई और बात खत्म हो गई.


और समय बीता और एक दिन रोहन की पदोन्नति हुई और वह बाकायदा फिर इस नये शहर के कोर्ट का न्यायाधीश बनकर यहाँ आ गया था. इस नये शहर में आये हुए रोहन को एक वर्ष से अधिक हो चुका था और उसको यही नहीं मालुम था कि, जिस लड़की के झूठे दिखाए हुए सपनों के कारण उसने उसका शहर तक छोड़ दिया था, वह तो न जाने कब से यहीं रह रही है?


एक दिन अचानक से मगदला रोहन को एक केमिस्ट की दुकान पर अचानक से मिल गई तो वह आश्चर्य किये बगैर नहीं रह सका. रोहन को यूँ अचानक से देख कर मगदला ने बड़े ही गर्मजोशी के साथ उसका मानो स्वागत किया. वह बड़ी ही प्रसन्नता के साथ उससे बोली,


'ओह ! रोहन तुम? व्हाट-ए-सरप्राइज?'


'?'- मगर रोहन ने मगदला की इस बात पर अपनी कोई भी नई प्रतिक्रिया नहीं ज़ाहिर की. उसने इसे बहुत ही सामान्य तौर पर लिया और केवल इतना ही कहा कि,


'मैं यहाँ पर अपनी कुछ दवाइयां लेने आया था.'


'दवाइयां ! वह तो मैं देख रही हूँ, लेकिन वह भी सरकारी जीप में?' मगदला ने पूछा तो वह बोला कि,


'ड्यूटी समाप्त करके आ रहा था. रास्ते में रुक गया था.'


तब मगदला ने उसे बताया कि,


'यहाँ मेरे पति जी का ट्रान्सफर हो गया तो हम लोग यहाँ चले आये हैं. यहाँ पर बच्चों की पढ़ाई, आदि के लिए अच्छे स्कूल भी हैं, हांलाकि, अभी मेरे पास कोई भी सन्तान तो नहीं है, पर भविष्य के लिए यह शहर अच्छा ही रहेगा.'


'?'- तब रोहन चुप हो गया.


बाद में मगदला ने उससे एक संशय से पूछा कि,


'और तुम ! मतलब तुम्हारी पत्नी, बच्चे ...सब कैसे हैं?'


तब रोहन उससे काफी देर में बोला कि,


'वह मैंने शादी नहीं की है.'


'?'- सुनकर मगदला का अचानक ही मुंह लटक गया. इस प्रकार कि, वह खुदको एक अपराधबोध की भावना से ग्रसित होकर कुछ भी कहे बगैर वहां से चली आई. इस प्रकार कि, जैसे उसका दिल टूट चुका हो और वह अपने किये हुए पर एक अपराधबोध की भावना से लज्जित हो रही हो?


इस प्रकार रोहन की मगदला से हुई इस मुलाक़ात के लगभग चार माह के करीब हो चुके थे, और तब से वह यही सोचे जा रहा था कि, क्यों वह मगदला से यूँ बार-बार मिल जाता है? हांलाकि, उसे स्वयं में मगदला से मिल कर कोई खुशी तो नहीं हुई थी, बल्कि, खुशी के स्थान पर उसका एक प्रकार से पिछले दिनों से समझाया हुआ दिल और खिन्न-सा हो गया था. सारा मूंड भी खराब हो चुका था. तब से वह यह नहीं समझ पाया था कि, जिस लड़की ने कभी उसे अपने प्यार के महकते हुए फूल सजाकर दिए थे, उनकी भावनाओं की तो वह ज़रा भी कद्र नहीं कर सकी थी? जिसने उसे बीच राह में लाके तन्हा और बेकार-सा छोड़ दिया था और जिसके कारण खुद रोहन ने उसका शहर तक छोड़ दिया था, वही उसको न चाहते हुए भी अक्सर वहीं मिल जाती है, जहां पर उसे कदापि नहीं होना चाहिए. ऐसी बे-वफा और बे-मुरब्बत लड़की से अब वह उम्मीद भी क्या कर सकता है? उसकी शादी हो चुकी, उसने अपना घर-संसार बसा लिया, उसे बेदर्दी से छोस दिया, नकार दिया, वह अपने रास्ते चली गई- बस बात खत्म हो गई. पर्दा गिर गया, नाटक समाप्त हो चुका है.


इसलिए उसने मन-ही-मन फिर से यह विचार कर लिया था कि, वह फिर एक बार इस शहर को भी छोड़ देगा. उसके यहाँ रहने से लाभ भी क्या कि, हर समय वह मगदला को न चाहते हुए भी याद करता रहे और बे-बजह ही अपने आपको सुलगाता रहे. निश्चय ही वह हमेशा के लिए छोड़ देगा वह नगरी जहां पर उसके प्यार की कोमल भावनाओं पर नमक छिड़कने वाली की परछाईं तक पड़ेगी- उसके कदमों की ज़रा भी आहट तक सुनाई देगी- वह नहीं रह सकेगा अब यहाँ पर. एक पल को भी.


रोहन का इस प्रकार से सोचना भी अगर देखा जाए तो बहुत ठीक ही था. वह लड़की जिसने उसके साफ़-सुथरे दिल में अपने प्यार के दीप जलाकर बुझा दिए थे- जिसने उसके साथ मंगनी करके भी अपनी बात और अपने वायदों का कोई भी मान-सम्मान नहीं रखा था- जिसने उसे प्यार की राहों में अपनी मुहब्बत के हसीन नज़ारे दिखाकर बीच रास्ते में ही अपना हाथ छुड़ाकर उसे अकेला छोड़ दिया था और जिस लड़की के शहर के चप्पे-चप्पे तक में उसकी मुहब्बतों पर गिरी हुई बे-वफाई की गाज उसे जीने तक नहीं दे रही थी; उसके शहर से वह पहले भी भाग आया था और अब फिर से वह यहाँ से ऐसे चला जाएगा कि, उसकी उपस्थिति की तनिक परछाईं तक न दिख सकेगी.


रोहन ने अपनी तरफ से अपनी मर्जी के अनुसार उपरोक्त प्रकार से अपना निर्णय ले लिया था और इस संबंध में वह अपना कार्य भी करने लगा था परन्तु, आज मगदला के द्वारा खुद अपने पति की हत्या की खबर सुनकर वह जैसे खड़े से ही नीचे भूमि पर गिर पड़ा था. उसने तो कभी सपने तक में नहीं सोचा था कि, वह मगदला जो एक दिन उसकी पत्नी बनने वाली थी, वह अपने पति की हत्या भी कर सकती है? वह एक खूनी और हत्यारिन भी हो सकती है? सोचते ही रोहन का समूचा शरीर ही किसी डाली पर लटके सूखे-लड़खड़ाते पत्ते के समान हिलने लगा.


रोहन के कुछेक दिन इसी उहापोह में व्यतीत हो गये. परन्तु वह इन दिनों अत्यधिक परेशान और चिंतित बना रहा. ना तो वह चैन से खा सका और ना ही एक पल को शान्ति से बैठ सका. हर समय वह अपने आप में परेशान और चिंतित ही बना रहा. चिंतित इसलिए कि, क्योंकि वह जानता था कि, यह हत्या का केस उसके ही शहर का था और इस बाबत इस केस का मुकद्दमा भी उसी की अदालत और कोर्ट में ही आयेगा. और जब आयेगा तो वह इस शहर का न्यायाधीश होने के नाते अपना फैसला क्या सच्चाई और निष्ठा से दे सकेगा? क्या वह सचमुच में न्याय कर सकेगा? आज तक उसने इस न्याय की कुर्सी पर बैठकर जितने भी मुकद्दमों का न्याय किया था वह सब-के-सब उसकी न्याय-पराकाष्ठा की परिधि में आते थे. कभी भी इस न्याय की कुर्सी पर बैठकर उसने किसी भी मुकद्दमें के लिए समझौता नहीं किया था. ना ही कभी भी अपनी आत्मा का सौदा किया था. जो दोषी था उसे दोषी जानकर सजा दिलवाई थी और जो निर्दोष था उसे बाकायदा इज्ज़त के साथ बरी भी किया था.


मगदला को स्थानीय पुलिस ने हिरासत में ले लिया था. मगदला ने भी अपने आरोप को तत्काल स्वीकार कर लिया था. मगर पुलिस का काम था, इसलिए उसे हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने फिर उसे एक सप्ताह के लिए अतिरिक्त पूछताछ के कारण अपनी रिमांड पर ले लिया था.


फिर जब समय आया और मगदला के द्वारा अपने पति के खून किये जाने का मुकद्दमा अदालत में आया तो मगदला को कोर्ट के कटघरे में एक खूनी की हैसियत से अपना सिर झुकाए हुए खड़े देखकर रोहन ना तो हंस ही सका और ना ही रो सका. उसे दुःख भी हुआ और घोर आश्चर्य भी. तब अदालत में वकीलों की जिरह और सवाल-जबाब के आदान-प्रदान के साथ जब मगदला ने अपना बयान दिया तो अदालत में बैठे हुए सभी लोग इस बात पर आश्चर्य कर रहे थे कि, उसने अपना आरोप स्वीकार किया था और कहा था कि, सचमुच उसने गोली मारकर अपने पति की हत्या की थी. मगर जब उससे हत्या का कारण पूछा गया तो उसने बताया कि,


'मेरा पति बहुत ही अच्छा था मगर वह अधिकाँश समय मुझ पर यह कहकर कटाक्ष किया करता था कि, मैं अभी तक अपने भूतपूर्व मंगेतर को याद करती रहती हूँ. जबकि, मेरे मन में ऐसी कोई भी बात नहीं थी. हां, मैं यह मानती हूँ कि, मेरी मंगनी मेरे प्रेमी से, मेरे पिता जी के सामने ही हो चुकी थी, मगर मेरी मां इस रिश्ते से नाराज़ थीं. मेरे पिता जी अगर जीवित होते तो मेरी शादी मेरे प्रेमी से हो भी जाती, लेकिन उनका देहांत मेरी शादी होने से पहले ही हो गया तो मां ने ये रिश्ता हरगिज़ नहीं होने दिया था. मेरी शादी के बाद मेरा पीटीआई जब देखो तब ही मुझ पर संदेह के अंदाज़ में, मुझ पर अपने मंगेतर को लेकर बात किया करता था और मेरे दिल को बेहद चोट पहुंचाता था. मैंने उसे इस बारे में बार-बार समझाने की कोशिश की और कहा था कि, इन बातों से अब कोई भी मतलब नहीं निकलता है. जो बात समाप्त हो चुकी है, वह समाप्त हो गई. मुझे अब यह सब सुनकर बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता है और ना ही मैं अब अपने भूतपूर्व प्रेमी और मंगेतर रोहन के बारे में कुछ भी सुनना नहीं चाहती हूँ. मगर मेरे द्वारा बहुत समझाने के बाद भी वह अपनी इस ओछी हरकत से नहीं माना. और तब एक दिन मैंने खिसियाकर, बहुत क्रोध में उस पर गोली चला दी. लेकिन जब वह मर गया तो मैं बाद में खूब रोई और अपने किये पर पछताई भी. मगर अब कुछ भी नहीं हो सकता था. जो होना था वह हो चुका था. इसलिए यह अदालत मुझको जो भी सज़ा देगी उसे मैं मंजूर करूंगी.'


यहीं पर तब अदालत समाप्त कर दी गई और इस केस का निर्णय अगली तारीख तक के लिए सुरक्षित रख लिया गया.


मगदला के मुकद्दमें के निर्णय के लिए कुछेक दिन और व्यतीत हो गये. इस मुकद्दमें के जानकारों और संबंधित लोगों में जहां एक प्रकार उत्साह और कौतुहूल था वहीं रोहन के दिल-दिमाग और दिल की तमाम भावनाओं में एक अजीब-सी हलचल मची हुई थी. वह कई रातों से चैन से सो भी नहीं पा रहा था. वह यह समझ नहीं पा रहा था कि, इस विशेष हत्या के उस केस में जिसमें उसकी भूतपूर्व होनेवाली पत्नी और प्रेमिका ही दोषी है- एक प्रकार से अप्रत्यक्ष रूप से वह स्वयं भी कहीं-न-कहीं अपराध के दायरे में आता है, वह अब क्या निर्णय दे और क्या नहीं दे? क्या वह मगदला को दोषी करार देकर आजीवन कारावास की सज़ा सुना सकेगा? क्या वह उसको जेल के सींखचों के पीछे बंद करवा सकेगा? क्या वहब स्वयं को भी इस हत्या के केस से अलग कर सकेगा? सोचने ही मात्र से रोहन के सारे शरीर में मानो नागफनी के कांटे छिदने लगे. उसे लगा कि, जैसे किसी ने उसे ही मौत की सज़ा सुनाकर उसे जीने की चेतावनी दे रखी है?


सो, रोहन अदालत से घर आकर इसी प्रकार से सोचे जा रहा था. सोचता था और खुद को तमाम तरह के प्रश्नों के दरिया में डूबने-मरने के लिए छोड़ देता था. तब काफी रात तक अपने आपको परेशान करने और एक प्रकार से खुद को अपराधबोध की भावना में जकड़ लेने के बाद उसने निश्चय किया कि, क्यों न वह यहाँ से चला जाए और हमेशा के लिए उस नगरी से कहीं बहुत दूर चला जाए जहां पर उसको प्यार करनेवाली ने अपनी ही तरह से बार-बार लूटा था. वह नगरी जहां के चप्पे-चप्पे में उसके प्रति वे-बफाई के अफ़साने लिखे नज़र आते थे. वह जगह, वे गली-कूंचे कि, जिनकी हरेक गलियों तक में उसको संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा था. वह हवाएं, वह आसमान कि जिनके खुले वातावरण में उड़ने वाले स्वछंद परिंदे तक उसके फूटे नसीब की बातें करने लगे थे? वह जान और समझ गया था कि, उसके ये प्यार की नगरी, अब उसके लिए किसी भी काम की नहीं रही है.


तब रोहन ने अपना सामान पैक किया और अपनी नौकरी से अपना इस्तीफा लिखा और दूसरे दिन की सुबह की पहली फ्लाइट से ही उसने इस नगरी को सदा के लिए छोड़ दिया. यही सोचकर कि, जिस स्थान में उसके प्यार की बातें हरेक रात के सन्नाटों में तड़प-तड़प कर उसके मजाक और उपहास का कारण बन चुकी हों, वहाँ वह अब रह कर करेगा भी क्या? ये प्यार की छली दुनियां और इसके मंजनू के किस्से, जिनके हैं, उन्हें मुबारक हों.


समाप्त.