पिछले भाग में हमने देखा की चरणसिंह और विद्यासिंह प्रेमसिंह को ले के क्वाटर्स की तरफ गाड़ी में जाते है , बीच में खाना खाने रुकते है वहां चरणसिंह कुछ बातें प्रेमसिंह से करता है । उसके बाद खाना खाने के बाद सब लोग पुलिस क्वाटर्स की तरफ निकल जाते है , विद्यासिंह सब के सोने की व्यवस्था एक हॉल में करता है । वहां थोड़ी देर बाद प्रेमसिंह को नींद न आने की वजह से वो सीढ़िया चढ़ के हॉल की छत पे चला जाता है । वहां वो अपने बच्चे और पत्नी को याद करता है और थोड़ी देर बाद छत की फर्श पे ही सो जाता है .......
अब आगे ..
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रात को प्रेमसिंह हॉल की छत पे जाके फर्श पे ही सो जाता है । रात का समय जैसे धीरे धीरे बीतता जा रहा है और वहां आसपास ठंड की वजह से कुत्ते भौंकने लग जाते है । कुत्तों की फौज ने जैसे ठान लिया हो की किसी को सोने नहीं देंगे बस वैसे ही वो लगातार भोंके जा रहे थे ।
कुत्तों की ये आवाज से विद्यासिंह की नींद खुल जाती है , लेकिन चरणसिंह भरी नींद में सोया रहता है ।
बाहर कुत्तों को भगाने के लिए विद्यासिंह उठके बाहर चला जाता है , हाथ में डंडा लिए वो कुत्तों को भगा ही रहा होता है तब उसको कोई साया अंधेरे में दिखता है ।
पहले तो कोई इंसान की परछाई जैसा लगने के कारण वो उसके पीछे जाता है , लेकिन कुछ देर बाद वो साया अचानक से कहीं गायब हो जाता है और थोड़ी देर में ही वो कुत्तों का भौंकना भी बंध हो जाता है । ये सब देखने के बाद विद्यासिंह का शरीर कपकपाने लगता है , उसको ये समझ नही आया की उसने जिसको देखा वो कौन था ।
विद्यासिंह ऐसी बाते को नही मानता था की कोई भूत या आत्मा होती है । विद्यासिंह एक खड़तल शरीर का आदमी था जो हर किसी से भिड़ जाता था , उसने कभी अपने मन पे किसी को नियंत्रण नही करने दिया था । लेकिन आज वो अंदर से डर गया था ।
उसने हिम्मत कर के अंधेरे की तरफ आवाज लगाई – क. क. क कौन है वहां ?
लेकिन वहां से किसी की आवाज नही आई , जहां वो साया गायब हो गया था वो जगह एकदम सुनसान थी और वहां आसपास में कोई मकान या छिपने की जगह भी नहीं थी । तो वो साया गया कहां पर ? इतने सालों से विद्यासिंह क्वाटर्स में ही रह रहा था , और ये हॉल क्वाटर्स के कोने पे ही तो था फिर उसने कभी रात को ये साया कभी क्यू नही देखा ? ये सोचते उसको थोड़ा सा डर भी लग रहा था , उसको पहली बार कहीं डर का अहसास हुआ था ।
वो दुबकते कदम से हॉल की तरफ चलने लगता है , जैसे उसके पीछे कोई आ रहा हो । वो बार बार पीछे की तरफ देखता फिर दो कदम चलता ऐसे करते करते वो हॉल के पास आ गया । हॉल के अंदर जाने से पहले उसने दाए और बाए दोनो तरफ एक बार नजर घुमाके देख लिया लेकिन कोई नजर नही आया , तब हॉल के अंदर चले जाने के बाद सीधा ही अपने खाट पे जाके कंबल ओढ़ कर उसमे छुप के डर के मारे आंखे बंध कर लेता है ।
उसके साथ में सोए चरणसिंह के खर्राटे भी उसको डरावनी आवाज जैसे लग रहे थे । डर के कारण उसको ये भी पता नही चलता है की प्रेमसिंह उसके खाट में नही है ।
रात के समय ३:३० को ये हादसा हुआ था , तब से लेके सुबह के ५ बज गए लेकिन विद्यासिंह सोच सोच के परेशान होते जा रहा था । वो सुबह होने की प्रतीक्षा कर रहा था , और कुछ देर बाद उसको नींद आ जाती है ।
ओए विद्यासिंह उठ ! कोई उसको उठा रहा था और उसकी आंखे सामने वाले को सही तरीके से देख भी नहीं पा रहा था , थोड़ी देर बाद आंखे खुली तब उसके सामने चरणसिंह खड़ा था । वो कुछ बोल रहा था लेकिन विद्यासिंह अभी भी नींद में था , पूरी रात नींद न आने की वजह से उसकी आंखे अभी भी खुल नही रही थी ।
तब चरणसिंह ने एक जोरदार से धक्का लगा के विद्यासिंह को खाट से उठाया , तब विद्यासिंह डर जाता है । उसको रात का पूरा घटनाक्रम अचानक से याद आ जाता है ।
वो कुछ बोलने जाता है उससे पहले चरणसिंह उसको चिल्ला के बोलता है – प्रेमसिंह अपने खाट में नही है विद्यासिंह !!
ये सुन के विद्यासिंह चिल्ला के बोलता है – क्या ???? प्रेमसिंह अपने खाट में नही है ? और वो फिर प्रेमसिंह के खाट की तरफ देखता है , उसका खाट खाली पड़ा था और खाली खाट को देखके प्रेमसिंह की चिंता चरणसिंह और विद्यासिंह के मुंह पे साफ साफ दिखी जा सकती थी ।
कब से नहीं हैं? – विद्यासिंह ने पूछा ।
मैं १० मिनट से उठा हूं , और तुझको उठा ने की कोशिश कर रहा हूं , तब से मैने उसको नही देखा ।
दोनो तुरंत उठके हॉल के बाहर की तरफ दौड़ के जाते है । हॉल के आसपास दोनो प्रेमसिंह को ढूंढने लगते है लेकिन वो कहीं नहीं मिलता है । उनको लगता है की शायद प्रेमसिंह उठके स्नान या शौच क्रिया करने गया होगा या ।
लेकिन उसको सब जगह ढूंढने के बाद भी उनको प्रेमसिंह का कोई पता नही मिलता । तब वो जोरावर को फोन लगा के बुला लेते है , जोरावर गाड़ी लेके हॉल पे आ जाता है ।
जोरावर भी प्रेमसिंह को ढूंढने में दोनो की मदद करता है , जोरावर उसको ढूंढते ढूंढते हॉल में आ जाता है और प्रेमसिंह के खाट पे जा के बैठ जाता है । वो कुछ सोच ही रहा होता है तभी एक कपड़ा हवा की वजह से सीढ़ियों से नीचे की तरफ गिरता दिखता है । वो कपड़ा प्रेमसिंह का गमछा होता है , जो रात को हवा की वजह से प्रेमसिंह के गले से निकल कर सीढ़ियों पे फंस गया होता है ।
तभी जोरावर जोर से चिल्लाता है – ये गमछा तो प्रेमसिंह का है !!!
उसकी आवाज सुन के विद्यासिंह और चरणसिंह दोनो एक साथ हॉल में आ जाते है , जोरावरसिंह सीढ़ियों से गिरे हुए गमछे की तरफ इशारा कर रहा होता है । दोनो सीढ़ियों के पास जाके गमछे को उठाते है और सीढ़ियों से ऊपर की तरफ देखते है ।
इतनी जल्दी जल्दी में वो लोग ये भूल गए थे की हॉल की सीढ़िया भी है । तीनों सीढ़िया चढ़ कर ऊपर चले गए और वहां का नजारा देख के चौंक गए । वहां प्रेमसिंह अभी भी सोया हुआ था , और उसके आसपास ५ काली बिल्लियों के शव खून से लतपथ प्रेमसिंह के इर्दगिर्द पड़े हुए थे । बिल्लियों का खून चारो तरफ से प्रेमसिंह के कपड़ों को लाल कर रहा था , परंतु प्रेमसिंह की नींद जैसे कुंभकरण की नींद थी ।
वहां का नजारा देख के तीनों लोग एक दूसरे के नजदीक खड़े हो गए , और सोचने लगे की प्रेमसिंह को कैसे उठाए । फिर मन को शांत करते हुए चरणसिंह ने प्रेमसिंह को आवाज लगाई – प्रेमसिंह उठो ! अरे ओ प्रेमसिंह ! भाई उठ जाओ । ( उसकी आवाज थोड़ी कर्कश हो गई थी )
चरणसिंह की भारी आवाज को सुन के आसपास का माहोल थोड़ा सा गंभीर हो गया , प्रेमसिंह भी उसकी आवाज सुनके नींद से जग गया । उठते ही उसने महेसुस करा की उसके कपड़े गीले हो गए है ,तब उसने आसपास देखा और जैसे ही उसकी नजर बिल्लियों के शवों पे पड़ी वो हक्काबक्का सा रह गया । उसका गला सूख सा गया , वो बोलना चाह रहा था लेकिन गले से आवाज नही निकल रही थी और उसकी गर्दन भी शवों की तरफ टिकी हुई थी , ऐसा लग रहा था की किसी ने उसकी गर्दन को पकड़ के रखा हो । प्रेमसिंह अपनी जगह से उठना चाह रहा था लेकिन वो फर्श पे जैसे चिपक सा गया था , उसने एक गहरी सी सांस ली और वहां से उठने की कोशिश करने लगा । वो देखके जोरावरसिंह उसको उठाने उसके पास आया और सहारा दे के उसको वहां से उठाया ।
रात का मंजर जो था वो विद्यासिंह के लिए तो डरावना था ही लेकिन अभी जो हुआ था वो उन सब लोगो के लिए ज्यादा डरावना था । विद्यासिंह अब ये सोच रहा था की क्या प्रेमसिंह के पास पड़े शव को वही साये ने मार के प्रेमसिंह के पास फेंका था ?
दूसरी तरफ चरणसिंह ये सोच रहा था की एक साथ ५ बिल्लियां प्रेमसिंह के पास किसने मार के फेंकी होगी ?
बिल्लियों का खून भी ताजा था मतलब उन सबको लगभग एक या दो घंटे के अंदर मारकर यहां फेंका गया था ।
एक रात में इतना सबकुछ बन चुका था जो सबके लिए अनपेक्षित था । जहां इतने समय से चरणसिंह और विद्यासिंह अपने परिवार के साथ सालों से क्वाटर्स में रेह रहे थे लेकिन ऐसे हादसे उन्होंने कभी नही देखे थे ।
ये हॉल के आसपास लोग दिन में रहते जरूर थे लेकिन हॉल क्वाटर्स से २०० मीटर की दूरी पर था और वहां बिजली नही थी इसीलिए अंधेरे के कारण कोई यहां आता नही था ।
एक बनाते १३ टूट रहे , ऐसी स्थिति इन सबके साथ हो रही थी और रमनसिंह तो ये सब बातों से अभी अनभिज्ञ ही था ।
आगे क्या होगा ? क्या ये हॉल में कोई साया रहता है ? विद्यासिंह ने जो साया देखा वो कोई इंसान का साया था ? विद्यासिंह रात में हुए मंजर में बारे मे सबको बताएगा या नहीं ? प्रेमसिंह के पास पड़े शवों को किसने फेंका था ?
जान ने के लिए पढ़ते रहिए हमारी कहानी भयानक यात्रा !