भयानक यात्रा - 24 - लाल लोमड़ी। नंदी द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

श्रेणी
शेयर करे

भयानक यात्रा - 24 - लाल लोमड़ी।

हमने पिछले भाग में देखा की....
जगपति , हितेश और सतीश वैध के पास गए होते है वहां उसके घर पे हुई घटना पे वो ज्यादा अचरज में होते है , वो ऐसी ही हालत में घर पे आते है । उनकी ये हालत देख कर सबकी चिंता होने लगती है , सबको उनके पास बाहर ही बैठ जाते है । सतीश के से जाने के बाद हितेश डिंपल और जूली को घर जाने की बात करता है लेकिन दोनो उनको मना कर देता है , तब हितेश उन सबको साथ में रहकर समझता है की वो भले ही ६ लोग आए थे लेकिन अब सिर्फ ४ ही लोग है । दूसरी तरफ आलोकनाथ कोई शीशी में से कोई प्रवाही का सेवन करता है जिसकी वजह से वो थोड़ी देर में अचेत हो जाता है । जगपति के घर पे सब लोग बैठे बात कर रहे होते है तब जगपति अपने घर को यहां पर होने का रहस्य बताता है । वो लोग बात कर ही रहे होते है तभी किसी की अंधेरे की तरफ से चिल्लाने की आवाज आती है । वो लोग वहां सतर्क होके खड़े हो जाते है और आवाज की दिशा में देखने लगते है ।

अब आगे ......
*******************************
अंधेरे की तरफ से आवाज आने की वजह से सबके कान खड़े हो जाते है , वो लोग आवाज की दिशा में देख रहे होते है तभी साथ में उनकी धड़कने भी तेज हो जाती है ।
जगपति सबकी तरफ देख के बोलता है – कोई यहां से वहां नही जायेगा , ये आवाज कई बार यहां पर आती है ।
ये सुनकर हितेश कहता है – लेकिन हमे एक बार देखना चाहिए , हमे पता भी तो चले की कौन है वहां !

जगपति और सुशीला एक दूसरे के सामने ये सुनकर देख ने लगे जैसे उनकी आंखो में साफ साफ ना हो । वो
लोग जब ये सोच कर चिंतित थे तभी उसी समय फिर से किसी के चिल्लाने की आवाज आई ।
तब हितेश अपना मोबाइल की टॉर्च जलाकर अंधेरे की तरफ चल दिया । ये देख कर जगपति उसको नही जाने के लिए चिल्लाया लेकिन हितेश के कान जैसे कुछ सुन ही नही रहे थे ।
जगपति सुशीला को सबका खयाल रखने बोला और वो भी हितेश की तरफ अंधेरे में दौड़ पड़ा । ये देख कर सबको आशंका होने लगी की कुछ बुरा होने वाला है ।

अंधेरे की तरफ बढ़ रहे हितेश के कदम एक दुबकती हुई बिल्ली के समान थे , जैसे वो छुप छुपाते किसी को पकड़ना चाहता हो । उसके पीछे आ रहे जगपति ने धीरे से हितेश से कहा – भाई साहब , मेरी मानो तो हमे यहां नही आना चाहिए , रात का मामला है और यहां ऐसी वारदात होती रहती है । लेकिन कोई भी हमारे यहां ऐसे अंधेरे में निकलने की जुर्रत नहीं करता है ।
ये सुनकर हितेश बोला – अगर हम सब चीजों से भाग ते रहेंगे चाचा , तो हमे पता कैसे चलेगा की ये सबके पीछे हो क्या रहा है ।
हितेश जब ये बोल रहा था तभी उनके सामने की तरफ से फिर से चिल्ला ने की आवाज आती है , वो दोनो ये सुनकर सतर्क हो जाते है । जैसे कोई लड़की की आवाज आ रही हो वैसे कोई आवाज निकाल रहा होता है ।

हितेश चारों तरफ अपने मोबाइल से टॉर्च की रोशनी को घुमाता है , तभी उसको वहां दूर कोई जानवर पड़ा दिखता है ।
वो लोग उसके नजदीक जाते है और देखते है की वो एक लाल लोमड़ी होती है , जगपति ये देखकर अचरज से कहता है – भाई साहब , ये तो लाल लोमड़ी है , ये एक औरत की तरह आवाज निकाल ती है ।
हितेश उसको सही तरीके से देखता है तो पता चलता है की वो लोमड़ी का पैर खेतों में लगे तार में फंस गया होता है जिसके कारण उसके पैर से खून निकल रहा होता है , फंसे पैर के कारण वो लोमड़ी वहां से निकल नही पा रही होती , और वहीं पे दर्द के कारण ऐसे रो रही होती है ।

तुरंत जगपति अपने गमछे से उसका मुंह बांध देता है , और उसके फसें हुए पैर को वहां से निकाल लेता है , दूसरी तरफ हितेश लोमड़ी को कसकर पकड़ कर रखता है और उसके पैरों को बांध देता है । लोमड़ी कई प्रयासों के बाद भी फसे हुए पैर के कारण वहां से नही निकल पाती है इसीलिए वो अभी भी हांफ रही होती है और उसका शरीर कमजोर भी हो गया होता है ।

जगपति और हितेश लोमड़ी को वहां से लेके जगपति के घर की तरफ ले जाने के लिए उठते है और अंधेरे से बाहर आ जाते है , दूर से दोनो को सही सलामत आते देख सबकी जान में जान आती है । लेकिन उनको हितेश के हाथ में रही लाल लोमड़ी को देखकर सबको बड़ा आश्चर्य होता है , उनको दूर से लगता है की उन्होंने कोई कुत्ते को गोदी में उठा के रखा है ।

जगपति और हितेश जब उनके नजदीक आते है तब लाल लोमड़ी को देखकर वो डर जाते है ।
सुशीला कहती है – ये तो लोमड़ी है , इसको यहां क्यूं लेकर आए हो ?
हितेश ने बड़े शांत दिमाग से कहा – ये अंधेरे में लगाए हुए खेतों के तार में उसका पैर फैंस गया था , और उसको निकालने की जहमत में उसका पैर जख्मी हो गया था । वहां से नही निकल ने के कारण वो दर्द से रोने की आवाज निकाल रही थी ।
तभी सुशीला का चेहरा थोड़ा चिंतित हो जाता है , और जैसे वो कुछ कहना चाहती हो वैसे सबके सामने देखने लगती है ।
डिंपल ये देखकर सुशीला को पूछती है – क्या हुआ चाची , आप इतने चिंतित क्यूं हो गए ?
सुशीला कहती है – हमारे पिता जी के घर पे भी ऐसे वारदात होते रहते थे , जहां अगर लाल लोमड़ी दिख जाए तो हमारे पिता जी उसको वहीं पे छोड़कर आ जाते थे !
डिंपल ने पूछा – क्यूं ?
सुशीला और जगपति साथ में बोल उठे – कहते है !
ये बोलकर दोनो रुक गए , फिर सुशीला ने अकेले कहना चालू किया – कहते है की लाल लोमड़ी अगर कहीं परेशानी में होती है या फिर कहीं अकेली फंस जाती है तो वो एक औरत की आवाज में रोना चालू करती है । उसका ऐसे रोने का मतलब होता है की वो अपने साथियों को बुला रही होती है , उसकी आवाज उतनी तेज होती है की दूर तक उसकी आवाज लोगो को सुनाई देती है ।
लाल लोमड़ी हमेशा झुंड में रहती है , दूसरी लोमड़ियां अपने साथी को परेशानी में देखकर सामने वालों पे साथ मिलकर हमला कर देती है ।

ये सुनकर सबकी आंखों में थोड़ा डर दिखने लगा , लेकिन हितेश ने कहा – हम इसे सिर्फ यहां इसका इलाज हो जाए उसी कारण ले आए है और वैसे भी अभी उसका मुंह बंधा हुआ है तो वो अभी कुछ कर नही पाएगी ।
जैसे ही वो ठीक हो जाएगी हम उसे आजाद कर देंगे , वैसे भी सिर्फ पैरों में जख्म पे दवाई ही तो लगानी है।

ये सुनकर भी सुशीला और जगपति को संतुष्टि नहीं हुई , क्यू की गांव में लोगो से सुनी हुई बातों से उनको परिस्थिति की गंभीरता पता थी । वैसे भी ये गांव जितना रहस्यमय था उतनी यहां की चीज़े और लोग भी रहस्यमय थे ।
फिर , जगपति घाव पे लगाने वाली दवाई अपनी खोली में से लेकर आया और हितेश ने लोमड़ी के पैर पे वो दवाई लगा दी , और उसके ऊपर एक छोटा सा कपड़ा बांध दिया ।

समस्या के जैसे आदि हो चुके हितेश ने देखा की लोमड़ी का शरीर अभी शक्ति विहीन होने के कारण लोमड़ी का साथ नही दे पा रहा था , और थोड़ी ही देर बाद उसने देखा की लोमड़ी की सांसे चल रही थी लेकिन कमजोरी हो जाने के कारण वो अचेत हो गई थी ।

हितेश ने लोमड़ी का मुंह अब खोल दिया और उसको एक मोटी रस्सी से खूंटे पे बांध दिया । फिर उसको वहीं पे छोड़ सब लोग खोली के बाहर ही बैठ गए ।

अब , जगपति बोला – काफी देर हो चुकी है भाई साहब , हमे सो जाना चाहिए ।
लेकिन अब सबकी आंखों से नींद उड़ चुकी थी ।
जगपति को जवाब देते हुए हितेश ने कहा – चाचा , नींद तो जब से बर्मन गायब हुआ है तब से उड़ सी चुकी है , अब बस मुसीबतों से लड़कर हमे बर्मन तक पहुंचना है ।

हितेश की बात सुनकर बाकी दोस्त भी हितेश को साथ देते हुए बोले – हां चाचा , अब हमारा दोस्त नहीं मिलता तब तक हम चैन से बैठेंगे नही ।
फिर ऐसे ही कई देर बात करते – करते सुबह का समय जैसे होने में थोड़ा ही समय बचा था और तभी सब वहीं पे धीरे धीरे थकान की वजह से दहलीज पे सोने लगे ।
हितेश की भी आंखों ने उसका साथ नही दिया और वो भी वहीं पे बैठे बैठे सो गया ।

सुबह की पहली किरण निकलते ही सबकी आंखों पे सूरज की रोशनी गिर रही थी, सूरज की रोशनी के कारण हितेश की आंखे खुली , लेकिन थकान के कारण सब अभी भी गहरी नींद में थे ।
हितेश ने पहली नजर सतीश के खाट पर लगाई , वहां पर सतीश भी बड़े आराम से सो रहा था , लेकिन जब उसकी नजर लोमड़ी के ऊपर गई वो चौंक गया ।

जहां उसने लोमड़ी को बांधा था वहां पर से लोमड़ी गायब थी , जिस रस्सी से लोमड़ी को बांधा गया था वो रस्सी बहुत बुरी तरह से काटी गई थी , वहां बस सिर्फ टूटी हुई रस्सी का टुकड़ा पड़ा हुआ था । बात तो यह थी की वहां पर लोमड़ी के पैरों के निशान बने हुए थे , लेकिन एक लोमड़ी के नही ! एक पूरे लोमड़ी के झुंड के पैरो के निशान थे ।

ये देखकर हितेश हड़बड़ाकर जगपति को उठाने लगा और बोला – चाचा , जल्दी से उठो ! फिर सोए हुए जगपति को वो अपने हाथों से जोर से हिलाने लगा ।

हितेश की बड़ी आवाज की वजह से जगपति के साथ साथ सबकी नींद भी खुल गई , उन्होंने हितेश को ऐसे हकलाते देख कर जल्दी से उसके पास चले गए ।
जगपति ने पूछा क्या हुआ भाई साहब ? ऐसे परेशान क्यू हो रहे हो ?
हितेश ने इशारा करके खूंटे को दिखाया , और बोला – चाचा लोमड़ी गायब है , लेकिन हमने तो एक ही लोमड़ी को बांधा था और यहां पर तो बहुत सारी लोमड़ी के पैरों के निशान है ।

हितेश की बात सुनकर सबकी नजर लोमड़ी के पैरों के निशान पर गई , वहां सच में इतने सारे पैरों के निशान देख कर सबकी आंखे बड़ी बड़ी हो गई , और उनका गला सुख सा गया ।
कहते है की लाल लोमड़ी का झुंड अगर किसी पे हमला करते है तो सामने अगर बडा जानवर होता है तो लोमड़ी का झुंड उसको भी मार देता है ।

सबकी नजर लोमड़ी के झुंड के पैरो पे थी , जहां लोमड़ी को बांधा गया था वहां से दूर तक जाते हुए उनके पैरों के निशान दिखाई दे रहे थे ।
किसी को ये समझ में नहीं आ रहा था की किसी को बिना कोई नुकसान किए लाल लोमड़ी चले कैसे गई ?

सुबह का ऐसा माहोल सबको सिर में तनाव पैदा कर रहा था , दिल में हल्का सा डर बैठ गया था और खुद धड़कन भी धड़कने से डर रही थी । उनकी जिंदगी में पहली मर्तबा कुछ ऐसा हुआ जहां वो मौत को छूकर बाहर आए हो ।

कुछ देर तक ऐसे ही पैरों के निशान देखने के बाद हितेश बोला – हो सकता है उनके साथी की जान बचाने के एहसान के कारण उन्होंने हमको कोई नुकसान नहीं किया हो । वो हमे उनका दुश्मन न मानते हो
लेकिन हितेश की ऐसी बातों में कोई तर्क नहीं था , ना ही उसकी ये बात सुनकर उसकी बात पे कोई सहमत हुआ !

हितेश तभी वहां मिट्टी में बने कदमों की तरफ जाने लगा , और वहां जाके उसने देखा की वहां लोमड़ी के अलावा किसी इंसान के पैरों के भी निशान बने हुए थे । जो खोली से झाड़ियों की तरफ पचास मीटर दूर थे ।

लोमड़ी को बचाकर हितेश ने कोई गलती तो नही कर दी थी ? लोमड़ी के झुंड ने किसी को नुकसान क्यों नही पहुंचाया ? लोमड़ी के पैर के अलावा किसके पैरों के निशान थे ? हितेश अब क्या करेगा ?

जान ने के लिए पढ़ते रहिए हमारी कहानी भयानक यात्रा ।