भयानक यात्रा - 31 - गुस्से मे जगपति । नंदी द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

भयानक यात्रा - 31 - गुस्से मे जगपति ।

पिछले भाग में हमने ये देखा की .....
हितेश के कहने पर जगपति सबको लेकर खोली में चला जाता है तभी अंदर से जगपति बाहर बैठे जानवर की तरफ नजर दौडाता है , वो उनको देखकर चौंक जाता है । वो हितेश से कहता है की ये जंगली शिकारी कुत्ते है , और वो खूब अक्रामक होते है । कुत्तों के फिर से हमला करने के बाद जगपति के पिता जी सबको कुत्तों की खासियत से अवगत करवाते है , और उनको भगाने के लिए उपाय करने को बोलते है । तभी जगपति के मन में विचार आता है और वो अपना उपाय सबको बताता है । दो दो के ग्रुप में बंट जाने के बाद कुत्तों को पीछे की तरफ से जगपति और हितेश हमला करते है ।जहां वो कुत्ते अंधेरे की तरफ चले जाते है लेकिन कुछ देर बाद एक कुत्ता फिर से जगपति और हितेश पे हमला करने वाला होता है और विवान उसको मार कर गिरा देता है और वो कुत्ता लड़खड़ाते चला जाता है । ये देख विवान को खुद पे भरोसा नहीं होता और तभी हितेश उसको आभार व्यक्त करता है । उसके बाद हितेश ,जगपति के पूछने पर गगनचर के बारे में उसको बताता है की वो चिल थे । तब जगपति उसको कहता है की ऐसा कभी हुआ नही है जहां चिल एक साथ हमला करे ।

अब आगे ....
*******************************
हितेश की बात सुनकर जगपति हितेश को कहता है की – हमे गगनचर के बारे में जानकारी चाहिए तो पेड़ों के बीच हुए वो रहस्य को देखना पड़ेगा जहां इतने सारे चिल एक साथ आ हमला कर बैठे थे ।

ये सुनकर हितेश जगपति से कहता है – चाचा , लेकिन वो गगनचर चिल ही थे , ये पुष्टि हो चुकी है तो अब वहां जाने का कोई फायदा नहीं है ।
लेकिन जगपति के मन में शंका का कीड़ा घुस चुका था , उसको कुछ अलग सा होने की संभावना दिख रही थी । वो हितेश की बातों के साथ सहमत नही हो रहा था । उसने कभी भी इतने चिल को एक साथ ऐसे हमला करते नही देखा था ना ही ऐसे जीवों का रक्तपात ।

नींद न लेने की वजह से सबकी आंखे लाल हुई जा रही थी , और थोड़ी थोड़ी देर में सबके मुंह पे उबासी दिख रही थी ।
ये देख कर सुशीला जल्दी से रसोई में चली जाती है और थोड़ी देर के बाद गरमा गरम चाय बनाकर सबके लिए ले आती है । कुछ देर तक चाय पीने के बाद सब अपने शरीर में ताजगी जैसा अनुभव करते है ।

कुछ देर तक अपना समय यहां वहां निकाल कर जगपति हितेश को कहता है – भाई साहब , क्या आप मुझे वहां ले जा सकते हो जहां आप कल रात गए थे ?
ये सुनकर हितेश जवाब देता है – अवश्य चाचा , लेकिन आपको कौनसा अंदेशा सताए जा रहा है , जिसके कारण आप व्याकुल हो रहे हो ?

जगपति ने थोड़ी देर चुप रहकर फिर खुद को संयत करते हुए बोला – मुझे लग रहा है , ये चिल का हमला किसी की गलती की वजह से हुआ है , जिसका कहीं न कही ताल्लुक इंसान के साथ जुड़ा हुआ है ।

ये बात सुनकर हितेश जगपति से कहता है – ये बात आप इतने यकीन के साथ कैसे कह सकते हो आप ?

क्यू की पहले गांव में कोई हरकत होने का कारण कोई गांव का ही इंसान होता था , और यहां तो बात ही ऐसी है । चिल कभी भी ऐसे झुंड बनाकर हमला नही करती है , और वो भी इतने भयानक तरीके से !
गांव रहस्यमय चीजों से भरा हुआ है , लेकिन कुछ भी गलत चीज तब ही होती है जब गांव का कोई इंसान उस चीजों को छेड़ने की कोशिश करता है ।

हितेश जगपति की बात सुनकर समझ गया था की , जगपति की बात और उसका विश्वास कुछ रहस्य को उजागर करने वाला था ।
उसने तुरंत ही जगपति को बोला – फिर तो हमे जल्दी से वहां पहुंच जाना चाहिए ।

इतना बोलने के बाद हितेश और जगपति जल्दी से तैयार हो जाते है , और तभी विवान भी साथ में आने की जिद करता है ।
लेकिन हितेश उसको कहता है – जबतक सतीश को होश नही आ जाता तब तक हम लड़कियों को अकेला नहीं छोड़ सकते । इसीलिए तुम अभी यही पर हमारा इंतजार करो ।
ये सुनकर विवान का उत्साह अचानक से खतम हो जाता है । उसका मुंह ऐसे उतरा हुआ देखकर हितेश उसको साथ में लेने के लिए तैयार हो जाता है ।
वहां पर चिंता के साथ वो लोग गाड़ी में बैठ जाते है , और घने पेड़ों की तरफ रवाना हो जाते है ।
थोड़ी दूर चलने के बाद सबको मरे हुए जानवरों के शव दिखते है , वहां पर छोटे मोटे जानवर को ऐसे क्रूरता से मारा गया था की कोई देख के भी डर जाए ।
रात के समय में हितेश को ज्यादा कुछ दिखा नहीं , लेकिन अब उसकी नजर सब जानवरों के ऊपर जाती है तब उसको पता चलता है को किसी भी जीव की आंखे तो थी ही नहीं , सबकी आंखों को निकाल लिया गया था ।
तभी जगपति के मन में सवाल आता है की एक साथ इतने सारे जानवर इकठ्ठा कैसे हुए थे ?
उसी समय पेड़ों के थोड़े दूर से किसी के बातें करने की आवाज आती है , ये सुनकर जगपति अपने कदम सम्हाल कर उसी तरफ बढ़ा देता है । और पीछे पीछे हितेश और विवान भी चल देते है ।

पेड़ों के पीछे रहे लोगों की बाते उनको साफ नही सुनाई दे रही थी , लेकिन हल्की आवाज से पता चल रहा था की वो लोग कहीं न कहीं अपने कुछ दफनाने की बात कर रहे थे ।

तभी पेड़ के ऊपर से एक सर्प विवान की गर्दन पे सरकता है , विवान ये देखकर जैसे ही चिल्लाने वाला था , तभी हितेश ने उसके मुंह पे अपना हाथ रख दिया । जब हितेश उसका मुंह बंद करने जा रहा था तब उसका संतुलन बना नही और हितेश नीचे की तरफ जमीन पे गिर गया ।
जब हितेश के गिरने की आवाज उन लोगों ने सुनी तो वहां से वो लोग घोड़े की रफ्तार से वहां से गायब हो गए ।
जगपति ने जल्दी से हितेश को खड़ा किया और अपना सिर पीट लिया । फिर वहां विवान के ऊपर के सर्प की तरफ इशारा करके बोला – ये बिन जहरिला सर्प है , इसके काटने से भी कुछ नहीं होता , हमारी थोड़ी सी गलती के कारण वो लोग भाग गए ।
अब हमे पता नही चलेगा की इसके पीछे कौन था ।

तभी जगपति वहां जाता है जहां से वो लोग भागे थे , वहां जाकर देखता है तो उसकी आंखे बड़ी हो जाती है और वो गुस्से से भर जाता है ।
उसके साथ हितेश और विवान भी वहां का नजारा देखकर चौंक जाते है , लेकिन उनको कुछ समझ नही आता है ।
वहां पर चार इंसानी खोपड़ी के साथ हाथी के दांत पड़े हुए थे । जो चार दिशा में चौकड़ी बनाकर रखे हुए थे ।
उसके ऊपर ताजे खून के निशान थे और किसी के जले हुए पंख भी वहां मौजूद थे । कई सारे मेंढकों को एक साथ बांध कर माला बनाई गई थी । चार तरफ गड्ढा बनाकर उसमे मांस के लोचे डाले गए थे । और छोटी छोटी रस्सियों से लकड़ी को बांध कर उस में पंछियों की आंखो को लटकाया गया था ।
ज़मीन पे एक बड़ा सा गोला बनाकर उसमे मोमबत्ती को रखा गया था , और ये एक तांत्रिक का बंधन था ।

जगपति का मुंह और आंखे ये देखकर लाल हो चुकी थी , जैसे उसका गुस्सा अभी ही फुट पड़ेगा । उसने अपने हाथों की मुट्ठी को कसकर बंद करके रखा था । और वो अभी जोर की फुंकार के साथ सांस ले रहा था । गुस्से में वो अभी कांप रहा था और वो अपने दांतो को पीस रहा था ।

हितेश पहली बार जगपति को ऐसे गुस्से में देख रहा था , जगपति का गुस्सा देखकर हितेश को उसको कुछ पूछने का साहस नहीं हो पा रहा था । हितेश और विवान बस चुप से जगपति के सामने देखकर खड़े रह गए थे ।
विवान ने हितेश से कहा – हितेश , ऐसा तो क्या हो गया है जिसके कारण जगपति चाचा इतने गुस्से में दिख रहे है ?
हितेश ने कहा – पता नही , लेकिन जो हुआ है शायद बहुत बुरा हुआ है जिसके कारण जगपति चाचा का गुस्सा सातमे आसमान पे है ।

तभी जगपति ज़मीन पे बैठ गया और वहां का बंधन छोड़ने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया उसको हितेश ने रोक लिया । ये देखकर जगपति हितेश को देखने लग गया , जगपति की लाल आंखे देखकर हितेश ने तुरंत ही अपने हाथ पीछे की तरफ कर लिए और वहां से हट गया ।

जगपति ने फिर वहां लगे धागों को अपने हाथो से तोड़ना चालू किया और मन में कुछ बड़बड़ाने लगा ।
फिर उसने वहां पर फैले बंधन को धीरे धीरे खोलना चालू किया । चारों तरफ पड़ी खोपड़ी को एक एक करके उठाया और उसको एक साफ जगह पर रख दिया । उसके बात हाथी के दांत को और मेढक माला को अपने पैरों के बाजू में रख दिया । फिर वहां पड़े जल को उठाया और कुछ बोलने लगा फिर वो जल उसने सब जगह पर उसको छिड़क दिया । ये देखकर हितेश और विवान तो जैसे चौंक ही गए थे ।
फिर जगपति ने विवान और हितेश को इशारा किया की जितने शव पड़े है उनको एकत्रित करलो । दोनो ने जल्दी से शवों को एकत्रित करके वहां पर रख दिया ।
उसके बाद जगपति ने लकड़ियों को हितेश और विवान की मदद से जुटाया और वहां शवों के ऊपर डाल दिया ।
फिर वो अपनी गाड़ी से घासलेट लेकर आया और उसने वहां लकड़ियों पे घासलेट डाल के उसको जला दिया ।

जैसे ही उसने शवों को जलाया , वहां का हवामान बदल ने लग गया । कुछ देर में वहां भारीपन महेसुस होने लगा और उनके सिर में दर्द होने लगा । तभी जगपति ने वहां लटकाए रखी जानवरों की आंखो को शवों के ऊपर रख दिया ।

अभितक जगपति के मुंह से एक भी लफ्ज़ नही निकल रहा था , जैसे वो मन में कुछ गुनगुना रहा था वैसा आभास हितेश को हो रहा था । वहां भारीपन अब बढ़ता ही जा रहा था , तभी आसपास पेड़ों पे बैठे हुए पक्षियों की चहकने की आवाज आने लगी , वो सब ने एक साथ बोलना चालू कर दिया । ये देखकर जगपति ऊपर की तरफ देखने लगा और जगपति एक अफसोस के साथ उन की आवाज को सुन ने लगा ।

हितेश और विवान अब भारी दुविधा में पड़ गए थे , ना वो खुद कुछ बोल पा रहे थे ना ही जगपति उनको कुछ बता रहा था ।
वहां पर बैठे हुए पक्षियों ने अचानक से एक साथ उड़ान भरी और आसमान में जाकर एक ही जगह पर स्थिर हो गए । कुछ देर वही पे पंख हिलाने के बाद वो फिर से चहकने लगे और एक चक्कर जगपति के ऊपर से लगाकर वहां से चले गए ।

उनके जाने के बाद वहां का माहोल अब धीरे धीरे हल्का होने लगा , वहां पर जैसे किसी देवीय शक्ति हो ऐसा आभास होने लगा । वहां के पेड़ पौधों में अब जान सी आ गई थी जैसे वो हवा की लहरों में नाच रहे थे ।
हितेश और विवान ये बदलाव महेसुस कर ही रहे थे तभी हितेश की नजर जगपति के ऊपर गिरती है ।
जगपति वहां पर बेहोश हो चुका होता है और हितेश को जगपति जमीन पे पड़ा हुआ दिखता है ।

ये देखकर हितेश जल्दी से जगपति के पास पहुंच जाता है । वो जगपति के चेहरे पे अपने हाथो को मसलता है और वहां पड़ा हुआ जल उसके चेहरे पे छिड़कता है । थोड़ी देर बाद जगपति होश में आ जाता है ।
लेकिन अभी जगपति के आंखो में एकदम शांति और सरलता दिख रही थी ।
ये देखकर हितेश और ज्यादा आश्चर्य में पड़ जाता है ।
अभी कुछ देर पहले जगपति का रूप कुछ अलग था और अभी कुछ अलग ।

जगपति अचानक से इतना गुस्सा कैसे हो गया था ? क्या था वहां जिसके कारण जगपति खुद को काबू में नहीं रख पाया था ? क्या जगपति कुछ छुपा रहा है सबसे ?
जान ने के लिए पढ़ते रहिए हमारी कहानी भयानक यात्रा ।