ताश का आशियाना - भाग 32 Rajshree द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ताश का आशियाना - भाग 32


रागिनी सीधे रूम में चली गई रूम में जाते ही उसका फोन
बज उठा।

Michael

Hello Ragini come back baby.
I already convivence my mom dad.


Ragini
About what?


Michael
They agreed for our marriage, I mean me and Andrew.


Ragini
But how?


Michael

Just I tell them; you didn't want me to marry Ragini so I fell in love with someone else.
And he is Andrew my teammate.


Ragini

This is so cliche. do you get this reason only?


Michael

So what can I tell them that your son is gay and we make a plan to make a marriage of convenience.

Sorry, but this is Most trustworthy reason I got.


Ragini

I am happy for you. I am coming to London soon.

And then you have to tell me what actually happened.

Michael
Ok, See you soon baby.

(रागिनी और माइकल के बीच के संवाद का सारांश ----
माइकल रागिनी से कह रहा है की, वो जल्दी वापस आ जाए लंदन। उसने अपने माता–पिता को बहाना बनाकर उसके और एंड्रयू (टीममेट) के शादी के लिए मना लिया है। )

आखिरकार रागिनी और माइकल की शादी दोनो की निजी बाते छुपाने के लिए रचाया जाने वाला खेल था।

रात बहुत हो चुकी थी। रागिनी अपने कमरे में आराम से सो रही थी|
तभी उसके कमरे में वैशाली आई| उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोल उठी,
जब तू पैदा हुई थी तो तुम्हारे पापा ने पूरे अस्पताल में मिठाइयां बांटी थी की, उन्हे बेटी हुई है।
जन्मने के बाद एक पल भी वह तुझे अपने से दूर नहीं होने देते।
बस ऑफिस से घर इसलिए जल्दी लौटते क्योंकि तेरे साथ वह खेल सके, समय बिता सके।
तुम्हें हमने ऑल गर्ल्स स्कूल में इसलिए डाला ताकि कोई लड़का तुम्हें परेशान ना करें।
तुम्हारे पापा तुमसे बहुत प्यार करते हैं बेटा, काश मैं तुम्हें यह समझा पाती।
तुम्हारी बीमारी के लिए वह खुदको जिम्मेदार मानते हैं| इसलिए तुम्हारी शादी की से अच्छी घराने में करना चाहते हैं।
हम दोनों कभी नहीं चाहते थे कि कभी तुम हमसे दूर रहो और चाहेगी भी क्यों भला, जब तुम हमारे जिंदगी में इकलौती संतान हो।
जब पंडित जी ने कहा की यह सब तुम्हारी वजह से हो रहा है,तो तब भाईसाहब ने सामने सुझाव रखा| तुम्हें दूर बोर्डिंग में भेज देने का ताकि घर में सुख शांति बनी रहे।

इस बात पर तुम्हारे पिता को बहुत गुस्सा आया।
वो बहुत रोए। वह तुम्हारी खुशी चाहते थे इसलिए उन्होंने तुम्हें देविका के यहाँ रखने का फ़ैसला लिया|

वो सिर्फ इतना चाहते थे कि तुम खुश रहो, किस चीज के लिए तुम्हे कभी हाथ फैलाना ना पड़े| मैंने ही सुझाव दिया था उन्हें तुम्हें देविका के पास रखने का।

वैशाली को लग रहा था की रागिनी सो रही है लेकिन रागिनी सब शांत होकर सुन रही थी।

आख़िरकार वो बिस्तर से उठ बैठी, और वैशाली की तरफ एक ही सवाल दागा,
"अगर वह मुझसे कितना प्यार करते थे तो क्यों नहीं मिलने आते थे मुझे?जब मैं पूछती रही कि कहां है मम्मी पापा तो दादाजी एक ही जवाब देते अगले साल आएंगे लेकिन अगला साल कभी नहीं आया| और फिर एक दिन अचानक कहीं से आप आए मुझ पर बेटी का हक जताने लगे, तो आपको क्या लगता है मुझे कैसे रिएक्ट करना चाहिए?”

मैं पूछती हूं, "आपसे क्या अगर कभी मौसी को ब्रेन ट्यूमर नहीं होता तो, क्या आप तब भी मुझे यहां लेकर आते?"
"बोलिए ना आप चुप क्यों है?"
आप दोनों सब कुछ सहन कर रहे हैं तो इतने साल मैंने भी सहन किया है, अपने मां-बाप से दूर रहकर|

मैं आप पर वह लगाव अभी लगा नहीं सकती| अपने पति के बारे में कुछ दो अच्छे बोल मेरे दिल में भर, मुझे आप मेरा बचपन वापस नहीं दिला सकती, जो मैंने किसी और के साथ गुजारा है|
मेरे लिए मेरी देवकी मौसी ही मेरी माँ है|

और रही बात बड़े घराने में शादी करने की तो क्या आप गारंटी देती है मैं वहां खुश रहूंगी|
क्या यह भी मुझसे पीछा छुड़ाने का नया बहाना है|

“बेटा प्लीज!”
रागिनी की आंखों में पानी भर गया, “प्लीज मां! आप मेरी जिंदगी की फैसला मुझे खुद लेने दीजिए| मुझे मेरे माता-पिता का अपमान कर जिंदगी में गिल्ट के साथ नहीं रहना| मैं अपनी जिन्दगी शांति से जीना चाहती हूं, किसी बड़े घराने पर बोझ बनकर नहीं।”
वैशाली की आंखों से आंसू गिर रहे थे। वह बिना उसे समेटे ही वहां से चली गई।

दूसरी तरफ
सिद्धार्थ चुप-चुप सा हो गया था।

रागिनी को सब कुछ पता है इस बात से ही किसी गहरी सोच में डूब गया था।
रागिनी के साथ बिताए गए हर एक पल को वह याद कर रहा था।

बहुत दिनों की तो जान पहचान नहीं थी उन दोनों में फिर क्यों इतना लगाव था उसे उस लड़की से। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, कोई सालों की जान पहचान थोड़ी है|
यही टेप बार-बार उसका दिमाग दोहरा रहा था।
लेकिन दिल अभी भी रागिनी पर ही अटका था की, कहीं रागिनी का रवैया न बदल जाए।

वो वैसे ही पेश ना आए, जैसे लोग उसकी बीमारी के बारे में पता चलने पर पेश आते है|

क्या उन लोगों की ही तरह रागिनी उसको सिंपैथी से देखेगी? या उसे पागल बोल देंगी? उसे डर लग रहा था रागिनी के रिएक्शन से। उसे डर लग रहा था खुद को फेस करने से।

पहली बार रागिनी को मिलना उसकी सबसे बड़ी गलती लग रही थी,उसके साथ समय बिताना गलती लग रही थी।

रागिनी और उसका कुछ भी मेल नहीं यह बात सत्य थी और इसी एक बात पर दिमाग और दिल एक हो गए थे|

सिद्धार्थ अपनी गहरी सोच में डूबा ही था कि कमरे पर तुषार की दस्तक हुई। तुषार के एक हाथों में वाटर बोतल तो दूसरे हाथों में टिफिन था।

“चलो भाई, खाना खा लो।”
“क्या सोच रहे हो?”
"भाभी ने आपके लिए स्पेशल खिचड़ी बनवाईं है।"
सिद्धार्थ बेड पर से उठ गया। तुषार को खाने की अरेंजमेंट करते वक्त देखते हुए सिद्धार्थ ने पूछ ही लिया, "कहां से लाया है,यह खाना?"
"राजू भैया के पत्नी ने बनाया है।"
"क्यों?"
“वह अंकल आंटी कुछ दिनों के लिए गांव गए हैं| वह आपके ताऊजी की डेथ हो गई है|”
“अरे हां! मैं तो भूल ही गया। उन्होंने बताया था मुझे लेकिन वहां ठहरने वाली बात नहीं बोली थी।”
"जब आपका हाईवे पर एक्सीडेंट हुआ था तब मुझे पुलिस से फोन आया था| मैं हॉस्पिटल आने के लिए निकल ही था तभी मुझे वह ड्राइंग रूम में बैठे हुए मिले थे| तभी उन्होंने कहा था वह वहां विधि पूरे होने तक रुकेंगे और कपड़े पैक कर ले गए।"

"ठीक है मैं भी एक दिन जाकर आऊंगा।"
इतनी बातें सुनने के बावजूद भी सिद्धार्थ के मन में ख़ासे दुख ने जगह नहीं ली।
क्योंकि वह अपने माता-पिता को छोड़ किसी से इतना सोशल और मिलनसार नहीं था।

उसने बस वक्त रहते खाना खाया, तुषार ने दी हुई गोलियों ली और कुछ एक-आधे घंटे में सो गया।


अगले दिन सुबह हुई। सिद्धार्थ को आज डिस्चार्ज मिलने वाला था।

तुषार अपने एडिटिंग का काम कर रहा था ताकि वह प्रतीक्षा को जल्द से जल्द यह फिल्म देकर आ सके| सिद्धार्थ भी उसकी मदद कर रहा था|

तुषार ने उसे भले ही आराम करने को कहा था लेकिन सिद्धार्थ मानने वालों में से नहीं था। वह अपनी जिद्द पर अड़ा रहा कि वह तुषार को मदद करना चाहता है,ताकि वह ख्यालों से दूर रहे। तुषार ने कुछ खास छानबीन नहीं की क्योंकि उसे पता था किस ख्याल के बारे में सिद्धार्थ बोल रहा है। दोनों ने मिलकर एडिटिंग जोरों-शोरों से शुरू कर दी|

इस बीच सिद्धार्थ ने तुषार को पूछ लिया, "क्या मां-पापा को मेरे एक्सीडेंट के बारे में पता है?"
नहीं| मेरी उन्हें कुछ बताने की हिम्मत ही नहीं हुई| वह पहले ही आपके ताऊजी के जाने के सदमे में थे।
सिद्धार्थ ने चैन भरी साँस लेते हुए, "तुमने ठीक ही किया उन्हें कुछ नहीं बताया। वहां और 7 दिन रह जाते हैं तो तब तक मैं पूरी तरह ठीक हो जाऊंगा।"
तुषार ने सिर्फ हाँ में सर हिलाया।
सुबह का ब्रेकफास्ट करना था, तो तुषार एक बार फिर राजू के यहां जाने वाला था लेकिन सिद्धार्थ नहीं उसे रोक लिया,“यही दुकान से लेकर आओ घर जाकर हम खाना बना लेंगे।”
“बहार का खाना आपके सेहत के लिए अच्छा नहीं|” तुषार ने डाटते हुए कहा|
"लेकिन तू तब तक वहां पर जाएगा और वापस आएगा तब तक तो दोपहर के खाने का टाइम हो चुका होगा।
और मुझे कुछ होना होता तो कब का हो चुका होता।"

सुबह-सुबह भाभी क्या यहाँ कुछ बना भी होगा या नहीं| क्यों सुबह-सुबह उठकर उन्हें परेशान करना| उससे अच्छा तो बाहर से ही कुछ लेकर आ, बस मेरे लिए तीखा कम लाना।

तुषार को भी आखिरकार बाद जम ही गई।

उसने कुछ 20 मिनट में नाश्ता ला भी लिया। गरमा गरम पूरी और भाजी लाई| और सिद्धार्थ के लिए इमली की चटनी थोड़ी ज्यादा लाई।
दोनों ने अपना नाश्ता खत्म किया।

कुछ सुबह के 11:00 बजे के दरमियान रागिनी का फोन आया।
उसने सिद्धार्थ से बात करने की इच्छा जताई पर तुषार ने कह दिया कि सिद्धार्थ अभी सो रहा है। इस बात पर वो उदास हो गई| उसने सिद्धार्थ और तुषार का हाल हवाल पूछा| तुषार ने सुबह से जो कुछ भी हुआ वह सबकुछ बताया।

रागिनी ने नाश्ते की बात पर खीजते हुए कहा, “एक बार मुझे क्यों नहीं फोन किया मैं तुम्हारे लिए कुछ हेल्दी खाना लाती ऐसा बाहर का खाना ठीक नहीं।”
तुषार थोड़ा शर्मिंदा हो गया। "कहा था, लेकिन भाई ने कहा था कि बाहर से कुछ लेकर आ| सुबह-सुबह परेशान क्यों करना भाभी को, भाभी यानी राजू भैया की पत्नी।"

“तुम्हारे सिद्धार्थ भैया अकल घुटने में लेकर पैदा हुए हैं।”
“अगर आंटी कुछ दिनों के लिए नहीं आती है, तो मुझे बताना मैं वहां जाकर खाना पका दूंगी।”
“जी रागिनीजी, यह प्रस्ताव में सिद्धार्थ भैया तक पहुंचा दूंगा।“
“ध्यान रखना, तुम दोनों का।”
तुषार और रागिनी के बीच में बहुत सी बातें चलने के बाद, सिद्धार्थ शुक्ला की पूरी इन्वेस्टीगेशन ख़त्म होने के बाद दोनों ने फोन रख दिया।
तुषार ने फिलहाल एक और झूठ कहा था की, सिद्धार्थ सो रहा है जबकि सिद्धार्थ उनकी सारी बातें सुन रहा था। बस जब रागिनी ने बात करने की इच्छा जताई तो सीधा उसने मना कर दिया।
तुषार ने हताश होकर बाद आखिरकार बात संभाल ली।
सिध्दार्थ से नाराज होते हुए,
“आपके लिए रागिनीजी कितनी परेशान हो रही है?”
“आपको अचानक से क्या हो गया है?”
सिद्धार्थ का यह सुनते ही चेहरा उखड़ गया। उसने कुछ जवाब ना देते हुए, "मुझे नींद आ रही है मैं सोना चाहता हूं|" बस इतना ही कहा|
तुषार सिद्धार्थ के रग-रग से वाकिफ था फिर भी कुछ कहना नहीं चाहता था। ‌ क्योंकि वह उन दोनों का आपसी मामला था| वह बस उन दोनों के मध्य जुड़ा एक सिर्फ मेडिएटर था।
आखिरकार वह वक्त आ गया जब सिद्धार्थ वहां से डिस्चार्ज होने वाला था।
तुषार ने हंसी मजाक में ही कह दिया, "मैं घर जाकर पहले तो एक घंटा नहाउंगा साला अब तो डिओडरेंट भी काम नहीं कर रहा।"
सिद्धार्थ सिर्फ इस बात पर मुस्कुरा दिया| तुषार को मौहल को लाइटवेट बनाना आता था।
दोनों ने घर आते हुए अपने अलग-अलग ख्याल सोचे थे।
तुषार ने गाड़ी पर ही कहा, "मैं घर जाकर नहाउंगा फिर खाना खाऊंगा और अच्छे से नींद लूँगा|"
सिद्धार्थ ने कहा, "मैं घर जाकर कुछ खाना बना दूंगा, ताकि दोनों मिलकर खा सके।"
लेकिन घर जाते ही, सब बने बनाये तिल के पहाड़ ढह गए,जब दरवाजे पर ताला नहीं मिला।
तुषार और सिद्धार्थ सक्ते में आ गए|
शॉक से बाहर निकल जब तुषार ने घर की बेल बजाई तो दरवाजा गंगा ने खोला।
तीनो एक दुसरे को घुर-घुर कर देखने लगे|
तुषार-सिद्धार्थ विमुख (speechless) हो चुके थे, गंगा की आँखे सिद्धार्थ की हालात देख साइज़ से बड़ी हो गयी थी|


बहुत बड़ी प्रश्नमंजुषा की लहर दौड़ आने वाली थी|