भयानक यात्रा - 19 - सतीश कहां गया ? नंदी द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भयानक यात्रा - 19 - सतीश कहां गया ?

हमने पिछले भाग में देख की...
जगपति सबको बताता है की गांव की इमारत हो या हवा उस सब में बुरी चीजों का प्रभाव है । तभी वो लोग गाड़ी में गांव की तरफ जा रहे होते है वहां हितेश को कोई अघोरी की कुटिया दिखती है । वो जगपति से गाड़ी रुकवा के वहां उसको देखने जाता है , वहां किसी मंत्रोच्चार की आवाज आ रही होती है । अंदर बैठे अघोरी का देखाव भयानक होता है उसने मांस को अपने बदन पे लपेटे हुए रखा होता है । उसकी कुटिया पे दो इंसानी खोपड़ी रखी हुई होती है जिसमे हितेश का पैर फस जाता है और वो कुटिया में नही जा पाता , बारी बारी से जूली और डिंपल भी कोशिश करते है लेकिन वो भी निष्फल हो जाते है । तभी जगपति उनको ये अघोरियों के बारे में अवगत करवाता है की वो भगवान को नही भूतों को मान ने वाले लोग है जो भूतों को अपने वश में करके उनसे अपना मनचाहा काम करवा लेते है ।
ये सुन ने ने बाद डिंपल और जूली डर के गाड़ी में बैठ जाते है और गाड़ी गांव की तरफ आ जाते है । तभी जगपति उनको सलाह देता है की बर्मन की पुलिस रिपोर्ट हो चुकी है तो वो हो सकते तो गांव से दूर चले जाए पुलिस अपना काम करेगी और जब बर्मन के बारे में जानकारी मिलेगी तब वो हितेश और सब को सूचित कर ही देंगे । ये सुनकर सबको जगपति की बात सही लगती है लेकिन दूसरी तरफ उनको ऐसे बर्मन को बिना ढूंढे जाने का भी सही नही लगता ।

अब आगे .....
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जगपति हितेश को कहता है की वो लोग गांव से दूर हो जाए , जिस से उनको परेशानियों का सामना ना करना पड़े । पुलिस तो अपना काम कर ही लेगी वैसे बर्मन के गायब हो जाने की रिपोर्ट तो दर्ज हो ही चुकी हैं ।
जगपति की बात सुनकर सबको उसकी बात सही लगती है लेकिन फिर हितेश को खयाल आता है की वो बर्मन को ढूंढे बिना जायेगा तो उसके परिवार को क्या जवाब देगा ! और वो साधु ने उसको बोला होता है की वो यही गांव में फस चुके है तो वो लोग यहां से कैसे जायेंगे !!!
यही सब हितेश के मन में चल रहा होता है तभी जगपति हितेश को कहता है – चलो भाई साहब अपना गरीब खाना आ चुका है ।
जगपति हितेश को सोचते हुए देख कहता है – ज्यादा न सोचिए भाई साहब , यहां अगर कोई भी खबर आयेगी आपके दोस्त की तो में आपको अवगत करवा ही दूंगा ।
बस हो सके तो आप यहां से जल्दी से जल्दी चले जाइए ।
जगपति की बात पे हितेश एक तिरछी नजर जगपति पे डालता है और गाड़ी से नीचे उतर जाता है । सबके गाड़ी से उतर ने के बाद जगपति गाड़ी के पास जा कर ऊसके ड्राइवर से कहता है – अगर मरम्मत हो गई हो तो हमारी गाड़ी जल्दी से घर भिजवा देना ।
ये बोल के जगपति सबको लेके अपने घर के बाहर पड़े खाट के बाजू में जा के नीचे बैठ जाता है ।
सतीश अभी भी जगपति के पिता के कारण खोली में जाने से डरता था , तो सब लोग उसके साथ भी वहीं खाट पे बैठ जाते है ।

जगपति हितेश से पूछता है – भाई साहब , क्या सोचा है आपने ? आप शहर चले जाओगे ना?
हितेश कुछ सोच कर जगपति को कहता है – कैसे जाए जगपति चाचा , दोस्त किल्ले से गायब हो चुका है , इस गांव में कुछ बाते घटी है हमारे साथ वो अब यहां से जाने के लिए भी हिम्मत नही दे रही है ।
बर्मन को मुसीबत में छोड़कर हम कैसे चले जाए आप ही बताओ ?

हितेश की बात सुनकर जगपति कहता है – भाई साहब , आप लोग जैसे दोस्त मिल जाए तो उससे नसीब वाला कोई हो ही नही सकता । मन में डर और उदासीनता होने के बावजूद भी आप लोग अपने दोस्त का साथ नही छोड़ना चाहते , ये आजकल के लोगो में ऐसा कहां होता है । हमने तो सुना है की शहर के लोग पैसे से दोस्ती करते है लेकिन आज देखा की दोस्ती में पैसे की कीमत नही होती है ।
जगपति की बात सुनकर हितेश और उसके दोस्तों को जैसे किसी ने उनको अमृत दवा खिलाई हो वैसी शक्ति का अनुभव होने लगा । धीरे धीरे बातों में शाम ढलने लगी और झिंगुरों की आवाजे आने लगी ।

रात का खाना खाने के बाद सब बाहर की तरफ आसमान के नीचे बैठे हुए थे , सुशीला भी आज उन सबके साथ वहीं पे बैठी हुई थी ।
जगपति सुशीला को कहता है – हमारे बच्चे होते तो आज इनकी उमर के तो होते ही , हैं ना सुशीला ?

सुशीला भी बोली – हां , लेकिन हमारे भाग्य में बच्चे ही नही लिखे भगवान ने !! और वो बोलते बोलते उदास हो गई ।

जगपति और सुशीला की बातचीत सुनके सबको उनके बारे में बुरा लगा , लेकिन तभी हितेश ने सुशीला को कहा –
हम आपके बच्चे जैसे ही है , आप हमे आपके बच्चे ही माने । हम यहां हमारा दोस्त खो जाने के बाद आए , तब से जगपति चाचा ने और आपने हमारा खयाल अपने बच्चों की भांति किया है । आपने हम जब से यहां आए है तब से हमारे लिए हमारे माता पिता जैसा स्नेह रखा है । हमे यहां कोई भी बात की तकलीफ नहीं होने दी है ।

हितेश की बात सुनकर सुशीला खुद को रोक नहीं पाई और उसकी आंखो से अश्रुधारा बहने लगी । उसने अपने पल्लू को अपने चेहरे पे रख दिया जिसकी वजह से उसके आंसू किसी को न दिखे लेकिन सबको समझ में आ गया की सुशीला की आंख भर आई है ।

जगपति भी हितेश की बात सुनकर अंदर से भावुक हो चुका था , और उसका गला भर आया था । हितेश ने जब जगपति को देखा तो हितेश और विवान ने उनके कंधे पे हाथ रख के उनके कंधो को सहलाने लगे ।
थोड़ी देर तक किसी ने कुछ बोला नहीं सब बस चुप से हो गए थे । जगपति को जैसे कुछ समय के लिए जैसे खुशियों का पोटला मिला हो वैसे अंदर से खुश हो रहा था की किसी ने उसको अपने पापा की तरह माना ।
हितेश और उनके दोस्तो को जरूरत के समय , अपने घर से दूर किसी ने परिवार की तरह रखा वो भी सबके लिए चमत्कार के कम नहीं था ।

थोडी देर बाद सबकी चुप्पी तोड़ते हुए हितेश ने कहा – जगपति चाचा , सोने का समय हो चुका है तो हम सोने चलते है । वैसे भी कल का दिन कैसा जाने वाला है वो भगवान ही जाने !
ये कहने के बाद हितेश खाट पे जाके अपना बिस्तर जमा ने लगा ।

जगपति ने भी हामी में अपना सिर हिलाया और जगपति और सुशीला दोनो अंदर चले गए । उनके पीछे पीछे विवान , डिंपल और जूली भी खोली के अंदर की तरफ चले गए ।

सतीश और हितेश खाट पे बाहर ही सोने की कोशिश करने लगे तभी सतीश ने हितेश को कहा – हितेश , पुलिस बर्मन को ढूंढ पाएगी क्या ? बर्मन मिलेगा की नही ? उसकी आवाज में डर था ।
हितश उसको सम्हालते हुए कहता है – हां सतीश , बर्मन जल्दी ही मिल जायेगा । भले ही कोई कुछ भी कह ले लेकिन मुझे भरोसा है की बर्मन को कुछ नही होगा ।
सतीश ने फिर पूछा – लेकिन ये गांव की हर एक चीजों से अब डर लगने लगा है हितेश , क्या हम यहां से निकल पाएंगे कभी ?
हितेश सतीश को कहता है – सतीश , जब बर्मन मिल जायेगा तब हम यहां से जरूर शहर चले जायेंगे ।

सतीश को हितेश की बात सुनकर थोड़ा अच्छा लगता है , और सोने के लिए आंखे बन्द कर लेता है । लेकिन हितेश को कुछ समझ नहीं आ रहा था की कब और कैसे सब ठीक होगा ।
सोचते सोचते उसको काफी समय हो जाता है और उसको नींद नहीं आती है , वो आंखे आसमान की तरफ खुली रख के पड़ा होता है ।

तभी अचानक से सतीश उठ के चलने लगता है , उसकी आंखे खुली होती है लेकिन वो नींद में चल रहा होता है । वो धीरे धीरे वहीं झाड़ियों की तरफ जाने लगता है जहां वो पहले गया था । हितेश की उसपे अचानक से नजर जाती है , वो सतीश को आवाज लगा ने वाला होता है तब उसको खयाल आता है की वो उसका पीछा करे ।
वो हल्के कदम से उसके पीछे पीछे जाता है , सतीश एक लाश की तरह चल रहा होता है , उसके चलते समय न हाथ हिल रहे होते है ना गर्दन । कदम भी उसके खिंचाव से आगे बढ़ रहे हो वैसे आगे बढ़ रहे होते है ।

हितेश झाड़ियों से उसको देखते देखते आगे बढ़ रहा होता है , तभी अंधेरे में सतीश कहीं और दिशा में मुड़ जाता है । ज्यादा अंधेरा होने के कारण हितेश उसको देख नही पता है । आसमान में से शशी की रोशनी के कारण झाड़ियों में हल्का सा प्रकाश फैला हुआ था लेकिन कई जगहों पर पेड़ो की वजह से रोशनी कम थी ।
हितेश आसपास में झाड़ियों को दूर करके सतीश को ढूंढने की कोशिश करता है लेकिन सतीश का कोई अता – पता नही मिलता ।
उसके चेहरे पे चिंता की लहरे आ जाती है , और वो टॉर्च के लिए अपने जेब में मोबाइल ढूंढने लग जाता है । लेकिन उसको याद आता है की जगपति से बात करते करते उसने मोबाइल अपने खाट पे छोड़ दिया था ।

कहां चला गया अचानक से सतीश ? अब क्या करेगा हितेश ? जगपति क्या हितेश की कुछ मदद कर पाएगा ? क्या होगा जब सतीश के बारे में सबको पता चलेगा ?
जान ने के लिए पढ़ते रहिए हमारी कहानी भयानक यात्रा ।