भयानक यात्रा - 26 - बिल्ली का राज़ क्या है ? नंदी द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भयानक यात्रा - 26 - बिल्ली का राज़ क्या है ?

हमने पिछले भाग में देखा की ....
हितेश को लोमड़ी के पैरों के साथ एक इंसान के पैरों के निशान दिखते है जो आम इंसान से थोड़े ज्यादा बड़े होते है । उसके बाद सब लोग खोली में चले जाते है वहां पर जगपति के पिता बाहर की तरफ आते है । उनको देख कर सतीश डरने लग जाता है , हितेश उसको समझाता है की वो जगपति के पिता है उनसे अब उसको डरने को जरूरत नहीं है । उसके बाद हितेश और जगपति खाना खाने के बाद सतीश को वैध के वहां ले जाने के लिए तैयार होते है , वैध के घर जाने के बाद अब अंधेरे में कोई चीज अचानक से हमला कर देता है जिसकी वजह से हितेश गिर जाता है । हितेश मोबाइल की रोशनी करके अंदर की तरफ जाता है वहां पर उनको समझ आता है की हमला बिल्ली के बच्चे ने किया होता है । वो वहां कुछ समझ पाते उस से पहले उनको वहां किसी जहरीली गैस की वह से सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और आंखे और गला जलने लग जाता है । हितेश की नजर तभी एक बोतल पे जाती है जिसमे से धुंआ निकल रहा होता है , वो बोतल आंसू गैस की होती है । तब हितेश जगपति और सतीश वैध के न मिलने के कारण दूसरे कमरे की तरफ जाते है वहां उनको दूसरे दूसरे कमरे में कोई लेटा हुआ इंसान दिखता है .....

अब आगे...
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हितेश जब जब जहरीली गैस वाले कमरे से निकल कर वैध को ढूंढने के लिए दूसरे कमरे की तरफ जाता है , तब उसको बाहर की तरफ से कोई कमरे में लेटा हुआ दिख जाता है ।

हितेश उसको देखने के बाद , तुरंत दरवाजे के नजदीक पहुंच जाता है , और देखता है की वैध बेहोश से वहां ज़मीन पर लेटे हुए पड़े थे , उनके है हाथ में एक शीशी थी जो खाली थी और शीशी के अंदर का प्रवाही सूख चुका था , लेकिन शीशी पे वही प्रवाही के दाने चिपके हुए थे और हल्का सा नीला रंग अपनी छाप छोड़ रहा था ।

तुरंत ही जगपति और हितेश उनके फर्श पे पड़े हुए आलोकनाथ के शरीर के पास गए और उनकी नब्ज़ की जांच करी । उनकी सांसे चल रही थी , लेकिन बहुत ही धीमी गति से !
जगपति ने अपने कंधो पे वैध को उठाया , और उनको सही तरीके से सोफे पे लिटा दिया ।

हितेश और जगपति वैध की ये हालत देखकर ये सोच ने लगे की वहां बैठ के उनके होश में आने का इंतजार करे या फिर सतीश को लेकर वहां से घर चले जाए ।
हितेश ने ये सोचते हुए जगपति से कहा – चाचा , थोड़ी देर इंतेज़ार कर लेते है , वैसे भी सतीश का पट्टी लगाना आवश्यक है ।
जगपति भी उसके साथ सहमत होते हुए बोला – हां भाई साहब , इंतजार कर लेते है शायद वैध जी जल्दी से होश में आ जाए ।

अचानक से हितेश को खयाल आता है की वैध के हाथ में कोई बोतल थी , जिसमे हल्का सा नीला रंग का प्रवाही था ।
उसने जगपति को बोला – चाचा , वैध जी किसी प्रवाही के प्रभाव में आकर बेहोश हुए हैं ऐसा लग रहा है ।
जगपति ने जवाब देते हुए कहा – हां भाई साहब , उनके हाथ में जो शीशी थी उसमे कोई नीले रंग का प्रवाही था जो प्रवाही उनके होंठो पे भी अभी भी लगा हुआ है । जिसके पीने के पश्चात ही उनकी ऐसी हालत हुई है ! लेकिन उनको ये प्रवाही पीने की आवश्यकता क्या पड़ी जिसके कारण उनकी ऐसी हालत हो गई है ।

हितेश ने वैध के चेहरे की तरफ देखते हुए कहा – ये बात तो वैध जी खुद ही बता सकते है । फिर हितेश की नजर वैध की बड़ी और काली सी नब्ज़ पे जाता है जो उनके बदन पे अलग ही उभर रही थी ।
हितेश जगपति से बोला – चाचा , वैसे वैध जी की नब्ज़ इतनी काली कैसे हो सकती है ? क्या इसका भी कोई राज़ है ?
जगपति ने कहा – भाई साहब , हमारे गांव में लोग अपना छोटा–मोटा इलाज खुद ही कर लेते है ज्यादा तकलीफ होने पर ही वैध का संपर्क करते है । इसी वजह से इनको हमेशा लोगो ने अकेला देखा है , कई सालों तक वो अपने मकान से बाहर की तरफ नही आए ।

क्या उनका कोई परिवार नही है ? – सतीश ने पूछा ।
परिवार तो था , लेकिन सिर्फ माई – बाऊजी ।
उनका भी देहांत काफी समय पहले हो चुका है , और वैध जी ने शादी भी नही करी ।

ऐसा तो क्या हुआ जिसके कारण उन्होंने शादी नही करी ? – हितेश ने जगपति को पूछा ।

कई सालों पहले गांव में एक बीमारी हुई जिसमे लोगो की जान जाने लगी , जिसका इलाज यहां वैध के पास। नही था । बीमारी में लोगो की सांसे फूल सी जाती थी और कुछ दिनों में उनकी मौत हो जाती थी , आलोकनाथ जी ने तब यहां सबके इलाज के लिए विशेष जड़ी बूटियों को बाहर से मंगवाया था । लेकिन कोई भी जगह की औषधि कोई कारगर नहीं हुई और सबकी मौत पतझड़ के पत्तों को तरह हो रही थी ।

आलोकनाथ जी ने के अलावा भी वैध यहां पर थे जो सब तरह की तरकीब अपना रहे थे लेकिन कोई भी सफल नहीं हुए ।
वैधों को कोई भी तरकीब काम न आई तब वो लोग बीमारी के डर से धीरे धीरे गांव छोड़कर चले गए और कुछ थे जो गांव में रह गए ।

आलोकनाथ जी लोगों की मौत को देखकर झुंझला उठे थे , फिर उन्होंने कई महीनों तक अपने हाथ से अलग अलग औषधि को बनाया , और उनकी बनाई वो औषधि लोगो के उपचार में सफल हुई ।
उनकी ये बड़ी सिद्धि के कारण गांव के लोगो ने मिलकर उनका अभिवादन किया और उनको बड़े सम्मान के साथ उनके रोज बरोज के खाने पीने का और उनका पूरा खयाल रखने का जिम्मा गांव वालो ने ले लिया ।

अब गांव वालो का इतना स्नेह देखकर आलोकनाथ भावविभोर हो गए थे , उन्होंने अपने माता पिता के मर जाने के बाद गांव वालो को ही अपना परिवार मान कर अपनी ज़िंदगी गांव वालो के लिए समर्पित कर दी और उन्होंने गांव के लोगो की सेवा के लिए शादी नही की ।
गांव में बचे कुछ वैध भी भगवान को प्यारे हो गए सिर्फ आलोकनाथ जी को छोड़कर !

ये सुनकर हितेश का मन एक अलग सी भावना से भर गया , वो वैध जिनके सामने देखकर जैसे नमन करना चाहता हो वैसे चेहरे के साथ देखने लगा ।

फिर जगपति ने कहा – गांव से मिली कुछ राशि से आज भी हर रोज उनके लिए खाने का बंदोबस्त होता है , वैध जी सिर्फ रात को एक ही समय खाना खाते है । गांव में मंडली का एक इंसान उनके रात के खाने की व्यवस्था सूर्यास्त से पूर्व करके चला जाता है ।
गांव के भले के लिए वैध जी कई बार औषधियों का प्रयोग खुद पर ही करते है , जिसके कारण कभी कभी उनकी हालत ऐसी हो जाती है ।
बात रही उनके काली नब्ज़ की तो उनकी काली नब्ज़ हर तरह की दवाई अपने शरीर में डालने की वजह से हुई हो सकती है ।

अब हितेश को लगने लगा की इस गांव ने कई लोगो की जान ली होगी , लेकिन आलोकनाथ जैसे इंसान ने कई लोगो की जान निस्वार्थ भाव से बचाई है । गांव भले ही रहस्यम रहा है लिए यहां के लोग जगपति और आलोकनाथ जैसे भोले और दयालु लोग के कारण आज भी निरापद है ।

उसी समय वहां बिल्ली का बच्चा मुंह में एक कांच के टुकड़े को अपने मुंह में लेके आया और वही पे रख के बैठ गया । ये वही टुकड़ा था जो कल जिस बर्तन में गुर्दे को रखा गया था और वो गिरने की वजह से टूट गया था ।
हितेश बिल्ली को देखकर सोच ने लगा की जब भी वो लोग यहां आते है बिल्ली उनको वैध जी के घर पे ही मिलती है । अभी आज भी जब से वो सब वैध के घर पे आए है तब से वो उनके साथ या पीछे पीछे घूम रही है ।

हितेश बिल्ली को अपने पास ले आने के लिए उठा और उसके हाथ जैसे बिल्ली को उठा ने के लिए उसको छुए तभी बिल्ली सतर्क हो गई और वो हितेश के हाथों से फिसल के बाहर की तरफ भाग गई ।

किसी को चोट न लगे ये सोच कर सामने पड़े हुए कांच के टुकड़े को जगपति उठा के कूड़ेदान में रखने जाता है और तभी उसको हाथ में वो कांच का टुकड़ा लग जाता है ।
हाथ में कांच लगने की वजह से जगपति का खून बहने लगता है और ज़मीन पर गिरने लगता है ।
हितेश वहां से जल्दी से उठ जाता है और जगपति के हाथ में खून को रोकने के लिए पट्टी लेने यहां वहां जाता है , वो दवाई ढूंढते वही कमरे की तरफ आता है जहां आलोकनाथ बेहोश पड़ा था । वहां उसे दवाई का डब्बा दिखता है , जिसमे बड़े और छोटे प्रकार के कई मलहम रखे हुए थे ।
वहां से हितेश मलहम लेने के बाद जगपति की तरफ जल्दी से चलने लग जाता है , और वो जब कमरे से बाहर की तरफ जाता है तभी उसकी नजर एक शीशी की तरफ जाती है जिसका रंग आलोकनाथ के हाथ में शीशी से मिलता जुलता होता है ।
लेकिन वो अभी उसको अनदेखा करके बाहर की तरफ आता है , वो देखता है की जगपति का खून जमीन पर ज्यादा ही गिरा हुआ था ।

वो जगपति के नजदीक जाता उससे पहले वो बिल्ली खून की बू सूंघ कर अंदर की तरफ आती है और वहां पड़े खून पे अपनी जबान को लगाकर चाटने लग जाती हैं । फर्श पे पड़े खून को चाटने के बाद जैसे उसको और खून चाहिए वैसे वो जगपति और हितेश की तरफ देखने लग जाती है । फिर जैसे ही जगपति के हाथ से एक बूंद गिरती है वो उसको तुरंत चाट लेती है , और अचानक से वो वहां से कूदकर जगपति के हाथ पे बैठ जाती है और घाव पे अपनी जुबान फिराने लगती है ।

ये देखकर हितेश ज्यादा अचंभित हो जाता है , वो जल्दी से जगपति के हाथ से बिल्ली को भगाता है और जगपति का घाव साफ करता है । उसपे महलम लगाने के बाद उसके ऊपर पट्टी लगा देता है और पट्टी के ऊपर भी एक बड़ा सा कपड़ा ढंक देता है जिससे बिल्ली फिर से उसके ऊपर आकर न बैठे ।

सतीश की हालत तो जैसे पानी मांगने तक की नही रहती है , और जगपति भी अभी थोड़ा डर सा जाता है ।
तभी हितेश कहता है – हो सकता है बिल्ली भूख की वजह से ऐसा बर्ताव कर रही हो , क्यू की वो कल से अंदर की तरफ बंद थी ।

जगपति ने बोला – हां , लेकिन अचानक से उसका ऐसा बर्ताव मुझे थोड़ा परेशान कर गया । उसने इतनी जल्दी खून की गंध कैसे सूंघ ली , और उसने फर्श पे पड़े खून को चाट के साफ भी कर लिया । क्या माजरा है कुछ समझ नही आ रहा मुझे यहां अभी भाई साहब !

हितेश भी जगपति की बात को लेकर सोच में पड़ गया , और फिर बोला – हां चाचा , आपकी बात सोचने जैसी है , लेकिन अब सब बातों का जवाब आलोकनाथ जी के पास ही मिलेगा ।

वैध होकर भी कुछ चीज उनके घर में ऐसी थी जो कुछ भयानक थी और कुछ रहस्यमय थी , जहां वो चीज उनको नकारात्मकता का आभास करवाती थी ।

तभी सोफे के ऊपर लेटे हुए आलोकनाथ की करवट की आवाज आती है , और सब लोग उनकी तरफ देखने लग जाते है लेकिन करवट लेने के बाद भी आलोकनाथ अभी तक होश में नहीं आए थे । वो अभी भी गहरी नींद में थे और बड़े सुकून से सो रहे थे , उनको देखकर फिर सबके मुंह पे उदासी की लहर छा जाती है ।

क्या है वो बिल्ली का राज ? क्या आलोकनाथ जगपति के कहे अनुसार अच्छा इंसान है या बात कुछ और है ?
क्या आलोकनाथ अपने बारे में सबको सच बताएगा ?
जान ने के लिए पढ़ते रहिए हमारी कहानी भयानक यात्रा ।