भयानक यात्रा - 10 - अनजान साया। नंदी द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

श्रेणी
शेयर करे

भयानक यात्रा - 10 - अनजान साया।

हमने देखा की प्रेमसिंह रात को हॉल के फर्श पे ही सो जाता है और विद्यासिंह कुत्तों की आवाज़ सुनकर उनको भगाने के लिए हॉल से बाहर जाता है , तभी वो अंधेरे में कोई साया देखता है जो कहीं गायब हो जाता है । वो डर से हॉल में वापिस आता है और फिर सो जाता है , सुबह चरणसिंह उसको उठाता है और बताता है की प्रेमसिंह गायब है । उनको प्रेमसिंह ढूंढने पर भी नही मिलता तब वो जोरावरसिंह को बुलाते है , जोरावरसिंह को प्रेमसिंह का गमछा दिखता है और वो लोग छत पे जाते है । जहां छत का दृश्य देखकर वो सब डर जाते है । ५ काली बिल्लियों के शवों को देख कर उनके मन में कुछ गलत होने का अनुमान लगता हैं ।

अब आगे .......
*******************************
प्रेमसिंह अपने आसपास पड़े शवों को देख कर डर सा जाता है , और उसको जोरावरसिंह उठने में मदद करता है ।
सुबह के कुछ ६ बज रहे होंगे और वो चारों लोग छत पे पड़ी ५ बिल्लियों को देख रहे होते है । ठंड के मौसम में भी चारों के शरीर से पसीना छूट रहा था । प्रेमसिंह का लकड़ी जैसा बदन तो जैसे और ज्यादा सिकुड़ सा गया हो ।

चरणसिंह ने प्रेमसिंह से पूछा – तुम यहां कब आए और यहां कर क्या रहे थे ?
प्रेमसिंह बोला – साब , रात को ही हॉल में नींद नहीं आ रही थी तो सोचा छत पे जाके टहल लेता हूं , और यहां आके बैठ गया था । पता नही कब मेरी आंखे बंध होने लगी थी , और मैं यही फर्श पे सो गया था ।
चरणसिंह बोला – तो ये बिल्लियां कहां से आई ?
प्रेमसिंह बोला – मुझे नहीं पता साब !!

बिल्लियों का खून अभी भी प्रेमसिंह के उठने के बाद भी बह रहा था और वो खून एक नदी की तरह साथ में मिल के छत की और उस तरफ आ रहा था जहां सब खड़े थे । पूरा फर्श अब खून से भर चुका था और आसपास के कीटक और मक्खियां शवों पे मंडरा रहे थे ।
थोड़ी देर बाद जहां शव पड़े थे वहां का खून लाल रंग से बदल के काले रंग का होने लगा और धीरे धीरे पूरा छत का खून काले रंग का हो गया । ये नजारा देख के सब को आश्चर्य हुआ और थोड़ा सा डर भी लगा ।
विद्यासिंह को रात का वो पल याद आया और उसने यही समय सबको बताना सही समझा ।
वो बोलने गया तभी चरणसिंह ने गहरी सांस लेके बोला , ये सिर्फ बिल्लियां ही है वो भी मरी हुई । बिल्लियों के सिर्फ मुंह से खून निकल रहा था इसीलिए चरणसिंह ने बोला की कुछ जहरीला खाना खा लिया होगा जिसकी वजह से उन सबकी मौत एक साथ हो गई हो । लेकिन चरणसिंह को और सबको अंदर ही अंदर पता था की माजरा क्या है , लेकिन माहोल ठीक करने के लिए चरणसिंह ने एक तर्क बता दिया ।

दूसरी तरफ विद्यासिंह सीढ़ियों से नीचे की तरफ जाने लगा और उसका पैर फिसला और वो वहां से सीधा नीचे की तरफ गिराने लगा । ये देखके पीछे पीछे चरणसिंह और सभी एक साथ उसको बचाने के लिए दौड़ पड़े । लेकिन तब तक विद्यासिंह फिसल के नीचे की तरफ गिर चुका था । टूटी और छोटी सीढ़ियों की वजह से विद्यासिंह को पैरों में चोट लग गई थी , साथ साथ गिरने के कारण वो डरा हुआ भी था ।
सब लोग उसके नजदीक जाके उसको उठाया और उसको जोरावरसिंह ने पानी दिया , पानी पीते पीते उसके हाथ कांप रहे थे और उसके मुंह से पिया हुआ पानी भी जमीन पे गिर रहा था ।

क्या हुआ विद्यासिंह ? – चरणसिंह ने उसको हिलाते हुए पूछा ।
विद्यासिंह ने डरी हुई आवाज में बोला – मेने रात में भी किसी को देखा था । जो अंधेरे में कहीं गायब हो गया था ।
चरणसिंह ने उसको पूछा – कहां देखा ?
तब विद्यासिंह ने रात का पूरा मंजर सबको सुनाया ,
थोड़ी देर तो सब चुप रहे लेकिन थोड़ी देर के बाद चरणसिंह ने एक बड़ी सी आवाज में सब को बोला – अब शायद हमे यहां से निकलना चाहिए और ये सब बात हमे रमनसिंह साब को बतानी चाहिए ।

विद्यासिंह के पैरों में चोट लगी हुई थी उसी कारण जोरावरसिंह उसको कंधा दे के चलने में सहायता कर था और प्रेमसिंह पीछे पीछे जैसे एक गुलाम की तरह आ रहा था ।
हॉल के बाहर निकलते ही विद्यासिंह ने फिर से हॉल को घूरकर देखा और फिर नजर नीची करके चल दिया ।
जोरावर ने गाड़ी को हॉल से थोड़ी दूर बाहर की तरफ रखी थी ।
चरणसिंह ने जोरावरसिंह को गाड़ी हॉल के पास ले आने को बोला , तब जोरावरसिंह विद्यासिंह को एक नीचे रखे बड़े से पत्थर पे बिठाके गाड़ी लेने चला जाता है । चरणसिंह के दिमाग में विचार बिजलियों की भांति यहां वहां घूम रहे थे और उसके हाथ एक दूसरे का जैसे गला दबा रहे थे उतने जोरों से पकडे हुए थे ।
कुछ देर में जोरावरसिंह गाड़ी ले के आ जाता है ,और सब गाड़ी में बैठ जाते है । विद्यासिंह थोड़ा दर्द से कराह रहा होता है , तब चरणसिंह जोरावरसिंह को गाड़ी को सरकारी अस्पताल की तरफ ले जाने कहता है ।
गाड़ी आहिस्ता आहिस्ता टूटी हुएं रास्तों पे चल रही होती है , तब चरणसिंह थोडे दुर एक चाय की टपरी देखता है । सुबह से हुई घटनाएं उसके दिमाग को जैसे प्रेशर कूकर की तरह गरम कर रही थी , और उसका सिर फटा जा रहा था ।

उसने विद्यासिंह को बोला – हम थोड़ी देर चाय पीने रुक सकते है क्या ? सुबह से कुछ खाया पिया नहीं है ऊपर से सिर दुख रहा है ।

विद्यासिंह ने दर्द भरी आवाज में कहां – हां , मुझे भी सिर दुख रहा है , चाय पीने से शायद ठीक सा हो जाए ।
चरणसिंह ने जोरावरसिंह को इशारा किया और गाड़ी टपरी की तरफ मोड़ दिया । पुलिस अफसरों को देखकर टपरी का मालिक तुरंत दौड़ कर गाड़ी के पास आ गया ।
अरे साहब .. आइए ! – टपरी वाले ने बोला।
उसने विद्यासिंह को देखा , उसको चोट की वजह से नीचे उतरने में परेशानी हो रही थी । एक तरफ से जोरावरसिंह और दूसरी तरफ से चरणसिंह ने विद्यासिंह को पकड़ के गाड़ी से नीचे उतारा।

राजू ,साहेब के लिए ४ कुर्सी साफ करके लगाओ – टपरी वाले ने अपने बेटे को आवाज लगाई ।
और वो धीरे से चरणसिंह के पास आ के बोला – साहेब क्या हुआ है ये साहेब को ?
सीढ़ियों से गिर गया है – चरणसिंह ने बोला ।
क्या तुम्हारे पास ये दर्द कम करके की कोई दवाई होगी ?

उसने ना में सिर हिलाया फिर बोला – लेकिन साहेब आप कहो तो मैं घाव को पट्टी से बंध कर सकता हूं , जबतक आप अस्पताल न पहुंच जाओ ।

विद्यासिंह ने तुरंत हां में सिर हिला दिया और बोला – हां, ये सही रहेगा जल्दी से पट्टी लगा दो ।

टपरी वाले ने अपने बेटे को आवाज दी – राजू ,जल्दी से साहेब लोग के लिए चाय बना एकदम कड़क , तबतक में साहेब का पट्टी कर देता हूं । उसने घाव को साफ किया , फिर वो फटाफट से अपनी दुकान से हल्दी ले के आया और उसको तवे पे गरम करके विद्यासिंह के घाव पर लगाने लगा । सब घाव पर हल्दी का लैप लगाने के बाद वहां से उठकर अंदर गया और एक बड़ा सा कॉटन का कपड़ा लेके आया , एकदम साफ और नया कपड़ा उसने चाकू से काटा और जहां – जहां घाव हो रहे थे वहां बांध दिया ।
फिर थोड़ा सा गुड़ और हल्दी का लड्डू बनाकर विद्यासिंह को खिला दिया और बोला – साहेब , अब आप निश्चिंत रहिए घाव पे हल्दी का लैप लगाने से वो अब बढ़ेगा नही और खून भी नही आयेगा ।
विद्यासिंह ने बोला – मैं तुम्हारा हमेशा आभारी रहूंगा ।
चरणसिंह और बाकी लोगो ने उसका धन्यवाद किया । जब की विद्यासिंह का मन उसकी सेवा देखके सोचने लगा की इसके उपकार का बदला वो कैसे चुकाएगा !!

थोड़ी देर में राजू चाय लेके आ गया , और सबको चाय दे के चला गया । चाय नाश्ता करके सब गाड़ी में बैठ गए और चरणसिंह टपरी वाले को पैसा देके वाशरूम चला गया ।
थोड़ी देर बाद जब वापिस आया तब जोरावरसिंह ने गाड़ी चालू करके टपरी वाले का दूसरी बार सुक्रिया करा फिर वहां से निकल गए ।
टपरी का मालिक जब उनको जाते देख रहा था तब अचानक से उसको गाड़ी के पीछे कुछ दिखा और वो उनको बुलाने के लिए चिल्लाने लगा , लेकिन तबतक गाड़ी बहुत दूर जा चुकी थी ।

टपरी वाले ने ऐसा क्या देख लिया था गाड़ी के पीछे ?
क्या करेगा रमनसिंह जब वो हॉल में हुई घटना को सुनेगा ? क्या था वो काली बिल्ली का राज ?
जान ने के लिए हमारे साथ बने रहिए हमारी कहानी भयानक यात्रा के साथ !!!!!!