ताश का आशियाना - भाग 31 Rajshree द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ताश का आशियाना - भाग 31


सिद्धार्थ जाग गया, रागिनी को वहा देख कर वो ज्यादा ही शॉक में था और रागिनी उसे देखकर खुश।
"क्या सोच रहे हो? कैसे लग रहा है अब तुम्हे?"
यह दोनो सवाल के साथ ही सिद्धार्थ थोड़ा सिहर सा गया। मानो उसे रागिनी के कुछ ना बोलने का ही इंतजार था, कुछ गलत कर दिया था रागिनी ने।
" ठीक हू अभी।" जवाब इतना रूखा सा था की कोई भी ऑफेंडेड हो जाता, पर रागिनी सिद्धार्थ के मूड से वाकिफ थी।
"यह सब कैसे हुआ रात में बिना किसी को बताए निकल गए, अच्छा हुआ वहां के लोग काफी अच्छे थे।"
"ट्रैफिक पुलिस ने तुषार को फोन किया और वो यहां भागा दौड़ा चला आया। तुम्हें पता है मुझे..."

"तुषार कहा है?" रागिनी को थोड़ा बुरा लगा क्योंकि उसका वाक्य "मुझे कितना बुरा लगा।" जो सिद्धार्थ ने काट दिया।
सिद्धार्थ का रुखापन उसे खटकने लगा था।

“तुषार, प्रतीक्षा को छोड़ने गया है।” रागिनी ने जवाब दिया।
"एडिटिंग हो गई?" सिद्धार्थ के चेहरे पर शिकन फैल गई।
सवाल का जवाब देंने जाए इसे पहले,
"भाई!"
तुषार की आवाज दरवाजे से आई, उसने भाग कर सिद्धार्थ को गले लगा लिया।
"सॉरी भाई, मेरी गलती हो गई। मैं आगे से ऐसी गलती नही करूंगा।"

"प्रतीक्षाजी कहा है ?" सिद्धार्थ का पहला यही सवाल था।
तुषार भी काफी अचरज में था, जो 24 घंटे बाद उठा है वो व्यक्ति इस तरह का सवाल कर रहा है। जैसे की इस बात से उसे कोई फरक नहीं पड़ता हो |

" वो आज उनका आखिरी दिन था, वो चली गई वापस इंदौर."
"काम पूरा हुआ?"
"सिद्धार्थ, पहले अपनी सेहत पर ध्यान दो, काम तो बाद में भी चलता रहेगा।" रागिनी ने सिद्धार्थ को डांटते हुए कहा।
सिद्धार्थ ने उसकी तरफ देखा भी नहीं, और ऐसे ही उसे अनसुना कर दिया।

रागिनी को इस बात से काफी कोफ़्त महसुस हुई |

उसे लगा कि सिद्धार्थ उससे गुस्सा है, पासा अभी पलट जो चुका था।
पहले रागिनी उससे दूर-दूर भाग रही थी अब सिद्धार्थ भाग रहा है।

"नहीं भाई काम पूरा नहीं हुआ, मैं दो दिन काम खत्म कर उसे खुद यह फिल्म देकर आऊंगा।"

"काम वक्त पर पूरा होना चाहिए था ना! हमने एडवांस लिया है अगली पार्टी से फिर भी?" सिद्धार्थ तुषार से काफी नाराज था |

"पर भाई...."
तुषार सिद्धार्थ को बात रखने जाता ही की, रागिनी का फोन बज उठा.
रागिनी इजाजत मांगकर बाहर फोन उठने चली गई।
"कहा हो रागिनी? सुबह से बाहर हो | पापा आज जल्दी घर आ गए, तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे।"
"बहुत गुस्से में है | तू जहां कहीं है, घर आजा जल्दी से।”
"हां मम्मी बस आ रही हूं। प्रतीक्षा का आज बनारस में आखरी दिन था तो उसे सेंड-ऑफ देने के बारे में सोचा था | उसे ही छोड़कर वापस आ रही हूं।"

रागिनी की माँ ने और कुछ शब्द बोले जिसपर रागिनी ने हा–हू में जवाब देकर आख़िरकार फ़ोन रख दिया।
अंदर आई तो डॉक्टर सिद्धार्थ का चेकअप करा रहे थे।

"ऐसे में आपको काम के बारे में नहीं सोचना चाहिए। जिस दुर्घटना से आप बचे हैं उसके बाद खुद के स्वास्थ्य पर ध्यान देना काफी जरूरी है।" डॉक्टर सिद्धार्थ को चेतावनी दे रही थी|

" मैं भी इसे यही कह रही थी, डॉक्टर।"

डॉक्टर हस दिए
"पत्नी का मान लिया कीजिए सर, कब से आपके लिए परेशानी हो रही है।”

तुषार डॉक्टर की बात सुनकर हस दिया।
रागिनी शरमा गयी और एक गुलाबी लाली जाने-अनजाने उसके चेहरे पर फ़ैल चुकी थी।

" वो मेरी पत्नी नहीं।'' सिद्धार्थ ने गंभीर और बिना हिचकिचाए बात आगे राखी।
"मुझे लगा, वो आपकी पत्नी है, माफ़ कीजिएगा |" डॉक्टर ने बात संभाल ली .

सिद्धार्थ की ये बात सुनकर मानो, तुषार की हंसी और रागिनी की लाली अचानक गायब हो गई।

तुषार रागिनी की तरफ देखने लगा | उसकी आँखों में उदासी देख वो भी उदास हो गया |
पर विडंबना यह थी कि, वो कुछ नहीं बोल सकता था | बोल कर ही तो सब हुआ था।

" मैं चलती हूं, पापा का घर से फोन आ रहा है।”

तुषार अपनी जगह से उठ गया, "संभल कर जाईएगा कि, मैं आपको छोड़ दूं।"

मैं आपको छोड़ दूं के बाद तुषार ने सिद्धार्थ की तरफ देखा, लेकिन कोई रिएक्शन नहीं देख उसका मन अस्थिर हो गया।

रागिनी भी काफी रुआसी हो चुकी थी, बस वो यहां से निकलना चाहती थी।

जब इंसान अपनी हालत ठीक नहीं कर सकता, तब रोना ही उसके लिए मरहम बन जाता है।

रागिनी को सिद्धार्थ के बर्ताव पर बेहद गुस्सा आ रहा था पर उस गुस्से ने आसु का सहारा ले लिया था।
"नहीं मैं मैनेज कर लूंगी।" गुस्से भरे इस वाक्य में छुपा हुआ दर्द तुषार ने भाप लिया लेकिन वो कुछ नहीं कर सकता था यह उसकी हदबलता थी।

रागिनी तनफनाते हुए वहा से चली गई|


"इंसान के खुदके विचार किसी नशे के तरह होते हैं, कब किस तरह से इस्तमाल किये जाते हैं इसपर जिंदगी टिकी हुई है।”


रागिनी के जाते ही तुषार ने सिद्धार्थ को डाटा, "भाई आपको भाभी से ऐसी बात नहीं करनी चाहिए थी।"

"कैसी बात, मैंने सच ही तो कहा।”
"भाई!!" तुषार का दिल कडवा सा हो गया |

"तू बस अपने काम पर ध्यान दे, और डॉक्टर से पूछ कर आ, मैं यहां से कब निकालूंगा।"

" ठीक है।'' तुषार वहां से हताश होकर चला गया।

उसके जाते ही, सिद्धार्थ सिर्फ आंखे बंद कर लेटा रहा |

I don't deserve her. यहीं एक ख्याल उसके मन में था।

रागिनी घर पहुँच गई. उसके पापा आए हुए थे काफी गुस्से में भी लग रहे थे।
"कहा थी तुम अबतक?"
"मैंने माँ को बताया था।"

"तुम्हें मैंने कितनी बार कहा है की, अकेले बाहर जाया मत करो।" पिताजी तमतमा गए।

"मैं प्रतीक्षा के साथ गई थी आज उसका आखिरी दिन था बनारस में इसलिए उसे सेंड-ऑफ पार्टी दे रही थी।"

"क्यो अब तक नहीं दी, रोज ही तो बाहर जाती हो।" पिताजी, कुढते हुए बोल उठे।

"मुझे अभी इस बारे में कोई बात नहीं करनी।" रागिनी ने भी रूखा सा जवाब दे दिया।

"कल तुम्हें, देखने लड़के वाले आने वाले हैं।"

"नहीं मैं किसी से शादी नहीं करना चाहती।"
पिताजी चिल्ला उठे, "बिल्कुल नहीं यह तुम्हारी बचकानी हरकत है और हम अब सहन नहीं करेंगे। तुम्हारी शादी हो तो हमारा पिछा छूटे।"

पीछा छुटे ! हा वही तो करते आए हैं आप।
और किस बोझ के बारे में आप बात कर रहे हैं जो थोड़ा दहेज देकर उतर जाएगा।
आप अपना बोझ नहीं हटाना चाहते आप अपनी ज़िम्मेदारी अपनी गलती से भगाना चाहते हैं, अपनी इज़्ज़त बचाना चाहते हैं क्योंकि आपको लगता है सब प्रोब्लम पैसे देकर ठीक किए जा सकते है। लेकिन आप पैसे देकर लोगो को खरीद सकते हो, उनकी खुश रहने की आजादी को नही।
और रही बात बोझ की तो डोंट वरी, जल्द ही आपकी यह विश पूरी हो जायेगी। मैं बहुत जल्द आपके जिंदगी से चली जाऊंगी, लेकिन खुदकी मर्जी से।

 

सिद्धार्थ आँखे, बंद कर लेटा ही था की,
तुषार अंदर आया, "डॉक्टर बोल रहे थे। अभी उठे हैं, लेकिन कल दोपहर के राउंड के बाद यहाँ से निकल सकते है।"

सिद्धार्थ ने सिर्फ हूं मैं जवाब दिया। कुछ जवाब देने की मनस्थिति में वो था ही नही।

दिल अभीभी उस वाहियात बात पर अटका हुआ था कि,अभी रागिनी को सब पता चल गया होंगा।

इस बात की पुष्टि के लिए उसने वहां सोफे पर बैठे तुषार से पूछ ही लिया, "क्या रागिनी को मेरी बीमारी के बारे में पता चल गया?"

तुषार को क्या जवाब दे पता नहीं था। अगर वो ये बता दे कि रागिनी को पहले से ही पता है तो बहुत सारे सवाल उठ खड़े होंगे।
शादी के बाद से लेकर यह बखेड़ा शुरू हुआ और रागिनी की असली पहचान क्या है और अब तक उसे सब कैसे धोका देते आए है सब सवाल जवाब के चक्रव्यूह से बचने के लिए सही तुषार ने बिना मुंह चलाए ," हां पता चल गया |" यही जवाब दिया।
सिद्धार्थ का दिल सिहर उठा।
"कैसे?" आवाज में कंपन भर गया।

"डॉक्टर से।'' तुषार मानो दिल पर पत्थर रख यह आधा सच - झूठ सामने रख रख रहा था।

पर इस बात से मानो, सिद्धार्थ का दिल पूरी तरह टूट गया |

उसके मन में इस विश्वास ने घर कर लिया की, वो रागिनी को कभी अपनी जिंदगी में जगह नहीं दे सकता| सिर्फ दिल ही ऐसी जगह है जहां उसे वो सबसे छुपाकर रख सकता है।