ताश का आशियाना - भाग 34 Rajshree द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ताश का आशियाना - भाग 34

तुषार से नंबर मिलते ही रागिनी ने सिद्धार्थ को सुबह फोन लगाया।
पहली बार फोन लगा नहीं लेकिन दूसरी बार
लेकिन दूसरी बार में ही फोन उठा लिया, सिद्धार्थ ने व्यक्ति का परिचय पूछा।
"मैं रागिनी बोल रही हूं।" सिद्धार्थ का मन एकाएक अस्थिर हो गया धड़कनें बढ़ गई।
वह चाहे कितना भी दूर भागे लेकिन उसका मन रागिनी पर ही अटका था यह बात रागिनी की एक आवाज से ही साबित हो गई।
रागिनी ने सिद्धार्थ का ध्यान खींचते हुए, "कैसे हो तुम?"
"मैं ठीक हूं।"
सिद्धार्थ के आवाज में पहली बारी में जो कमजोरी दिखाई दे रही थी वह अब थोड़ी कम थी।
इसी बात से सिद्धार्थ ठीक होने की कगार पर है यह तसल्ली रागिनी को हो रही थी।
वह भी पूछना चाहता था कि,तुम कैसी हो? लेकिन स्वभाव अनुसार उसने पूछ ही लिया, "तुम्हें यह नंबर कहां से मिला?"
"तुषार को मैंने जब फोन किया तो उसने दिया, मुझे।"
रागिनी ने घबराते हुए जवाब दिया।
"तुषार ने! तुषार ने क्यों?" सिद्धार्थ ने यह सवाल खुद से ही पूछा लेकिन ऊंचे स्वर के कारण रागिनी ने सुन लिया।
"मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी थी इसलिए।" रागिनी ने सिद्धार्थ के सवाल का जवाब दिया।
"क्या बात करनी थी?"
"मैं तुमसे आखरी बार मिलना चाहती हूं।"
"आखरी बार?"
"मैं लंदन वापस जा रही हूं।"
दोनों में एक बार फिर शांति फैल गई।
सिद्धार्थ का दिल बेचैनी से धड़क रहा था उसे रागिनी की लंदन जाने वाली बात कही खटक रही थी।
रागिनी का हाल भी कुछ वैसा ही था उसे लगा कि सिद्धार्थ उसे मना कर देगा पर...
"ठीक है कहां मिलना है?"
सिद्धार्थ के जवाब से रागिनी अचंभित और उत्साहित दोनों हो गई। उसे पैर के नीचे की जमीन महसूस नहीं हो रही थी।
"मैं तुम्हें एड्रेस सेंड कर दूंगी।"
रागिनी ने कुछ 15 मिनट बाद एड्रेस और जगह का नाम सेंड कर दिया।
कुछ एक घंटे के बाद वो किसी कैफे में मिले जहा रागिनी ने स्पेशल सीट रिजर्व्ड कर रखी थी।
सिद्धार्थ को जब बेटर एक रिजर्व्ड एरिया में लेकर गया तो उसने रागिनी से सवाल किया।
" रिजर्वेशन की क्या जरूरत थी, हम वैसे ही बात कर लेते।"
"तुम्हें लोगों से दूर बैठने में प्रॉब्लम है?"
"नहीं! नहीं तो..."सिद्धार्थ ने अपने कंधे उचकाते हुए जवाब दिया।
"फिर?" रागिनी कुढ (गुस्सा) गई।
"सॉरी बाबा! गलती हो गई। मेन मुद्दे पर तो आओ।
ऐसी कौन-सी बात करना चाहती थी, तुम मुझसे?"
रागिनी सिद्धार्थ को जवाब देने की बजाय बड़ा ही फॉर्मल सा सवाल पूछा, "कैसे हो तुम?"

उसके जवाब मे सिद्धार्थ ने सिर्फ, "आई एम हैप्पी, परफेक्ट ऐसा ही कुछ जवाब दिया।"

"तुमने एक्सीडेंट से उठते ही मुझसे बात नहीं की, मुझे लगा तुम मुझसे नाराज हो।"
"क्यों ऐसा क्यों लगा तुम्हें?"
"अवॉइड जो कर रहे हो तुम मुझे।"
सिद्धार्थ इस सवाल पर हंस दिया, पर वह हंसी भी कही फेक थी।
"नहीं-नहीं बस एक्सीडेंट को लेकर थोड़ा शॉक हो गया था।"
सिद्धार्थ की बातों पर सिद्धार्थ को खुद भी विश्वास नहीं था ना ही रागिनी को क्योंकि आंखों को टालना आम बात हो गई थी दोनों की इस मुलाकात में।
"मैं तुम्हारे लिए यहां आई हूं।"
"मेरे लिए!?"
"तुम खुश हो, परफेक्ट हो लेकिन मैं नहीं।"
"क्यों क्या हुआ तुम्हें?" खुद के प्रति सिद्धार्थ के मन में चिंता देख रागिनी का दिल खुश हो गया।
"क्योंकि यहां कोई है जिसको सब कुछ दिखाई देता है, सुनाई देता है लेकिन अंधा बहरा बन घूम रहा है।‌ एंड इट्स लिटरेरी अनाेईंग।" रागिनी गुस्से में बोल उठी।
रागिनी का गुस्सा उसकी जगह जायस था ऐसा रागिनी मानती थी क्योंकि वो सिद्धार्थ के इस एक–आधी चिंता से काफी कन्फ्यूज्ड हो रही थी।
कभी गुस्सा, कभी चिंता, कभी कुछ–कभी कुछ। सिद्धार्थ के इस रवैए से वह परेशान हो चुकी थी। उसे सवाल का जवाब चाहिए था।
क्या सिद्धार्थ भी वही फील करता है जो वह फील करती है या सिर्फ यह एक टाइम पास है।

दूसरी तरफ, रागिनी के इस बर्ताव को देख सिद्धार्थ थोड़ा सक्ते में आ गया।
"यह बोलने के लिए तुमने मुझे यहां बुलाया है।"
रागिनी ने ना में सिर हिलाया, "नहीं बिल्कुल नहीं।"
रागिनी एक लंबी सांस लेकर अचानक से शांत हो गई। जैसे कुछ मिनट पहले उसे गुस्सा आया ही ना हो।
रागिनी ने सिद्धार्थ के हांथ को अपने गालों पर रख दिया।
"डू यू फील इट सिद्धार्थ?" सिद्धार्थ की दिल की धड़कन इस बर्ताव से एकाएक तेज हो गई ।
"आई फील इट, आई लाइक यू सिद्धार्थ।"
"यह तुम क्या..." सिद्धार्थ को शब्द का संचालन करना जरा मुश्किल हो रहा था।
सिद्धार्थ इधर उधर देखना लगा।
गंगा, घाट, लोग, मंदिर सब पर नजर थी पर रागिनी पर नहीं।
रागिनी ने सिद्धार्थ की बैचेनी समझ ली।
"इधर देखो सिद्धार्थ।"
सिद्धार्थ फिर भी नही मान रहा था, उसका डर उसकी इनसिक्योरिटी उसे ऐसा करने पर मजबूर कर रही थी।
"प्लीज!" रागिनी के इस प्लीज में एक अजीब सी शांति थी और एक अजीब सी घुटन भी जो शायद सिर्फ सिद्धार्थ को महसूस हो रही थी।
फिर भी सिद्धार्थ ने घूम कर रागिनी की तरफ मुंह किया।
रागिनी की आंखे सिद्धार्थ के आंखो को झाक रही थी
और सिद्धार्थ की आंखे भी कुछ ऐसा ही करने की फिराक में थी।
पर आंखो में झांकने पर पता चला यह वो रागिनी नही है, जिसे सिद्धार्थ जानता है।
यह वो रागिनी नही है जो सिद्धार्थ के पास मन भर रोई थी, यह वो रागिनी नही जो कुछ लापरवाह है, बच्ची है।
यह रागिनी अलग थी।
जो भावनाएं सिद्धार्थ किसी समय चित्रा की आंखों में खुद लिए देखना चाहता था‌ वही भावनाएं सिद्धार्थ रागिनी की आंखों में साफ-साफ देख सकता था।
सिद्धार्थ को डर लगने लगा की कही वो खुदका नियंत्रण
गवा न देगा।
इसलिए उसने आंखे नीचे करली।

रागिनी तब भी सिद्धार्थ के दिल के अंदर तक झांकने कोशिश कर रही थी और अब भी।
"Do you feel it Sidharth?" गहरा, कर्कश और उसी जगह रोंगटे खड़ा कर देने वाला आवाज था यह।
धीरे-धीरे हाथ गालों से बढ़कर होठों की तरफ चला गया। और उसी मखमली से नाजुक होंठों ने सिद्धार्थ के हाथों को चूम लिया।
सिद्धार्थ के शरीर में सिहरन बढ़‌ गई।
बनारस का समा बहुत ही खूबसूरत था दोनों अकेले थे।फिसलना आम बात थी लेकिन खुद पर नियंत्रण रख पाना बड़ी बात।
बात और आगे बढ़े उससे पहले सिद्धार्थ ने अपना हाथ खींच लिया।
"सॉरी! बाद में बात करते हैं।"
सिद्धार्थ झट से खड़ा हो गया। बाजू में रखा अपना लाल लेदर जैकेट उठा, वो वहां से चल दिया।
रागिनी भी उठकर खड़ी हो गई, "रुको सिद्धार्थ!" रागिनी चिल्लाई।
सिद्धार्थ रुका नहीं। उल्टा उसके कदम और भी तेज हो गए।
रागिनी सिर्फ सिद्धार्थ को देखे जा रही थी।
नाही उसकी आंखो में कोई आसू थे, नाही अफसोस पर थी एक अजीब सी चुभन।
पीछे बहुत सारे सवाल छोड़ कर गया सिद्धार्थ।
लेकिन एक सवाल गहरा था, "क्या मैं सच में उसके प्यार के लायक नहीं हूं।"


कुछ एक आधे घंटे में सिद्धार्थ खुद के घर पहुंचा।
गंगा से बिना कुछ बात किए वो सीधा अपने रूम में चला गया। रूम के दरवाजे से सट कर अपनी फूटी किस्मत पर रोने लगा।
आंखों से आंसू बह रहे थे, शरीर कांप रहा था होंठ कप-कपा रहे थे। शरीर का तापमान बढ़ रहा था। दिल तेजी से धड़क रहा था।
अपने बालों को खींचते हुए खुद से ही बात करने लगा, "तुम बुजदिल हो, निकम्मे हो नकारा।"
सिद्धार्थ को पता था कि वह क्या फील कर रहा है।
उसे पहली बार खुद से नफरत हो गई थी।
तुषार की बातें उसे सच साबित होते हुए दिखाई दे रही थी।
"भाई एक दिन आप रिग्रेट करोगे।"
वह रिग्रेट कर रहा था। लेकिन इस बात का कोई फायदा नहीं था।
उसकी लाइफ की कोई गारंटी नहीं थी।
वह कब एक इंसान है और कब एक शैतान उसे ही नहीं पता था।
वह अपनी पचासी भी पूरी कर पाएगा भी या नहीं यह भी उसे पता नहीं था। तो क्या वह एक लड़की को लाइफटाइम कमिटमेंट दे सकता था।

सिद्धार्थ के अनुसार उसकी जिंदगी खुद ही मेंसप थी तो वह क्या दूसरों की जिंदगी को सवार सकता था।
रागिनी का उससे दूर जाना ही ठीक था, वो रागिनी के लिए बिल्कुल ठीक नहीं था।

अपनी ऐसी ही अवस्था में सिद्धार्थ ने अचानक से अपने हाथ को ऊपर उठाया और बिना पलक झपकाए उस हाथ को देखने लगा।
और एकाएक‌ सिद्धार्थ ने वह हाथ अपने होठों के पास लिया जो कुछ देर पहले रागिनी ने खुद के हाथों में लिया था।
और उसी हाथ को अपने होठों से छूकर‌ खुद के प्यार का इजहार कर दिया।



करीब दो दिनों तक सिद्धार्थ की कोई खबर नहीं आई।
रागिनी अपने सवाल का जवाब जान चुकी थी।
अब ऐसा कुछ नहीं बचा था जिससे वह इंडिया छोड़कर लंदन ना जाए।