भयानक यात्रा - 23 - जगपति की कश्मकश। नंदी द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भयानक यात्रा - 23 - जगपति की कश्मकश।

पिछले भाग में हमे देखा की....
हितेश और जगपति सतीश को लेके वैध के घर पहुंचते है , वहां पर वैध जी का हुलिया देख कर हितेश को थोड़ा आश्चर्य होता है । वैध सतीश के घावों को देखकर समझ जाता है की घाव कहीं गिरने से नही लगे है , और घाव भी जाने पहचाने नजर आते है लेकिन उसको याद नहीं आता है की उसने ये घाव कहां पर देखे है । तभी वैध के घर में दूसरे कमरे में सामान गिर ने की आवाज आती है , वैध हितेश को क्या सामान गिर है वो देखने के लिए भेजता है , वहां का नजारा देख कर हितेश हक्काबक्का रह जाता है । वहां मरे हुए कई सारे जीवों के शव को सम्हाल के रखा गया था । वो ये देखकर बाहर आता है तब उसकी हालत देख के वो भी हितेश के मन करने पे भी अंदर की तरफ देखने जाता है वहां का नजारा साख कर वो भी सुन्न सा हो जाता है । बाहर आने पर वैध उनको बताते है की वो परिक्षण के लिए रखे गए जीव है उनको डरने की जरूरत नही हैं । उपचार हो जाने के बाद सब वैध के घर के बाहर आ जातें है और गाड़ी में बैठ जाते है लेकिन उनका मन कमरे के अंदर देखी चीज़ों को भूल नही पा रहे थे ।

अब आगे.....
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आलोकनाथ के घर में देखे नजारे को हितेश और जगपति जैसे भूल नही पा रहे थे , तो दूसरी तरफ सतीश को अंश बातों के अलावा ज्यादा कुछ पता नहीं था वो अबुध सा दर्द में बैठा हुआ था ।
गाड़ी के पहिए जैसे रास्तों के ऊपर तैर रहे हो वैसे चल रहे थे , कभी दाएं कभी बाएं ।

वहां जगपति के घर पे लोग ये बात से परेशान थे की कब से वैध के पास गए हितेश जगपति और सतीश काफी देर से लौटे नही थे । इंतजार करते करते उनके शाम का समय होने आया था लेकिन उन तीनो का कोई पता नहीं था । वो लोग बाहर की तरफ बैठे हुए थे तभी जगपति अपनी गाड़ी को घर की बाहर की तरफ लाके खड़ा करता है ।
गाड़ी को आए देख कर सब लोग गाड़ी के पास जाके खड़े रह जाते है , और अचरज भरी नजर से गाड़ी के अंदर की तरफ देखने लग जाते है । मलमपट्टी लगाए सतीश अंदर की तरफ सिकुड़ के बैठा हुआ था और हितेश और जगपति मुख पे निर्भाव लेकिन दिल में बवंडर लेके बाहर की तरफ गाड़ी में से उतरे ।
दोनो ने सतीश को उठा के बाहर खाट के ऊपर लिटा दिया ।

सबने देखा की हितेश और जगपति के चेहरे पे तोते उड़ हुए थे , वो नही कुछ बोल रहे थे ना ही उनकी नजर ऊपर की तरफ उठ रही थी । वो बस गर्दन जुका कर कहीं इधर या कहीं उधर चले जा रहे थे ।

सुशीला ने जगपति को आवाज लगाई – जी ! अब आप कुछ बोलोगे भी या नहीं ? हम कबसे आप तीनो के देखे जा रहे है और आप हो की चुप – चाप से यहां वहां हो रहे हो ।
सुशीला की आवाज सुनकर जगपति ने सुशीला की तरफ देखा फिर उसने मुंडी नीचे करके एक अलग तरीके से सिर हिला दिया जैसे सुशीला उसको समझ नही रही हो ।
सुशीला जगपति का ये व्यवहार पहली मर्तबा देख रही रही इसीलिए उसको भी जगपति की चिंता होने लगी और फिर वो बोली – ठीक है आप कुछ न बोलिए , बस यहां आकर शांति से बैठ जाइए ।
सुशीला की बात सुनकर बिना बोले जगपति और हितेश एक तरफ जाके बैठ गए । सतीश को आलोकनाथ ने जो दवाई लगाई थी जिसके कारण उसका दर्द जरूर कम हुआ था और खाट पे सोते ही उसने नींद की गाड़ी पकड़ ली थी ।

डिंपल और जूली दोनो हितेश के कंधो पर हाथ रखकर बैठ गए , जो हितेश को उनका छूना भी अभी बेजार कर रहा था । अब हितेश को ऐसा लग रहा था की कब तक रहस्यमय तरीके से लड़ना पड़ेगा ?

थोड़ी देर पर्यंत जगपति और हितेश थोड़े विचारो से दूर हुए और चेहरे पे चिंतित भाव कम हुए तब वो थोड़े स्वस्थ लगने लगे । सुशीला ने दोनो को पानी लाके दिया और कहा – सतीश भाई साहब के घाव कब तक ठीक हो जाएंगे ?
सुशीला वैसे उनसे ये जान ना चाहती थी की उनको क्या हुआ है , लेकिन सीधा सीधा ना पुछके उस ने अलग तरीके से बात करने की कोशिश करी ।
जगपति ने कहा – वैध जी ने वैसे कहा है , २ दिन में घाव भर जायेंगे लेकिन दुविधा अभी बहुत सारी है ।

हितेश ने डिंपल और जूली को कहा – आपलोग हो सके तो यहां से शहर चले जाओ , मैं सतीश और विवान यहां रहकर बर्मन के बारे में पता लगाने की कोशिश करते है ।
हितेश की आवाज दबी हुई थी जिसकी वजह से उसमे दर्द और चिंता खुले तरीके से जाहिर हो रही थी।
हितेश को इस तरह से बात करते देख डिंपल और जूली समझ गए की कुछ ऐसा घटित हुआ है जिसके कारण हितेश को उनकी भी चिंता हो रही है । वो चाहता है की लड़कियां सलामत रहे ।
डिंपल ने कहा – तुम तो जानते हो , हम कभी अलग नहीं हुए चाहे कितनी भी परेशानी हो , और अभी तो हम सबको एक दूसरे की जरूरत है । इस परेशानी के दौर में हम आप लोगो को छोड़ कर कैसे जा सकते है ?
फिर जूली ने कहा – हितेश , हम हमेशा से साथ थे और रहेंगे भले ही फिर हमारी जान भी क्यूं ना चली जाए ।

हितेश को जूली और डिंपल की बात सुनकर बहुत ज्यादा खुशी हुई और उसके आंखे से आंसू आने लग गए , विवान भी भावुक सा हो गया ।
हितेश ने फिर सबको कहा – मुझे कुछ बात करनी है , जो शायद हमे यहां रहने के लिए हिम्मत दे सकती है ।
हितेश ने कुछ देर मौन रहने के बाद फिर से कहा – मैं जो बात बताने जा रहा हूं वो ध्यान से सुन ना , और उसने कहना चालू किया ।
हितेश बोला – पहले हमारे साथ ऐसा हुआ जिसके कारण हम परेशानी झेल रहे है वो है बर्मन का गायब होना , दूसरी बात सतीश का नींद में कहीं आना जाना जो हमे समझ नही आ रहा है । हम लोग यहां ६ आए थे अब हम समझलो की ४ ही है । बर्मन तो गायब है जो पूरी तरफ से है ही नही ऐसा समझ लो , दूसरी तरफ सतीश भले ही यहां हमारे साथ है लेकिन उसको हमारे साथ ना के बराबर गिनो , उसके साथ क्या होता है खुद उसको भी नही पता होता ।

बचे हम ४ लोग जहां , मैं और विवान दूसरी तरफ डिंपल और जूली । हमारे साथ जगपति चाचा का साथ रहेगा । तो जबतक बर्मन नही मिल जाता हमे चारों को मिलकर हर मुसीबत का सामना करना पड़ेगा ।
फिर हितेश ने एक बार जगपति के सामने देखा फिर सबको वैध आलोकनाथ के वहां की घटना बताई , जिससे सबको घोर आश्चर्य हुआ और हितेश की बात को समझ कर चुप से बैठ गए ।

लगातार २ दिनों से परेशान होते होते अब सबको ये समझ में आ गया था की गांव से निकलना उनके लिए इतना आसान नहीं होने वाला है ।
कुछ देर बात करते करते सब खोली में भोजन करने हेतु चले गए , सतीश भी अभी नींद से उठ चुका था ।

शाम का भोजन कर लेने के बाद सब लोग खोली की बाहर की तरफ बैठ जाते है , और बाहर के मौसम का आनंद उठा ने लग जाते है । आसमान का रंग एकदम काला हो चुका था और उसमे बड़े से सफेद दीये के साथ कई सारे छोटे छोटे बालक आसमान में अपना खेल दिखा रहे थे ।

आज जगपति ने हितेश के साथ बाहर ही सोने का निर्णय ले लिया था , उसी कारण उसने सतीश और हितेश के बगल में अपना बिस्तर पहले ही जमा लिया था । छोटी खोली के कारण एक साथ सबका अंदर सो जाना कठिन था ।

विवान ने जगपति से कहा – चाचा , आप हमारा सहारा बन कर खड़े न होते तो हमारा क्या होता ? हम आपका ये उपकार कभी भूल नही पाएंगे ।
सबने विवान की बात से सहमत होते हुए जगपति को दिल से धन्यवाद करा ।
जगपति ने सबकी तरफ हाथ जोड़कर बोला – हम आपकी सेवा कर सके वो हमे अच्छा लगा । आप लोग को हमने बच्चा माना है तो हमारा फर्ज है आपका मुसीबतों में साथ देना ।

यही समय पे वैध आलोकनाथ अपने मकान में बैठे सोच रहा था की , उसने सतीश के शरीर पर देखे घाव को कब देखा था ? इतने सालों का तजुर्बा उन्हे ये बता रहा था की ये कोई गिरने की वजह से हुई चोट तो नही थी । ये चोट कोई असाधारण कृत्य के कारण हुई थी ।
उसके बाद आलोकनाथ ने एक शीशी में थोड़ा प्रवाही डाला और उसको लोहे की नाली के बीच में दबाकर अच्छी तरह से मिलाया ।
शीशी जब पूरी तरह से अपना रंग बदल चुकी तब उसने शीशी को लोहे की नाली से बाहर निकाला और उसका ढक्कन खोल दिया । आलोकनाथ ने जैसे ही ढक्कन खोला उसमे से झाग निकलने लगी और उस प्रवाही से नीले रंग का धुंआ निकलने लगा । प्रवाही से अभी तक झाग निकल ही रहा था तभी आलोकनाथ वो प्रवाही को अपने मुंह पे लगा कर पीने लगे । शीशी से प्रवाही को पूरा पी जाने के बाद उनका शरीर भारी होने लगा , अब वो अपने आप को सम्हाल नही पा रहे थे और धीरे धीरे अपना होश खोने लग गए । उनका शरीर ढीला पड़ गया और वो वहीं पे लुढ़क गए और अपनी चेतना को को बैठे ।

यहां जगपति के घर पे चल रही बातों में हितेश ने सुशीला को कहा – चाची , क्या आप को कभी यहां किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा ?

ये सुनकर सुशीला जवाब दे उससे पहले जगपति बोला – हमारे गांव में सब लोग रात को बाहर निकलना ज्यादातर टाल देते है , और जरूरी काम हो तो भी अकेला इंसान गांव में कही नही जाता । हम कभी रात को बाहर की तरफ नही सोते है , हमारे बाऊजी पहले सोया करते थे लेकिन उनकी उमर के कारण वो भी अब अंदर ही सो जाते है और दिन में तो परेशानी बहुत कम होती है यहां । इसी सब कारण सुशीला को ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा ।

वैसे हमने देखा है की महोल्लें में यहां घर पास पास है लेकिन आपकी खोली जहां है वहां चार सो मीटर आसपास पे कोई मकान नही है । – हितेश ने कहा ।

जगपति ने कहां – हां , हमारी खोली जहां पर है वहां हमारे बाऊजी के बाऊजी का खेत हुआ करता था ।
उनका मकान गांव के सरकारी इमारत के पास था , लेकिन उनको वो मकान सरकारी बाबू के दबाव में आकर कम पैसों में बेच देना पड़ा । फिर उन्होंने अपने परिवार को यहीं पे बसा लिया ।

जगपति की बात सुनकर सबको दुख हुआ की गरीब इंसानों को हमेशा ऐसे ही दबा दिया जाता है । अगर उनमें कोई अपने हक में आवाज भी उठाता है तो या तो उसको मार दिया जाता है या फिर उसको गलत मामले में फंसा कर हवालात भेज दिया जाता है ।

जगपति ने फिर बोला – हमारे बाऊजी ने हमको पालने के लिए खूब खून – पसीना बहाया है । इसीलिए आज उनकी हालत आप स्वयं ही देख रहे हो । हमारी माई ने बाऊजी का पूरा साथ दिया , और हमे हमेशा खुश रखने की कोशिश करी ।

फिर हमारा समय आया , गांव में विद्यालय की कमी के कारण हम पढ़ नही पाए तो हमने छोटी उमर में ही खेतों में काम करना चालू कर दिया । वहां पर दोस्त के साथ रहकर उसकी गाड़ी पे हाथ जमा लिया , उसके वहां घर से सबको लाने ले जाने का काम करने लगा और दोस्त के पापा की मदद से पुरानी गाड़ी को ही किस्तों पे ले लिया । वैसे हमारे यहां दोस्त को बंधु कहते है जो हर सुख दुख में साथ देता है ।

जगपति अपनी पुरानी यादों में था , और सब उसकी बातों को बड़े आराम से सुन रहे थे । उसी समय थोड़े दूर से किसी के चिल्ला ने की आवाज आई चाहे कोई उनको मदद के लिए पुकार रहा हो !

सब लोग सतर्क हो गए और आवाज की दिशा में देख ने लगे ।

आलोकनाथ का कौनसा प्रवाही का सेवन किया जिसकी वजह से वो अचेत हो गए ? अंधेरे से किसकी चिल्लाने की आवाज आई थी ? क्या सब लोग मदद के लिए जायेंगे या नहीं ?
जान ने के लिए पढ़ते रहिए हमारी कहानी भयानक यात्रा ।