हमने पिछले भाग में देखा की रमनसिंह ने गोखले से बात करके प्रेमसिंह को किल्ले पे बुलाया था,लेकिन प्रेमसिंह जब किल्ले पे पहुंचा तब उसकी हालत बात करने जैसी ना होने के कारण रमनसिंह तभी चुप रहना पसंद करता है । कुछ देर बाद प्रेमसिंह के पूछने पर रमनसिंह उससे सवालात करता है जहां उसको प्रेमसिंह का सरल स्वभाव और निर्दोषता दिखती है । यही जांच करने में उनके शाम का समय हो जाता है , और रमनसिंह अपनी टीम को किल्ले के बाहर बुला लेता है।
तभी खोए मन से बैठे रमनसिंह को एक तेज घंटारव की आवाज आती है ,जो उसको मंदिर की तरफ कदम उठाने पर मजबूर करती है ...
अब आगे..........
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प्रेमसिंह से मंदिर के बारे में पूछने के बाद रमनसिंह के कदम मंदिर की तरफ चलने लगते है।
माना जाता है की ये मंदिर सालों पुराना है, और आसपास के लोगो की श्रद्धा इस मंदिर से जुड़ी हुई है ।
–ये बोलकर प्रेमसिंह भी रमनसिंह के पीछे पीछे चल दिया।
रमनसिंह ने गोखले को पुलिस वान और जिप्सी मंदिर की तरफ लाने के लिए बोल दिया, तब ड्राइवर और गोखले दोनो एक साथ पार्किंग की तरफ चल दिए ।
शाम का समय था और ठंड मौसम होने के कारण अंधेरा जल्दी होना लाजमी था । रास्ता कच्चा था जो कंकण से भरा था और आसपास कांटे वाले पौधे थे जो रास्ते को सलामी दे रहे हो ऐसे झुककर खड़े थे । रमनसिंह के कदम मंदिर की तरफ जल्दी से आगे बढ़ रहे थे ।
थोड़ी देर के बाद सब मंदिर पे पहुंचे तब सबको उनके अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव हुआ । मंदिर की चारो तरफ एक जंगली प्रजाति के ऊंचे – ऊंचे पेड़ लगे हुए थे , जैसे मंदिर की रक्षा वही कर रहे हो । मंदिर बहुत पुराना था लेकिन आज भी वो नए जैसा दिख रहा था । मंदिर के आगे एक बड़ा सा प्रांगण था , जो मंदिर को और भी ज्यादा सुंदर बना रहा था । रमनसिंह वहां प्रांगण में जाके अचानक से रुक गया , उसने प्रांगण को बड़े ही अच्छे से देखा , मंदिर प्रांगण से थोड़ा ऊपर की तरफ बना हुआ था । मंदिर के इसी प्रांगण में बड़े बड़े दो स्वस्तिक दाए और बाए तरफ बनाए हुए थे ,जो लगभग एक इंसान की ऊंचाई के बराबर होंगे ।
मंदिर के अंदर से किसी इंसान की आवाज आ रही थी जो बड़ी बड़ी आवाज में आरती गा रहा था ।
( जय काली माता,
माँ जय महा काली माँ।
रतबीजा वध कारिणी माता।
सुरनर मुनि ध्याता,
माँ जय महा काली माँ ॥ )
ये आवाज सुनके रमनसिंह और उनके साथी मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगे , विद्यासिंह और चरणसिंह का मन ये बुलंद आवाज सुनके आतुर हो रहा था ।
जब रमनसिंह ने आंखे मंदिर में दौड़ाई तब उसकी आंखे जैसे बोल उठी वाह कितना अदभुत मंदिर है ।
पीछे आ रहे लोगो ने भी जब ये नजारा देखा तो उनकी आंखे जैसे सुकून से भर गई ।
मंदिर के अंदर 9 माता की मूर्तियां थी जो मंदिर के गुम्बद पे तरासी गई थी । जैसे वो एकदम जीवंत हो , ये 9 मूर्तियों के बीच में बड़ा सा ॐ बना हुआ था ।
रमनसिंह मंदिर के गर्भगृह के तरफ जाने लगा , अंदर की तरफ एक बूढ़ा आदमी खड़ा था , उसका पूरा बदन पीले रंग के पीतांबर से ढंका हुआ था , उसकी पीठ रमनसिंह की तरफ थी और उसका कद एक आम इंसान से ज्यादा बड़ा था । जिसके कारण अंदर की मूरत दिख नही रही थी । उसने बस उसके हाथ में पांच दिये वाली आरती की जलती हुई ज्वाला दिख रही थी , जिससे वो आदमी की परछाई पूरे गर्भगृह में बड़े साये में परिवर्तित हो रही थी ।
हवा इतनी जोरों से चल रही थी की , जिससे मंदिर में लगे हुए घंट अपने आप एक दूसरे के साथ टकराके घंटाराव कर रहे थे ।
इसी बीच एक बड़ी सी आवाज में स्त्रोत बोलने की आवाज आई !!!
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।
ये स्त्रोत खतम होते हुए आरती खतम हुई, अंदर का वो आदमी जो बूढ़ा दिख रहा था ,वो हाथ में आरती लेके बाहर आया । उसके बाहर आते ही सबकी नजर मूरत पर गई, महाकाली माता की वो मूरत देखके उनको ऐसा लगा जैसे माता स्वयं उनके सामने खड़े हो, सब दंडवत हो गए , प्रेमसिंह तो जैसे माता को देखकर रोने जैसा हो गया, उसी समय जैसे हवाओ ने अपना रुख बदल दिया हो , और घंटारव की ध्वनि अचानक से रुक गई ।
बाहर आते ही वो आदमी ने बहुत ही विनम्रता से रमनसिंह से कहा – लीजिए प्रभु, माता का आशीर्वाद ले लीजिए । आपको माता अपने शरण में रखे । उनकी ये भारी और प्रेमभरी आवाज रमनसिंह और आसपास के लोगो के दिल में एक ठंडक कर गई । सबने माता की आरती ली और वहीं खड़े रह गए।
ये नजारा यहां आए सब लोगो के लिए बहुत अदभुत और चमत्कारिक था , सबकी आंखे वो बूढ़े आदमी से पूछ रही थी की वो कौन है ?
वो पंडित जैसा दिखता नहीं था, ना कही से साधु लगता था, ना ही उसका शरीर कोई पुजारी जैसा था । उसकी आंखे मोती की तरह चमक रही थी , उसका मस्तक चौड़ा था , उसका चेहरा एक योगी की तरह शांत था ।
सबको ऐसे उसकी तरफ देखता हुआ देख वो मुस्कुराकर गर्भगृह की तरफ जाने लगा – तभी
विद्यासिंह ने बोला – हे महाशय , हमे आपका परिचय दीजिए । आपकी आभा हमारे मन को प्रफुल्लित कर रही है ।
वो आदमी ने गर्दन को हल्की सी विद्यासिंह की तरफ घुमाके देखा ,फिर से मुस्कुराया और वो फिर से मंदिर के गर्भगृह की तरफ जाने लगा । धीरे धीरे वो आदमी गर्भगृह में चला गया और वहां खड़े सब लोग उसको एक नजर देखते रह गए । किसी ने कुछ और ज्यादा बोलने की हिम्मत नही की ।
अंधेरा हो जाने की वजह से सब मंदिर से नीचे जाने लगे और मन में सोच ने लगे की ये अदभुत इंसान कौन है जो शांत और अजीब भी है । व्याकुल मन के साथ सब गाड़ियों की और बढ़ रहे थे , तभी प्रेमसिंह ने बोला – साब, आप सब तो चले जाओगे हम अभी कहा रहेंगे ?
तब रमनसिंह ने चरणसिंह को बोला की प्रेमसिंह को उसके साथ पुलिस क्वाटर्स में रखे , प्रेमसिंह के खाने का और सोने का इंतजाम करे और सुबह होते ही प्रेमसिंह को भी साथ में ले आए ।
चरणसिंह और विद्यासिंह उनके फैमिली के साथ पुलिस क्वाटर्स में रहते थे , जो पुलिस स्टेशन के सामने की तरफ थे ।
रमनसिंह की बात मान के प्रेमसिंह को दोनो पुलिस क्वाटर्स ले गए ,पुलिस की टीम को गोखले और ड्राइवर पुलिस स्टेशन की तरफ ले जाने लगे और रमनसिंह अपने घर की तरफ चल दिया , लेकिन उसका मन मंदिर हुए रहस्यमय घटना को सोच रहा था ।
क्या है महाकाली मंदिर का राज़ ? कौन था वो आदमी जो मंदिर में माता की पूजा कर रहा था ? रमनसिंह के मन में चल रहा तूफान कहानी में आगे कौनसा मोड़ लायेगा ?
पढ़ते रहिए हमारे साथ ....