भयानक यात्रा - 6 - महाकाली मंदिर । नंदी द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भयानक यात्रा - 6 - महाकाली मंदिर ।

अब तक आपने पढ़ा कि महल में चरणसिंह और विद्यासिंह को एक बाद थैला मिलता है । उस थैले को देख कर लग रहा था उसमे किसी की लाश है । उसमे लाश तो होती है मगर इंसान की नही यह एक तिब्बतन मस्टिफ जो एक डॉग है कि लाशें मिलती है । रमनसिंह गोखले को प्रेमसिंह को लेकर किल्ले पर आने को कहता है और उसकी जोरु को अच्छे अस्पताल में भर्ती करने को कहता है । गोखले अपने साथी इंस्पेक्टर शेखावत को प्रेमसिंह की जोरु को गोएंका हॉस्पिटल में भर्ती करवाने का कहकर प्रेमसिंह को लेकर किल्ले पर आता है ।

अब आगे ,,
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रमनसिंह ने गोखले को कहकर प्रेमसिंह को किल्ले पे बुला लिया था । कुछ बात थी जो रमनसिंह को खटक रही थी , जो वो प्रेमसिंह से करना चाहता था परंतु उसकी हालत अभी ऐसी नही थी की सही तरीके से सवालों के जवाब रमनसिंह को दे पाए।
ठंड का मौसम था की जो बदन को एक तरफ से जैसे फर्क की तरह ठंडा करता जा रहा था और दूसरी तरफ जो रमणसिंह को माहोल आग की तरह गरम करता जा रहा था।
एक हाथ में चाय और दूसरे हाथ में गरम गरम भजिये ,
कई सारे विचार जो रमनसिंह को कुछ जो हुआ है वो अच्छा न होने का आभास दिला रहा था । विद्यासिंह ने अचानक से रमनसिंह को आवाज लगाई।

क्या हुआ विद्यासिंह ? –रमनसिंह ने बोला।
साब, ये जो कुत्तों के शव मिले है ,उसमे चमड़ी के अलावा उनमें कुछ इंजेक्शन के निशान भी प्राप्त हुए है,जिससे कुत्तों में से कुछ ऐसी चीज निकाली गई है जिसका अभितक पता नही चला है।

रमनसिंह ने बोला– कितना समय लग सकता है इस सब के लिए? कुत्तों को कौन लाया और क्यू लाया उससे पहले इनकी बॉडी में से क्या निकाला गया वो ढूंढना आवश्यक है । अब इनकी जांच से कब तक पता चलेगा की क्या गायब हुआ है इनके बॉडी में से?

विद्यासिंह – हां साब, हमने फोरेंसिक वालो से बात करी है, उनका केहना है की लगभग २० दिन से २५ दिन तक इनका रिपोर्ट बना के से सकते है।

रमनसिंह – ओह्ह्ह ! इतना समय लगेगा उससे पहले हमे कुछ जांच करनी जरूरी है रमनसिंह ने अपने हाथ को दूसरे हाथ पे मसलते हुए कहा।

उसी समय पे एक पुरानी जिप्सी उनकी तरफ आते हुए दिखी, रमनसिंह जिप्सी देखके थोड़ा व्याकुल नजर आने लग गया। वो अपनी जगह पर खड़ा हुआ और अपने कदम वो जिप्सी की तरफ बढ़ा दिए।
किचूड़– किचूड़ की आवाज के साथ वो जिप्सी रमनसिंह के पैरो के एकदम नजदीक खड़ी हुए । उसमे से एक दरवाजे से गोखले और दूसरे दरवाजे से प्रेमसिंह उतरा। प्रेमसिंह के पैर उसका साथ अभी भी नही दे रहे थे, तो रमनसिंह ने उसका हाथ पकड़ कर उसको सम्हाला।
रमनसिंह ने प्रेमसिंह को पास में रखे टेबल पे बिठाया और उसको विद्यासिंह ने आ के पानी पिलाया।

एक तरफ विद्यासिंह, चरणसिंह , रमनसिंह खड़े थे और दूसरी तरफ प्रेमसिंह टेबल पे दोनो हाथों को रखे जैसे बेजान सा बैठा था । न कुछ रमनसिंह बोल रहा था ना कुछ प्रेमसिंह , प्रेमसिंह की आंखे ज़मीन पे जुकी हुई थी और सबकी आंखे प्रेमसिंह पे । थोड़ी सी देर के बाद मौन तोड़ते हुए रमनसिंह ने प्रेमसिंह को बोला – क्या सोच रहे हो प्रेमसिंह ?
रमनसिंह की आवाज जैसे प्रेमसिंह के कानो में पड़ी ही नही ,वो बस एक नजर से ज़मीन पे घूरे जा रहा था ।
मायूस सा चेहरा और लकड़ी के मुरझाए हुए तन सा प्रेमसिंह का बदन देखकर सबको अंदर ही अंदर दुख का एहसास हो रहा था ।

फिर से चरणसिंह ने प्रेमसिंह को आवाज लगाई लेकिन प्रेमसिंह जैसे कोई और ही दुनिया में खोया था,तब चरणसिंह ने जाके प्रेमसिंह के कंधे पे हाथ रखकर उसको सजाग करते हुए सहज भाव से पूछा – क्या सोच रहे हो प्रेमसिंह?

प्रेमसिंह ने उदास स्वर में कहा – साब .......(कुछ देर रुकने के बाद) अब आप ही बताओ सोचने जैसा बचा क्या है ? किसके लिए सोचूं ?
क्या सोचूं ? साब, सोचता कुछ भी नही बस दिमाग सुन्न सा हो गया है । कुछ समझ ही नही आ रहा मुझे साब, क्या पाप किए होंगे मैंने जो अभी में एक साथ मेरे परिवार को ऐसे तबाह होते हुए देख रहा हूं। गरीब आदमी हूं साब किसी का कभी एक भी गलत पैसा नही लिए । कोनसे पाप कर्म भुगत रहा हूं? और उसकी ये आवाज बोलते बोलते एक दर्दनाक कंपन करती रोने में परिवर्तित हो गई।
प्रेमसिंह की बाते में इतना दर्द था की आसपास खड़े लोगो के दिल में अचानक से एक दर्द सा उठने लगा।

फिर से आसपास लगे लोगो में सन्नाटा छा गया । प्रेमसिंह की नजर सबसे कुछ पूछ रही थी और सबकी नजर प्रेमसिंह के सामने लाचारी से देख रही थी।
कुछ समय शांत रहने के बाद प्रेमसिंह खुद को सम्हाल ने की कोशिश करने लगा।

प्रेमसिंह – साब, आपने हमे यहां अचानक बुलाया है, कुछ बात है क्या?
रमनसिंह ने बोला – हां प्रेमसिंह, जो थैला मिला था हमे उसमे से कुत्तों की लाशे मिली थी हमे , जहां ये कुत्ते हमारे भारत देश के नहीं है । वो तिब्बत के मस्टीफ कुत्ते है।
ऊपर से ये कुत्ते खूब महंगे होते है, माना जाता है की उनका खून शेर की तरह होता है, ये आक्रामक प्रकृति के कुत्ते होते है । ये नस्ल हमारे भारत में लाना और यहां ऐसे मारना हमे हजम नही हो रहा है । एक ही सांस में रमनसिंह ने बोला जैसे रमनसिंह को अब सुराग़ का पता करने की जल्दी थी।

प्रेमसिंह ने बोला – साब, कुत्ते तो कुत्ते होते है ना? और बात ये है की यहां हजारों लोग आते है रोज , पूरा दिन कितने लोग किल्ले में कुत्तों के साथ आते होंगे !

रमनसिंह ने बोला – हां प्रेमसिंह तुम्हारी बात तो सही है, लेकिन ये कुत्ते महंगे भी बहुत है और इसको पालने वाले कोई अमीर ही होगा ना ?

तुम्हारे चाय की टपरी पे भी ऐसे अमीर लोग अक्सर चाय पीने तो आते ही होंगे?

प्रेमसिंह ने बोला – हां साब, कुछ लोग आते है चाय पीने के लिए , कुछ लोग यहां रुकना पसंद नहीं करते ।
और जो रुकते है चाय पीने वो चाय पी के चले जाते है , हम गरीब से कौन बात करेगा साब।
रमनसिंह से बात करते करते फिर प्रेमसिंह उदास हो गया था।

यही सब बातों को लेकर शाम हो गई थी, तो रमणसिंह ने गोखले को छानबीन कर रही अपनी पुलिस टीम को वापिस किल्ले के बाहर बुलाने का आदेश दिया, एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह गोखले ने भी बात को समझ कर किल्ले की अंदर चला गया।
थोड़ी ही देर के बाद गोखले सबको लेके किल्ले के बाहर आ चुका था।
रमनसिंह ने तब तक कुछ बातो का अनुमान लगा लिया था, उसको प्रेमसिंह का स्वभाव एकदम सरल और निर्दोष होने का अनुभव हुआ । उसके साथ साथ उसका ऐसा हाल , फटे – कटे कपड़े और मैली सी हालत देखके दया भी आ रही थी।

एक तरफ प्रेमसिंह बच्चों की लाशें मिलना ,दूसरी तरफ थैले में से कुत्तों की लाशें मिलना , अबिरल का गायब हो जाना,
प्रेमसिंह की पत्नी का बीमार हो जाना , और इतनी सब दुर्घटनाओ के साथ भी एक भी सबूत हाथ नही आना रमनसिंह के लिए कुछ सही नही था ये सोच रहे रमनसिंह की मनोनिंद्रा तब टूटी जब आसपास के कोई मंदिर का घंट बहुत जोरो से बजने लगा।
रमनसिंह ने मंदिर के बारे में जब प्रेमसिंह से पूछा तो उसने बताया की,आसपास में कोई मंदिर था, जो सालों से शाम के समय पे अपने आप घंटारव करने लग जाता था । माना जाता था की मंदिर में स्वयं माता महाकाली का वास है । प्रेमसिंह की ये बात सुन के रमनसिंह को वही मंदिर में जाने का मन हुआ, वो अपनी पूरी टीम के साथ मंदिर की तरफ चल दिया।

क्या होगा आगे ? रमनसिंह क्या करना चाहता है ?
अभितक वो खुद किल्ले के अंदर छानबीन करने क्यों नही गया ? मंदिर में ऐसा क्या है जो रमनसिंह को वहां जाने के लिए बेचैन कर गया।

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