भयानक यात्रा - 12 - जगपति का परिचय । नंदी द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भयानक यात्रा - 12 - जगपति का परिचय ।

हमने देखा की दिवाकर उसके बेटे राजू को पुराने डेहले की आत्मा के बारे में बता रहा होता है जिस आत्माओं ने पूरे गांव में कोहराम मचाया हुआ होता है । राजू उनको उसको आत्माओं के बारे में कुछ ज्यादा जान ने की कोशिश करता है । इतनी बात बता कर प्रेमसिंह उसके दोस्तो को बर्मन के बारे में पूछता है । सतीश गलती से सब प्रेमसिंह को बता देता है उसके बाद सब तय करते है किल्ले के किसी अधिकारी से बात कर के बर्मन के बार वे कुछ जानकारी मिल जाए । लेकिन वहां से भी निराश हो कर उनको वापिस लौटना पड़ता है , वो लोग कहीं रहने की जगह ढूंढने के लिए बाहर की तरफ जाते है वहां एक गाड़ी वाला उनको बोलता है की सारे होटल अभी बंद हो गए होंगे तो वो उसकी खोली में रह सकते है , दूसरा कोई रास्ता न देख वो लोग गाड़ी में बैठ जाते है ,,,
अब आगे ....
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सब लोग अपना अपना सामान गाड़ी के ऊपर रखकर गाड़ी में बैठ जाते है , गाड़ी में ज्यादा जगह न हो ने के कारण एक दूसरे से चिपक के बैठना पड़ता है ।
हितेश और विवान गाड़ी में ड्राइवर के बाजू में बैठे होते है , और सतीश ,जूली , डिंपल गाड़ी में पीछे की तरफ।
पुरानी गाड़ी थी उसी कारण गाड़ी को चार बार सेल्फ मारने के बाद भी गाड़ी चालू नही हो रही थी। ये देख कर हितेश ड्राइवर की तरफ देखने लगता है और कहता है भैया गाड़ी तो चालू हो जायेगी न?
भाई साब , पुरानी गाड़ी है महीने भर मेहनत के बाद इतने पैसे नहीं बच पाते जिससे गाड़ी की मरम्मत कर पाए, इसीलिए गाड़ी थोड़ी देर से चालू होती है – ड्राइवर ने कहा ।
और दो चार सेल्फ मरने के बाद गाड़ी एक फटे हुए साइलेंसर के आवाज के साथ काला धुंआ उड़ा कर गाड़ी चालू हो गई ।
लो जी भाई साब , हमारी रामप्यारी चालू हो गई – ड्राइवर ने मुस्कुराते हुए ।
लेकिन हितेश ने उसमे कोई ज्यादा रुचि नहीं दिखाई वो एकदम निर्भाव से बैठा रहा ।
ये देखकर ड्राइवर थोड़ी देर चुप हो गया लेकिन वो अपने स्वभाव के अनुसार फिर से बोलना चालू कर दिया ।
उसने हितेश से कहा – मेरा नाम जगपति है , मैं बस यही सवारी का काम करता हूं । आप क्या करते हो ?
ये सुनके सब उसकी तरफ देखने लगे लेकिन जवाब किसी ने नहीं दिया ।
ये देखकर जगपति ने चुप रहना बेहतर समझा , थोड़ी देर बाद अंधेरे रास्ते से गुजरते गाड़ी से नट–बोल्ट की आवाज और गाड़ी मे से किचूड – किचूड की आवाज आ रही थी । जो सुनसान रास्ते में ज्यादा डरावनी लग रही थी । गाड़ी की सीट भी गड्डे में बार बार गिरने के कारण हील रही थी । गाड़ी के अंदर की तरफ एक छोटी सी लाइट का जुगाड बिठाया हुआ था जिसके कारण अंदर रोशनी बनी रहे । इतने लोगों के बैठ ने के कारण गाड़ी का इंजन जैसे हांफ रहा हो ऐसे चल रहा था । कुछ देर बाद अंधेरे से गुजर रही ये गाड़ी के नीचे अचानक से कुछ आ गया और वो गाड़ी वहीं जैसे किसी ने चिपका दिया हो वैसे रुक गई । जगपति बाहर निकले उससे पहले विवान गाड़ी से कूद कर नीचे उतारा गया तब उसका पैर मिट्टी के गड्डे में पड़ा जिससे वो ज़मीन पे गिर गया । उसके गिरने की आवाज सुनके हितेश उसकी तरफ गया और उसको उठा ने लगा । जगपति जल्दी से बाहर आया और उसने गाड़ी के अंदर की लाइट को तार से लंबा करके गाड़ी के नीचे की तरफ करा और हितेश ने भी अपने मोबाइल की लाइट गाड़ी के नीचे कर दी ।
धत्त तेरी !! इसको भी अभी फसना था ! – हितेश ने बोला ।
गाड़ी के नीचे की तरफ ऊपर से गोल लेकिन नीचे से एक चोकोर पत्थर गाड़ी के बीच में फस गया था और गाड़ी के ३ पहिए हवा में लटक गए थे ।
फिर सबलोग गाड़ी से उतर गए और जगपति ने गाड़ी में बैठ के उसको निकाल ने की कोशिश करी लेकिन गाड़ी के इंजन ने साथ नहीं दिया । जगपति हार कर गाड़ी से निकल कर बोला – अभी के लिए गाड़ी को भी यहीं छोड़ना पड़ेगा और अब यहां से पैदल ही जाना पड़ेगा हमे ।

अंधेरे रास्ते के सामने की तरफ ही जगपति का गांव था ,और लगभग १०० मीटर दूर किसी इमारत के घर की रोशनी दिख भी रही थी । अंधेरा होने की वजह से डिंपल और विवान कुछ ज्यादा ही डर गए थे , सब ने गाड़ी से अपने सामान को उतारा और जगपति के गांव की तरफ चल दिए । सब ने एक तरफ मोबाइल की टॉर्च और दूसरी तरफ अपना समान पकड़ा हुआ था , उनमें जगपति सबसे आगे चल रहा था और सतीश सबसे पीछे ।

जगपति भैया कितना समय लगेगा आपके घर पहुंचने में ? – विवान बोला ।
बस भाई साब यहां से बहुत दूर नहीं है , थोड़ी ही देर में पहुंच जायेंगे – जगपति ने कहा ।
तभी कब से चुप हितेश ने अपना मौन तोड़ा – आप अकेले रहते हो ?
जगपति ने बोला – नही साब ! हमारे माई – बाप और हमारी बीवी , हम चार लोग रहते है ।
कोई बच्चा नहीं है आपका ? – हितेश ने पूछा ।
निराश स्वर में जगपति ने कहा – नही साब , भगवान ने हमारी झोली खाली रखी है , फिर उसका गला भर सा गया ।
हितेश ने उसके कंधे पे हाथ रखते हुए कहा – हमे माफ करना जगपति भैया ।
जगपति ने अपना गला ठीक करते हुए कहा – भाई साब , अब ये तो ऊपरवाले का निर्णय है उसमे आप माफी न मांगिए । वो जो करता है हमारे अच्छे के लिए ही करता है ।
हितेश ने कहा – बहुत भले और भोले आदमी हो आप जगपति भैया ।
तभी जगपति ने आंखो से हितेश का शुक्रिया किया ।
फिर जगपति ने हितेश से पूछा – आप बताइए भाई साब , आप जब से गाड़ी में बैठे है तब से चुप से है । कुछ बोल ही नहीं रहे , कोई तकलीफ में है आप ? सफर में जब बैठे तबसे आप लोग एक दूसरे से भी बात नही कर रहे थे और अभी भी सब चुप है । जगपति अपनी आदत के अनुसार एक ही सांस में बोल गया ।

जगपति के इतने सारे सवालों के जवाब अभी तो हितेश नही दे सकता था इसीलिए हितेश ने बड़ी सी सांस के साथ हां कह कर बोला – आपके घर जाकर बात करना उचित होगा ।
जगपति भोला जरूर था लेकिन समझदार भी था वो समझ गया था की सबकी समस्या कुछ ज्यादा ही बड़ी है , जिसकी वजह से सब परेशान है ।
ठीक है भाईसाब – कह कर जगपति चुप हो गया ।
थोड़ी देर चलने के बाद जगपति अपनी छोटी सी खोली के सामने ले जाकर बोला – लो हमारा गरीब खाना आ गया , ये हमारा घर है और वो अपने खड़ाऊ उतार के खोली में चला गया ।
खोली का दरवाजा इतना छोटा था की एक ५ फुट का इंसान अंदर जा ही ना पाए ,घर में जाने के लिए झुक कर ही जाना पड़े इतना ही उसका कद था । बारी बारी से सब अपने समान को लेकर जगपति के घर की अंदर आ गए ।
जगपति के माता पिता अंदर की तरफ एक कोने में खाट पे लेटे हुए थे , खोली में अंधेरा था और रसोड़े में से बर्तन की आवाज आ रही थी तभी जगपति ने घर की बत्ती जलाई ।
जगपति बोला – आ जाइए भाई साब , ये हमारी छोटी सी खोली है , आप इसे अपना ही घर समझिए ।
सबने सामान खोली के एक तरफ रख दिया , जगपति की आवाज सुन कर उसकी पत्नी रसोई से बाहर आ गई । उसने जगपति की तरफ एक प्रश्नवाचक नजर से देखा ! जगपति अपनी पत्नी का चेहरा देख के समझ लिया की वो क्या कहना चाहती है ।
तब जगपति ने उसको बताया की ये सब यहां के यात्री है , और रात हो चुकी थी तो उनको रहने की जगह चाहिए थी । तो इनको में यहीं ले आया हूं , रात में कहां जाते बेचारे ।
अपने पति की बात सुनकर उसकी पत्नी सुशीला ने सबको मुस्कुराकर अभिवादन किया ।
जगपति कहीं कोने में से छोटे छोटे और फटे हुए रजाई को लेके आया और सब को वहां बिठाया ।
सुशीला ने तांबे के गिलास में सबको पानी पिलाया और फटाफट चाय बना ने के लिए चली गई ।
सबलॉग जगपति के खोली को देख रहे थे , खोली में से बीड़ी की हल्की से बदबू आ रही थी , अंदर से घर गाय के कंडो से लीपा हुआ था । घर में ठंडक थी और शांति भी ।

तभी , जगपति ने बोला – भाई साब , आप कुछ कहना चाहते थे हमसे बताइए !!!
हितेश ने एक नजर सबकी तरफ करके जगपति को बोला – हमारा एक दोस्त शाम से किल्ले के बाहर से गायब हो गया है , सब जगह ढूंढ ने के बाद भी उसको हम नही ढूंढ पाए । उसका मोबाइल भी बंद बता रहा है और फिर शुरू से लेके पूरी कहानी हितेश ने जगपति को बताई ।
जगपति की आंखे छोटी हो गई , उसके सिर पे जैसे किसी ने भारी पत्थर रख दिया हो वैसी सलवटे दिख ने लगी । उसकी आंखे जैसे हजार दृश्य देख रही हो वैसे यहां वहां विचारो में घूम रही थी । उसके हाथ अट – खेलिया कर रहे थे , और उसकी जुबान प्यास की वजह से सुख गई थी ।

क्या सोच रहा था जगपति ? क्या होगा अगली सुबह ?
क्या जगपति कोई रास्ता बता पाएगा बर्मन को ढूंढने का ? क्या होगा जब बर्मन के बारे में उसके पापा को पता चलेगा ?
जान ने के लिए पढ़ते रहिए हमारी कहानी – भयानक यात्रा ।