वाजिद हुसैन सिद्दीक़ी की कहानी
कश्मीर के आउटस्कर्ट में एक आलीशान हवेली थी, जिसे लोग कश्मीरी पंडित भट्ट का रईस ख़ाना कहते थे। इसमें एक विशालकाय लकड़ी का फाटक लगा था जिसमें एक खिड़की थी जो भट्ट जी के ज़माने में आगंतुकों के लिए खुली रहती थी। फाटक तो भट्ट जी की हाथी पर सवारी के आते-जाते समय खुलता था। 1990 के दश्क में कश्मीरी पंडितो के पलायन के बाद से फाटक बंद था।
एक दिन एक लंबा छरछरा नौजवान आया। उसने गेट में लगी खिड़की के तालेे को खोला, सफाई- कराई और उसमें रहने लगा। पड़ोसियों के पूछने-गछने पर उसने अपना नाम शाहिद और अपनी मां का नाम जुम्मन बाई बताया। लोग जुम्मन बाई को जानते थे। वह भट्ट जी की रखैल थी। उन्हें लगा, भट्ट जी ने जाते समय यह कोठी उसके नाम कर दी होगी। शाहिद को लोग, भट्ट जी की नाजायज़ औलाद समझते इसलिए उससे कतराते थे। उससे न कोई मिलता- जुलता, न उसके ख़ुशी- ग़म में शरीक होता था। वह सवेरे ही काम पर निकल जाता और देर रात लौटता था।
आधी बरसात निकल चुकी थी पर एक बूंद भी पानी नहीं बरसा था। मंदिरों में यज्ञ और मस्जिदों में दुआ हो रही थी, जिसका असर हुआ। एक दिन हुंकार भरे बादल गरजे और जमकर बरसे। शाहिद कमरे मे निकलकर बाहर लान में आया। पेड़ों के हरे पत्ते बारिश से नहा रहे थे। उसकी कोठी के ठीक सामने एक झरना था जो कल-कल की आवाज़ कर रहा था। शाहिद को ऐसा महसूस हुआ, पेड़ खुश होकर नाच रहे हैं और झरना ख़ुशी से गा रहा है। हालांकि उसकी खुशी की वजह मालूम नहीं होती थी। बेजान चीज़ को भला क्या खुशी हो सकती है।
शाहिद सोचने लगा, 'वह देश के लिए जो कुछ कर रहा था, उस पर देश को नाज़ है। सरकार ने उसका नाम शिव कुमार से बदलकर शाहिद रखा है और इस कोठी में ठहरा दिया है ताकि वह आतंकवादियों की नज़र से बचा रहे। उसे ग्लानि होती, जब समाज उसे भट्ट जी और जुम्मन बाई के पाप की निशानी समझता और हीन दृष्टि से देखता था। उसकी ज़िंदगी चटियल मैदान बन कर रह गई थी। वह तीज-त्योहार पर न मंदिर जा सकता, न मां से मिल सकता था।' फिर उसने अपने दिल को दिलासा दी, 'इस नाम के कारण वह ज़िंदा है, वर्ना मारे जाने वाले 'रॅा' के एजेंटस के साथ उसका भी फोटो लगा होता।
हालांकि शाहिद को बारिश में कोई दिलचस्पी नहीं थी फिर भी अपनी कोठी के लान में निकला और बारिश के मज़े लेने लगा। तभी आसमानी बिजली गिरी और पड़ोस की कोठी से उसे एक लड़की की चीख़ सुनाई पड़ी। वह तेज़ क़दमों से उधर गया। उसके और पड़ोस की कोठी के बीच एक झाड़ की दीवार थी। उसे झाड़ियों में से, एक लड़की की झलक दिखी, जो बारिश में नहा रही थी। वह ठिटक कर रह गया। लड़की बहुत खूबसूरत थी। उसके चेहरे पर सुनहरे रोएं थे। उसमें फसी हुई पानी की नन्ही नन्ही बूंदे चमक रही थीं जो ऐसी लग रहीं थी, जैसे उसका बदन क़तरे- क़तरे बनकर गिर रहा है। वह मलमल का कुर्ता पहने थी, जो उसके बदन से चिपका हुआ था। शाहिद ने दिलचस्पी से अपनी आंखें उस पर जमा दी और गौर से उसे देखने लगा। पानी के क़तरे उसके बदन से फिसल कर ज़मीन पर बिखर रहे थे। वह ज़्यादा से ज़्यादा अट्ठारह बरस की थी, उसके बाल सुनहरे थे, बदन सुडौल और गदराया हुआ था। होना यह चाहिए था, उसे देखकर शाहिद के अंदर जवानी के एहसास जागते पर उसके दिल में उत्तेजना पैदा न हुई। वह एक चित्रकार की तरह उसकी तस्वीर अपनी आंखों में उतारता रहा।
बारिश रुक चुकी थी। लड़की ने तोलिए से अपना बदन पोछा और आहिस्ता-आहिस्ता अपने कपड़े बदलने लगी। लड़की अपने उलझे हुए बालों को कंघी से सुलझाने में लगी थी। बालों को सुलझाने की कशमकश में कंघी उसके हाथ से फिसल कर झाड़ियो में गिर गई। वह कंघी उठाने के लिए झुकी तो अपने ठीक सामने पानी में तरबतर लड़के को देखकर ठिटक गई।
उसने गुस्से में कहा, 'शर्म नहीं आती।'
शाहिद ने कहा, 'मेरा यकीन मानिए, मैंने जान बूझकर आपको नहीं देखा। बिजली की गर्जन के साथ एक लड़की की चीख सुनी थी। मुझे लगा कोई लड़की मुसीबत में है, मुझे उसकी मदद करना चाहिए। यहां आया तो आपको देखकर लगा, लड़की बड़ी दिल फरेब है लेकिन अपने वजूद से अनजान है। आपके वजूद ने एक चित्रकार को आपकी तस्वीर आंखों में उतारने के लिए मजबूर कर दिया ताकि कैनवास पर उतारकर जब जी चाहे, बाते करे। अब बताइए इसमें मेरा क्या क़सूर है?'
लड़की ने कहा, 'आप चित्रकला के साथ दिल फरेब बातें करने की कला में माहिर लगते हैं, अपना नाम तो बताईये।'
'शाहिद।' लड़के ने अपना नाम बताया।
लड़की ने कहा, 'आपको मेरा नाम जानने में दिलचस्पी नहीं है?'
शाहिद ने जवाब दिया, 'मैंने तो आपका नाम गुलबदन रख दिया है, फिर भी आप बताना चाहें तो मुझे एतराज़ नहीं।'
लड़की ने कहा, 'आपने पल भर की मुलाक़ात में शाजिया को गुलबदन बना दिया।'और दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े।
उसके बाद से शाहिद काम से लौटता, शाज़िया उसे इंतजार करती मिलती। वह दोनों बहुत देर तक एक दूसरे को अपनी कहानियां सुनाते रहते। जब बातों से जी भर जाता, शाज़िया स्टूल पर बैठ जाती, शाहिद उसकी तस्वीर बनाने लगता। तस्वीर बनाते-बनाते थक जाता तो सिगरेट पीने के लिए खुली हवा में निकल जाता और शाजिया उसके लैपटाप का डाटा अपने पेनड्राइव में ट्रांसफर करने में लग जाती थी।
शाहिद शाज़िया की मोहब्बत की ग्रफ्त में गया था। उसे प्रोपोज़ करने की जल्दी कर रहा था पर वह टाल-मटोल कर रही थी।
एक शाम शाज़िया ने शाहिद से कहा, 'मैंने आपसे विवाह का मन बना लिया है। क्यों न हम झील पर चलें, वहां तारों की छांव में आप मुझे प्रपोज़ करें।'
शाहिद ने शाजिया से कहा, 'आओ चलें झील पर। ... अब वह दोनों झील के किनारे- किनारे चल रहे थे। ... कश्ती खुबानी के एक पेड़ से बंधी थी, जो बिल्कुल झील के किनारे लगा था। शाहिद ने दोनों हाथ, उसकी कमर में डाल दिए और उसे अपने सीने से लगा लिया। ... उसने आहिस्ता से कश्ती खोली। उसने चप्पू अपने हाथ में ले लिया और कश्ती को ख़े कर झील के मरकज़ में ले गया। वहां कश्ती आप ही आप खड़ी हो गई। न इधर बहती न उधर। उसने चप्पू उठाकर कश्ती में रख लिया।
शाज़िया ने शाहीद को यह बताकर चौका दिया, 'लश्कर के कमांडर असग़र ने मुझे बताया था, 'शाहिद 'रॅा 'का एजेंट शिवकुमार है। उसे हमारे मिशन की गतिविधियों को जानने के लिए हमारे बीच रखा गया है। तुम्हें उसे हनी ट्रैप में फंसाना है और उसके लैपटॉप का डाटा अपने पेन ड्राइव में ट्रांसफर करना है। ... कश्मीर में अजगर के हुक्म की नाफरमानी, सजाए- मौत है इसलिए मना करने की जुर्रत नहीं कर सकी।
मैं अपनी तस्वीर बनवाने के बहाने आती थी और आपके लैपटॉप का डाटा अपने पेन ड्राइव में ट्रांसफर कर लेती थी।
इस बीच, मैं आपसे मोहब्बत करने लगी। आपने मुझे बताया, 'मोहब्बत में जान दी जाती है, ली नहीं जाती है।' मैंने अंजाम की परवाह न की और असग़र को वह पेन ड्राइव नहीं दी। पेनड्राइव न पाकर उसने बौखलाहट में आपकी मौत का फरमान सुना दिया और आपको झांसे में लेकर झील पर लाने का हुक्म दिया।
शाज़िया ने अपनी चोली में से पेनड्राइव निकालकर शाहिद को दी फिर कहा, ' मेरी ज़िंदगी बेमक़सद है, आप वतन की आन-बान-शान हैं। इनकाउंटर के समय मोहब्बत फर्ज़ के आगे नहीं आना चाहिए। मुझे ढाल बनाकर देश के लिए कुर्बान कर दीजिए और अपने को बचा लीजिए।
शिवकुमार ने शाज़िया से कहा, तुम सच्ची देशभक्त हो, मुझे तुम पर गर्व है, तुम मेरी पत्नी बनोगी। फिर उसने हीरे की अंगूठी शाज़िया की उंगली में पहनाई और उसके दोनों हाथ चूम लिए।
तभी शिवकुमार को कश्ती से असग़र आता दिखा। उसने हेडक्वार्टर मैसेज भेज दिया, 'शिवकुमार विथ मंगेतर शाजिया अंडर अटैक ; हेल्प एट पाॅइंट 450 विदिन लेक।'
उसके बाद उसने शाज़िया को अपने आगोश में ले लिया और कश्ती में पोज़ीशन ले ली। शिवकुमार ने असग़र को मार दिया पर उसके गोली लग गई थी। शाज़िया कश्ती खेकर किनारे ले गई। हेलीकॉप्टर से कमांडो आ गए और वे उसे अस्पताल ले गए।
अस्पताल में डाॅक्टरों ने उसको लगी गोली निकाल दी पर उसे होश में न ला सके। उसकी देखभाल के लिए साथ वाले कुछ दिन तक आते रहे। धीरे-धीरे वह अकेला होता गया। उसकी तीमारदारी करना शाज़िया का नित्य कर्म बन चुका था। वह बुरी तरह आघात हुई, होश में आने पर शिवकुमार ने उसे नर्स कहकर संबोधित किया। उसे रोता देख डॉक्टर ने कहा, 'इन्हें शार्ट टर्म मेमोरी लॉस हो गया है, पिछले साल-दो साल का कुछ याद नहीं।'... यह वही समय था जबकि उसकी शिवकुमार से मुलाक़ात रही थी।
'रॅा' के डायरेक्टर संजय सिंह शिवकुमार से मिलने अस्पताल आए। वहां शाज़िया ने उन्हें बताया, 'शिवकुमार ने गोली लगने से पहले मुझे प्रपोज़ किया था, अब नर्स समझता है।' यह सुनकर वह गमगीन हो गए। उन्होंने शाज़िया को अस्पताल में नर्स की नौकरी देने का आदेश दिया और बतौर नर्स उसे शिवकुमार के साथ रहने की परमीशन दे दी।
कुछ दिन बाद शिवकुमार को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया था और वह फिर से ऑफिस जाने लगा था। शाज़िया उसके साथ सरकारी आवास में रहने लगी थी।
एक शाम, एक ज्वेलर आया। उसने शिवकुमार से अंगूठी का पेमेंट करने को कहा। शिवकुमार ने आश्चर्य से कहा, 'मैंने तो अंगूठी ख़रीदी ही नहीं है, आपको गलतफहमी हुई है। ज्वैलर ने सी.सी.टी.वी फोटेज दिखाया जिसमें वह अंगूठी खरीदते दिख रहा था। वह याद्दाश्त पर ज़ोर डालने लगा। तभी ज्वैलर की नज़र शाजिया की उंगली में पहनी अंगूठी पर पड़ी। उसने कहा, 'सर यही वह अंगूठी है जो आपने खरीदी थी।' ... शाजिया अंगूठी ज्वैलर को देने लगी, तभी शिवकुमार ने कहा, 'रहने दो।' और ज्वेलर को अंगूठी का पेमेंट कर दिया। उसके बाद शिवकुमार के चेहरे पर अजीब से भाव आने लगे। वह अपने कमरे में लगी शाज़िया की तस्वीर को देखता और और अपनी नर्स से बारंबार मिलाता। ... फिर उसने नर्स से पूछा, 'यह तस्वीर कहीं तुम्हारी तो नहीं?' नर्स की आंखें भर आईं। उसने स्वीकृति में सिर हिलाया और अपने कमरे में चली गई। वह समझ गई शिवकुमार की याद्दाश्त वापस आ रही है, इसलिए उसके मस्तिष्क पर ज़्यादा ज़ोर डालना ठीक नहीं है। सवेरे शिवकुमार ने उसे गुलबदन कहकर पुकारा। वह नींद के ख़ुमार में उठी। शिवकुमार ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और कहा, 'तुम मुझे हनी ट्रैप में फंसाने आई थी, ख़ुद ही मेरी मोहब्बत में गिरफ्तार हो गईं।ऐसा लगा, सुदूर आसमान में उड़ते पंछियों का जोड़ा जो बाज़ के डर से बिछुड़ गया था, फिर आ मिला।
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