भयानक यात्रा - 25 - इंसानी पैरों के निशान । नंदी द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

भयानक यात्रा - 25 - इंसानी पैरों के निशान ।

हमने पिछले भाग में देखा की...
रात के अंधेरे में किसी के चिल्लाने की आवाज सुनकर सब लोग सतर्क हो जाते है , चिल्लाने की आवाज सुनकर हितेश वहां जाने के लिए कहता है जहां से आवाज आ रही होती है , लेकिन जगपति उसको मना करता है । लेकिन थोड़ी देर बाद फिर से आवाज आने के बाद हितेश वहां आवाज की तरफ चल देता है । ये देखकर जगपति भी उसके पीछे चला जाता है । वहां किसी लोमड़ी को फंसे देख हितेश उसको तारो में से निकालता है और सबके बीच ले आता है । लाल लोमड़ी को देख सुशीला बताती है को अगर इस तरह लाल लोमड़ी कहीं फस जाति है तो उनका झुंड सामने वाले पे हमला कर देता है । लेकिन हितेश सब बातो को अनदेखा करके उसकी पट्टी कर खूंटे से बांध देता है ।
रात बीत जाने के बाद सुबह के समय जब हितेश लोमड़ी को देखता है तो वहां पे लोमड़ी गायब होती दिखाई है ,और वहां एक नही बहुत सारी लोमड़ी के पैरों के निशान होते है । ये देख सब लोग डर जाते है , तभी हितेश देखता है की लोमड़ी के पैरों के साथ कोई इंसान के भी पैर वहां दिख रहे होते है ।

अब आगे .....
*******************************
लोमड़ी के बहुत सारे पैरों के निशान को देखकर हितेश और वहां मौजूद सब लोगों के होश उड़ जाते हैं । जहां
लाल लोमड़ी ने उनको कोई तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया था वो देखकर भी वो आश्चर्य से भर जाते है ।
हितेश जब पैरों के निशान के पास जाकर देखता है तो उसको खोली से लगभग पचास मीटर दूर कोई इंसान के पैरों के निशान भी देखने मिलते है ।

जब हितेश किसी के पैरों के निशान देखता है तो उसे लगता है की कोई लोमड़ी के पूरे झुंड का संचालन किसी इंसान कर रहा है ।

वो जगपति को देखकर कहता है – यहां पर किसी इंसान के पैरों के भी निशान मौजुद है चाचा ! जैसे कोई लोमड़ी को अपने साथ लेके आया हो ।
जगपति और सब एक साथ वहां पहुंच जाते है जहां इंसान के पैरों के निशान होते है ।
वो पैरों के निशान सामान्य इंसान से लगभग दो इंच से ज्यादा बड़े थे । वो पैर के निशान दबाव के कारण जमीन में निशान छोड़ गए थे ।

वहां के निशान देखकर उनको ये आश्चर्य होता है की ऐसा कौनसा इंसान है जिसका पैर इतना बड़ा है । हितेश आसपास की तरफ नजर घुमाता है लेकिन उसे कोई दिखता नहीं है , फिर वो लोग पैरों के निशान देखने के कुछ देर बाद खोली में चले जाते है ।
हितेश को अब ये समझ आ जाता है की यहां रहना है तब तक उसको यही सब चीजों को देखना भी पड़ेगा ।

वो सब अंदर जाकर बैठे ही होते है तब जगपति के पिता वहां आते है उनको देख कर सतीश फिर से हड़बड़ाने लगता है । वो बैठे बैठे ही इधर उधर खिसक ना चालू कर देता है , जिसकी वजह से हितेश उसको सम्हालने की कोशिश करता है ।
जगपति के पिता को सतीश का ऐसा बर्ताव देखकर अच्छा नहीं लगता है । वो एक नजर हितेश पे डालकर थोड़े मायूस से हो जाते है , और फिर से अंदर की तरफ जाने के लिए मुड़ जाते है ।
तभी हितेश कहता है – दादा जी , सुनिए !
हितेश की आवाज सुनके जगपति के पिता वही पे रुक जाते है और हितेश को देखने लग जाते है ।
क्या हुआ बेटा ? – जगपति के पिता कहते है ।
दादा जी , आप को मायूस होने की जरूरत नही है । आप हमारे साथ बैठिए – हितेश ने कहा ।
ये सुनकर सतीश और ज्यादा विचलित हो जाता है ।
तभी हितेश सतीश के दोनो कंधो को पकड़ कर जगपति के पिता के सामने बिठा देता है और कहता है – सतीश , अब तुम कब तक इनसे डरोगे ? ये एक जगपति चाचा के पिता है ।
तभी जगपति के पिता कहते है – बेटा , हमारे साथ हुई घटना के कारण हमारा चेहरा खराब हुआ है , और अकेला आपका दोस्त ही नही मेरे से चेहरे के कारण बड़े और बच्चे सब डरते है ।

हितेश तभी जगपति के पिता को कहता है – हमे माफ करिए दादा जी ! सतीश पहले से थोड़ा डरा हुआ है जिसके कारण वो आपसे ज्यादा डरता है । थोड़े दिन में वो आपसे घुलमिल जायेगा ।
अभी भी जगपति के पिता ने अपने मुंह पे बड़ा सा कपड़ा ढंक के रखा था लेकिन उनकी जली हुई चमड़ी आंखो पे ज्यादा डरावनी दिख रही थी ।

थोड़ी देर जगपति के पिता जी हितेश के साथ बातचीत करके अंदर की तरफ चले जाते है । डिंपल और जूली दोनो सुशीला की मदद करके सबके लिए खाना बना लेते है ।
खाना खाने के बाद हितेश जगपति से कहता है , हमे सतीश के पट्टी के लिए वैध के पास भी आज जाना है ।

जगपति हितेश से कहता है – हां , आप लोग तैयार हो कर बाहर आ जाओ , तब तक में गाड़ी को साफ कर लेता हूं !
हितेश जगपति को कहता है – ठीक है , चाचा ।

जगपति जल्दी से अपने गाड़ी को साफ कर लेता है और हितेश और सतीश का इंतजार कर रहा होता है ।
तभी विवान और हितेश सतीश को लेकर बाहर आ जाते है ।
वैसे अभी सतीश की हालत दवाई की वजह से ठीक थी , उनको बस पट्टी को बदलने के लिए वैध के पास जाना था ।
हितेश और जगपति सतीश को पीछे की सीट में बिठा कर वैध आलोकनाथ के घर की तरफ चल देते है ।

गाड़ी में बैठे जगपति और हितेश को वैध के कमरे में रखे जीवों को याद कर वो लोग थोड़ा सा कांप से जाते है लेकिन सतीश का इलाज भी जरूरी था तो वहां जाना ही था ।
जगपति अपनी गाड़ी को बड़े ही आराम से चलाते बोला – भाई साहब ! एक बात तो है , इतने सालो में मैने एक चीज देखी है ।
हितेश गहरी सांस लेके कहता है – क्या चीज़ चाचा ?
जगपति कहता है – यहां गांव की मिट्टी जिसको यहां पकड़ लेती है उसको कभी गांव से बाहर जाने नही देती , उसको गांव में बसा लेती है या मार देती है ।

ये सुनकर हितेश अफसोस के साथ कहता है – हां , हम बच गए है लेकिन गांव में हमे पकड़ के रखा गया है ।
जगपति कहता है – हां , अब इस बात की खुशी मनाए की दुख वही समझ नही आ रहा भाई साहब ।
यही सब बात करते करते वो लोग वैध के मकान के सामने पहुंच जाते है , और वो सब गाड़ी से उतर जाते है ।
अभी भी थोड़ा दर्द के कारण सतीश को चलने में दिक्कत हो रही थी जिसके कारण हितेश उसको कंधा देकर चल रहा था ।

तभी जगपति ने आगे जाकर वैध जी के घर का दरवाजा खटखटाया , लेकिन जगपति को कोई प्रतिउत्तर अंदर की तरफ से नही मिला ।
उसने फिर से दरवाजे पर दस्तक दी , और बाहर इंतजार करने लगा ।
लेकिन जब दूसरी बार भी उस को कोई जवाब न मिलते देख उसने एक नजर हितेश और सतीश के सामने डाली और बोला – वैध जी दरवाजा नहीं खोल रहे है , शायद उनको दस्तक की आवाज नही जा रही है ।

तभी हितेश अपने सहारे सतीश को लेकर वहां पहुंच जाता है , उसको वहां बाहर की तरफ बिठाकर वो जगपति के पास चला जाता है । दरवाजा अभी भी बंद था इसीलिए हितेश दरवाजे पे दस्तक थोड़े जोर से लगाता है , उसका हाथ जोर से दरवाजे पे लग जाने के कारण हल्के से लगी हुई कुंडी अंदर की तरफ से खुल जाती है ।

हितेश थोड़ा पीछे की तरफ हो जाता है , और दरवाजा एक बच्चे की खिलखिलाहट की आवाज की भांति धीरे धीरे खुल जाता है । सन्नाटे की वजह से दरवाजा खुल ने की आवाज भी मन के विचारों को और ज्यादा ही कमजोर कर रही थी । अंदर की तरफ एकदम अंधेरा था , कहीं से कोई रोशनी नहीं दिख रही थी । दरवाजे पे खड़े हितेश , सतीश और जगपति अंदर की तरफ कदम उठाते ही है तभी उनके ऊपर कोई हमला करता है ।
अचानक हमले से हितेश डर के मारे गिर जाता है , उनको कुछ समझ नही आता है की अचानक से हमला किस चीज ने किया ! सतीश और जगपति दरवाजे पे खड़े के खड़े रह जाते है ।
हितेश अब सतर्क हो जाता है , वो अपने मोबाइल की टॉर्च से रोशनी करता है और अंदर की तरफ जाने लगता है । हितेश के पीछे पीछे जगपति और सतीश भी आने लगते है ।

हितेश जैसे जैसे आगे की तरफ जा रहा होता है उसकी धड़कने तेज हो रही होती है , लेकिन जब उसकी नजर रोशनी में चमक रही दो आंखो पर पड़ती है वो चौंक सा जाता है । अंधेरे में जैसे किसी की आंखे उनपे नजर रख रही हो वैसे कोई उनको देख रहा होता है ।

हितेश जब थोड़ा नजदीक जा कर देखता है तो वो आंखे दिखना बंद हो जाती है और किसी के भाग ने की आवाज आती है । जैसे ही हितेश वहां की तरफ मोबाइल को घुमाता है वो देखता है की बिल्ली का वही छोटा बच्चा खिड़की पे जा कर बैठा हुआ था ।
ये देख कर उसके जान में जान आती है , उसको समझ आ जाता है की दरवाजे पे भी यही बिल्ली के बच्चे ने डर के कारण उन पे हमला कर दिया होगा ।

फिर यहां वहां टॉर्च घुमाने के बाद कमरे की रोशनी करते है और वो देखते है की वैध वहां कमरे में नही होता है । लेकिन मकान के अंदर किसी झहरीले किस्म की बदबू आ रही होती है , जो सबके अंदर आते और ज्यादा तेज हो जाती है ।
कमरे में चारों तरफ धुंआ जमा हुआ था , और कमरे में आ रही बदबू अब उनकी आंखो को और नाक को और ज्यादा जला रही थी ।
वो धुंआ गले में जाने की वजह से उनको गले में तकलीफ होने लगी और सब ने जोर जोर से खांसना चालू कर दिया ।

सबने अपने मुंह पे कपड़ा रख दिया जिसकी वजह से नाक और मुंह दोनो ढंक जाए । लेकिन आंखों में हो रही जलन को वो लोग रोक नही पा रहे थे ।
हितेश ने टूटी हुई आवाज में कहा – चाचा , धुंआ... कहां से आ रहा है ?
जगपति ने कहा – भाई साहब , किस तरफ से आ रहा है वो तो नही दिख रहा है लेकिन अब धुआं ज्यादा ही जलन कर रहा है । हो सकता है वही कमरे से आ रही हो जहां पर वैध जी ने जीवों को कांच में बंद करके रखा है ।

हितेश , धुआं जहां जहां से आ रहा था उस दिशा में जाने की कोशिश करता है लेकिन सब जगह पे कोई रास्ता उसे नहीं दिखता । वहां खिड़की पे बैठी हुई बिल्ली कूदकर नीचे की तरफ आती है , और वो उन सबके सामने जाकर बैठ जाती है ।
ये देखकर सतीश थोड़ा डर जाता है और हितेश से चिपक जाता है ।
तभी हितेश की नजर एक दूर पड़े बोतल की तरफ जाती है , जिसमे से धुआं अभी भी धीरे धीरे निकल रहा होता है ।
वो मुंह पे कपड़े को ओर जोर से दबा कर वो बोतल की तरफ बढ़ने लगता है । वो देखता है की बोतल के ऊपर बिल्ली के दांतो के निशान बने हुए होते है जो बोतल पे छिद्र बनाए हुए थे ।

वो बोतल पे लिखा हुआ था आंसु गैस ! हितेश ये देखकर समझ जाता है की बिल्ली ने बोतल को अपने दांतो से नोच लिया था जिसकी वजह से गैस के कारण उनको जलन हो रही है । धुआं अभी भी उनको परेशान कर ही रहा था लेकिन उनको वैध कहीं नहीं दिख रहा था इसी कारण हितेश ने अपने मुंह से कपड़ा हटाया और आवाज लगाई – वैध जी आप कहां हो ?
दो – तीन बार आवाज लगाने के बाद भी वैध ने जवाब नही दिया तो वो लोग दूसरे कमरे की तरफ बढ़ चले ।
वो लोग जैसे जैसे कमरे की तरफ जा रहे थे , पीछे पीछे बिल्ली भी उनके साथ आ रही थी ।

हितेश जब कमरे के दरवाजे पे पहुंचा तो कमरे का दरवाजा अटकाया हुआ था , बाहर से उसने कमरे की तरफ से देखा की कोई फर्श पे लेटा हुआ है ।

कौन था वो शख्स जो लोमड़ी के साथ आया हुआ था ? वैध के मकान में आंसू गैस कहां से आई ? बंद कमरे में लेटा हुआ इंसान कौन है ?
जान ने के लिए बने रहिए हमारी कहानी भयानक यात्रा के साथ ।