ताश का आशियाना - भाग 37 Rajshree द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • नज़रिया

    “माँ किधर जा रही हो” 38 साल के युवा ने अपनी 60 वर्षीय वृद्ध...

  • मनस्वी - भाग 1

    पुरोवाक्'मनस्वी' एक शोकगाथा है एक करुण उपन्यासिका (E...

  • गोमती, तुम बहती रहना - 6

                     ज़िंदगी क्या है ? पानी का बुलबुला ?लेखक द्वा...

  • खुशी का सिर्फ अहसास

    1. लालची कुत्ताएक गाँव में एक कुत्ता था । वह बहुत लालची था ।...

  • सनातन - 1

    (1)हम लोग एक व्हाट्सएप समूह के मार्फत आभासी मित्र थे। वह लगभ...

श्रेणी
शेयर करे

ताश का आशियाना - भाग 37

सिद्धार्थ के लिए लंदन का प्रोजेक्ट एक सपने जैसा था वहां उसे पहली बार एक ओटीटी–युटुब प्लेटफ़ार्म छोड़ टीवी पर आने का मौका मिलने वाला था। वह भी वहां के सक्सेसफुल एंकर और ट्रैवल व्लॉगर के साथ। उसे तुषार से बात करना जरुरी था।

तुषार के घर में आते ही इस बात की खबर, सिद्धार्थ को पता चल गई। वातावरण गर्मा-गर्मी का हो गया था।

नारायणजी ने आते बराबर सवाल दागा, "बात की तुमने उन लोगो से? बोल दिया ना! सिद्धार्थ ने यह काम छोड़ दिया है।"

तुषार सोच में पड़ गया। झूठ बोलना सही था उसके मायने में।
क्योंकि ट्रेवलिंग सिद्धार्थ का पैशन था, लंदन प्रोजेक्ट उसका सपना।
पर दुविधा यह थी की उसके खुदके पिता चाहते थे कि उनका बेटा हमेशा के लिए यह काम छोड़ दे।

सिद्धार्थ के लिए यह बात दिल पर खूनी आघात करने जैसी थी। जिसका परिणाम (इफेक्ट) उसपर क्या होता इसकी जानकारी तुषार को थी इसलिए उसने सिर्फ झूठ बोलना लाज़मी समझा।
"मैंने लंदन वालों को बोल दिया है कि अब भाई कभी नहीं आएंगे। उन्होंने यह काम छोड़ दिया है।"

नारायण जी ने खुश होकर तुषार को गले लगा लिया, शाबाशी दी‌ और कहा कि, "तू हमारा दूसरा बेटा है।"

झूठ से हमेशा खुशियां बटोरी जाती है बस सुख की कमी रह जाती है।

सिद्धार्थ के लिए गंगाजी जब रूम में ही खाना लेकर गई।
तब खाना खाते हुए उसने अपने मन की बात बोल दी, "मुझे तुषार से बात करनी है।"
"अभी भी थक हार कर आया है, सुबह बात कर लेना।" सिद्धार्थ ने मां की बात मान ली।

गोलियों के असर के कारण सिद्धार्थ उठा भी तो दोपहर को।उठते बराबर ही उसका सिर फटने लगा। ज्यादा हुई कोई भी चीज निगली नही जाती।
उसका दिमाग उसे लोगो से पीछे मानने के लिए काफी था।

"दुनिया भाग रही है, बस तुम यही पड़े हो लाश बनकर।"
"क्या है तुम्हारा ऐम, यहां बस पड़े रहना?"
और भी बहुत बड़े वाख्यान बडी–बड़ी गालियां उसका दिमाग उसे दे रहा था उसकी नाकामियों पर।
और क्या थी उसकी नाकामियाबी? बस यहां बनारस में और एक दिन रहना, बिना कुछ किए।

वो भागाभागा तुषार के पास गया। तुषार बैठ कर अपना काम कर रहा था।
सिद्धार्थ को तितर-बितर देख तुषार हक्का–बक्का हो गया।
बाल बिखरे हुए, आंखे फुली हुई, ब्लैक वूलन हुडी...

"अब मेरी तबीयत ठीक हो चुकी है, मुझे लगता है।
हमें अपने प्रोजेक्ट पर काम करना चाहिए। लंदन वालों का मुझे अब तक फोन नहीं आया है। एक बार उनसे कन्फर्म करके बता की कब हमें वहां जाना है।"

तुषार को क्या बोले समझ नही आ रहा था। इतनी तबियत खराब होने के बावजूद भी आंखो में इतनी चमक देख उसका दिल चीर गया था।

क्या यह चमक वो फिर कभी देख पाएगा?

"भाई लंदन डेलिकेट का फोन आया था। उन्होंने काम करने के लिए मना कर दिया, प्रोजेक्ट कैंसिल।"

सिद्धार्थ को यह बात सुन थोड़ा सा धक्का लगा, "प्रोजेक्ट कैंसिल कर दिया? ऐसे कैसे कैंसिल कर दिया! उन्होंने तो खुद हमसे प्रॉमिस किया था की, आने वाले अपकमिंग शोस में, हम दोनों उनके टीम में शामिल हो गए। मैंने अपना वीजा भी रिन्यू करवा लिया है।"

"भाई उसमें मैं क्या कर सकता हूं कि, उन्होंने ही हमें ना बोल दिया।" विश्वास नहीं हो रहा था इन बातों पर।

"उनसे खुद बात करनी है नंबर दो मुझे उनका।"

"भाई मैं नंबर नहीं दे सकता।"

"नहीं दे सकता का क्या मतलब?" मैं उनसे खुद बात करूंगा। यह मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट है। मैं ऐसे इसे हाथ से जाने नहीं दे सकता।"

तुषार ने अपने हाथों से फिसलने वाली बातों को संभालते हुए

"अभी आपकी तबीयत ठीक नहीं। आप थोड़ा ठीक हो जाइए फिर बात करेंगे हम दोनों मिलकर लंदन वालों से।"

"मेरी...मेरी तबी...यत बिल्कुल ठीक है।"

"भाई आपको सिजर्स आए थे और इस हालत में तो आपको डॉक्टर ने भी कई बाहर जाने से मना कर दिया है।"

"ठीक है लेकिन जब तक प्रोजेक्ट डेट आएगी तब तक मैं पूरी तरह ठीक हो जाऊंगा। दो हफ्ते हैं उसमें।"

"भाई आप समझ नहीं रहे हैं। यह काम आप कुछ देर के लिए छोड़ दीजिए।"

"कुछ देर के लिए छोड़ दूं ! फिर मेरे व्यूवर्स का क्या? मेरे फॉलोवर्स का क्या ? मेरे सपने का क्या?"

"भाई वह इंतजार कर लेंगे लेकिन आपकी तबीयत ठीक होना जरूरी है।"

"मैं जब तक यह काम कर नहीं लेता तब तक मेरी तबीयत ठीक नहीं होगी।"

सिद्धार्थ ने और ना बहस करते हुए तुषार के फोन से वह नंबर ढूंढने की कोशिश की। कोई मुश्किल काम नहीं था एक इंटरनेशनल नंबर ढूंढना।

जैसे ही सिद्धार्थ फोन लगाने जाता तुषार बोल उठा,‌" मैंने उन्हें मना कर दिया है। अंकल नहीं चाहते कि आप दोबारा यह काम शुरू करें।"

सिद्धार्थ रुक गया माहौल काफी गंभीर और गर्मा–गर्मी का हो गया था।

सिद्धार्थ के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे उसे बहुत बड़ा झटका लगा था, " दोबारा काम शुरू न करें मतलब?"

तुषार ने अपना गला घोटते हुए, "आप जब बीमार हुए थे। तब उन लंदन वालों का फोन आया था, वह फोन अंकल ने उठाया। और उन्होंने उन लोगों को साफ-साफ यह कह दिया की, आप अभी काम पर कभी वापस नहीं आएंगे। आपने यह काम छोड़ दिया है।"

"यह पिताजी ने खुद उन्हें कहा?" सिद्धार्थ ने शक की नजर से तुषार को देखा।

क्योंकि सिद्धार्थ को भी पता था कि उसके पिताजी के लिए एक आध इंग्लिश शब्द छोड़ इतना बड़ा व्याख्यान इंग्लिश में देना कोई सरल बात नही।

सिद्धार्थ का गुस्सा और उसकी आंखें देख आखिरकार तुषार को सच बोलना ही पड़ा।

तुषार ने अपने आंखें नीचे कर ली, "मैं इंदौर में था, प्रतीक्षा के साथ फिल्म फेस्टिवल अटेंड कर रहा था तब अंकल का फोन आया था।उन्होंने मुझे कहा की लंदन वालों से फोन आया है। वह आपके के बारे में पूछ रहे हैं।
और उन्हें यह बताने को कहा कि अब आप कभी काम पर वापस नहीं आएंगे। आपने यह काम छोड़ दिया है।"

अंकल आपको यह काम दोबारा नहीं करने देना चाहते। वह चाहते कि आप उनकी नजर के सामने रहे।
यही कही छोटी मोटी नौकरी करें ताकि वह आपका ख्याल रख सके।
इसके लिए अपने बॉस से भी बात करने वाले हैं ताकि आपको नौकरी लग सके।

सिद्धार्थ अभी-अभी बीमारी से ठीक हुआ था।
वह ठीक से चल भी नहीं पा रहा था, बोल भी नहीं पा रहा था। लेकिन फिर भी उसके आंखों में आगे बढ़ने का सपना कम नहीं हुआ था।
लेकिन ऐसे पेशेंट ठीक कम और बीमार ज्यादा रहते हैं।
मूड स्विंग उनके लिए आम बात है।
कब यह हंस दे और कब यह गुस्सा कर दे पता नहीं चलता।
और इसी के चलते सिद्धार्थ ने फोन तोड़ दिया। तुषार दंग रह गया।
"हिम्मत कैसे... हु...ई तुम... लोगों की?" सिद्धार्थ तिलमिला उठा, उसके शब्द कपकपा रहे थे।
लेकिन फिर भी गुस्सा दोगुना था। उसने बाहर जाकर सीधा नारायण जी से सवाल दागा।
"क्या आप नहीं चाहते कि मैं अपने काम पर वापस जाऊ?" नारायण जी ने उसके गुस्से को गुस्से से ही जवाब दिया।
"हां! मैं नहीं चाहता बहुत हो गया तुम्हारा घूमना फिरना हमारे जान पर बन आती है, जब तुम्हें कुछ हो जाता है।"
सिद्धार्थ ने कहा, "वह मेरे लिए सपना है। मैं उसे ऐसे नहीं छोड़ सकता।"
"तुम्हें छोड़ना पड़ेगा!" नारायणजी गरजे।
सिद्धार्थ चिल्लाया, "नहीं! चाहे कुछ भी हो जाए।"
सिद्धार्थ के चिल्लाने मात्र से गंगा और नारायणजी दोनों सक्ते आ गए।
उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि सिद्धार्थ को क्या हो रहा है।
सिद्धार्थ ने नारायणजी का गिरेबान पकड़ लिया।
"आपको क्या लगा आप मुझे इन चार दीवारों में बंद कर पाओगे? बिल्कुल नहीं। मैं एक आजाद पंछी हूं। मैं भाग जाऊंगा, मैं यहां से भाग जाऊंगा। आप जैसे लोग मुझे नहीं रोक पाएंगे नहीं रोक पाएंगे।"
सिद्धार्थ जोर-जोर से चिल्लाने लगा और एकाएक चिल्लाते हुए बेहोश हो गया।
तुषार और गंगा ने मिलकर उसे संभाला।
और वही नारायणजी खुदके बेटे के इस बर्ताव से अभी भी सक्ते मे थे।
सिर्फ बात करने से यह हाल हुआ है, अगर यह बात सच हो जाती है तो क्या हाल होगा?
इस बात का अनुमान लगाना शुक्ला परिवार के लिए मुश्किल था।

उम्मीदों से बंधा
घायल परिंदा हु मै।
घायल भी उम्मीदों से
जिंदा भी उम्मीदों पर।