भयानक यात्रा - 22 - आलोकनाथ का रहस्य क्या है? नंदी द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

भयानक यात्रा - 22 - आलोकनाथ का रहस्य क्या है?

पिछले भाग में हमने देखा की ......
हितेश जब उठकर देखता है तो सुशीला सतीश के हाथ का खून साफ कर रहे होती है , ये देख कर हितेश को थोड़ी राहत मिलती है । फिर बाहर बैठे हुए जगपति और हितेश के दोस्त हितेश से बारी बारी रात की घटना के बारे में पूछते है । जिसके कारण हितेश दुविधा में पड़ जाता है और वो बात बताने से कतराने लगता है लेकिन सबके बार बार पूछने पर वो रात को हुई घटना को बहुत ही संक्षिप्त में बताता है । हितेश की बाते सुनकर सब लोग चिंतित हो जाते है । सतीश के बारे में बात कर रहे होते है तभी उनको किसी की हिल ने की आवाज आती है वो सतीश होता जो नींद से जग चुका होता है । सतीश को अपनी ये हालत देख कर आश्चर्य होता है और जब वो अपने खाट से उठने जाता है तब वो गिर जाता है और दर्द से कराह ने लग जाता है । हितेश उसके पैरो पे देखता है तो उसके घुटनो में खून से भरे फफोले हो चुके होते है वो उसको लेके वैध के पास जाते है , गाड़ी चौखट पे रोक के जगपति और हितेश सतीश को उठाकर अंदर की तरफ चल देते है ।

अब आगे.....
*******************************

जगपति और हितेश सतीश को उठाकर चौखट की तरफ चले आते है , वहां नाम पट्टी पे लिखा हुआ होता है वैध आलोकनाथ ।
मकान का दरवाजा बंद होता है इसलिए हितेश और जगपति बाहर की तरफ खड़े होते है , और सतीश को नीचे की तरफ बिठा देता है । हितेश दरवाजे पे दस्तक देता है और बाहर से आवाज लगाकर कहता है – कोई है ?
किंतु दरवाजे की अंदर से कोई भी आवाज नही आती ।
ये देख कर हितेश फिर से दरवाजे पे जोर से दस्तक देता है । लेकिन इतना दरवाजा ठोकने के बाद भी मकान के अंदर से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं मिलती ।
हितेश और जगपति को लगता है की अंदर की तरफ कोई नहीं है इसीलिए वो मुड़कर सतीश को उठाने लग जाते है ।
तभी दरवाजे की क़ब्जे खुलने की आवाज आती है , दरवाजा से एक पतली और डरावनी आवाज के साथ धीरे धीरे खुलता है । उसके अंदर से एक निचले कद का इंसान बाहर की तरफ झांकता है , जिसके सिर पे बाल कुछ न के बराबर है । उसकी आंखे अंदर ही तरफ धंस गई थी , आंखों में जैसे अब रोशनी बची ही ना हो वैसी आंखो की पुतलियां हो रही थी । मुंह पे एक भी बाल नहीं था और चमड़ी सुख चुकी हो वैसे जुर्रिया उसके बदन पे थी । लेकिन उसके शरीर की नब्ज़ जैसे किसी ने खून की जगह काला पानी भर दिया हो वैसी काली और बड़ी सी हो रखी थी । जिसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उनकी नब्ज़ अभी फटके बहार निकल आएगी ।
उमर के हिसाब से वो इंसान ज्यादा ही कमजोर दिख रहा था , और उसके घुटनो में भी अब जान नही दिख रही थी ।

अंदर के इंसान ने जगपति और हितेश की तरफ देख के पूछा – कौन हो आप लोग ? और क्या काम है ?
हितेश ने हल्की सी आवाज में कहा – हमे वैध जी से मिलना है , और सतीश की तरफ इशारा करके बोला हमे हमारे दोस्त का इलाज करवाना है ।
दरवाजे पे खड़े इंसान ने बाहर की तरफ बैठे कराह रहे सतीश पे नजर डाली और वो इंसान धीरे धीरे दरवाजे से हटकर बोला – आइए !
इतना बोलते बोलते वो इंसान की सांसे फूल सी रही थी

हितेश और जगपति सतीश को ले के अंदर की तरफ चले जाते है और वो इंसान फिर से दरवाजा बंद कर देता है ।
हितेश और जगपति सतीश को अंदर की तरफ बिछाए हुए एक बड़े से गलीचे पे बिठा देते है और खुद भी वहीं पे बैठ जाते है । वो इंसान धीरे धीरे उनकी तरफ आता है ।
तभी हितेश उनसे कहता है – हमे आलोकनाथ जी से मिलना है ।
उसी समय पीछे बैठे जगपति ने उसके कंधे पे हाथ रख दिया और इशारा किया की यही आलोकनाथ जी है । हड़बड़ी में हितेश ने किए ये बर्ताव के कारण उसे खुद पे शर्मिंदगी होने लगी और उसने आलोकनाथ की तरफ देख के क्षमा मांगी ।

आलोकनाथ के शरीर पे नब्ज़ जो काली दिख रही थी वो अभी भी हितेश और जगपति को कहीं खटक रही थी ।
तभी आलोकनाथ ने कहा – क्या बीमारी है बताइए !
आलोकनाथ की कांपती आवाज़ आसपास के माहोल को ज्यादा डरावना बना रहा था । घर के अंदर वैसे भी आलोकनाथ के अलावा किसी इंसान की उपस्थिति दिख नहीं रही थी ।

हितेश ने सतीश के घाव दिखा कर कहा – वैध जी ! ये मेरा दोस्त सतीश है ,कल रात को खाट से गिरने की वजह से सतीश को शरीर पे घाव हो चुके है , जो उसको अभी ज्यादा दर्द कर रहे है क्या आप इसका इलाज कर पाएंगे ?
आलोकनाथ ने घाव को कई देर तक घूरके देखा फिर उसने जगपति और हितेश की तरफ देखा और कहा – ये घाव मैने पहले भी कहीं पे देखे है , लेकिन मुझे याद नहीं आ रहा ।
वैध की बात सुनकर हितेश की धड़कने तेज होने लगी और वो बात को बदल ने की कोशिश करने लगा ।
उसने बोला – अरे ! वैध जी ! रात को सतीश जब सो गया तब वो नींद से गिर गया और उसको ये चोट लग गई थी ।

आलोकनाथ ने मन में ही बोला – ये गिरने वाली चोट नहीं है ।
फिर उसने हितेश से कहा – ठीक है , इसका इलाज हो जायेगा और आपको मरीज़ को दो दिन यहां लाना पड़ेगा ।
आलोकनाथ की बात सुनकर हितेश ने जट से हां में अपना सिर हिला दिया ।
आलोकनाथ ने फिर सतीश के फफोले पर एक नुकीला औजार लगाया , जिसकी वजह से फफोले के अंदर का उसका सारा खून बाहर आ गया । उसके घुटनो को साफ करने के बाद उसपे मलमपट्टी लगा दिया । फिर वैध ने हाथों पे लगे घाव पे लैवेंडर और जैतून का तेल मिला कर लगा दिया ।
उसी समय मकान के अंदर से कोई सामान गिरने की आवाज आई । वैध ने हितेश को कहा – बेटा , वहां जाकर देखो तो क्या गिरा है !
हितेश वैध की हालत देखकर समझ गया था की वो जल्दी से उठ नही पाएंगे उसी कारण वो वहां से उठ के मकान के दूसरे कमरे की तरफ बढ़ गया ।

हितेश जब दूसरे कमरे की तरफ गया तो वहां का नजारा देख कर अचरज से पूरे कमरे को देख ने लगा ।
कमरे में कई सारे मरे हुए चूहे ,छिपकली , मेंढ़क, सांप , और कुत्ते बिल्ली को कांच के बर्तन में कोई प्रवाही डाल के रखा हुआ था । किसी को छत से डोरी के सहारे लटकाया गया था किसी को डब्बे में बंद करके रखा गया था ।
कमरे में कई सारे वैज्ञानिक उपकरण पड़े हुए थे , जिनमे कांच की छोटी बड़ी शीशी रखी हुई थी ।
सब कांच की शीशी में अलग अलग रंग का प्रवाही भरा हुआ था और उसपे अलग सी भाषा में कुछ लिखा हुआ था ।
कमरे में फिर से आवाज आने पर हितेश की नजर आवाज की तरफ गई , उसने देखा की कोने में एक छोटी सी बिल्ली कांच के टुकड़ों के आसपास पड़ा हुआ ताजा खून चाट रही थी । वो खून कांच के बर्तन से निकले किसी के गुर्दे में से निकाला हुआ था ।
वो गुर्दा किसी इंसान का था जिसे वैध ने कोई नीले प्रवाही में बंद करके रखा हुआ था ।
उसकी नज़र बिल्ली से हटकर ऊपर की तरफ जाती है वहां मनुष्य के कई सारे अंगों को सम्हाल के रखा गया था , इंसान की चमड़ी से ले के इंसान के नाखूनों तक सब चीजों को बड़े तरीके से सम्हाल कर रखा गया था । ये देखकर उसका सिर चकराने लग जाता है और
वो वहां से व्याकुल होकर बाहर की तरफ आता है , उसके शरीर में खून जैसे बिजली की गति की भांति चल रहा हो वैसा उसको महेसूस होता है और भय से वैध जी की तरफ देखने लग जाता है ।
जगपति हितेश को पूछता है – क्या गिरने की आवाज आई थी भाई साहब अंदर ?
हितेश वहां चुपचाप खड़ा रहता है , उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल पाता है । हितेश की ये हालत देखकर जगपति को शंका होती है की अंदर की तरफ कमरे में ऐसा तो क्या है जिसके कारण हितेश की बोलती बंद हो चुकी है !
वो वहां से उठकर अंदर कमरे की तरफ जाने के लिए उठाता है , वो जैसे ही कमरे की तरफ बढ़ता है तभी हितेश उसका हाथ पकड़ लेता है और अपने सिर को ना में हिलाके उसको वहां न जाने का इशारा करता है ।
लेकिन जगपति उसके कंधे पे हाथ रख के उससे अपना हाथ छुड़ाकर अंदर की तरफ चल देता है और वो कमरे की हालत देख कर सुन्न सा हो जाता है ।
उसको अब समझ आता है की हितेश ने उसको यहां आने के लिए क्यू रोका था ! वो कमरे को पूरी तरफ देखने के बाद बाहर की तरफ कांपते पांव के सहारे आता है । उसके पूरी बदन पे छोटे छोटे पानी की बूंदे जम सी जाती है और उसका पैरो पे से संतुलन हट जाता है ।
वो जमीन की तरफ गिरने की वाला होता है तब हितेश उसको कंधो से पकड़ कर बचा लेता है । हितेश वहां मटके से पानी पिला कर उसको स्वस्थ करता है ।
उनको देख के सतीश को सोच ने लग जाता है , सतीश सोचता है की ऐसा क्या देखा जिसके कारण उनकी हालत खराब हो गई जब दोनों अंदर गए तब तो ठीक थे अब क्या हुआ उनको ?
तभी आलोकनाथ की आवाज आती है – डरो मत ! वो सब उपचार के लिए रखे गए जीव है । आप ये बताइए कि कौनसा सामान गिर गया है ?
हितेश ने खुद को बड़े जहेमतो के साथ सम्हालने के बाद कहा – किसी का....(फिर उसने सतीश की तरफ देखा ) और फिर रुक गया ।
आलोकनाथ ने फिर से बोला – बताइए रुक क्यों गए आप ?
हितेश ने एक गहरी सांस लेके फिर से बोला – गु.. गु ..र्दा ! इतना बोलने के बाद उसकी बाकी की आवाज उसके गले में वापिस चली गई हो वैसे चुप हो गया ।
अच्छा , अब फिर से उसके ऊपर परिक्षण करने के लिए गुर्दे को लाना पड़ेगा – आलोकनाथ बोला ।
तब वहां से गुर्दे को मुंह में लेके बिल्ली उनके सामने से निकली और खिड़की से बाहर की तरफ कूद गई , उसको देखकर सतीश का पूरा शरीर ठंडा पड़ गया ।

तभी आलोकनाथ सब को डरा हुआ देख के बोला – आप लोग अब जा सकते है महाशय ! उपचार हो चुका है और घाव भी जल्दी भर जायेंगे । कल एक बार पट्टी बदलवाने के लिए आ जाना ।
ये सुनकर सबकी तंद्रा टूटी और वो लोग विस्मय भाव से आलोकनाथ को देखने लगे । वो लोग आलोकनाथ से बहुत कुछ पूछना चाहते थे लेकिन ये सब देख ने के बाद उनका मन डरावने विचारो से भर चुका था ।

तभी हितेश बस इतना बोला – जी ! ठीक है ।
फिर हितेश और जगपति सतीश को लेकर वैध के घर से बाहर की तरफ आ गए , वो लोग बाहर आने के बाद भी वैध के मकान को हजारों सवालों के साथ मूक बन के देखते रहे , सतीश तो जैसे नया बच्चा पैदा होता है और कैसे अचरज से सबको देखता है वैसे ही थोड़ी देर में जगपति और हितेश को देखता और फिर थोड़ी देर के बाद वैध के मकान को । उसको यही समझ नही आ रहा था की कौन सी बात के लिए उसे डरना है और कौनसी बात पे उसे दुखी होना है , वो मिश्रित भाव से बस यहां वहां देखते जा रहा था ।
कुछ देर के बाद हितेश और जगपति ने सतीश को गाड़ी में बिठाया , और गाड़ी को गांव की तरफ मोड़ दिया ।
कच्चे रास्तों पर चल रही गाड़ी की आवाज भी अभी तो सबके मन में चल रहे विचारो को परेशान कर रही थी , सबकी आंखे रास्ते पे टिकी हुई थी लेकिन आंखों के सामने वही वैध के कमरे में पड़ी चीज़े बार बार आ रही थी ।

क्या था वैध आलोकनाथ का रहस्य ? आलोकनाथ की नब्ज काली क्यों थी ? क्या आलोकनाथ कोई रहस्यमय इंसान है ? या फिर कोई और ही परेशानी सबका इंतजार कर रही है ?
जान ने के लिए दिल से पढ़ते रहिए हमारी कहानी भयानक यात्रा ।