स्पॉन्सर Sharovan द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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स्पॉन्सर

स्पॉन्सर
कहानी/शरोवन

***
‘मैं तुम्हारी बात का मतलब नहीं समझा?’
‘मैं समझाता हूं। आप जो चने खा रहे हैं, उसके पेपर को ज़रा गौर से देखिये।’
‘ये तो इंडिया होम क्रसेड वालों का पेपर है। तुम्हें कहां से मिला? दीनबंधु यह देखकर आश्चर्य से गड़ गये कि जिस पेपर में उस लड़के ने उन्हें चने दिये थे, वह पेपर तो मसीह यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिये बांटे जाते हैं। लेकिन यह लड़का तो इसमें चने बेचा करता है?
***
‘जहूराबाद नगर के स्थानीय दैनिक अखबार में क्रिश्चियन विला के चर्च के पास्टर दीनबंधु मसीही ने छपी हुई खबर को पढ़ा तो अचानक ही चौंक गये। खबर थी कि, बिशप की कोठी को बंब से उडा़कर धराशायी करनेवाला मास्टर माइंड जघन्य अपराधी वस्तु प्रकाश निर्मोही अदालत से बाइज्जत बरी। मिशन के आला अधिकारियों को वस्तु प्रकाश को उसकी शिक्षा को पूरा करवाने और बाकायदा शिक्षा के पूरी हो जाने के पश्चात नौकरी देने के अदालती आदेश पारित।’

सचमुच यह खबर एक सीधे, नियाहत ही ईमानदार और अपने परमेश्वर व कलीसिया को समर्पित पास्टर के लिये न केवल चौंका देनेवाली थी बल्कि बहुत कुछ सोच देनेवाली भी थी। वे तो सोच रहे थे कि बहुत ही सोच-समझकर, योजनावत् तरीके से किये गये इस जघन्य अपराध के लिये अपराधी वस्तु प्रकाश निर्मोही को कुछ नहीं तो कम से कम आजीवन कारावास की सज़ा तो होगी ही। लेकिन कानून का न्याय तो देखो, उसे सजा मिलना तो दूर, वह साफ-साफ बचा ही, साथ में अन्य सुविधायें भी देने के आदेश अदालत से पारित हो चुके हैं। सोचते हुये पास्टर दीनबंधु के सामने आज से पिछले सात वर्ष का वह दृश्य सामने आ गया जब कि वे कभी वसुंधरा नामक गांव में एक चर्च की मसीही मींटिंग के सिलसिले में गये थे।

वसुंधरा एक छोटा सा विकसित होता हुआ गांव था, पर समय के रहते जब उनके शहर की मुख्य सड़क का मिलन उस गांव से हो गया तो आने-जाने की सुविधा के लिये सायकिल के स्थान पर अब सरकारी बस चलने लगी थी। अपने घर के बस स्टैंड से बस में बैठो और तीस मिनट में ही वसुंधरा की हरियाली भरे खेत देखने लगो। पास्टर दीनबंधु जानते थे कि कभी विदेशी मिश्नरियों ने इस छोटे से गंाव में मसीही सेविकाई का कार्य आरंभ किया था। बगैर पढ़े-लिखे, गरीब मजदूर जैसे लोगों के लिये स्कूल, डिसपेंसरी और पौढ़ शिक्षा के साधन उपलब्ध कराये थे। बाद में जब मिश्नरी चले गये तो पास्टर दीनबंधु को यह गांव उनकी सेविकाई के क्षेत्र के रूप में प्रदान कर दिया गया था। यही एक विशेष कारण था कि पास्टर दीनबंधु का अक्सर बसुंधरा में आना-जाना होता रहता था। फिर जब मीटिंग की समाप्ति के पश्चात, सड़क के किनारे बने हुये एक कमरे के बस स्टैंड के कार्यालय के बाहर बैंच पर बैठे हुये जब दीनबंधु बस के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे तो उन्होंने एक लड़के को देखा जो जूतियों की पॉलिश करके अपनी रोज़ी कमा रहा था। फिर जब पास्टर दीनबंधु मसीह से नहीं रहा गया तो वे भी अपने स्थान से उठे और उस लड़के के पास आकर खड़े हो गये। अपने पास खड़े हुये दीनबंधु को उस लड़के ने एक नज़र भर देखा, लेकिन फिर से अपने काम में व्यस्त हो गया।

‘मेरी भी जूतियों पर पॉलिश कर दोगे?’ दीनबंधु ने उस लड़के से पूछा।

‘?’ दीनबंधु की इस बात पर उास लड़के ने उन्हें फिर से देखा, और तब हल्के से मुस्कराता हुआ बोला,

‘पॉलिश नहीं करूंगा तो यहां बैठा किस लिये हूं। बस पांच मिनट दीजिये।’

तब दूसरे मनुष्य की जूतियों की पॉलिश करने के पश्चात जब उस लड़के ने दीनबंधु के भी जूते पॉलिश कर दिये तो दीनबंधु ने उसकी मेहनत का एक रूपया उसे दिया। लड़के ने रूपया लेने के बाद जब धन्यवाद के तौर पर कहा कि,

‘थैंक यू सर।’

‘?’ सुनते ही पास्टर दीनबंधु के कान खड़े हो गये। उन्होंने उस लड़के को एक बार फिर से गंभीरता के साथ देखा तो यह सोचे बगैर नहीं रहे कि भले ही यह लड़का गरीब है और जूतों पर पॉलिश करके अपना पेट पालता है पर जरूर ही यह किसी भले घर का सभ्य इंसान ही नहीं बल्कि पढा़-लिखा भी है। वे अभी यह सब सोच ही रहे थे कि तभी अचानक से उनकी बस आ गई तो उन्हें वहां से हटना पड़ा। जल्दी से वे बस में बैठे और घर चले आये। लेकिन घर आकर भी उनके दिमाग से उस लड़के का चित्र उनकी आंखों के पर्दे पर आता-जाता रहा। इस घटना के पश्चात पास्टर दीनबंधु को कई बार अपने काम के सिलसिले में बंसुधरा जाना पड़ा पर, जूतों पर पॉलिश करनेवाला वह लड़का उन्हें कहीं भी दोबारा नहीं दिखाई दिया। नहीं दिखाई दिया तो पास्टर दीनबंधु के लिये यह घटना भी वक्त के बदलते हुये मौसमों के समान आई गई हो गई। वे फिर से अपने कामकाज में व्यस्त हो गये।

लेकिन ऐसा बहुत दिनों तक नहीं चल सका। दीनबंधु को अपने काम के सिलसिले में एक बार डॉयोसीज़ के कार्यालय जाना पड़ा तो उन्हें रेलगाड़ी का सहारा लेना पड़ा। फिर जब रेलगाड़ी अपने गन्तव्य स्थान पर पहुंची, और वे जैसे ही गाड़ी से उतरकर नीचे प्लेटफॉर्म पर आये, तभी एक लड़के ने अचानक से सामने आकर उन्हें नमकीन चनों की एक लंबी पुडि़या थमाते हुये पूछा,

‘सर जी! चने खायेंगें। बहुत सस्ते हैं। केवल पचास पैसे के?’

‘?’ दीनबंधु ने उस लड़के को देखा तो देखते ही उनके चेहरे पर बल पड़ गये। बड़े ही गौर से उस लड़के का चेहरा पढ़ते हुये वे बोले,

‘ऐसा लगता है कि जैसे मैंने तुम्हें पहले भी कहीं देखा है? लेकिन कहां? कुछ याद नहीं आ रहा है?’

‘अरे, मुझे तो लोग कहीं भी देख लेते हैं। आप चने खाइये।’ कहकर उस लड़के ने चने उन्हें पकड़ा दिये। दीनबंधु ने चने हाथ में लिये, निकालकर कुछेक दाने मुंह में डाले, फिर पैसे देते हुये बोले,

‘वाह! चने तो बड़े ही उत्तम हैं।’

‘कोई उत्तम नहीं है। सिवाय ऊपरवाले के।’ कहते हुये वह लड़का आगे बढ़ा तो पास्टर दीनबंधु अचानक ही अपने स्थान पर ठिठक गये। तुरन्त ही उन्होंने उस लड़के को रोका। बोले,

‘भई, सुनो तो?’

‘जी, कहिये?’

‘मैं एक बात पूछ सकता हूं तुमसे?’

‘जरूर।’

‘यह बाइबल की बात जो तुमने मुझसे कही है, वह तुमने कहां से सीखी है?’

‘बाइबल की बात ? मैं कुछ समझा नहीं?’

‘हां . . . हां, वही बाइबल की बात जो तुमने अभी कुछ देर पहले मुझसे कही थी। कोई उत्तम नहीं, सिवाय परमेश्वर के।’

‘अच्छा! वह जीज़स की बात ?’

‘हां, वही जीज़स की बात। तुम बाइबल पढ़ते हो?’

‘मेरे पास तो बाइबल ही नहीं है, पढ़ूंगा कहां से?’

‘तो फिर यह जीज़स वाला कथन? तुम्हें किसने सिखाया है?’

‘आपके हाथों ने?’

‘?’ दीनबंधु अचानक से यूं चौंक गये जैसे कि किसी ने उनके हाथों से तोता छीन लिया हो। वे अपने दोनों हाथ देखते हुये बोले,

‘मैं तुम्हारी बात का मतलब नहीं समझा?’

‘मैं समझाता हूं। आप जो चने खा रहे हैं, उसके पेपर को ज़रा गौर से देखिये।’

‘ये तो इंडिया होम क्रूसेड वालों का पेपर है। तुम्हें कहां से मिला?’ दीनबंधु यह देखकर आश्चर्य से गड़ गये कि जिस पेपर में उस लड़के ने उन्हें चने दिये थे, वह पेपर तो मसीह यीशु के सुसमाचार को फैलाने के लिये बांटे जाते हैं। लेकिन यह लड़का तो इसमें चने बेचा करता है।

‘आप परेशान मत होइये। आप तो जानते होंगे कि मैं ऐसे ही छोटे-मोटे काम करके अपना गुज़ारा किया करता हूं। एक बार जब मैं सड़क के किनारे बैठकर रद्दी जमा कर रहा था कि, तभी कुछेक लड़के मेरे पास आये थे, और इस प्रकार के पेपर मुझे रद्दी में बेच गये थे। तभी मैंने भी ऐसे ही किसी पेपर को पढ़ा था और ईसा मसीह की वह बात भी पढ़ी थी जिसमें उन्होंने स्वंय को भी उत्तम न बताकर ईश्वर को ही सबसे अधिक उत्तम बताया था। मैंने देखा कि इन कागज़ों में ईश्वरीय सन्देश है और इसके प्रचार का आदेश भी मुझे तो नहीं पर हर ईसाई को अवश्य ही है। लेकिन फिर भी मैं यह काम कर रहा हूं। चने रखकर बेचता हूं और मेरा विश्वास है कि, जब चने खाने के पश्चात हर पढ़ा लिखा इंसान इन पेपरों को पढ़ता तो होगा ही है। इस तरह से मेरे दोनों काम हो जाते हैं। मेरी मजदूरी भी मिल जाती है और इश्वरीय सन्देश का प्रचार भी।’

‘तुमने अभी-अभी कहा है कि मसीह के सन्देश के प्रचार का कार्य का आदेश हर मसीही के लिये है। यह बात तुम किस आधार पर कहते हो?’

उत्तर में उस लड़के ने अपना ही सवाल कर दिया। वह बोला,

‘आप मसीही हैं क्या?’

‘हां, मैं पास्टर हूं।’

‘तब तो . . .खैर छोडि़ये। यदि मैं आपसे पूछूं कि आप मसीह यीशु का सुसमाचार का प्रचार क्यों किया करते हैं तो आपका क्या जबाब होगा?’

‘?’ दीनबंधु तुरन्त ही कोई उत्तर न दे सके तो वह लड़का आगे बोला,

‘आप सोच रहे होंगे कि, जीवनयापन का एक साधन, नौकरी और साथ में ईश्वर की सेवा भी ?’

‘हां, कुछ ऐसा ही समझ लो।’

‘लेकिन ये बात नहीं है। आप यदि मत्ती की इंजील के अंतिम अध्याय के अंतिम पदों को पढ़ेंगे तो आपको मालुम हो जायेगा कि ईसा मसीह ने अपने स्वर्गारोहण से पूर्व मसीही धर्म के प्रचार व प्रसार के कार्य का आदेश अपने अनुयायियों को दिया था। इसलिये सही मायने में मसीही धर्म के प्रचार का काम हरेक ईसाई के लिये, ईसा मसीह का आदेश है। यह तो आपको करना ही है।’

‘?’ उस लड़के की ऐसी बात सुनकर दीनबंधु जैसे ठगे से रह गये। फिर बाद में जैसे अपराध बोध की भावना से ग्रस्त हुये आगे उन्होंने पूछा,

‘तुम्हारा नाम क्या है?’

‘वस्तु प्रकाश निर्मोही।’

‘रहते कहां हो?’

‘कोई निश्चित ठिकाना नहीं है। वैसे अब मैंने बी. ए. पास कर लिया है और नौकरी ढूंढ़ रहा हूं। नौकरी मिलते ही यदि भगवान ने चाहा तो घर भी बना लूंगा।’

‘मिशन में काम करने की इच्छा है तुम्हारी?’

‘नौकरी चाहिये। जहां भी मिलेगी कर लूंगा। लेकिन ?’

‘यदि मिशन में करूंगा तो आप मुझसे कहेंगे कि अब बपतिस्मा ले लो?’

‘नहीं ऐसी कोई भी बात नहीं है। तुमने मुझे बहुत ही अधिक प्रभावित किया है। मैं तो बस तुम्हारी मदद करना चाहता हूं। फिर मैं वादा करता हूं कि मैं अपने जीवन भर तुमसे कभी भी ईसाई बनने के लिये नहीं कहूंगा। यह तो प्रभु का काम है। वह यदि चाहेगा तो तुम बपतिस्मा लोगे, वरना नहीं।’

इसके पश्चात दीनबंधु ने वस्तु प्रकाश को अपना पता दिया और साथ ही फोन नंबर भी। तब उस सारे दिन वस्तु प्रकाश निर्मोही उनके मानसपटल पर छाया रहा। कारण था कि एक गैर मसीह लड़के ने जो बात उनसे कह दी थी, उसके बारे में तो उन्होंने अपने पिछले बारह साल की मिशन की नौकरी में कभी सोचा भी नहीं था। अपने मन मस्तिष्क में ये तमाम सारी बातें रखे हुये उस दिन दीनबंधु अपना काम समाप्त करके वापस घर चले आये। बाद में काफी दिन यूं ही गुज़र गये। वस्तु प्रकाश निर्मोही की याद किसी स्थान पर रखी हुई वस्तु के ही समान दीनबंधु के मस्तिष्क से धीरे-धीरे हटती चली गई। ना तो वस्तु प्रकाश ही उनके पास आया और ना ही उसका कोई पत्र या फोन ही। दीनबंधु फिर एक बार इस मुलाकात को अपने जीवन का कोई संजोग समझकर अपने कामों में व्यस्त हो गये। उन्होंने भी यही सोचकर सन्तोष कर लिया कि लड़का पढ़ा लिखा, स्नातक था, कहीं न कहीं उसे नौकरी मिल ही गई होगी। मगर होनी को कौन जानता था। वस्तु प्रकाश से शायद परमेश्वर ने भी उनका कोई नाता जोड़ रखा था। पिछली मुलाकात के लगभग दो वर्षों के पश्चात वस्तु प्रकाश उन्हें फिर एक बार जिले की होनेवाली कनवेंशन में मिल गया। दीनबंधु उसे मसीही कनवेंशन में अचानक देखकर गद् गद् हो गये। इस बार वस्तु प्रकाश उन्हें काफी बदला हुआ नज़र आया। कोट, पेंट और टाई में वह बड़ा ही प्रभावित करनेवाला मसीही लग रहा था। दीनबंधु ने स्नेह के साथ उसे अपने गले से लगा लिया। फिर मुलाकात और बातों के मध्य वस्तु प्रकाश ने स्वीकार किया कि मसीही साहित्य और स्वंय ही बाइबल के अध्ययन से एक दिन यीशु मसीह ने उसके दिल के द्वार को खटखटा दिया था। अब वह बाकायदा बपतिस्मा ले चुका है, और अपने शहर के मिशन अस्पताल में काम भी कर रहा है। बातों के मध्य ही वस्तु प्रकाश ने अपने दिल की बात और अपने भविष्य की योजना के बारे में बताया कि वह सचमुच दिल से यीशु की सेवा करना चाहता है, और सेमनरी बी. डी. करना चाहता है। मगर सेमनरी की पढ़ाई के लिये उसे डॉयोसीज़ अथवा किसी भी मिशन की तरफ से स्पॉन्सरशिप की आवश्यकता है। बगैर स्पॉन्सरशिप के उसका सेमनरी में प्रवेश नहीं हो सकता है। साथ ही उसने यह भी कहा कि चंूकि वह एक छोटी जाति से संबन्ध रखता है, अगर चाहे तो कोई भी अच्छी सरकारी नौकरी उसे अनुसूचित जाति के कोटे से मिल सकती है, मगर वह सचमुच में सेमनरी ही जाना चाहता है। कहते हैं कि यदि देशी घी कहीं निशुल्क बांटा जा रहा हो तो उसे अंगाछे में ही बांध लाओ। दीनबंधु को किसी की सहायता और सेवा का अवसर मिला तो वे कहां पीछे हटनेवाले थे। तुरन्त ही वे वस्तु प्रकाश से बोले,

‘तुमने मुझे एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। मैं तुम्हें सेमनरी भिजवाऊंगा। अब इस काम में देरी भी मत करना। अपने सारे जरूरी कागज़ात लेकर मेरे घर आओ और मुझसे संपर्क बनाये रखो।’

दीनबंधु पास्टर का प्रयास, लगन और परिाम्र एक दिन रंग लाया और वस्तु प्रकास निर्मोही को बाकायदा डॉयोसीज की तरफ से सेमनरी में बी. डी. करने के लिये स्पॉन्सरशिप मिल गई। वस्तु प्रकाश ने दिल की तमाम गहराइंयों से अपने परमेश्वर और पास्टर दीनबंधु को धन्यवाद दिया और एक दिन वह खुशी-खुशी सेमनरी चला गया। जहां तक दीनबंधु को याद रहा, वस्तु प्रकाश के बारे में उ्न्हें पूरे एक वर्ष तक सूचना मिलती रही। वह अपनी इस शिक्षा को अपनी पूरी लगन के साथ करता रहा। फिर एक दिन पास्टर दीनबंधु का स्थानान्तरण हो गया। उन्हें अपना शहर छोड़कर दूसरे नगर में जाना पड़ा। काम की अधिकता, उम्र की बढ़ोतरी, समय के तकाज़े और खुद अपने परिवार के प्रति बढ़ती हुई जिम्मेदारियों का परिणाम यह हुआ कि वस्तु प्रकाश से उनका संपर्क न केवल कम हुआ बल्कि एक दिन समाप्त सा हो गया। फिर जब और दिन बढ़ेे तो उन्हें कहीं से उड़ती हुई यह खबर लगी कि वस्तु प्रकाश निर्मोही अपनी सेमनरी की शिक्षा को बीच में ही अधूरी छोड़कर कहीं चला गया है। दीनबंधु को वस्तु प्रकाश के बारे में ऐसा सुनकर पहले तो विश्वास नहीं हुआ, मगर जब उन्होंने सेमनरी से इसकी जानकारी ली तो पता चला कि इस नाम का कोई भी छात्र सेमनरी में नहीं है। यह सुनकर दीनबंधु को बहुत दुख हुआ। यही कि वे जिस रूह को बचा लेना चाहते थे, उसको बरबाद करने में शैतानी पंजे जीत चुके थे, और वे केवल मजबूरी में अपने हाथ मलते ही रह गये थे। पास्टर दीनबंधु ने कुछेक दिनों तक इस सारी घटना पर अफसोस मनाया और बाद में सारा कुछ परिणाम परमेश्वर के हाथों में डालकर निश्चिंत हो गये। वे जानते थे कि इसके अतिरिक्त वे और कर भी क्या सकते थे। मगर पिछले वर्ष इसी वस्तु प्रकाश निर्मोही की तस्वीर एक दिन जब अखबार में उसके जघन्य अपराध के साथ छपी थी तो एक बार फिर से वस्तु प्रकाश की धूमिल पड़ती हुई स्मृतियां उनके दिमाग के पर्दे पर ताज़ा हो चुकी थीं। वस्तु प्रकाश को डॉयोसीज़ के बिशप की कोठी बंब से धराशायी करने के अपराध में गिरफ्तार कर लिया गया था। वे जानते थे कि वस्तु प्रकाश एक निहायत ही सीधा, परमेश्वर को समर्पित, मसीही सेवक था। वह खुद अपनी मर्जी से ईसाई बना था, और अपने ही स्वंय के निर्णय से सेमनरी के प्रशिक्षण के लिये गया था। यह और बात थी कि उसको सेमनरी में भेजने के लिये उन्होंने उसके लिये काफी भाग दौड़ की थी और मिशन से उसकी स्पॉन्सरशिप करवाई थी, मगर सेमनरी में बाकायदा एक वर्ष का प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात ऐसा क्या कुछ हुआ था कि वस्तु प्रकाश ने ऐसा जघन्य अपराध कर डाला था। अब तक उसके बारे में उसे कोर्ट से बाकायदा बरी करने के साथ जो कुछ वस्तु प्रकाश के बारे में छपा था, वह यही कि, वस्तु प्रकाश जज का निर्णय सुनने के पश्चात जज के पैरों पर गिर पड़ा था और उसने यही कहा था कि, महामहिम जज साहब, मिशन के लोग तो मुझ जैसी रूह को नहीं बचा सके पर आपने सचमुच ही मुझे बचा लिया है। नहीं तो मैंने सारे मिशन को ही ।’

बाद में पास्टर दीनबंधु को जब चैन नहीं पड़ा तो उन्होंने वस्तु प्रकाश के इस अपराधिक कदम के बारे में जान लेना अपना कर्तव्य समझा। उन्होंने बहुत सारे चक्कर कोर्ट के लगाये। वकीलों से मिले, और तब जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार से थी।

‘सेमनरी में एक वर्ष का प्रशिक्षण समाप्त करने के पश्चात जब नये बिशप की नियुक्ति डॉयोसीज़ में हुई तो उसने वस्तु प्रकाश के लिये आगे की सेमनरी के प्रशिक्षण के लिये उसकी स्पॉन्सरशिप की मंजूरी केवल इसलिये नहीं दी कि डॉयोसीज के पास पैसा नहीं है। बहुत मिन्नतें और आरज़ुयें करने के पश्चात भी जब उसकी नहीं सुनी गई तो हार मानकर वस्तु प्रकाश को सेमनरी छोडना पड़ गया। इस तरह से वह फिर एक बार सेमनरी छोड़कर सड़क पर आ गया। काफी दिनों तक वह परेशान और चिन्तित बन रहा, बाद में उसने सन्तोष भी कर लिया कि सचमुच ही डॉयोसीज़ के पास उसकी सेमनरी की शिक्षा के लिये पैसा नहीं होगा। मगर जब उसी बिशप ने अपने किसी रिश्तेदारों के दो छात्रों के लिये सेमनरी में भेजने के लिये स्पॉन्सरशिप की तो यह जनाकर वस्तु प्रकाश का सारा खून ही खौल गया। फिर उसने चुपचाप एक योजना बनाई। बिशप के घर, उसकी कोठी में खाना बनाने के काम के लिये नौकरी का साधन ढूंढ़ा। वह दो वर्षों तक उन बिशप के घर में रसोइये का काम करता रहा। चुपचाप उसने बंब बनाने का नुस्खा भी किताबों से पढा़। चुपचाप एक खतरनाक अपराधी पृष्ठभूमि का खा़का तैयार किया। और एक दिन जब कोठी में कोई भी नहीं था और सारे लोग दूसरे शहर गये हुये थे, वह बंब को प्रेसरकुकर में बंद करके, हल्की आंच पर रखकर तुरन्त ही कोठी के बाहर भागा। लेकिन उसका शायद भाग्य ही खराब था, दरवाज़े से बाहर निकलते ही कोठी में धमाका हुआ, साथ में वह खुद भी घायल हो गया। घायल होने की अवस्था में ही वह पकड़ा गया। जेल गया। मुकद्दमा चला, और बाद में बरी कर दिया गया। कोर्ट के निर्णय में वस्तु प्रकाश निर्मोही को बरी करने का कारण, उसको अपराधी बनाने की प्रवृत्ति की तरफ मोड़ने के लिये मिशन और उसकी पक्षपात नीति ही जिम्मेदार थी। क्यों उसकी सेमनरी की शिक्षा बीच मैं रोकी गई? क्यों उसके स्थान पर मिशन अधिकारी के अपने बच्चों को सेमनरी भेजा गया?’

पास्टर दीनबंधु को जब यह सब हकीकत मालुम हुई तो वे अपना सिर पकड़कर बैठ गये। उनका दिल वस्तु प्रकाश को गले लगाने के लिये छटपटाने लगा। उन्होंने फिर एक बार वसुंधरा गांव जाने का कार्यक्रम बनाया। फिर एक दिन वे वस्तु प्रकाश के घर पर गये, मगर उसके घर के बाहरी द्वार पर पड़ी सांकल में जंक लगा हुआ ताला उनको मुंह चिढ़ा रहा था। दीनबंधु समझ चुके थे कि उनको आने में देर नहीं, बल्कि बहुत देर हो चुकी थी। वस्तु प्रकाश वहां से न जाने का कब का जा चुका था। जा चुका था। लेकिन कहां और किस दिशा में? कोई भी नहीं जानता था।

उन्हें समझते देर नहीं लगी कि जिस मुश्किल से उन्होंने एक रूह बचाने के लिये अपने हाथ पांव मारे थे, उसे शैतान ने अपने पंजों में फिर से जकड़ लिया था। और मौत के मुंह में भेजने के लिये इस इंसानी रूह के कौन लोग जिम्मेदार थे? वस्तु प्रकाश निर्मोही, पास्टर दीनबंधु, मिशन डॉयोसीज, बिशप या फिर लूसीफर? यह निर्णय भी उन्होंने परमेश्वर के हाथों में छोड़ दिया। दुआ करने लगे कि काश: वस्तु प्रकाश निर्मोही फिर कोई भी शैतानी निर्णय अब अपने हाथों में न ले तो ही बेहतर होगा?
समाप्त।