भयानक यात्रा - 27 - आलोकनाथ का आत्मपरीक्षण। नंदी द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भयानक यात्रा - 27 - आलोकनाथ का आत्मपरीक्षण।

हमें पिछले भाग में देखा की .....
जब हितेश , जगपति और सतीश कमरे में जाते है तो वहां उनको वैध जी कमरे के फर्श पे लेटे हुए मिलते है जो की बेहोश से पड़े होते है । वो लोग वैध जी को वहां से उठा कर सोफे में सुला देते है । तभी हितेश जगपति से वैध जी के बारे में पूछता है की उनकी नब्ज़ इतनी काली क्यू है ! तब जगपति वैध जी के बारे में बताते है की उन्होंने गांव वालो की भलाई के लिए अपने मां बाप के बाद गांव वालो को ही अपना परिवार मान लिया था । गांव वालो को ठीक करने हेतु वो दवाई का परिक्षण खुद के शरीर पे करते है जिससे वो कई बार ऐसे बेहोश से हो जाते है । तभी बिल्ली का बच्चा वहां एक कच्चा टुकड़ा लेके आता है , जिसकी वजह से जगपति को हाथ में कांच का टुकड़ा लगने की वजह से चोट आ जाती है , हितेश उनको ठीक करने के लिए पट्टी लेने जाता है वहां आलोकनाथ के हाथ में थी वैसे ही प्रवाही से भरा हुआ शीशी हितेश को दिखती है लेकिन उसको अनदेखा कर के वो जगपति के पास पहुंच जाता है , वहां देखता है की बिल्ली का बच्चा जगपति के खून को चाट रहा होता है , और अचानक से जगपति के हाथ पे बैठके उसके जख्म भी चाटने लग जाता है । हितेश उसको भागकर जगपति की पट्टी करता है तभी आलोकनाथ करवट लेता है लेकिन नींद से नही जागता ।
अब आगे ....
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आलोकनाथ की करवट से सबको लगता है की वो अभी होश में आ जायेंगे लेकिन वो गहरी नींद में होते है जिसके कारण सब थोड़े से उदास हो जाते है ।

जगपति की हितेश को कहता है – भाई साहब , लगता है आज हमे घर पे चले जाना पड़ेगा , धीरे धीरे शाम ढलने के समय होने आया है ।

हितेश जगपति को बात का जवाब देते हुए कहता है – चाचा , थोड़ी देर और रुक जाते है शायद वैध जी को होश आ जाए ।
लेकिन जगपति कहता है – भाई साहब वैध जी की हालत देख के लग नही रहा है वो अभी होश में आयेंगे ।
या तो फिर उनको कोई दूसरे तरीके से जगाना पड़े , लेकिन उनकी उमर देखकर वो तरीका सही नही लगता है ।

हितेश समझ जाता है की जगपति किस तरीके की बात कर रहा होता है , वो जगपति से कहता है वैध जी अगर ऐसे ही होश में नहीं आए तो भी तबियत खराब हो सकती है । उनकी उमर के हिसाब से वो ज्यादा बीमार हो जायेंगे अगर उनको सही समय पे होश में नहीं लाया जायेगा तो !

जगपति हितेश की बातों को सुनकर कहता है – हां , लेकिन वैध जी बेहोश क्यों है जाने बिना हम कोई भी उपाय करके उनकी जान जोखिम में नही डाल सकते है ।

आप चिंता मत कीजिए जगपति चाचा पहले इन्हें होश में लाने की कोशिश कीजिए ।
जगपति अपने हाथों की चोट की वजह से वही बैठ जाता है । हितेश वैध जी के पैरो को मसलता है । मगर उनकी नींद नहीं टूटती । अब वह उनके हाथों को मसलता है मगर कोई प्रभाव नहीं । वह उनकी छाती पर थोड़ा दबाव बनाता है । लेकिन अब भी वैध जी मस्त नींद निकाल रहे होते है ।

कहीं ये मर तो नही गए – जगपति उनकी कोई प्रतिक्रिया ना देखकर पूछते है ।
कैसी बातें कर रहे हो चाचा अभी तो उन्होंने करवट ली थी । आप जाकर जरा थोड़ा पानी ले आओ । हितेश ने कहा ।

उन दोनों की इस मशक्कत के बीच सतीश उठने की कोशिश करता है मगर वह उठ नही पाता । और थोड़ी ही देर में उसे वही बिल्ली नजर आती है जो उसी को देखे जा रही थी । सतीश जैसे उसकी आंखों में देखता है वह सम्मोहित हो जाता है । पता नही ऐसा कैसे हुआ । मगर सतीश अब दीवार के सहारे खड़ा हो गया । जैसे से ही वह खड़ा हुआ वह बिल्ली उस कमरे में गई जहां रसायन रखे हुए थे । जो वैध जी की छोटी सी प्रयोगशाला थी । वह दीवार से खुद को घसड़ता हुआ उस कमरे के दरवाजे तक पहुंच जाता है जिसपर लिखा था रसायन प्रयोग कक्ष ।

जगपति पानी लेकर आता है लेकिन ना तो हितेश का ध्यान सतीश पर जाता है ना जगपति का ही ध्यान उसपर जाता है ।
सतीश कमरे में पहुंच चुका था ।
बाहर हितेश जगपति के लाए हुए पानी से कुछ बूंदे वैध जी के मुंह पर मारता है । मगर वैध जी उससे भी होश में नहीं आते है ।
अब हितेश पूरा का पूरा पानी ही वैध जी पर डाल देता है ।

अरे भाई साहब ,, ये क्या किया । – जगपति चौंक जाता है ।

लेकिन तभी वैध जी हड़बड़ा कर उठ जाते है । मगर होश में आने के बाद भी कुछ देर तक वह यही समझ नही पाते कि वो कहां है ?

वैध जी आप ठीक तो है ना ? आपकी ऐसे हालात कैसे हुई ? – हितेश और जगपति पूछते है ।

जी,, वो मैं एक आत्मपरीक्षण कर रहा था । और बेहोश हो गया । खैर आप लोग सतीश को उपचार के लिए लेकर आए होंगे ।
कहां है वो ? – जब वैध जी ने कहा तब दोनों का ध्यान उस और गया जहां सतीश बैठा था । मगर सतीश अब वहां नही था यह देखकर दोनों चौंक गए क्योंकि सतीश चलने की हालत में नही था तो वह खुद कैसे कहीं जा सकता था । अब हितेश का दिल फिर एक अनहोनी से डरने लगा था । वो जगपति की तरफ सवालिया नजरों से देख रहा था ।

उसी वक्त रसायन प्रयोग कक्ष में किसी के गिरने की आवाज आई ।

अब सभी उठकर उस और भागे । हालांकि वैध जी की हालत कुछ अच्छी नहीं थी मगर वो भी लंगड़ाते हुए उस रसायन प्रयोग कक्ष में पहुंचे ।

वहां का नजारा देख सबकी आंखें फटी की फटी रह गई ।
सतीश जमीन पर मुंह के बल गिरा हुआ था । और वह नीले प्रवाही की शीशी जो कुछ देर पहले हितेश ने भरी हुई देखी थी जमीन पर गिरी हुई थी बहुत सा प्रवाही जमीन पर बिखरा हुआ पड़ा था लेकिन कुछ प्रवाही उसके पैरो के फफोले में घुस चुका था । सतीश ठीक से खड़ा नही हो पा रहा था और जब वह उस प्रवाही के पास गया उसे कमजोरी सी महसूस होने लगी । वह गिरने वाला था मगर उसने किसी चीज का सहारा लेना चाहा जिस वजह से प्रवाही जमीन पर गिर पड़ा । साथ ही सतीश भी गिर पड़ा मगर प्रवाही उसके घुटने के घावों से उसके शरीर में घुस गया ।

हे भगवान ,, ये क्या हो गया । यह तो अच्छा नहीं हुआ । वैध जी ने चिल्ला कर कहा ।
हितेश ने घबराते हुए पूछा – क्या हुआ वैध जी ? आप इस तरह क्यों कह रह है ? क्या हुआ मेरे दोस्त को ?
मैं यह बाद में बताऊंगा पहले अपने दोस्त को बाहर कमरे में लाओ ।
यह कहकर वैध जी जल्दी से अपने एक झोले की और भागे और उसमे से एक दवा की पुड़िया निकाली ।

वैध जी ने शहद में उस पुड़िया का सारा पाउडर घोल कर , सतीश के मुंह में डाल दिया ।

हितेश और जगपति सोच रहे थे कि कही तो यह रसायन कही आयुर्वेदिक दवाई ? आखिर वैध जी किस तरह का इलाज कर रह है ?
उनके प्रश्न को विराम देते हुए वैध जी ने कहा ।

बेटा ये प्रवाही नसों में से खून को साफ करने का प्रवाही है । और मैं इसका संशोधन कर रहा हूं । लेकिन हर बार कुछ कमी से खून नसों में जमा हो जाता है और काली परत बन जाती है । लेकिन उससे खून के बहने में रुकावट नहीं आती हां बस उसे रास्ता कम मिलता है ।

लेकिन वैध जी आप यह परीक्षण यदि इसी तरह करते रहे और नसों में परत जमती रही तो एक दिन आपकी मौत हो जायेगी । – हितेश ने कहा

मौत से कौन डरता है बच्चे । उमर हो गई है आज नही तो कल मरना ही है लेकिन मेरा ये परीक्षण सफल रहा तो ,, कई लोगों की जान बचाने में काम आयेगा । – वैध जी ने कहा ।

तभी सतीश की कराहने की आवाज आई । वैध जी ने उसके घुटने के घावों का उपचार भी कर दिया था ।

सतीश भाई साहब आप तो चल नही सकते थे फिर उस कमरे में कैसे पहुंच गए ? – जगपति ने पूछा ।

सतीश ने धीमे से उठते हुए अपने सर पर हाथ रख क्योंकि उठते वक्त उसे सर में तेज दर्द हुआ । हितेश ने उसे सहारा दिया ।
सतीश ने कहा – पता नही । मैं कमरे में कैसे गया मुझे कुछ पता नहीं ।
यह सुनकर हितेश को बड़ा ही अजीब लग रहा था ।

लेकिन अब इस सबकी जैसे उन लोगों को आदत हो गई थी ।

इस सब में शाम हो चुकी थी ।

वैध जी के घर पर किसी ने दस्तक दी । सभी एक पल चौंक गए । फिर वैध जी ने उठकर दरवाजा खोला ।
यह गांव की मंडली का एक सदस्य धनजीभाई था जो रोज ही वैध जी के लिए खाना लेकर आता था ।
वैध जी ने उसे अंदर आने को कहा । लेकिन उसे और भी कुछ घरों में खाना पहुंचाना था इसलिए उसने अंदर जाने से ना कहा लेकिन उसने बाहर चप्पलों को देखकर अंदर झांका । और वैध जी से पूछा – क्या कोई रिश्तेदार आए है ?

अरे मुझ बूढ़े का कोई रिश्तेदार होता तो क्या तुम खाना लेकर आ रहे होते । यह कहते हुए वैध जी हंस दिए ।

धनजी भाई भी हंसने लगे ।
अरे भाई उपचार के लिए रोगी आए है । शहर से है । गांव में घूमने आए थे परंतु हादसा हो गया । वैध जी ने कहा ।
धनजी भाई को थोड़ी शंका हुई । हादसा ,, कहीं यही सब भूत प्रेत वाला चक्कर तो नही ? लेकिन वह यह बात पूछकर वैध जी के सामने पंचायती नही बनना चाहते थे । इसलिए उन्होंने खाना दिया और चले गए ।
रह रह कर उनके मन में खयाल आ रहा था कि शहर के लोग आखिर यही जगह क्यों चुनते है घूमने के लिए ? और अपनी जान जोखिम में डालते है । भगवान करे सब ठीक हो ।

इसी दौरान जगपति ने हितेश के पूछने पर की यह कौन है उसे बताया कि था रोज वैध जी को खाना देने आता है । गांव की मंडली ऐसे लोगों को खाना देती है जो असहाय हो अकेले हो बुजुर्ग हो । और वैध जी का पूरा खयाल रखने का जिम्मा गांव वालों ने लिया था जिसके कारण यहां पर भी उनके मंडली के लोग वैध जी को हर रोज शाम को खाना पहुंचाते है ।

अरे वाह । यहां के लोग कितने सहृदय होते है और मददगार । – हितेश ने कहा ।

यार सर दुख रहा है क्या हम घर चले ? – सतीश ने कहा ।
वैध जी ने एक पुड़िया जगपति को देकर कहा इसे गरम पानी के साथ इन्हे सोने से पहले दे देना मगर भोजन के एक घंटे बाद ही । इससे इन्हे नींद भी अच्छी आयेगी ।

हितेश ने सतीश को सहारा दिया और वो लोग वैध जी के घर से निकल गए ।

सतीश को गाड़ी में पीछे बिठा कर ,, हितेश आगे आ कर बैठ गया । जगपति ने गाड़ी चलाना शुरू किया ।

शाम घिर आई थी मगर अब भी आसमान में हल्की रोशनी थी । जो बाहर के दृश्य को मनोहर बना रही थी । ठंडी हवाएं चल रही थी । इसी बीच हितेश को वो दिन याद आ रहे थे जब सभी दोस्त मिलकर मस्तियां किया करते थे । उसकी आंखें नम हो चली थी । उसकी चुप्पी देख कर जगपति उसके मन का हल जान गया और उससे कहा – चिंता मत कीजिए भाई साहब जल्दी महादेव की कृपा से सब ठीक हो जायेगा ।

हितेश ने अपनी आंखों के किनारों को पोंछ दिया । सर दर्द के कारण सतीश पीछे आंखे बंद करके लेटा हुआ था ।

घर के बाहर सुशीला देहरी में खड़ी सबका इंतजार कर रही थी ।

और उनकी गाड़ी को आते हुए देख उसकी जान में जान आई । हर रोज की नई नई घटनाओं से अब उसका भी दिल घबराने लग जाता था ।

क्या सतीश के शरीर में उस नीले प्रवाही का कुछ नकारात्मक असर होगा ? क्या सिर्फ आयुर्वेदिक दवाई से सतीश ठीक हो पाएगा ? क्या वैध जी का ये परिक्षण उन्हें किसी मुसीबत में डाल देगा ? जानने के लिए जरूर पढ़िए अगला भाग । ।